Challenges Faced by MGNREGA Workers Low Wages and Job Card Issues बोले बलिया: काम की गारंटी और न दाम की, मजदूरी भी हो गई बस नाम की, Balia Hindi News - Hindustan
Hindi NewsUttar-pradesh NewsBalia NewsChallenges Faced by MGNREGA Workers Low Wages and Job Card Issues

बोले बलिया: काम की गारंटी और न दाम की, मजदूरी भी हो गई बस नाम की

Balia News - मनरेगा योजना से जुड़े मजदूरों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। महिलाओं को पूरे साल काम नहीं मिल रहा है और समय पर भुगतान नहीं हो रहा है। जॉब कार्ड की कमी के कारण आवास सुविधाओं से वंचित हैं।...

Newswrap हिन्दुस्तान, बलियाThu, 5 June 2025 10:38 PM
share Share
Follow Us on
बोले बलिया: काम की गारंटी और न दाम की, मजदूरी भी हो गई बस नाम की

गांव-घर पर ही रोजगार की गारंटी देने वाली मनरेगा योजना से जुड़े मजदूर चुनौतियों से जूझ रहे हैं। खासकर महिलाओं को न तो पूरे वर्ष काम मिल पाता है और न ही काम का भुगतान समय से होता है। जबकि, उन्हें मजदूरी के साथ घर की दोहरी जिम्मेदारी निभानी पड़ती है। कई मजदूरों का जॉब कार्ड निरस्त हो गया है। उसे बनवाने के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है। कार्ड के अभाव में वे आवास सुविधाओं से वंचित हैं। यह स्थिति मनरेगा से उनकी दूरी बढ़ा रही है। शहर से सटे दुबहड़ ब्लाॅक के मनियारी जसांव गांव के ग्राम सचिवालय में जुटीं महिला मजदूरों ने ‘हिन्दुस्तान से बातचीत में कार्यस्थल से लेकर घर तक की दिक्कतों का जिक्र किया।

