बोले मेरठ : नौचंदी : अव्यवस्था और मौसम की मार से हर साल जूझ रहा मेला
Meerut News - नौचंदी मेले का उद्घाटन होली के बाद दूसरे रविवार को होता है, लेकिन इस बार मेला काफी देर से शुरू हुआ। दुकानदारों का कहना है कि इस बार कम दिन कारोबार करने को मिलेंगे। मौसम के कारण समस्याएं बढ़ सकती हैं।...

ऐतिहासिक नौचंदी मेले का होली के बाद दूसरे रविवार को उद्घाटन होता है। लेकिन इस बार मेला लगने में काफी देर हो गई। दूसरा मेले में आए दुकानदारों को मौसम की मार से काफी नुकसान उठाना पड़ा। सोमवार को मेला नाैचंदी का शुभारंभ हो गया लेकिन यहां के दुकानदारों का कहना है कि देर से शुरू हुए इस मेले में उन्हें कम ही दिन कारोबार करने को मिलेंगे। आने वाले दिनों में मौसम के कारण परेशानी भी उठानी पड़ सकती है। उन्होंने मेले में सुविधाएं बढ़ाने के साथ मेला अविधि भी बढ़ाने की मांग की है। नौचंदी मेले को जानने के लिए मेले से संबंध रखने वाले लोगों से हिन्दुस्तान बोले मेरठ टीम ने संवाद किया।
मेले के देरी से लगने और व्यवस्थाओं में बदलाव को लेकर लोगों के मन की बात को जाना। नौचंदी मेले को लेकर लोगों का कहना है कि मुगलकाल से चले आ रहे नौचंदी मेले की व्यवस्था में लगातार बदलाव होता जा रहा है। इस मेले ने कई दौर देखे हैं, शासन चाहे अंग्रेजी हुकूमत का रहा हो या फिर स्वतंत्रता संग्राम का दौर, नौचंदी की शान कभी कम नहीं हुई। 1857 का स्वतंत्रता संग्राम देखने का गौरव भी नौचंदी से अछूता नहीं रहा। लेकिन धीरे-धीरे यह मेला अपनी पहचान और परंपरा को खोता जा रहा है, जिसे शहर के लोगों को मिलकर बचाना होगा। समय से पीछे हटती व्यवस्था नौचंदी मेला परिसर में मौजूद चंडी देवी मंदिर समिति के अध्यक्ष एडवोकेट देवेंद्र शर्मा का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों से मेला समय पर नहीं लग पा रहा है। कोरोना काल के बाद से मेला अपने समय से पीछे होता जा रहा है। इस बार भी मेला काफी देर से लग रहा है, ऐसे में यहां दूर दराज से आने वाले दुकानदारों को आपेक्षित लाभ नहीं हो पाता है। एक तरफ आरती, दूसरी ओर कव्वाली पंडित संजय शर्मा, अमित विक्रम शर्मा और विभोर अग्रवाल बताते हैं कि मेला शुरू होते ही एक नया अहसास होता था। यह मेला दो धर्मों का संगम भी है, जहां सामने चंडी देवी मंदिर है और बाले मिया की मजार है। मेले के दौरान एक तरफ जहां आरती चलती थी, वहीं दूसरी ओर कव्वाली सुनाई देती थी। लेकिन इस बार तो मेला ही बहुत देर से शुरू हो रहा है । जो इस मेले की परंपरा को कहीं पीछे धकेलता नजर आता है। व्यापार और संस्कृति का संगम नौचंदी मेला मोनू त्यागी, आकाश सिंघल और सन्नी चड्ढा बताते हैं कि यह मेला केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मेरठ और आसपास के क्षेत्रों के कारीगरों, व्यापारियों और कलाकारों के लिए भी एक बड़ा मंच है। यहां लकड़ी का फर्नीचर, हैंडमेड ज्वेलरी, पश्चिमी उत्तर प्रदेश की हथकरघा कला, और पारंपरिक खाने-पीने की चीजें मिलती हैं। ये मेला छोटे-बड़े व्यापारियों के लिए उम्मीद की किरण होता है। यादों के झरोखों से झांकता अहसास सूरजकुंड चौराहा स्थित हंस परिवार की (हंस इंजीनियरिंग) सदस्या सुमन जिंदल (67 वर्ष) कहती है, कि नौचंदी मेले के गिरते स्तर, आसामाजिक तत्वों का गढ़ बनने से अच्छे परिवार के लोग अब नौचंदी मेला नहीं जाते। एक जमाना था, कि बच्चों से लेकर बड़ों तक में नौचंदी मेले का क्रेज होता था। नौचंदी मैदान से लेकर सूरजकुंड चौराहे से आगे मंदिर तक झालरें, लाइटें लगाई जाती थी। रात में दो-तीन बजे तक