बोले बहराइच - बाढ़ की आफत से राहत का मसौदा हो रहा तैयार, विस्थापितों को ठौर की दरकार
Bahraich News - बहराइच में हर साल बाढ़ का संकट 200 से अधिक गांवों की चार लाख की आबादी को प्रभावित करता है। प्रशासन लाखों रुपये खर्च करने के बावजूद बाढ़ से प्रभावित लोगों को राहत नहीं पहुंचा पा रहा है। लोग हर साल बाढ़...

बहराइच। हर साल बाढ़ की विभीषिका तराई को गहरा जख्म देती है। 200 से अधिक गांवों के चार लाख की आबादी पलायन को विवश होती है। बेजुबानों को भी दो-चार होना पड़ता है। हर साल विभीषिका से बचाने के लिए करोड़ों के वारे-न्यारे होते हैं, लेकिन न तो बाढ़ की विभीषिका से प्रभावित लोगों को निजात मिल पा रहा है और न ही उजड़े आशियाने व उपजाऊ भूमि से बेदखल प्रभावितों को स्थाई ठौर भी मयस्सर हो पा रहा है। लिहाजा दर्द झेलते चार लाख की आबादी इस बार भी प्रशासन के मरहम से जख्म का दर्द मिटाने के लिए उम्मीद बांधे है।
हालांकि प्रशासन बाढ़ से बचाव के मसौदे को अंतिम रूप दे रहा है जिसमें प्रभावितों के भोजन, इलाज व अस्थाई निवास तक के मुकम्मल व्यवस्था का दावा कर रहा है। ---------------- बहराइच, संवाददाता। बारिश का मौसम आने को है। ज्यादा बारिश होने की स्थिति में जीवनदायनी नदियां ही बाढ़ आने पर सबसे ज्यादा कहर ढाती हैं। ऐसे में जिले की चार तहसीलों महसी, मिहींपुरवा, नानपारा व कैसरगंज के 200 से अधिक गांवों की लगभग चार लाख की आबादी को बाढ़ की विभीषिका से राहत नहीं मिल रही है। घाघरा व सरयू नदी जो हर साल बरसात में उफना जाती हैं और जिनके कारण सैकड़ों हेक्टेयर में फसलें नष्ट होती हैं। सैकड़ों बीघे कृषि योग्य भूमि व मकान लहरों में विलीन हो जाते हैं। बाढ़ आने पर रास्ता, खेत व मकान डूब जाते हैं। हैंडपंपों के डूबने से पीने के पानी का संकट खड़ा हो जाता है। खाना बनाने की जगह नहीं मिल पाती है। लोग पेड़ों व दूसरे की छतों तथा रिश्तेदारी में पहुंचकर शरण लेते हैं। बाढ़ से बचाव के लिए प्रशासन हर साल सभी तैयारियां करता है, लेकिन सभी तैयारियां धरी की धरी रह जाती हैं। सभी पीड़ितों तक मदद पहुंचाने में प्रशासन हर बार नाकाम हो जाता है। क्योंकि राजस्व कर्मचारी वहां तक नहीं पहुंच पाते। ऐसे में प्रशासन के प्रति पीड़ितों का भारी गुस्सा देखने को मिलता है। मानसूनी बारिश के साथ ही बाढ़ की दस्तक लोगों के जेहन को अभी करौंदने लगी है। यह हाल तब है जब हर साल आधा दर्जन विभाग आने-अपने स्तर से बाढ़ नियंत्रण का खाका खींचते हैं। बाढ़ व कटान से बचाने के लिए करोड़ों रुपए बजट खर्च होते हैं। शरणालय, दवाइयां व बिजली, पानी पर भी करोड़ों रुपए खर्च होते हैं, लेकिन बाढ़ व कटान में अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाती है। इस बार भी प्रशासन मानसून सत्र से पहले ही बाढ़ व कटान रोकने के सारे इंतजाम करने में जुटा हुआ है। बाढ़ में फंसे लोगों को बचाने के लिए एनडीआरएफ नदी के तटवर्ती लोगों को प्रशिक्षित करने में जुटी है तो सिंचाई विभाग नए तटबंधों के निर्माण व पुराने तटबंधों की मरम्मत के नाम पर पैसा पानी की रह बहा रहा है। प्रभावित लोगों का कहना है कि ऐसे कदम पहली बार नहीं उठाए जा रहे हैं बल्कि हर साल ऐसे इंतजाम होते रहे हैं, लेकिन राहत सिर्फ ईश्वर की कृपा पर ही टिकी रहती है। प्रति वर्ष बाढ़ की विभीषिका झेलते इन गांवों के ग्रामीण महसी तहसील का 