बोले मेरठ : करोड़ों का कारोबार पर मुश्किलें बेशुमार
Meerut News - मेरठ के सर्जिकल व्यापारी कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं। वे अस्पतालों को सर्जिकल उपकरण और अन्य सामग्री की आपूर्ति करते हैं, लेकिन भुगतान में देरी और ऑनलाइन बिक्री के कारण व्यापार प्रभावित हो रहा है।...

स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की रीढ़ माने जाने वाले सर्जिकल व्यापारी कई समस्याओं से जूझ रहे हैं। यह व्यापारी अस्पतालों, डॉक्टरों और नर्सिंग होम्स तक सर्जिकल उपकरण, दवाएं और आवश्यक सामग्री पहुंचाते हैं, लेकिन कई समस्याओं से परेशान हैं। मेरठ के सर्जिकल कारोबारी औसतन दस लाख से ज्यादा का टैक्स रोजाना देते हैं लेकिन उनके व्यापार में आने वाली मुश्किलें कम नहीं। व्यापारियों का कहना है कि जीएसटी में छूट, सर्जिकल आइटम के एमआरपी पर लगाम लगे। कंपनी द्वारा ठीक किए जाने वाले सामानों के सर्विस सेंटर खुलें। मेरठ शहर के दवा मार्केट खैरनगर बाजार और जीआईसी के सामने सर्जिकल आइटम की होलसेल दुकानें हैं।
वहीं अकेले खैरनगर बाजार में ही करीब 35 दुकानें सर्जिकल उपकरणों की हैं। अगर पूरे जिले की बात करें तो 50 से अधिक दुकानें होलसेल व्यापार की हैं। सर्जिकल आइटम व्यापारी बताते हैं कि, एक दिन में सर्जिकल उपकरणों की बिक्री एक करोड़ रुपये से ज्यादा है। व्यापारियों द्वारा दिया जाने वाला एक दिन का टैक्स भी 15 लाख रुपये से ज्यादा होता है। व्यापारियों की मानें तो पूरे खैरनगर दवा बाजार से दिया जाने वाला टैक्स शहर में अन्य व्यापार से काफी ज्यादा है। ऐसे में सर्जिकल व्यापारी फिर भी परेशान रहते हैं, कभी ऑनलाइन सर्जिकल आइटम या दवाइयों की बिक्री के कारण, तो कभी खुद के पैसे मार्केट में मौजूद अस्पतालों व संस्थाओं में फंसने के कारण। हिन्दुस्तान बोले मेरठ ने इन सर्जिकल व्यापारियों की समस्याओं को जानने का प्रयास किया और इनसे संवाद कर इनकी दिकक्तों को जाना। कंपनियों की डायरेक्ट सप्लाई से व्यापार कमजोर सर्जिकल डीलर्स एसोसिएशन के व्यापारी वैभव गर्ग, प्रवीण अग्रवाल, मनोज शर्मा, गगन जैन और मोहिउद्दीन गुड्डू का कहना है कि आजकल कंपनियां अस्पतालों को डायरेक्ट सप्लाई कर रही हैं। जिससे व्यापारियों को अच्छा खासा नुकसान होता है, लेकिन इस बीच मरीज बहुत बुरी तरह पिसता है। सर्जिकल आइटम को अस्पतालों में एमआरपी पर दिया जाता है, जबकि इन आइटमों पर बहुत ज्यादा मार्जन होता है। बड़ी कंपनियां सीधे अस्पतालों से डील करके छोटे व्यापारियों को बाजार से बाहर कर रही हैं। यहां व्यापारी जो वर्षों से ईमानदारी से अपना काम कर रहे हैं, अब काफी परेशानी महसूस कर रहे हैं। भुगतान की देरी से बढ़ती दिक्कतें सर्जिकल डीलर्स विवेक रस्तोगी, मोहित दुआ, नरेश चौधरी, अनिल सक्सेना और मनोज कुमार का कहना है कि हमारे यहां से अस्पतालों और कई अन्य संस्थानों में सर्जिकल सामान जाता है। जिसका भुगतान अस्पतालों द्वारा समय पर नहीं किया जाता। व्यापारियों को कई-कई महीने तक अस्पतालों द्वारा भुगतान के लिए भटकाया जाता है। जिससे लाखों रुपये फंस जाते हैं और व्यापार भी प्रभावित होता है। कुछ व्यापारी तो इन अस्पतालों को उधार माल देकर खुद ही कर्ज में डूब जाते हैं। जिसके बाद मामला कोर्ट कचहरी तक पहुंच जाता है। समाधान के लिए चक्कर काटने पड़ते हैं और अस्पताल व्यापारियों का पैसा दबाकर बैठ जाते हैं। पैसा फंसने व्यापार होता है प्रभावित जिला मेरठ सर्जिकल डीलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष मनोज शर्मा