बोले बलिया: कैंपस में बने रैन बसेरा, कैंटीन का हो इंतजाम
Balia News - जिला अस्पताल में सुविधाओं में वृद्धि हुई है, लेकिन लापरवाही के कारण आम लोगों को लाभ नहीं मिल रहा है। शौचालयों की स्थिति खराब है, पंखे ठीक से काम नहीं कर रहे हैं, और तीमारदारों के लिए आराम करने की कोई...

समय के साथ जिला अस्पताल में सुविधाएं बढ़ी हैं, लेकिन लापरवाही से आम लोगों को लाभ नहीं मिल पा रहा है। मार्बल-टाइल्स वाले शौचालय बदहाल हो गए हैं। कई के दरवाजे टूटे हैं। वार्डों में पंखे दुरुस्त नहीं होते। मरीजों के साथ रहने वाले तीमारदारों के लिए अस्पताल में रात गुजारना चुनौती है। ऐसी कोई जगह नहीं होती, जहां वे आराम कर सकें। कैंटीन न होने सेे उन्हें बाहर की दुकानों से गर्म पानी, चाय-नाश्ते का इंतजाम करना पड़ता है। जिला अस्पताल के नए भवन में ‘हिन्दुस्तान से बातचीत के दौरान मरीजों के तीमारदारों ने अपनी परेशानियों को साझा किया। जयप्रकाश नारायण ने कहा कि अस्पताल में मरीजों की देखभाल करने वाले परिवार के सदस्य, रिश्तेदार या मित्र होते हैं।
मरीज को समय से दवाएं देने, खाना खिलाने, कपड़े बदलने आदि काम तीमारदार ही कराते हैं। तीमारदारों के बैठने या आराम करने की कोई जगह नहीं है। वे वार्ड या आसपास गैलरी की फर्श पर रात गुजारते हैं। शौच आदि के लिए भी बाहर जाना पड़ता है। दो-दिन रुकने पर तीमारदार खुद ही बीमार पड़ सकते हैं। तीमारदारों के लिए आराम गृह की व्यवस्था हो जाए तो काफी राहत मिलेगी। शिवचंद्र बोले, मरीजों के तीमारदारों के खाने-पीने के लिए अस्पताल परिसर में कैंटीन नहीं है। बड़े शहरों के अस्पतालों में यह सहूलियत होती है। कुछ खाने-पीने के लिए मरीज को छोड़कर बाजार में जाना पड़ता है। महिला तीमारदारों को परेशानी अधिक होती है। कविता मिश्रा ने कहा, दिन में जैसे-तैसे काम चल जाता है, रात में खाने-पीने की काफी दिक्कत होती है। मरीज को गर्म पानी या दूध देना हो तो सोचना पड़ता है। राकेश कुमार पांडेय और शिवशंकर सोनी ने बताया कि जिला अस्पताल की ओपीडी में प्राइवेट चिकित्सकों के एजेंट घूमते हैं और तीमारदारों को बहकाते हैं। इसके चलते आए दिन विवाद की स्थिति बनती है। उन एजेंटों अस्पताल प्रशासन को कार्रवाई करनी चाहिए। पीने के पानी की परेशानी: मीना और विद्यावती ने बताया कि दवाओं के लिए अक्सर परेशानी होती है। कई बार चिकित्सक बाहर से दवाएं मंगाते हैं। इससे आर्थिक बोझ पड़ता है। अस्पताल परिसर में पीने के पानी का भी समुचित इंतजाम नहीं है। इतने बड़े अस्पताल में एक जगह आरओ लगा है। वहां प्यास बुझाने के लिए काफी देर इंतजार करना होता है या फिर बोतल का पानी खरीदना पड़ता है। इस समय तेज गर्मी पड़ रही है। इसे देखते हुए अस्पताल प्रशासन को पेयजल की सुविधा बढ़ाने की जरूरत है। पंखे धीमे चलते हैं : शिवचंद्र पासवान ने ध्यान दिलाया कि वार्ड में कई पंखे काफी धीमे चलते हैं। मरीज के लिए अलग से इंतजाम करना पड़ता है। इसकी शिकायत भी कई बार की गई, लेकिन पंखों को ठीक नहीं कराया गया। रात के समय मरीज की तबीयत खराब होने पर नर्स पहुंच जाती हैं, लेकिन चिकित्सक को खोजना पड़ता है। उनके आने में काफी देर हो जाती है। शौचालय