लोग नौचंदी मेले में घूमते थे। पहले मनोरंजन के साधन सीमित होते थे। मेला ही मनोरंजन का केंद्र रहते थे, जिनमें लोग परिवार के साथ जाते थे। परिवार के साथ मेले में लोग पिकनिक, आउटिंग करते थे। नौचंदी मेले में लोग दूर-दराज इलाकों से आते थे। रिश्तेदार, मित्र तक पहुंचते थे। धीरे-धीरे नौचंदी मेला अपनी पहचान और स्वरूप खोता जा रहा है। वो स्वाद आज भी है खास प्रमुख समाजसेवी एवं कारोबारी सुरेंद्र प्रताप की पत्नी शीला देवी कहती है, कि पुराने दौर में मेरठ में मनोरंजन का साधन सिर्फ नौचंदी मेला ही था। नौचंदी मेले में लोगों का परिवार के साथ आना-जाना, घूमना, हलवा-पराठा, भेल-पुरी, सॉफ्टी, आइसक्रीम खाना आदि आज भी याद आता है। परिवार के लोग नौचंदी मेले में शिविर लगाकर मेले में आने वाले लोगों की सेवा किया करते थे। हम भी बच्चों और परिवार के साथ रोजाना मेले में आते-जाते थे और पांच-छह घंटे रात में रोजाना मेले में ही बिताते थे। अब यहां कुछ नहीं रह गया, कुछ बाकी बचा है, तो सिर्फ नाम का नौचंदी मेला। पिछले कई सालों से मेला अपने समय पर शुरू नहीं होता। गांवों से लोगों ने आना बंद कर दिया है। अब रिश्तेदार और संबंधी भी नौचंदी मेले में न तो आते है, और न ही बात करते थे। व्यापार का मुख्य केंद्र था नौचंदी मेला संयुक्त व्यापार संघ के अध्यक्ष नवीन गुप्ता कहते है, कि मेला नौचंदी शहर की शान हुआ करता था। व्यापार का मुख्य केंद्र होता था। अब मेला औपचारिकता भर रह गया। स्थानीय प्रशासन के अफसरों की इच्छाशक्ति का अभाव, आपसी खींचतान, अफसरों के ईद-गिर्द रहने वाले लोगों को मेला समिति में सदस्य बनाया जाना, कार्यक्रमों के नाम पर बंदरबाट आदि ने मेले को खत्म ही कर दिया। यादों में सिनेमाघर और मेले के दरवाजे लोग बताते हैं कि मेरठ शहर में दर्जनभर सिनेमा हुआ करते थे। मेला देखने आने वाले लोग पहले नौचंदी घूमते थे और फिर थियेटर में फिल्म देखते थे। इनमें आम्रपाली, नंदन, गुलमर्ग, ईव्ज, जगत, मेघदूत, निशात, निगार, मेफेयर, रीगल, पैलेस, प्लाजा थियेटर, फिल्मिस्तान, अप्सरा, मेनका, मधुबन, मेहताब, नटराज, रमेश थियेटर, ओडियन, अजंतास, अनुराग, रिवोली सिनेमा शामिल थे। इनमें 6-7 शो चला करते थे, लेकिन अब ये सब यादों में रह गए हैं। नौचंदी मेले में आने के लिए छह से आठ गेट हैं। इनमें शंभू गेट, तिरंगा गेट, शहीद द्वार, इंदिरा गेट, सुभाष द्वार आदि शामिल हैं। शिकायतें मेला शुरू होने का समय लगातार पीछे हट रहा है पहले दूर-दूर से व्यापारी व्यापार के लिए आते थे उद्घाटन होने के बाद मेले की प्रक्रिया शुरू नहीं होती जनसंख्या तो बढ़ी, लेकिन मेला परिसर कम हो गया लंबे अर्से से दुकान लगाने वालों को नहीं मिलती दुकान सुझाव लोग चाहते हैं कि मेले की शुरुआत समय पर हो नवरात्रों के दौरान लगने वाला मेला अपने रूप में लौटे बढ़ती जनसंख्या के हिसाब से मेले का परिसीमन हो जो लंबे समय से दुकान करते आ रहे हैं उन्हें ही आवंटन हो नौचंदी परिसर में सफाई की व्यवस्था दरुस्त हो बयां किया दर्द नौचंदी मेले का आधार ही चंडी देवी मंदिर है, होली के दूसरे रविवार को उद्घाटन होता है, लेकिन मेला अपने रंग में होता था। - पंडित महेंद्र शर्मा अब पहले जैसा मेला कहा रह गया है, जिस मकसद से मेला लगता था अब वह भी पूरा बदल गया है, समय पर कुछ नहीं होता। - मोनू त्यागी यह मेला एकता का प्रतीक रहा है, सभी धर्मों के लोग इस मेले में आते हैं, दूर-दूर से व्यापारी आकर यहां व्यापार जमाया करते थे। - मुफ्ती मोहम्मद अशरफ, अध्यक्ष, बाले मिया कमेटी मेला इस बार काफी देरी से लग रहा