और खैरनगर में केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन के महामंत्री रजनीश कौशल का कहना है कि अस्पतालों में सामान सप्लाई करने के बाद कई बार व्यापारी पेमेंट को लेकर काफी परेशान रहते हैं। अपना ही पैसा पाने के लिए व्यापारियों को जूझना पड़ता है। कई अस्पताल तो पैसा देने से ही मना कर देते हैं। बड़ी समस्या ये है कि अस्पताल एक व्यापारी का पैसा होने के बाद दूसरे को पकड़ लेते हैं, जब उसका भी पैसा अधिक हो जाता है तो फिर तीसरे को पकड़ लेते हैं। ऐसे में कई व्यापारी अस्पतालों के पेमेंट नहीं देने के चक्कर में घनचक्कर बनकर रह जाते हैं। इसके पीछे व्यापारियों का एक दूसरे के साथ सही तालमेल नहीं होना होता है। जिसके लिएए सर्जिकल डीलर्स एसोसिएशन अब सबके साथ मिलकर काम करेगा, ताकि कई व्यापारियों का एक जगह पैसा ना फंसे। मूल्य को किया जाए नियंत्रित व्यापारियों का कहना है कि सर्जिकल आइटम पर मूल्य नियंत्रण होना चाहिए। जो चीज पांच रुपये की आती है, उस प्रिंट रेट सौ रुपये से ज्यादा का होता है। कुछ तो ऐसे सामान हैं जिनके दाम एमआरपी के हिसाब से बहुत अधिक होते हैं और वास्तव में उनकी कीमत बहुत कम होती है। कई आइटम पर पांच सौ फीसदी से ज्यादा तक मार्जिन होता है। अस्पतालों में इन आइटम को एमआरपी पर बेचा जाता है, जिससे मरीजों को हजारों रुपयों का नुकसान होता है। गरीब आदमी इन आइटम पर पड़े रेट देने में सक्षम नहीं होता और इसी का फायदा अस्पतालों में या अन्य संस्थानों में उठाया जाता है। इसलिए मूल्य नियंत्रण होना बहुत जरूरी है। दवा व्यापारी रजनीश कौशल का कहना है कि उन्होंने इस मामले में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन को लिखा है। 90 फीसदी सर्जिकल आइटम हों टैक्स फ्री सर्जिकल व्यापारियों का कहना है कि उनके पास मौजूद ज्यादातर आइटम जीवन रक्षक होते हैं, जिनमें कॉटन से लेकर सिरींज तक शामिल हैं। बहुत सारे ऐसे आइटम होते हैं, जो एकदम टैक्स फ्री होने चाहिएं, ताकि आमजन तक ये प्रोडक्ट आसानी से पहुंच सकें। 90 फीसदी ऐसे आइटम हैं जिन पर सरकार को पूरी तरह टैक्स खत्म कर देना चाहिए। एडल्ट्स के लिए बिकने वाला डायपर पूरी तरह टैक्स फ्री होना चाहिए। पहले सर्जिकल आइटम पर चार फीसदी टैक्स हुआ करता था, लेकिन अब पांच फीसदी से लेकर 18 फीसदी तक टैक्स है। एमआरपी अधिक होने के कारण कई बार ग्राहक और व्यापारी के बीच दामों को लेकर शंकाएं पैदा होती हैं, जिससे व्यापार भी प्रभावित होता है। व्यापारियों को प्रायोरिटी पर मिले इलाज सर्जिकल आइटम बेचने वाले व्यापारियों का कहना है कि जब डॉक्टर्स को सामान चाहिए होता है तो वे खुद का परिचय देकर सामान पर अच्छी खासी छूट मांगते हैं। वहीं जब व्यापारी उनके पास खुद को या फिर परिवार के किसी सदस्य को इलाज के लिए ले जाता है, तो उनको इंतजार करना पड़ता है, साथ ही पूरी फीस भी देनी पड़ती है। अगर हमें डॉक्टर्स के क्लीनिक पर या अस्पताल में प्राथमिकता मिले तो खास राहत मिल जाएगी। साथ ही अस्पतालों में नो प्रोफिट नो लॉस पर व्यापारियों को उपचार मिलना चाहिए। इसके लिए सरकार को भी व्यापारियों के हित में सोचना चाहिए। ऑनलाइन बिक्री ने भी व्यापार पर डाला असर व्यापारियों का कहना है कि सर्जिकल प्रोडक्ट के होलसेल और एमआरपी रेट में जमीन आसमान का अंतर होता है, उसको कंट्रोल किया जाना बहुत जरूरी है। इसी तरह ऑनलाइन मिलने वाला सामान और वास्तविक रेट में बहुत बड़ा फर्क होता है। जिससे ग्राहक ही नहीं व्यापारी भी परेशान होता है। कुछ प्रोडक्ट ऐसे होते