बोले मिर्जापुर: खेल और खिलाड़ियों की उड़ान को चाहिए इंतजाम
Mirzapur News - मिर्जापुर में बैडमिंटन का खेल तेजी से लोकप्रिय हो रहा है, लेकिन खिलाड़ियों को सुविधाओं की कमी का सामना करना पड़ रहा है। स्टेडियम में पर्याप्त रोशनी, कोचिंग और प्रतियोगिताओं की कमी है। युवा खिलाड़ी...

शौक और जुनून के रूप में बैडमिंटन शहर में लोकप्रिय होता जा रहा है। शौक उनके लिए जो सेहत के बाबत फिक्रमंद रहते हैं, जबकि जुनून उन किशोरों-युवाओं में दिखता है, जिनकी आंखों में जिला और सूबे से होते हुए राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय स्तर तक बतौर खिलाड़ी उड़ान भरने का सपना होता है। इन दोनों को बेहतर इंतजाम की दरकार है। स्टेडियम में सुविधाएं तो हैं मगर उसकी दूरी अखरती है। वहां भी इंडोर गेम के लिए प्रकाश की व्यवस्था नहीं है। लिहाजा, शाम होते ही प्रैक्टिस बंद करनी पड़ती है। सुबह की धुंध छंटने से पहले ही गलियों में रैकेट चलने लगते हैं।
बैडमिंटन के शौकीन मोहल्ले की गली, खाली जमीन या पार्क को कोर्ट बना लेते हैं। इनमें युवा भी होते हैं। सूरज चढ़ने तक सभी के चेहरे पसीने से भीग जाते हैं लेकिन युवा आंखों में हसरत रहती है इंडिया के लिए खेलने की। युवाओं में कोई जिला चैंपियन बनना चाहता है, कोई राज्य स्तर पर जाना चाहता है। की हसरत होती है कि खेलने की ठीक-ठाक जगह मिल जाए। पक्का पोखरा मोहल्ले में ‘हिन्दुस्तान से बैडमिंटन खिलाड़ियों ने अपनी जरूरतों, समस्याओं पर चर्चा की। राजेश दुबे ने कहा कि बैडमिंटन में फुर्ती, फोकस और फिटनेस की दरकार होती है। लेकिन जब मूलभूत सुविधाएं न हों तब खिलाड़ी अपने दम पर कहां तक पहुंचेगा? रोहित सोनी के मुताबिक जिले में बैडमिंटन खेलने वालों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ रही है। युवा हों या नौकरीपेशा, स्कूल के छात्र हों या महिलाएं- हर वर्ग इस खेल से जुड़ रहा है। मगर सुविधाओं की कमी ने इनके हौसलों को जकड़ रखा है। धर्मपाल सिंह ने बताया कि सिटी ब्लॉक के जसोवर पहाड़ी गांव में स्टेडियम है। वहां इंडोर गेम के लिए प्रकाश की व्यवस्था नहीं है। शाम होते ही बैडमिंटन खिलाड़ियों को अपना प्रैक्टिस बंद करनी पड़ती है। आगे बढ़ने की चाह रखने वालों को घर के आसपास छोटे मैदान पर अभ्यास करना पड़ता है। मॉर्निंग वॉकरों का शौक और जुनून: रमेश कुमार सिंह ने बताया कि सबसे दिलचस्प ग्रुप है माॅर्निंग वॉक बैडमिंटन ग्रुप, पक्का पोखरा। लोग टहलने जाते हैं, लेकिन दिल कोर्ट पर लगा रहता है। इस ग्रुप के कई सदस्यों ने मंडल स्तर तक के टूर्नामेंट खेले हैं, वह भी बिना कोच के। फिर भी शौक और जुनून से ग्रुप चमक रहा है। नगर क्षेत्र से आठ किलोमीटर दूर होने के कारण स्टेडियम कम लोग पहुंच पा पाते है। स्टेडियम में कोच हैं लेकिन उनका लाभ ज्यादातर खिलाड़ियों को नहीं मिल पाता है। राजेश दुबे के मुताबिक जिले में बैडमिंटन खेलने वालों की संख्या 500 से अधिक है। कई युवा नियमित अभ्यास करने स्टेडियम जाते हैं। उनमें पक्का पोखरा ग्रुप ने मंडल स्तरीय टूर्नामेंट में हिस्सा लेकर जिले का नाम रोशन किया है। बोले, स्टेडियम में शाम के समय खेलने के लिए प्रकाश की व्यवस्था हो जाए तो ग्रुप के सदस्य प्रदेश स्तर की प्रतियोगिताओं में जलवा दिखा सकते है। सीनियर ही बने कोच: अभिमन्यु सिंह ने बताया कि जिले में बैडमिंटन का स्थायी कोच नहीं है। सीनियर खिलाड़ी ही नए खिलाड़ियों को टिप्स देते हैं। इससे नए खिलाड़ियों में तकनीकी दक्षता नहीं आ पाती। चोट का भी खतरा रहता है। कभी-कभी गलत टेक्निक से हाथ में मोच आ जाती है। बोले, फिर भी खेल छोड़ने का मन नहीं करता। कहा कि अगर एक अच्छा कोच मिल जाए तब मिर्जापुर से हर साल राज्य स्तरीय खिलाड़ी निकल सकते हैं। प्रस्तुति: कमलेश्वर शरण/ गिरजा शंकर खेल सुविधाओं में पिछड़ रहा है मिर्जापुर सुरेश श्रीवास्तव की मानें तो मिर्जापुर खेल सुविधाओं के मामले में आसपास के जिलों से काफी पीछे है। उन्होंने कहा कि