गंदे, दरवाजे टूटे : तीमारदार बेबी सिंह और कबूतरी ने बताया कि जिला अस्पताल के नए-पुराने वार्डो में अधिकतर शौचालयों का दरवाजा टूटा हुआ है। इससे महिला मरीज और तीमारदार को परेशानी होती है। शौचालय काफी गंदा भी रहता है। किसी में नल की टोटी ही गायब है। बोलीं, दिन में तीन से चार बार शौचालयों की सफाई होनी चाहिए। हालांकि इसमें दोष तीमारदारों या मरीज को देखने आए लोगों का भी कम नहीं है। वे भी शौचालय की स्वच्छता का ध्यान नहीं रखते। वाहन सुरक्षा की चिंता: विजेंद्र वर्मा ने अस्पताल परिसर में वाहन स्टैंड की जरूरत बतायी। कहा कि रात में रुकने पर वाहन को सुरक्षित रखना चुनौती है। कई बार अस्पताल परिसर से बाइक चोरी की घटनाएं हो चुकी हैं। परिसर में स्टैंड की सुविधा न होने से लोग मजबूरी में जहां-तहां अपनी गाड़ी खड़ी करते हैं। अस्पताल प्रशासन को एक वाहन स्टैंड बनवाना चाहिए। चाहे तो इसका वह शुल्क भी ले सकता है। प्रस्तुति: एनडी राय/श्रवण पाण्डेय स्ट्रेचर की समस्या का किया जाय समाधान रामजी ने बताया कि जब कोई अधिकारी निरीक्षण के लिए आता है तो इमरजेंसी के बाहर स्ट्रेचर रख दिया जाता है। कुछ दिनों तक व्यवस्था रहती है, लेकिन फिर वे गायब हो जाते हैं। इससे मरीजों को ओपीडी से नए भवन तक लाने में परेशानी होती है। वहीं, ऐसे भी लोग हैं जो अपने मरीज को वार्ड में ले जाने के बाद स्ट्रेचर जहां-तहां छोड़ देते हैं। अस्पताल प्रशासन को उन्हें खोजवाना पड़ता है। इस समस्या के समाधान का ठोस प्रयास होना चाहिए। सुझाव दिया कि रेलवे स्टेशन की तरह यहां भी आधार कार्ड जमा कराकर ह्वील चेयर देने की व्यवस्था होनी चाहिए। सुझाव तीमारदारों के लिए आराम गृह बनवाना चाहिए। फर्श पर बैठकर या लेटकर रात गुजारने से मुक्ति मिलेगी। जिला अस्पताल परिसर में कैंटीन की सुविधा होनी चाहिए। इससे मरीजों छोड़कर खाने के लिए बाजार में नहीं जाना पड़ेगा। शौचालयों की नियमित सफाई होनी चाहिए। इसके टूटे दरवाजों को भी ठीक कराया जाय। लिफ्ट के लिए किसी कर्मचारी की तैनाती कर उसका संचालन कराया जाए। इससे मरीजों को वार्ड में ले जाना आसान होगा। अस्पताल परिसर में वाहन स्टैंड होना चाहिए। पीने के पानी का भी पर्याप्त इंतजाम किया जाय। शिकायतें रात में तीमारदारों के बैठने या आराम करने की कोई जगह नहीं है। गलियारों या वार्डों में फर्श पर ही बैठना-लेटना पड़ता है। अस्पताल में कैंटीन नहीं है। मरीज को छोड़कर बाजार में जाना पड़ता है। मरीजों को गर्म पानी-दूध देना मुश्किल हो जाता है। शौचालयों की नियमित सफाई नहीं होती। कई शौचालयों के दरवाजे भी टूटे हुए हैं। अस्पताल के नए भवन में लगी लिफ्ट चल नहीं रही है। इसके चलते मरीज को लेकर ऊपरी तलों पर आना-जाना मुश्किल होता है। इमरजेंसी से नए अस्पताल भवन का रास्ता खराब है। स्ट्रेचर लेकर आने-जाने में परेशानी होती है। मरीजों की सुविधा के लिए लिफ्ट को ठीक कराना जरूरी जिला अस्पताल में 100 बेड के नए भवन का उद्घाटन 23 अगस्त 2003 को पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने किया था। ज्यादातर मरीज इसी भवन के विभिन्न वार्डों में भर्ती होते हैं। नए भवन में लिफ्ट भी है। यह उद्घाटन के बाद कुछ दिन तक