बोले मेरठ : समस्याओं से जूझते पूर्व सैनिक चाहते हैं समाधान और सम्मान
Meerut News - मेरठ में पूर्व सैनिकों ने सेवानिवृत्ति के बाद की समस्याओं को साझा किया। पेंशन, नौकरी, और चिकित्सा खर्चों की कमी से परेशान हैं। शहीद सैनिकों की पत्नियों को भी सुविधाओं की आवश्यकता है। प्रशासन ने...

मेरठ। देश की सीमा पर तैनात सैनिक केवल एक कर्मठ योद्धा नहीं होता, बल्कि वह एक जीवंत देश सेवा का प्रतीक होता है। त्याग, समर्पण और राष्ट्रभक्ति का प्रतीक होता है। यह वीर जवान जब सैन्य सेवा से निवृत्त होते हैं, तब उनके सामने एक नई जंग शुरू होती है। यह जंग एक नागरिक के रूप में समाज में फिर से स्थापित होने की होती है। सेवानिवृत्ति के बाद यह अपनी दैनिक जिंदगी में विभिन्न सामाजिक, आर्थिक और मानसिक चुनौतियों का सामना करते हैं। उनको सम्मान और समस्याओं के समाधान की जरूरत होती है। हालांकि सेना सभी पूर्व सैनिकों, वीर नारियों और आश्रितों की समस्याओं के समाधान में लगातार जुटा रहता है।
समय-समय पर उनकी समस्याओं के निस्तारण में भी कार्रवाई करता है। सरहदों पर देश की रक्षा करने वाले वीर सैनिकों के सेवानिवृत्त होने के बाद आने वाली समस्याओं और शहीद सैनिकों के आश्रितों को होने वाली परेशानियों को लेकर हिन्दुस्तान बोले मेरठ टीम ने वेटरन्स से संवाद किया। कई पूर्व सैनिकों ने पेंशन से संबंधित समस्याएं बताई। कुछ आश्रितों में अपने परिवार चलाने के लिए सुविधाएं ना मिलने का दर्द नजर आया। बीमारी के इलाज का पैसा, पेंशन कम्युटेशन, स्पर्श पोर्टल में दिक्कतें सहित कई समस्याएं रखी। वहीं कुछ शहीद सैनिकों की पत्नियां खुद के जीवन को चलाने के लिए व्यवस्थाओं की आस में परेशान दिखीं। यह सभी अपनी समस्याओं के लिए त्वरित समाधान और सम्मान चाहते हैं। पेंशनर्स की समस्याओं का हो समाधान पूर्व सैनिक अरविंद कुमार त्यागी का बताते हैं कि उनकी पेंशन से संबंधित समस्या का समाधान हो। स्पर्श पोर्टल से पेंशन बनती है, लेकिन उस पर कम्युटेशन में फर्क आ रहा है, जिसके समाधान के लिए उन्होंने लिखित में आवेदन दिया है। सेवानिवृत्त हवलदार सुनील कुमार त्यागी का कहना है कि पेंशनर्स के लिए निधन के बाद सम्मान कार्ड बनाया जाए, साथ ही डेथ सर्टिफिकेट सीधा बैंक में पहुंचे और एक महीने में पेंशन मिलनी शुरू हो जानी चाहिए, ताकि परिवार को समस्याओं का सामना ना करना पड़े। कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिनको एलोपैथिक दवाई नहीं लगती, उनके लिए होम्योपैथिक डॉक्टर की व्यवस्था भी हो तो राहत मिलेगी। शहीद सैनिकों की पत्नियों को मिले सुविधाएं शहीद सैनिकों की पत्नियों की भी समस्याएं सामने आईं। कंकरखेड़ा क्षेत्र की रहने वाली वीर नारियों का कहना है कि उनके पति शहीद हो गए थे। जीवन यापन के लिए शादी कर ली, जिसके बाद उनको मिलने वाली सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। इनका कहना है कि शहीद के भाई आश्रितों में आते हैं और