1836.712 हेक्टेयर का बढ़ा भू भाग जल प्लावित क्षेत्र है। इसमें बसे 65 गांवों की तकरीबन डेढ़ लाख की आबादी प्रति वर्ष बाढ़ की विभीषिका झेलती है। घाघरा सहित नदियों का जलस्तर बढ़ते ही बाढ़ की आशंका से नदी के तटवर्ती गांवों की धुकधुकी बढ़ जाती है। मांझा दरिया बुर्द के पचासा, गोड़ियन पुरवा, चमरहिया, धोबियन पुरवा बांसगढ़ी, पचदेवरी, चुरईपुरवा, मैकू पुरवा, नरोत्तमपुर के चीरपुर, गयल, नयापुरवा, नकहुआ, केवलपुर के गड़रियन पुरवा, ढकिया, लोधपुरवा, लीलापुरवा, मंगल पुरवा, बिरजा पुरवा, फक्कड़ पुरवा, बेचनू पुरवा, ठकुरन पुरवा, बद्री पुरवा, लोधन पुरवा, रामसहाय पुरवा, गौरिया, दुबहा, जानकी नगर, जोधेपुरवा, टंच, पूरे प्रसाद, मंगल पुरवा, कोटिया, लमही, चमारन पुरवा, सिसैय्या चूड़ामणि, बंभौरी, पूरे अजीत सिंह पुरवा, टिकुरी, कोढ़वा, पिपरी, पिपरा, गोलागंज, कायमपुर, तारापुरवा, छत्तरपुरवा, सिलौटा, कुट्टी बाग, प्रहलाद पुरवा, रानी बाग, जगन्नाथ पुरवा, जोगा पुरवा, घूर देवी, सिपहिया हुलास का चरीगाह, सबद पुरवा, शिवलोचन पुरवा, लोनियन पुरवा, बौंडी, तारा पुरवा, छत्तरपुरवा, सिलौटा, कुट्टी बाग, प्रहलाद पुरवा, बकैना के मजरा डिहुवा, मुड़खलिया, पारा, चकदहा, गौरिया, चमारनपुरवा के अलावा, धनावा, बहदुरिया, रामसहाय पुरवा, शिवुपर का बौंडी व मिहींपुरवा तहसील क्षेत्र के लगभग 50 गांव बाढ़ के पानी से जलमग्न हो जाते हैं। कटान प्रभावित इलाकों में चल ये कार्य घाघरा की कटान रोकने को सिंचाई विभाग की ओर से महसी ब्लॉक क्षेत्र के पचदेवरी गांव में कटान रोधी कार्य चल रहा है। यहां तीन करोड़ रुपए से परक्यूपाइन व जियोबैग लगाने का कार्य किया गया है। वहीं टिकुरी गांव के खत्म होते अस्तित्व को बचाने के लिए चार करोड़ की लागत से परक्यूपाइन व जियोबैग लगाने का कार्य जोरों पर चल रहा है। इसके अलावा 12 बाढ़ चौकियां बनाई गई हैं, तीन स्थाई व तीन अस्थाई बाढ़ शरणालय, आठ लंगर स्थल बनाए हैं। 147 नावों की व्यवस्था के साथ नाविकों की तलाश की जा रही है। गोताखोरों के चिह्नीकरण का कार्य चल रहा है। पशुओं के चारे के लिए खंड विकास अधिकारी को भूसा की व्यवस्था कराने का निर्देश दिया गया है। बौंडी में भी चल रहा कटान रोधी कार्य शिवपुर विकास खंड के ग्राम पंचायत बौंडी के निकट बह रही सरयू नदी में बीते वर्ष जूनियर इंजीनियर आशुतोष शर्मा की देख-रेख में 745 मीटर स्पर बनाकर बालू से भरी बोरियां डालकर कटान रोकने का कार्य शुरू किया गया, लेकिन बाढ़ आते ही स्पर कटकर लहरों में विलीन हो गया। वर्तमान में बांस आदि की बल्लियां डालकर कटान रोकने का कार्य किया जा रहा है। जूनियर इंजीनियर आशुतोष शर्मा ने बताया कि इस समय बौंडी घाट पर 140 मीटर बांस की बल्लियां गाड़ी जा रही हैं। इससे बाढ़ के दौरान कटान रुकेगी। अगर यह कार्य सफल न हुआ तो दूसरा उपाय किया जाएगा। बाढ़ की विभीषिका का दंश झेलते हैं इन गांवों के ग्रामीण बेलहा-बहरौली तटबंध के पश्चिम हर वर्ष सरयू नदी के बाढ़ से कई दर्जन गांव प्रभावित होते हैं। नेपाल में अधिक बरसात होने से पानी भादा नदी होते हुए गोपिया बैराज से डिस्चार्ज होकर नानपारा तहसील के सरयू नदी में आता है। जिससे नदी उफना जाती है। इस दौरान नेवादा पूरे कस्बाती, छीटनपुरवा, रायगंज, दीनापुरवा, गोबिन्देपुरवा, शेखनपुरवा, टेढ़ी, सैय्यद नगर, बसन्तापुर, भकुरहा, एकघरा, एडुकहा, लाला पिपरिया, अहिरन