बोले मथुराः उड़त अबीर गुलाल कुमकुमा केशर की पिचकारी रे रसिया
Mathura News - बोले मथुरा-सब जगह जब रंगों की मस्ती खत्म हो जाती है, तब बल्देव के दाऊजी मंदिर

सब जगह जब रंगों की मस्ती खत्म हो जाती है, तब बल्देव के दाऊजी मंदिर में अनूठा हुरंगा होता है। यह हुरंगा आज भी होली को लेकर चली आ रही कहावत..देखो ये ब्रज देस निगोरा, सब जग होरी, ब्रज में होरा...को चरितार्थ करता है। यहां हुरंगे में भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम (दाऊजी) से हुरियारिनें गोपियों के रूप में होली खेलती हैं। यहां हुरियारों पर लाठियों की जगह प्रेम पगे पोतनों की बरसात होती है। ये पोतने भी हुरियारों के कपड़ों को फाड़ कर हुरियारिनें हाथों-हाथ तैयार करती हैं। अबीर-गुलाल, फूलों की पंखुड़ियों और टेसू फूलों से तैयार प्राकृतिक रंगों की बेशुमार बरसात यहां के हुरंगे का सबसे बड़ा आकर्षण है। ब्रज में बसंत पंचमी से शुरु होने वाले होली उत्सव को 40 दिवसीय कहा जाता है, लेकिन बलदेव में यह होली 45 दिनी होली महोत्सव होता है। यह महोत्सव बसंती पंचमी से लेकर चैत्र मास की रंग पंचमी तक चलता है। बल्देव के दाऊजी मंदिर में वसंत पंचमी से होली महोत्सव का प्रारंभ हो जाता है। धीरे-धीरे यह महोत्सव अपनी चरमता पर पहुंचता है। होली पर श्री दाऊजी महाराज होली के रसिया स्वरुप में भक्तों को दर्शन देते हैं।
दाऊजी मंदिर का हुरंगा सबसे ज्यादा आकर्षण का केन्द्र होता है। पूरी दुनियां में जब रंग का खेल खत्म हो जाता है, उसके अगले दिन दाऊजी मंदिर में विश्व प्रसिद्ध हुरंगा होता है। इस हुरंगे के लिए ही मंदिर प्रांगण में बड़े-बड़े हौद बने हुए हैं। इन हौदों में टेसू के फूलों को चूना और फिटकरी डालकर भिगो दिया जाता है। हुरंगे वाले दिन ये सभी हौद प्राकृतिक केसरिया रंग से भर जाते हैं। इसमें इत्र का भी मिश्रण किया जाता है। हुरियारिनें यहां होली खेलने पहुंचती हैं। वे बाल्टियों में केसरिया रंग भरकर हुरियारों पर उड़ेलती हैं और उनके कपड़े फाड़कर उससे पोतने (कोड़े) तैयार करती हैं। इन्हीं प्रेम पगे पोतनों से हुरियारों की जमकर पिटाई की जाती है। करीब दो घंटे तक चलने वाले इस हुरंगे को देखने के लिए देश-विदेश के श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।
ये श्रद्धालु मंदिर की छतों बैठ कर हुरंगे का आनंद लेते हैं। हुरंगे में मशीनों से अबीर-गुलाल और फूलों की पंखुड़ियों की होने वाली बरसात आकर्षण का केन्द्र होती है। हुरंगे का समापन बलराम रूपी झंडी को हुरियारों से छीनने के बाद हुरियारिनें विजय मनाती हैं। रंग पंचमी के दिन देवरों द्वारा अपनी भाभियों को मिठाई भेंट करके काजल लगवाने की परंपरा का निर्वहन आज भी यहां होता है। इससे पूर्व फागुन मास की एकादशी से सुबह मंगला दर्शन के समय सेवायत परिवारों की महिलाएं श्री दाऊजी महाराज की परिक्रमा के बाद मंदिर प्रांगण में हुरंगा की तैयारियों के लिए ब्रज के लोक गीतों पर नृत्य करती हैं। हिन्दुस्तान द्वारा आयोजित संवाद में मंदिर के मुख्य पुजारी राम निवास शर्मा ने बताया की मंदिर में सुबह आरती के समय और रात्रि में शयन से पूर्व समाज गायन चल रहा है। आरती के समय गुलाल व टेसू के फूलों से बने रंग की बरसात भक्तों पर होती है। मंदिर में होने वाले समाज गायन से भक्ति व आनंद की वर्षा प्रतिदिन हो रही है।