हैं, जिनकी सेल होने के बाद खराब होने पर उनकी मरम्मत ऑनलाइन कंपनी पर शिकायत के बाद ही होती है, क्योंकि उनके सर्विस सेंटर मौजूद नहीं होते। इसको लेकर ग्राहक दुकानदार से लड़ता है, कई बार पुलिस तक बुला ली जाती है। इसमें ग्राहक को भी सोचना चाहिए कि एक दुकानदार की पहुंच प्रोडक्ट को लेकर कहां तक है। बने भुगतान सुरक्षा अधिनियम व्यापारियों का कहना है कि सरकार को एक कानून बनाना चाहिए, जिसमें तय समय में भुगतान अनिवार्य हो। देर होने पर पेनल्टी हो और व्यापारी को कानूनी सहारा मिले। यानि एक भुगतान सुरक्षा अधिनियम कानून बने ताकि व्यापारियों का पैसा ना रुके और नकदी प्रवाह बना रहे। व्यापारियों को समय पर भुगतान होगा तो व्यापार भी अच्छा चलेगा। साथ ही सभी लाइसेंस, रजिस्ट्रेशन और टैक्स से संबंधित कार्यों के लिए एक सरल डिजिटल प्लेटफॉर्म होना चाहिए, जहां व्यापारी आसानी से काम कर सकें। समस्या - सर्जिकल आइटम के होलसेल और एमआरपी रेट में बड़ा अंतर - अस्पतालों में सर्जिकल उपकरण विक्रेताओं का फंसा है पैसा - ऑनलाइन बिक्री के कारण सर्जिकल विक्रेताओं की बढ़ी समस्या - ऑनलाइन शिकायत के बाद आइटम की गड़बड़ी पर होती है दिक्कतें सुझाव - सर्जिकल आइटम के होलसेल और एमआरपी रेट नियंत्रित हों - अस्पतालों में फंसे पैसे को लेकर भुगतान अधिनियम बने - ऑनलाइन और ऑफलाइन सामान के रेट बराबर होने चाहिएं - कंपनी द्वारा ठीक किए जाने वाले सामानों के सर्विस सेंटर खुलें बयां किया दर्द अस्पतालों में सामान सप्लाई करने के बाद व्यापारी पेमेंट को लेकर काफी परेशान रहते हैं। अपना ही पैसा पाने के लिए जूझना पड़ता है। - वैभव गर्ग एमआरपी और होलसेल रेट में जमीन आसमान का फर्क होता है, इसको नियंत्रित किया जाना चाहिए, ताकि ग्राहक को लाभ मिले। - प्रवीण अग्रवाल सबसे बड़ी समस्या अस्पतालों में फंसा पैसा लेने में आती है, सप्लाई के बाद लोग पैसा देने का नाम नहीं लेते, कोर्ट तक की नौबत आ जाती है। - मनोज शर्मा सर्जिकल आइटम एमआरपी से बहुत सस्ता आता है, जब कोई ग्राहक हमारे पास आता है, तो वह यहां के रेट देखकर शंका में पड़ जाता है। - गगन जैन बहुत से आइटम ऐसे हैं जिन पर जीएसटी जीरो होनी चाहिए, एडल्ट डायपर जैसे आइटम पर पांच फीसदी जीएसटी है, जो खत्म होनी चाहिए। - मोहउद्दीन गुड्डू अस्पतालों को डायरेक्ट सप्लाई के कारण व्यापारियों को काफी नुकसान होता है, साथ ही ग्राहक भी एमआरपी के चक्कर में ज्यादा लूटा जाता है। - विवेक रस्तोगी सरकार से मांग करते हैं कि मूल्य नियंत्रण आयोग का गठन किया जाए, जिससे सभी प्रकार के सामान पर उल्टे-सीधे रेट ना डाले जाएं। - रजनीश कौशल ऑनलाइन बिजनेस ने बाजार को काफी नुकसान पहुंचाया है, वहीं ग्राहक इसको आसान समझता है, उसकी जेब पूरी तरह काटी जाती है। - मोहित दुआ सर्जिकल उपकरण व्यापारियों और परिवार वालों को प्रायोरिटी पर इलाज उपलब्ध होना चाहिए, नो लॉस नो प्रोफिट पर इलाज होना चाहिए। - नरेश चौधरी पहले सर्जिकल आइटम पर चार फीसदी टैक्स हुआ करता था, लेकिन अब पांच फीसदी से लेकर 18 फीसदी तक टैक्स कर दिया गया है। - अनिल सक्सेना सबसे ज्यादा टैक्स दवा मार्केट देता है, इसके बाद भी कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, सबसे बड़ी समस्या मूल्य नियंत्रण की है। - मनोज कुमार एमआरपी व होलसेल के बीच मौजूद बड़े अंतर को कम किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे ग्राहक को लूटा जाता है, समाधान होना जरूरी है। - सचिन कुमार
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।