वाराणसी, प्रयागराज और जौनपुर में इनडोर स्टेडियम की हालत कहीं बेहतर है। वहां न सिर्फ शानदार प्रकाश व्यवस्था है, बल्कि स्थायी कोच भी हैं। नियमित टूर्नामेंट भी कराए जाते हैं। जौनपुर में जिला स्तरीय बैडमिंटन संघ हर तीन महीने में एक प्रतियोगिता कराता है। इससे खिलाड़ियों को अपने परखने और सुधारने का मौका मिलता है। बोले, मिर्जापुर में अंतिम बार टूर्नामेंट कब हुआ था, यह याद भी नहीं आता। शशिधर द्विवेदी ने कहा कि सुविधाओं की भारी कमी के कारण बैडमिंटन से जुड़ी प्रतिभाएं दम तोड़ रही हैं। उन्होंने भी जसोवर पहाड़ी स्थित स्टेडियम में प्रकाश की बेहतर व्यवस्था पर जोर दिया, उनका कहना है कि उचित प्रकाश न होने से रात में प्रैक्टिस नहीं हो पाती है। सुजीत तिवारी बोले, मिर्जापुर में बैडमिंटन के स्थायी कोच की नियुक्ति की जाए ताकि खिलाड़ियों को तकनीकी, मानसिक मजबूती के साथ आगे बढ़ने का मौका मिल सके। वर्तमान में सीनियर खिलाड़ी ही नए खिलाड़ियों को टिप्स देते हैं, जो अक्सर अधूरी जानकारी होती है। खेल भी रुके, सेहत भी थमी अशोक मिश्र के मुताबिक बैडमिंटन सिर्फ खेल नहीं, सेहत की कुंजी है। डॉक्टर भी मानते हैं कि यह खेल हार्ट प्रॉब्लम, डायबिटीज और मोटापे से लड़ने में मदद करता है। कहा, खेलने का मतलब है फिट और ऐक्टिव रहना। मगर यहां हालात उलटे हैं। खिलाड़ी को न ठीकठाक कोर्ट मिलता है, न रैकेट-शटल की सुविधा है। सब व्यवस्था अपनी जेब से करनी पड़ती है। कई खिलाड़ी इसी में हार मान लेते हैं। जबकि सरकारी मदद से बड़ी संख्या में युवा न सिर्फ बैडमिंटन से जुड़ेंगे बल्कि स्वस्थ जीवन की ओर भी बढ़ सकते हैं। कंकड़ों से पटा है स्टेडियम का कोर्ट बैडमिंटन के शौकीनों एवं खिलाड़ियों की सबसे बड़ी शिकायत स्टेडियम के मैदान के संबंध में है। आठ किलोमीटर दूर स्टेडियम के मैदान में कंकड़ और छोटी-छोटी गिट्टी होने के कारण खिलाड़ियों को दिक्कत होती है। स्टेडियम जाने वाली सड़क भी गड्ढ़े में तब्दील हो गई है। स्टेडियम की बिजली व्यवस्था भी खराब है। शाम को अभ्यास करना नामुमकिन है। प्रशांत मिश्रा ने कहा कि स्टेडियम में टॉयलेट भी नहीं है। हम कहां जाएं? जिलास्तरीय टूर्नामेंट होना जरूरी बैडमिंटन खेलने वालों का कहना है कि अगर खेल विभाग साल में कम से कम दो जिला स्तरीय टूर्नामेंट कराए तब युवाओं में प्रतिस्पर्धा की भावना पैदा होगी। उन्हें आगे बढ़ने का मौका मिलेगा। शशिकांत दुबे बोले, हम साल भर तैयारी करते हैं, लेकिन टूर्नामेंट न होने से खुद को आंकने का मौका नहीं मिल पाता। मोहल्ले में खेलकर संतोष करना पड़ता है। कभी कोई लोकल क्लब टूर्नामेंट कराता है। सुझाव और शिकायतें 1. जसोवर पहाड़ी स्थित स्टेडियम में अच्छी लाइटिंग, वॉशरूम और बैठने की व्यवस्था की जाए। 2. एक प्रोफेशनल बैडमिंटन कोच की नियुक्ति हो। खिलाड़ियों को तकनीकी, मानसिक और शारीरिक रूप से प्रशिक्षित किया जाए। 3. साल में कम से कम दो जिला स्तरीय टूर्नामेंट कराए जाएं। खिलाड़ियों को अपने प्रदर्शन को आंकने और आगे बढ़ने का मौका मिलेगा। 4. खिलाड़ियों को शटल, नेट, रैकेट जैसी सामग्री मुफ्त या सब्सिडी पर दी जाए। 5. लोकल ग्रुप और क्लबों को प्रोत्साहित किया जाए। मार्निंग वॉक बैडमिंटन ग्रुप जैसे संगठनों को पहचान मिले। 1. जसोवर पहाड़ी के स्टेडियम में न पर्याप्त रोशनी है, न टॉयलेट। रात में प्रैक्टिस नहीं हो पाती। 2. तकनीकी सुधार और प्रोफेशनल गाइडेंस के लिए स्थायी प्रशिक्षक नहीं है। सीनियर खिलाड़ी कोच की भूमिका निभा रहे हैं। 3. खिलाड़ी नेट, शटल, रैकेट खुद खरीदते हैं। विभाग की ओर से खेल सामग्री या वित्तीय सहयोग नहीं मिलता। 4. साल में एक भी जिला स्तरीय प्रतियोगिता नहीं होती। लोकल क्लब की कोई छोटी-मोटी प्रतियोगिता होती भी है तो वह सिर्फ रस्मअदायगी होती है। 5. वाराणसी, प्रयागराज और जौनपुर के मुकाबले मिर्जापुर खेल सुविधाओं में काफी पीछे है, जबकि प्रतिभाओं की कमी नहीं है।
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