पिपरिया, बाजपुरवा, बल्दुपुरवा, भोलापुरवा, मंहगूपुरवा, अरनवा, कुर्मीनपुरवा, गोड़ियनपुरवा, नवाब बंगला, पसियनपुरवा, डल्लापुरवा, प्रधानपुरवा, गिरदा, पाठक पुरवा, मुरलीपुरवा, खरखट्टनपुरवा, गंगासिंह बेली, बौंडी, ललईपुरवा, गैढ़िया, लैकिहा, शिवपुर बाजार, टिकानपुरवा, सेमईपुरवा, गड़रियनपुरवा, गुजरातीपुरवा, अम्बरपुर, गोरवर्धन पुरवा, तिगड़ा, बेलामकन, चौकसाहार, सोलंखिनपुरवा, कोठारपुरवा आदि गांव जलमग्न हो जाते हैं। कृषि योग्य भूमि और सैकड़ों मकान बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं। पशुओं को चारा देने के लिए कोई स्थान नहीं मिलता है। वर्षों से पुल बनाने की मांग कर रहे हैं बाढ़ पीड़ित शिवपुर ब्लॉक क्षेत्र के ग्राम पंचायत चौकसाहार के झुंडीघाट पर सरयू नदी में पक्का पुल बनवाने की मांग ग्रामीण कई वर्ष से कर रहे हैं, लेकिन उनकी मांग पूरी नहीं की जा रही है। ग्रामीणों का कहना है कि सरयू नदी के उस पार जाने के लिए नाव ही एक मात्र सहारा है। बाढ़ के दिनों में सरयू नदी में इतना पानी हो जाता है कि नाव चलना भी बंद हो जाती है। ऐसे में ग्रामीणों को बड़ी मुश्किल हो जाती है। इमरजेंसी पड़ जाए तो लोग 14 किलोमीटर का लंबा सफर तय करके थाना खैरीघाट, ब्लॉक मुख्यालय, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र शिवपुर तक पहुंचते हैं। ग्रामीणों ने बताया कि इस घाट पर पुल बन जाने से लखीमपुर और सीतापुर के लोग इस पुल से जिले में आ सकेंगे। इसके साथ ही पाठक पुरवा, गिर्दा, तिगड़ा, बेलामकन, मांझा दरिया, ढकिया, बरुही, अंबरपुर, गुजराती पुरवा, पिपरिया जरबधिया, अरनवा, बैबाही, खैरी समैसा, टेढ़ी आदि गांवों के लोगों को बड़ा फायदा मिलेगा। बाढ़ पीड़तों को बचाने के लिए 12 बाढ़ चौकियां बनाई गई हैं। तीन स्थाई व तीन अस्थाई बाढ़ शरणालय, आठ लंगर स्थल बनाए हैं। 57 नावें सरकारी व 90 निजी नावों सहित कुल 147 नावों की व्यवस्था कर ली गई है। पशुओं के चारे के लिए खंड विकास अधिकारी को निर्देशित कर दिया गया है कि भूसा की बाढ़ से पहले व्यवस्था कर ली जाए। आलोक प्रसाद, ज्वाइंट मजिस्ट्रेट/एसडीएम महसी ---------------- बाढ़ पीड़ितों की शिकायत 01- बाढ़ प्रभावित सभी गांवों में प्रशासन की ओर से खाने-पीने की वस्तुएं नहीं पहुंच पाती हैं। 02- बाढ़ प्रभावित सभी गांवों में नावें नहीं प्रदान की जाती हैं, जिससे लोगों को सुरक्षित स्थान पर जाने में दिक्कत होती है। 03- प्रशासन की ओर से पशुओं के चारे की व्यवस्था नहीं मिल पाती है, जिससे पशु कई दिनों तक भूखे रहते हैं। 04- बाढ़ से निपटने के लिए ठोस उपाय नहीं किए जाते हैं जिससे ग्रामीणों को बड़ी समस्या होती है। 05- बाढ़ व कटान पीड़ितों को बाढ़ से नुकसान के बाद क्षति के मुताबिक मुआवजा नहीं मिल पाता है। ---------------- 01- बाढ़ के दौरान प्रभावित गांवों में प्रशासन की ओर से खाने-पीने की वस्तुएं पहुंचाई जाय। 02- बाढ़ आने पर प्रभावित सभी गांवों में नावें लगाकर सुरक्षित स्थान पर पीड़ितों को पहुंचाया जाए। 03- प्रशासन की ओर से पशुओं के चारे की व्यवस्था अभी से की जाए जिससे पशुओं को भूखा न रहना पड़े। 04- घाघरा व सरयू नदी की कटान रोकने के लिए ठोस रणनीति तैयार की जाए। 05- बाढ़ व कटान पीड़ितों को बाढ़ से नुकसान के बाद क्षति के मुताबिक मुआवजा दिया जाए।
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