सुभावती ने बताया कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत मजदूरों को 100 दिनों का काम नहीं मिल पा रहा है। जो काम होता है, उसका समय से भुगतान नहीं होता। मजदूरी भी कम है। इसके चलते मजदूर इससे किनारा कर रहे हैं। जॉब कार्ड के जरिए काम मिलता है, लेकिन इसमें दैनिक मजदूरी मात्र 237 रुपये है। बाहर काम करने पर 350 से 400 रुपये मिल जाते हैं। ऐसे में भला कौन मनरेगा में काम करना चाहेगा? बताया कि 60 प्रतिशत कच्चा काम करने के बाद ही हमें पक्के कार्यों में शामिल किया जाता है। काम के बाद महीनों भुगतान के लिए टकटकी लगानी पड़ती है। इसके सहारे घर-गृहस्थी चलाना मुश्किल है। कुसुमी ने बताया कि हम जैसी मजदूरों के परिवार में दोहरी जिम्मेदारी होती है। रोज कमाना और खाना हमारी नियति है। दिहाड़ी पर मिले पैसों से घर के सारे खर्च पूरे होते हैं। दिन भर काम किया और शाम को पैसा नहीं मिला तो समस्या होती है। उधार के सहारे गृहस्थी चलानी पड़ती है। ऑनलाइन हाजिरी में फजीहत: तारा ने बताया कि मेठ या रोजगार सेवक मजदूरों की सुबह-शाम ऑनलाइन हाजिरी लगाते हैं। कार्यस्थल पर अपनी मौजूदगी और किए गए काम को साबित करने के लिए भी हमें काफी मशक्कत करनी पड़ती है। ग्रामीण इलाकों में आज भी इंटरनेट की व्यवस्था सही नहीं रहती है। दूसरे, कई बार मनरेगा का पोर्टल भी बाधित रहता है। इसके चलते ऑनलाइन हाजिरी के लिए जूझना पड़ता है। 400 रुपये हो मजदूरी: संजू ने बताया कि गांव के विकास में हमारी मेहनत होती है। इसके बावजूद मजदूरी काफी कम है। महंगाई को देखते हुए इसे कम से कम 400 रुपये करना चाहिए। मनरेगा में 100 दिन रोजगार की गारंटी देने की बात भी काफी हद तक सही साबित नहीं हो रही। गांवों में ही रोजगार उपलब्ध करवाने का दावा हवा-हवाई है। मुश्किल से 15 से 20 दिन ही काम मिल पाता है। इसके चलते मजदूरों को काम की तलाश में आसपास के गांवों या नगरीय क्षेत्रों में जाना पड़ता है। मजदूरी बढ़ा दी जाय तो मनरेगा से मजदूरों का पलायन नहीं होगा। काम का प्रशिक्षण नहीं: पुष्पा ने बताया कि मनरेगा के मजदूरों को सरकारी स्तर पर कोई प्रशिक्षण नहीं दिया जाता। किसी काम को बेहतर तरीके से कैसे किया जा सकता है, यह बताने वाला कोई नहीं है। यदि हमें योजनाओं और कार्यक्रमों की पूरी जानकारी दी जाय तो कुछ बेहतर बदलाव दिख सकता है। कभी-कभार बैठक होती है, जिसमें सिर्फ यही बताया जाता है कि किस तरह का और कहां काम करना है। बरसात के दिनों में कच्चा काम नहीं मिलता। उस समय रोजी-रोटी का संकट बढ़ जाता है। जॉब कार्ड बनवाना मुश्किल: मधुनी देवी ने बताया कि वर्तमान में मनरेगा मजदूरों की जॉब कार्ड आसानी से नहीं बन पा रहा है। इसके लिए ब्लाक का चक्कर लगाना पड़ता है। कभी इंटरनेट तो कभी किसी और दिक्कत का हवाला देकर हमें लौटा दिया जा रहा है। कार्ड के अभाव में प्रधानमंत्री आवास भी नसीब नहीं हो पाएगा। इसे पहले की तरह सरल तरीके से बनाने की व्यवस्था करनी चाहिए। आयुष्मान भी लाभ नहीं: ललिता ने बताया कि बहुसंख्य मनरेगा मजदूरों के पास आयुष्मान कार्ड नहीं है। इसके चलते गंभीर बीमारी में उचित इलाज नहीं करा पाते। हमारे पास बीमा सुविधा भी नहीं है। कहा कि गांवों में कैंप लगाकर सभी जॉब कार्डधारकों का अनिवार्य रूप से आयुष्मान कार्ड बनवाया जाना चाहिए। साथ ही सामूहिक बीमा भी कराया जाय। इससे मजदूरों को इलाज आदि के लिए किसी का मुंह नहीं ताकना पड़ेगा। रोज कुआं खोदना-पानी पीना नियति: ललिता ने बताया कि गांव में मजदूरी न मिलने की स्थिति में समूह, बैंक से ब्याज पर पैसा लेकर गृहस्थी चलानी पड़ती है। मजदूरी के अभाव में समय से उसका भुगतान नहीं कर पाते। बताया कि शुरुआती दिनों में काम की गारंटी होती थी, लेकिन अब न तो काम की गारंटी है और न दाम की। महंगाई