चली। वर्षों तक खराब रहने के बाद करीब पांच वर्ष पहले तत्कालीन सीएमएस दिवाकर सिंह के कार्यकाल में नई लिफ्ट लगी। इसकी जिम्मेदारी सन इंफ्रा कंस्ट्रक्शन लखनऊ को दी गई थी। इसमें एक मरीज के साथ आठ लोगों के चढ़ने की क्षमता थी। ट्रायल के दौरान ही मोटर जली तो दो वर्ष तक वैसे ही पड़ी है। तत्कालीन डीएम भवानी सिंह खंगारौत ने कार्यदायी संस्था पर मुकदमा भी कराया। तब मरम्मत हुई लेकिन मैनपावर के अभाव में वह अबतक चालू नहीं हो सकी। एक छत के नीचे हो ओपीडी-पैथोलॉजी विजेन्द्र वर्मा ने बताया कि जिला अस्पताल की इमरजेंसी से मरीज को नए भवन के अस्पताल तक पहुंचाना आसान नहीं होता। रास्ता काफी खराब है। कभी-कभी स्ट्रेचर पर लेटा मरीज चीखने लगता है। एक्स-रे, सीटी स्कैन, पैथोलॉजी आदि नए भवन में ही हैं। इसे देखते हुए रास्ते को ठीक कराया जाना चाहिए। शिवशंकर ने कहा कि यदि किसी मरीज का हाथ-पैर टूट गया है तो उसे पुराने भवन की ओपीडी में आर्थोसर्जन को दिखाने आना पड़ता है। डाॅक्टर की सलाह पर मरीज को एक्स-रे या सीटी स्कैन के लिए नए भवन में जाना पड़ता है। तीमारदारों के लिए यह आसान नहीं होता। ओपीडी, एक्स-रे, सीटी स्कैन और पैथालाजी सुविधा एक ही छत के नीचे होनी चाहिए। बोले जिम्मेदार रैन बसेरा और कैंटीन बनवाई जाएगी जिला अस्पताल परिसर में तीमारदारों के ठहरने और आराम करने के लिए रैन बसेरा, कैंटीन बनाने की योजना है। इंडियन ऑयल कारपोरेशन के सीएसआर फंड से इसके लिए पिछले वित्तीय वर्ष में पहल हुई, लेकिन जमीन नहीं मिलने से निर्माण नहीं हुआ। फिर पहल करते हुए रैन बसेरा और कैंटीन बनवाई जाएगी। अस्पताल प्रशासन से बात कर पुराने से नए भवन तक जाने वाली सड़क को ठीक कराया जाएगा। -दयाशंकर सिंह, बलिया नगर विधायक और परिवहन राज्य मंत्री हमारी परेशानी वार्डों में बने शौचालय अक्सर गंदे रहते हैं। दिन में तीन से चार बार उनकी सफाई होनी ही चाहिए। विजेंद्र वर्मा कोई अधिकारी आता है तो इमरजेंसी के बाहर स्ट्रेचर रखे जाते हैं। इसके बाद हटा दिए जाते हैं। जयप्रकाश ज्यादातर शौचालयों का दरवाजा टूटा है। महिला तीमारदारों को काफी दिक्कत होती है। राकेश पांडेय जिला अस्पताल में तीमारदारों के बैठने के लिए किसी भी वार्ड के अंदर या बाहर कोई व्यवस्था नहीं है। मीना भर्ती मरीजों के साथ की महिला तीमारदारों के रात में ठहरने के लिए अलग से रैन बसेरा नहीं है। विद्यावती तीमारदारों के खाने-पीने के लिए अस्पताल में कैंटीन की व्यवस्था नहीं है। इसकी व्यवस्था होनी चाहिए। बेबी सिंह महिला तीमारदारों के लिए बाथरूम तो हैं लेकिन वह गंदे रहते हैं। वहां नहाना संभव नहीं हो पाता। कविता मिश्रा अस्पताल के शौचालयों में इंडियन स्टाइल की सीट तो हैं लेकिन कमोड नहीं हैं। कई मरीज बैठ नहीं पाते। आरती पांडेय अस्पताल का नया भवन बनने के बाद से ही यहां की लिफ्ट चालू नहीं हुई। उसे ठीक कराया जाय। शिवशंकर सोनी जिला अस्पताल की इमरजेंसी और ट्राॅमा सेंटर से स्टेचर पर मरीज को ले जाने में काफी दिक्कत होती है। शिवचंद्र अस्पताल के नए भवन में वर्षो पुरानी आरओ मशीन लगवाई गई है, जो अब शोपीस बनी हुई है। रामजी
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