होली के दिन ठाकुर जी को विशेष प्रकार का श्रृंगार धारण कराया जाता है। होली महोत्सव पर समाज गायन की मंदिर में सैंकड़ों वर्ष पुरानी परंपरा है। समाज गायन के समय विभिन्न प्रकार के वाद्य यंत्रों ढोल, ढप, मजीरा आदि के माध्यम से समाज गायन होता है। गुलाल की वर्षा से श्रद्धालु धन्य नजर आते हैं। समाज गायन में श्री दाऊजी महाराज खेले फाग, बलराम कुमार होरी खेले, होरी खेलत कृष्ण बलराम आदि पदों का गायन होता है। समाज गायन में प्रतिदिन सैंकड़ों की संख्या में सेवायत उत्साह के साथ भाग लेते हैं। रात्रि के समय समाज में फउआ (मिठाई) का वितरण किया जा रहा है। समाज गायन में गुलाल की वर्षा होती है तो बड़ा ही आनंदित व साक्षात देव लोक बन जाता है।
लोगों की प्रतिक्रियाएं
दाऊजी महाराज के हुरंगा की गोपिकाएं पंद्रह दिन पूर्व से अपनी तैयारियां प्रारंभ कर देती हैं। सेवायत महिलाएं लहंगा, फरिया पहनकर सुबह नगर परिक्रमा के समय मंदिर में एक घंटे तक नृत्य करती हैं, जिसमें सैकड़ों की संख्या में महिलाएं शामिल होती हैं। एक से परिधानों में वह दृश्य बड़ा ही सुंदर लगता है, जिसमें नव वधु से लेकर वृद्ध माताएं भी शामिल रहती हैं।
-रानी पांडेय
जब में प्रथम बार हुरंगा खेलने आई थी, तो अपने मन में बड़ी उमंग थी। मैंने केवल दाऊजी के हुरंगा के बारे में सुना था। देखा नहीं था। जब प्रथम बार मंदिर आकर हुरंगा खेला तो अपने आप को आनंदित महसूस किया। वास्तव में बहुत सौभाग्यशाली हूं कि मुझे दाऊजी के आंगन में हुरंगा खेलने का अवसर मिलता है।
-बेबी पांडेय
हुरंगा से तीन दिन पूर्व मंदिर में बने बड़े-बड़े होजों में टेसू के फूलों को गला कर हुरंगा का प्राकृतिक रंग तैयार किया जाता है। प्राकृतिक रंगों को शरीर पर डालने से कई रोग दूर हो जाते हैं। टेसू के फूलों को चालीस फीट लंबे, तीन फुट चौड़े और पांच फीट गहरे विशाल होजों में तीन दिन पहले गला कर तैयार किया जाता है।
-डॉ. घनश्याम पांडेय
श्री दाऊजी महाराज का हुरंगा करीब 452 वर्ष पुराना है, जो अनवरत रूप से आज तक कल्याण देव वंशज चला रहे हैं। हुरंगा में सेवायत 850 परिवारों के सदस्य हुरंगा खेलते हैं। दाऊजी का हुरंगा अद्वितीय है। सरकार को इस हुरंगे के लिए और बेहतर इंतजाम करने चाहिए, ताकि इसे और आकर्षक रूप प्रदान किया जा सके।
-हरदेव पांडेय
दाऊजी महाराज की होली में चार बार मंदिर में डाढा गाड़ा जाता है, जो बसंत पंचमी, माघ पूर्णिमा, होलिका अष्टक एवं होली के दिन गाड़ा जाता है। 45 दिन दाऊजी महाराज के कपोलों पर रोजाना गुलाल लगाया जाता है, उसके बाद श्रद्धालुओं पर गुलाल उड़ाया जाता है। ऐसी परंपरा कहीं भी देखने को नहीं मिलती।
-रामनिवास शर्मा, मंदिर मुख्य पुजारी
दाऊजी महाराज मल्ल विद्या के गुरु हैं। दाऊजी महाराज को मंदिर में भांग का भोग प्रतिदिन एक घंटे लगाया जाता है। हुरंगा के दिन हुरंगा खेलने से पूर्व दाऊजी महाराज को भांग का भोग लगा कर हुरियारों की टोली मस्ती से खेलती है, भंग की तरंग में वह प्रेम पगे कोड़ों की मार सह जाते हैं।
-तारक नाथ पांडेय
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