है, परंपरा के अनुसार होली के बाद दूसरे रविवार से नौचंदी शुरू हो जाती थी, इस बार बहुत लेट है। - मेराजुद्दीन अंसारी, उपाध्यक्ष, बाले मिया कमेटी इस बार मेला काफी लेट लगा है, मैं पिछले 45 सालों से यहां सोफ्टी की दुकान लगाता हूं, इस बार मेरे साथ दिक्कत हो रही है। - बालमुकुंद ठकराल, सोफ्टी व्यापारी, मथुरा निवासी हमारे पिताजी इस मेले में बहुत सालों से रेस्टोरेंट चलाते हैं, यहां खाने पीने की चीजें बनाते हैं, मेले की परंपरा लगातार बदल रही है। - मुकेश तिवारी, व्यापारी मेले की जो परंपरा है, उसमें लगातार बदलाव होता जा रहा है, पहले होली के बाद मेला शुरू हो जाता था, अब महीनों बाद शुरू हो रहा है। - प्रमोद तिवारी, व्यापारी मैं मेले में फेब्रीकेटर का काम करता हूं, व्यापारियों की दुकानों को तैयार करता हूं, एक बार मेले में बनाई छतरी से रिकॉर्ड भी दर्ज है। - कय्यूम ठेकेदार, फेब्रीकेटर मेला शुरू हो जाता था, इसके बाद उद्घाटन हुआ करता था, लोगों का आना जाना शुरू हो जाता था, अब मेला कई महीने पीछे है। - आकाश सिंघल मेले की कमान एक साल जिला पंचायत और एक साल नगर निगम के हाथों में होती है, इस बार मेला नगर निगम देख रहा है। - सन्नी चड्ढा यह मेला एकता का भी प्रतीक है, नवरात्रों में मेला भर जाया करता है, इस बार नवरात्र में कुछ नहीं हुआ, कई महीने बाद शुरू होगा। - पंडित संजय शर्मा छोटे-छोटे थे, तो मेले में घूमा करते थे, अब तक तो मेला सिमट जाता था, इस बार तो अभी तक भी यह मेला पूरी तरह से नहीं लगा। - अमित विक्रम शर्मा चंडी देवी के नाम से ही नौचंदी मेला लगता आ रहा है, नवरात्रों में मेला भरा होता था, लेकिन अब इसकी व्यवस्था पूरी तरह बदल गई है। - देवेंद्र शर्मा पहले जो मेले में आनंद हुआ करता था, अब वो नहीं रहा, समय के साथ इस मेले की व्यवस्थाओं में लगातार बदलाव होता जा है। - विभोर अग्रवाल पहले हलवा पराठा, नान खताई और सोफ्टी की दुकानें बहुत पहले ही लग जाया करती थीं, इस बार तो मेला ही कई महीने पीछे है। - संदीप कुमार मेला देखने लोग बहुत दूर-दूर से आया करते थे, घोड़े तांगों पर लोग आते थे, लेकिन अब साधन होने के बाद भी मेला खाली लगता है। - भागेश शर्मा चंडी देवी मंदिर में नवरात्रों के दौरान पूजा हुआ करती थी, यह प्राचीन और सिद्ध मंदिर है, इसके नाम पर ही यह मेला भी लगता है। - बबली चड्ढा इस बार मेला बहुत देरी से लग रहा है, जो परंपरा है वो बहुत पीछे हटती जा रही है, पहले तो नवरात्र के दौरान ही मेला लगता था। - पारूल यह मेला एकता का प्रतीक है, यहां हिंदू और मुस्लिम दोनों ही भागीदारी निभाते हैं, एक तरफ मंदिर है, तो वहीं सामने मजार भी है। - मुस्कान यह मेला सभी धर्मों के लिए रहा है, मेला नवरात्रों के दौरान लगता था, एक ओर पूजा होती थी तो, दूसरी तरफ कव्वाली भी होती थी। - साहिल मेले के छह से आठ गेट हैं, जहां से मेले में घूमने आने वालों की एंट्री होती है, पटेल मंडप में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आनंद लेते थे। - अंकुर वर्मा धीरे-धीरे मेले का समय पीछे हटता चला जा रहा है, जबकि यह मेला नवरात्रों के दौरान भरा रहता था, अब वो समय नहीं रहा है। - अनिकेत शर्मा पहले मेले की बात ही कुछ और होती थी, अब पहले जैसा मेले में कुछ नहीं रहा, पहले तालाब होता था, जिसमें नांव चला करती थीं। - मनोज कुमार मेले को यह बदलाव धीरे-धीरे खत्म कर देगा, जो परंपरा है उसके आधार पर आयोजन होना चाहिए, नहीं तो उद्देश्य ही बदल जाएगा। - धर्मेंद्र कुमार
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।