के अनुपात में मजदूरी भी बहुत कम है। पैसा भी समय-समय पर खाते में आता है। हमारी स्थिति रोज कुआं खोदकर पानी पीने जैसी हो गई है। ऐसा ही दर्द कलावती और प्रतिमा ने भी बयां किया। बताया कि गांव में मनरेगा का काम चालू न होने से बच्चों की फीस समय से जमा नहीं हो पाती। काम कब मिलेगा, मजदूरी का भुगतान कब होगा, यह बताने वाला भी कोई नहीं है। यदि हम दूसरे गांव में काम करने न जाएं तो घर-परिवार चलाना मुश्किल हो जाएगा। प्रस्तुति : एनडी राय/श्रवण पांडेय बोले जिम्मेदार निर्धारित मजदूरी का भुगतान मजदूरों को किया जाता है। ग्राम पंचायतों की जिम्मेदारी होती है कि वह कार्य कराएं और मजदूरों को रोजगार दें। कभी कभार तकनीकी दिक्कतों से भुगतान प्रभावित होता है। जॉब कार्ड बनाने में कोई दिक्कत नहीं है। 100 दिनों का रोजगार परिवार को देने का प्रावधान है, प्रयास होता है कि प्रत्येक परिवार को रोजगार दिया जाए। - डीएन पांडेय, उपायुक्त, श्रम एवं रोजगार, मनरेगा सुझाव मनरेगा मजदूरों की मजदूरी बढ़ाई जाए। इससे पलायन रुकेगा और जीवन आसान होगा। ग्राम पंचायतों में नियमित रोजगार की व्यवस्था होनी चाहिए। योजना के अनुसार अनिवार्य रूप से 100 दिन का रोजगार मिले। काम करने के बाद खाते में तत्काल भुगतान की व्यवस्था होनी चाहिए। इससे मजदूरों को आर्थिक परेशानी नहीं होगी। जॉब कार्ड निरस्त होने के बाद बनवाने की प्रक्रिया आसान की जाय। इससे आवास आदि का लाभ भी मिल सकेगा। सभी जॉब कार्डधारकों को आयुष्मान का लाभ मिले, कैंप लगाकर कार्ड बनवाया जाय। शिकायतें मनरेगा मजदूरों को आम मजदूरों से बहुत कम मजदूरी मिलती है। इसके चलते ज्यादातर मजदूर इस योजना से किनारा कर रहे हैं। ग्राम पंचायतों में जरूरत के समय रोजगार नहीं मिल पाता है। दावे के मुताबिक 100 दिन का काम नहीं मिलता। काम करने के बाद महीनों तक खाते में भुगतान नहीं किया जाता। इसके चलते आर्थिक परेशानी उठानी पड़ती है। जॉब कार्ड बनवाने की प्रक्रिया काफी जटिल हो गई है। निरस्त होने के बाद कार्ड बनवाने के लिए काफी भटकना पड़ता है। कई मनरेगा मजदूरों का आयुष्मान कार्ड अब तक नहीं बना है। इससे गंभीर बीमारी का इलाज नहीं करा पाते। सुनें यह पीड़ा मनरेगा के तहत अब तक काम चालू नहीं हुआ है। मजबूरन दूसरे गांव में जाना पड़ता है। सुभावती मजदूरों को कभी भी मजदूरी का पैसा समय से नहीं मिलता। कभी-कभी तो एक साल लग जाता है। कुसुमी मानक के अनुसार मजदूरों को पैसा नहीं दिया जाता है। मजदूरी कम से कम 400 रुपए की जाए। तारा देवी गांव में ही 90 दिन का काम मिलता तो हम मजदूरों को दूसरे गांव में काम करने नहीं जाना पड़ता। अमली देवी जॉब कार्ड बनाने में काफी दिक्कत हो रही है। ब्लाक पर चक्कर काटना पड़ता है। ललिता देवी जॉब कार्ड के अभाव में पीएम आवास का भी लाभ नहीं मिल पाएगा। कार्ड बनवाने में बहुत दिक्कत है। पुष्पा देवी मजदूरों को आयुष्मान योजना का लाभ दिया जाय। सामूहिक बीमा भी कराया जाय। कुसुमी देवी गांव में मजदूरी न मिलने के कारण समूह, बैंक के अलावा ब्याज पर पैसा लेकर घर चलाते हैं। संजू काम न होने से बच्चों की फीस तक समय से जमा नहीं हो पाती। बरसात में मुश्किल बढ़ जाती है। मधुनी देवी कैंप लगाकर आयुष्मान कार्ड बनवाया जाय। समय पर चिकित्सा शिविर में मुफ्त दवा देनी चाहिए। प्रतिमा ऑनलाइन हाजिरी और अपने काम का प्रमाण देने में मजदूरों को काफी दिक्कत होती है। रानी देवी महंगाई के अनुपात में मजदूरी बहुत कम मिलती है। जबकि हम रोज कमाने-खाने वाले लोग हैं। सुधरी बैंक वाले कभी केवाईसी तो कभी अन्य समस्या बता पैसा देने में झंझट करते हैं। कलावती गांव में अब न काम की गारंटी रह गयी है और न ही दाम की। इससे बहुत दिक्कत होती है। ललिता देवी

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।