यह सरकार का नियम भी है कि कई बार शहीद की पत्नियां दूसरी शादी कर लेती हैं तो उनको मिलने वाली सुविधाओं से विरत ना किया जाए। अगर सुविधाएं मिले तो यह उनके लिए और शहीद पति के सम्मान में सरकार का महत्वपूर्ण कदम होगा। मिले सम्मान और नौकरी मवाना के रहने वाले अरुण कुमार शर्मा का कहना है कि उनके पिता आर्मी में थे। उनका बीमारी के कारण देहांत हो गया था, इसके बाद आश्रित के तौर पर नौकरी दिए जाने की मांग की थी, जिसके चलते जिला सैनिक बोर्ड में संविदा पर रखा गया। तीन महीने बाद ही निकाल दिया गया। परिवार का सहारा होने के कारण नौकरी की आवश्यकता है, इसका समाधान किया जाए। वहीं अरुणा चौधरी के पति भी शहीद हो गए थे, जिनके दो बच्चे हैं। ऐसे में उन्हें भी परिवार चलाने के लिए सुविधाओं की जरूरत है। उनका कहना है कि उनके दो बच्चे हैं, ऐसे में आश्रित के तौर पर नौकरी मिल जाएगी तो राहत हो जाएगी। बच्चों का लालन-पालन हो पाएगा। यह उनके पति के सम्मान में विभाग का सहायतापूर्ण कदम साबित होगा। बेटियों को मिल जाए सहारा शकुंतला देवी कहती हैं कि उनके पति आर्मी में थे। उनकी बेटी है जो पास में ही रहती है। आश्रित के तौर पर बेटी को कामकाज करने के लिए दुकान का आवंटन किया जाए, ताकि वह अपने दो बच्चों का पालन पोषण बेहतर तरीके से कर सकें। वहीं रीना रावत का कहना है कि उनके पति 2003 में शहीद हो गए थे। पांच बेटियां हैं, किसी तरह सभी की शादी कर दी। अब एक बेटी पास में ही रहती है, उसके बच्चे हैं, अगर आश्रितों में उनकी बेटी को विभाग में नौकरी मिल जाए तो जिंदगी संवर जाएगी। इस संबंध में अधिकारियों को अवगत कराते हुए प्रार्थना पत्र भी दिया है। मिले दवाइयों का खर्चा, इंसेंटिव हों क्लीयर पूर्व सैनिक सतपाल सिंह का कहना है कि 2008 से लेकर आज तक उन्होंने जो इलाज कराया है, उसका पैसा उन्हें नहीं मिल पा रहा है। वह काफी परेशान हैं, विभाग और संबंधित अधिकारी इसका समाधान कर देंगे तो उनको सहारा लग जाएगा। वहीं मौजूद पूर्व सैनिक मानसिंह का कहना है कि उन्होंने तीस साल सर्विस की थी, लेकिन 28 साल का पेमेंट मिला था। इसके बाद अनुरोध करने पर बाकी दो साल का भी पैसा मिल गया, लेकिन उनको क्लीयर ही नहीं हो रहा कि किस मद का कितना पैसा शामिल है। चाहते हैं कि जो भी विभाग से पैसा मिला है उसका ब्यौरा उन्हें मिल जाए, ताकि वे अपनी सेलरी की जानकारी पूरी तरह से कर सकें। बने आरामघर, तहसीलों में पहुंचें समान की गाड़ियां कर्नल राणा कहते हैं कि आर्मी के पूर्व सैनिक और उनके परिजनों के लिए रेलवे स्टेशन या कैंट एरिया में एक आरामघर बनाने की व्यवस्था की जाए, ताकि वहां कोई पूर्व सैनिक या उनके परिवार का सदस्य आता है तो कुछ देर आराम कर सके। तहसील एरिया में कैंटीन की गाड़ियां सामान लेकर पहुंचें तो काफी सुविधाजनक बात होगी। इससे कैंटीन पर बढ़ने वाली भीड़ भी कम हो जाएगी। दूर रहने वाले बुजुर्ग पूर्व आर्मी सैनिकों को आने काफी कठिनाइयां होती हैं। सिविल