ज्योतिष में समय का ज्ञान और वास्तु में दिशाओं पर अध्ययन करते
Lucknow News - - एलयू में वास्तुशास्त्र के शास्त्रीय सिद्धान्तों का व्यावहारिक उपयोग पर व्याख्यान हुआ लखनऊ,

लखनऊ विश्वविद्यालय के ज्योतिर्विज्ञान विभाग में वास्तुशास्त्र के शास्त्रीय सिद्धान्तों का व्यावहारिक उपयोग पर व्याख्यान हुआ। मुख्य वक्ता वास्तुशास्त्र के अजय गौर ने बताया कि वास्तुशास्त्र भारतीय ज्ञान परम्परा का अभिन्न अंग है। प्राचीन भारतीय ऋषि-मुनियों ने बहुत ही सूक्ष्मरूप से पंचतत्त्वों के शरीर और मन पर प्रभाव का अध्ययन कर इस शास्त्र का निर्माण किया है।
विशिष्ट वक्ता अजय गौर ने कहा कि वास्तु और ज्योतिष एक दूसरे के पूरक है। वास्तु में एक शब्द दिक्काल यानि दिक और काल आता है। दिक् का अर्थ दिशा और काल का समय होता है। ज्योतिष में समय का ज्ञान किया जाता है और वास्तु में दिशाओं पर अध्ययन किया जाता है। कहा कि यदि किसी की जन्मपत्री में सूर्य लग्न में हो तो जातक के घर में ऊर्जा पूर्व की दिशा से आए यानी पूर्व दिशा में खुला होगा या खिड़कियां अधिक होंगी और सूर्य के साथ मंगल और केतु भी बैठा है तो जातक के घर के सामने रोड आ रही होगी। इसी तरह से यदि किसी की कुंडली में प्रथम भाव में शनि बैठा है तो जातक के घर की पूर्व दिशा में प्रकाश की कमी होगी यानी खिड़कियां नहीं होगी या फिर सामने कोई भारी मकान बना होगा जिससे घर में प्रकाश नहीं आएगा। अजय गौर ने बताया कि जैसे हर व्यक्ति की कुंडली अलग होती है, उसी तरह से हर व्यक्ति का वास्तु अलग होता है। संचालन डॉ. अनिल कुमार पोरवाल ने किया। डॉ. बिपिन कुमार पांडेय, डॉ. अनुज कुमार शुक्ल, डॉ. प्रवीण कुमार बाजपेई, कोमल सिंह समेत सैकड़ों छात्र-छात्राएं और अध्यापक उपस्थित रहे। अध्यक्षता कला संकाय के अधिष्ठाता प्रोफेसर अरविंद मोहन ने की।
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