मामलों में हो सहायता पूर्व सैनिक मुस्तकीम का कहना है कि उनकी जमीन पर किसी दबंग ने कब्जा कर लिया है। सैनिक कल्याण बोर्ड से लेकर सिविल तक वे चक्कर काट रहे हैं। विभाग में इस मामले को सिविल मैटर बताकर भागीदारी से मना कर दिया जाता है। स्थिति थोड़ी खराब हो गई है। बस किसी तरह समाधान हो जाए और हमारी जमीन हमें वापस मिल जाए। पुलिस और प्रशासन मिलकर एक फौजी के लिए सहायता करें, ताकि उसके जीवन को एक आधार मिले, परिवार में खुशियां बनी रहें। ----------------------------------------- समस्या - कई बार रिटायरमेंट के बाद पेंशन में सुधार की जरूरत पड़ती है - पूर्व आर्मी सैनिकों को कई बार सिविल मैटर में दिक्कतें आती हैं - आश्रितों को नौकरी और अन्य सुविधाओं की समस्या होती है - दूर दराज से आने वाले रिटायर्ड फौजियों को ठहरने की जरुरत पड़ती है - कैंटीन के सामान की गाड़ियां तहसीलों में नहीं पहुंचती हैं सुझाव - पूर्व सैनिक की रिटायरमेंट के बाद त्रुटि रहित पेंशन व्यवस्था हो - सिविल मैटर में पुलिस व प्रशासन से पूर्व सैनिकों को सहायता मिले - शहीदों के आश्रितों को नौकरी और अन्य सुविधाएं समय पर मिलें - रिटायर्ड फौजियों को ठहरने के लिए कैंट क्षेत्र में आराम घर बने - पहले तहसील क्षेत्र में कैंटीन की गाड़ियां जाती थीं, दुबारा शुरू की जाएं ------------------------------------- इनका कहना है मेरे पति शहीद हो गए थे, जिसके बाद उनके भाई को आश्रित के तौर पर नौकरी मिलनी चाहिए, ताकि घर परिवार चल सके - विमलेश, आश्रित मेरे मकान पर कब्जा कर रखा है, सैनिक बोर्ड ने इस संबंध में हस्तक्षेप करने से मना कर दिया, किसी तरह समाधान हो जाए - मुस्तकीम, पूर्व सैनिक मैं 1990 में रिटायर हुआ था, इसके बाद से परिवार को चलाने में दिक्कत हो रही है, अगर बेटे को नौकरी मिल जाए तो राहत मिले - श्याम सिंह, पूर्व सैनिक आधार कार्ड में नाम और जन्म तिथि को लेकर दिक्कतें हो रही हैं, सीजीएचएस में दवाइयां को लेकर परेशानी का सामना करना पड़ता है -रामबीर सिंह, पूर्व सैनिक काफी समय से मेरा सैनिक कार्ड नहीं बन पा रहा है, जबकि सभी डॉक्टयूमेंट दिए जा चुके हैं, किसी तरह समस्या का निस्तारण हो - राजेंद्र सिंह, पूर्व सैनिक पूर्व सैनिकों की समस्याओं को लेकर किए जा रहे कार्य काफी सराहनीय हैं, आगे भी ऐसे कार्यक्रम होते रहने चाहिएं, ताकि परेशानी ना हो। - रणवीर सिंह, ब्रिगेडियर, सेवानिवृत्त मैंने 71 की जंग में भागीदारी की थी, इसको लेकर मुझे पद्मश्री से सम्मानित भी किया गया, आगे भी सैनिकों का सम्मान होना चाहिए - शीशराम सिंह, पद्मश्री सम्मानित पूर्व सैनिकों के लिए एक आरामघर की व्यवस्था हो जाए और तहसीलों में कैंटीन की गाड़ियां जाने लगे तो काफी राहत मिल जाएगी - कर्नल सीपीएस राणा, सेवानिवृत्त पेंशनर का सम्मान कार्ड बनना चाहिए। अगर विभाग में होम्योपैथिक डॉक्टर की व्यवस्था हो जाए तो बहुत से लोगों को इलाज में सुविधा मिल जाए - सुनील कुमार त्यागी, पूर्व सैनिक पेंशन में कुछ समस्या हो रही है, स्पर्श पर पेंशन कम्युटेशन में फर्क आ रहा है, इसका समाधान चाहता हूं, ताकि आगे दिक्कत ना हो -अरविंद कुमार त्यागी, पूर्व सैनिक मैंने तीस साल सर्विस की थी, इसके बाद मुझे अब तक जो बेनेफिट मिला, मैं उसमें लगने वाले इन्क्रीमेंट को क्लीयर करना चाहता हूं - मान सिंह, पूर्व सैनिक पति के शहीद होने के बाद मुझे सुविधाएं नहीं मिली हैं, चाहती हूं कि परिवार के पालन-पोषण के लिए आश्रितों वाली सभी सुविधाएं मिले - बबीता, आश्रित बेटी को दुकान आवंटन हो जाए तो उसको परिवार चलाने में दिक्कत नहीं होगी। बेटी को दो बच्चे हैं, इसके लिए विभाग में आवेदन किया है। - शकुंतला, आश्रित पिताजी का निधन हो गया था। इसके बाद आश्रित के आधार पर संविदा की नौकरी मिली थी, लेकिन उससे निकाल दिया गया है - अरुण कुमार शर्मा, आश्रित 2003 में मेरे पति का निधन हो गया था। पांच बेटियों की शादी किसी तरह की है, अब एक बेटी पास में रहती है, जिसको नौकरी मिल जाए - रीना रावत, आश्रित 2008 से आज तक मुझे इलाज का पैसा नहीं मिला है, काफी परेशान हो चुका हूं, किसी तरह अधिकारियों की मेहरबानी से समाधान हो जाए - सतपाल सिंह, पूर्व सैनिक मेरे पति शहीद हो गए थे। अब दो बच्चे हैं। अगर नौकरी मिल जाएगी तो परिवार पालने में राहत होगी, इसके लिए आवेदन किया है - अरुणा चौधरी, आश्रित --------------------------------------- पूर्व सैनिकों, वीर नारियों की हर दिन होती है सुनवाई पूर्व सैनिकों, वीर नारियों की समस्याओं के लिए जिला सैनिक कल्याण विभाग लगातार कार्रवाई कर रहा है। राजकीय अवकाश को छोड़कर हर दिन सुबह 10 से दोपहर 12 बजे तक जनसुनवाई की जाती है। हर महीने डीएम की अध्यक्षता में जिला सैनिक बंधु की बैठक होती है। प्रशासन से संबंधित 78 और पुलिस से संबंधित 126 शिकायतों का निस्तारण अब तक हो चुका है। विशेष बात यह है कि पूर्व सैनिकों और उनके आश्रितों के लिए केन्द्र सरकार की 13 और प्रदेश सरकार की सात योजनाएं चल रही हैं। इन योजनाओं में भी लाभ दिलाया जा रहा है। पूर्व सैनिकों और वीर नारियों की समस्याओं को लेकर सरकार गंभीर है -कैप्टन(रि.) राकेश शुक्ला, जिला सैनिक कल्याण अधिकारी। जीओसी ने शुरू की है नई व्यवस्था पश्चिम यूपी सब एरिया के जीओसी मेजर जनरल सुमित राणा ने अब पूर्व सैनिकों और वीर नारियों के लिए नई व्यवस्था शुरू की है। हर महीने के अंतिम शनिवार को वेटरंस नोड में पूर्व सैनिक सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। गत 30 मई को भी यह आयोजन हुआ। पूर्व सैनिक सम्मेलन में आने वाले हर एक पूर्व सैनिक और वीर नारियों की समस्याओं को गंभीरता से सुना जाता है। संबंधित विभाग और अधिकारी को कार्रवाई के लिए कहा जाता है। साथ ही सेना की ओर से भी सुविधाओं को बेहतर कराया जा रहा है। पूर्व सैनिक जीओसी की इस नई व्यवस्था का स्वागत कर रहे हैं।
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