बोले मिर्जापुर: नालियां खुलीं, ढक्कन उठे, हैंडपंप नहीं देते पानी
Mirzapur News - अनगढ़ बिंद बस्ती में सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है। लोग बिजली, पानी, सफाई और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। 80 वर्षीय सहदेवा का कहना है कि उन्होंने विकास की उम्मीद की थी,...
आवास विकास काॅलोनी के पास स्थित अनगढ़ बिंद बस्ती तक सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं पहुंचा है। यहां के लोग तमाम समस्याओं से जूझ रहे हैं, सुनवाई नहीं होती। बस्ती के लोगों का कहना है कि बिजली हो या पानी, सफाई हो या सड़क, सब कुछ हमारे लिए जैसे बहुत दूर की बात है। गली में खुले नाले, मच्छर और बीमारियों का प्रकोप आम बात है। रात को मंदिर अंधेरे में डूबा रहता है। इंतजार कर रहे हैं कि कोई हमारी सुने, जिससे जिंदगी में रोशनी आए। यहां के लोग मेहनती हैं, जागरूक हैं, लेकिन सिस्टम की अनदेखी ने इन्हें हाशिए पर रख दिया है।
अनगढ़ रोड पर 'हिन्दुस्तान' से चर्चा में 80 वर्षीय सहदेवा ने कहा कि सपने देखे थे घर, बिजली और पानी के, लेकिन अब आंखें भी थक गईं हैं। जिंदगी बीत गई, पर बस्ती अब भी वहीं की वहीं है। हम बूढ़े हो गए, पर बस्ती अब भी विकास के इंतजार में है। छोटू बिंद ने कहा, बस्ती को देखकर कोई नहीं कह सकता कि बस्ती शहर के बीचोंबीच है। रेलवे स्टेशन पास है, बीएसएनएल का ऑफिस सटा हुआ है, लेकिन बस्ती की हालत देखकर लगता है जैसे कोई भूली-बिसरी जगह हो। नालियां खुली हैं, ढक्कन उठे हुए हैं, गलियों में मच्छरों का प्रकोप है और टिनशेड के नीचे लोग जिंदगी काट रहे हैं। सफाईकर्मी कभी-कभी दिखते हैं, हैंडपंप सूखे पड़े हैं और लाइटें तो जैसे रूठ गई हों। बृजलाल ने कहा कि योजनाओं की बातें खूब होती हैं, लेकिन यहां के लोग योजनाओं के लाभ से वंचित हैं। यहां चैन से नींद नहीं आती। टिनशेड के नीचे जिंदगी: करीब 1000 की आबादी वाली इस बस्ती में अधिकतर परिवार दिहाड़ी मजदूरी या ई-रिक्शा चलाते हैं, लेकिन हालात ऐसे हैं जैसे कोई झुग्गी बस्ती दूर पहाड़ी अंचल में बसी हो। रहने को आज भी टिनशेड है। नितेश ने कहा कि तीन बार फाॅर्म भर चुके हैं प्रधानमंत्री आवास के लिए, लेकिन हर बार सुनते हैं कि लिस्ट में मेरा नाम नहीं है। कुछ लोग तो ऐसे भी हैं, जिन्होंने फाॅर्म भरवाने के नाम पर दलालों को पैसे भी दे दिए, लेकिन न पैसा वापस मिला, न मकान का सपना पूरा हुआ। इलाज के लिए उधार की फांस: बस्ती में रहने वाले अधिकतर लोग आयुष्मान भारत कार्ड, शौचालय योजना जैसे सरकारी लाभों के नाम से सिर्फ वाकिफ भानु प्रताप ने कहा कि हमने तीन बार फाॅर्म भरा, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। कैंप लगने की बात हुई थी, लेकिन कोई आया ही नहीं। बताया कि बस्ती के अधिकतर लोगों का आयुष्मान कार्ड नहीं बना है। पत्नी बीमार हो गई थी तब किसी तरह उधार लेकर इलाज कराया। खेल न पढ़ाई का माहौल: बस्ती में न कोई पार्क है, न कोई खेल का मैदान। बच्चे ऊबड़-खाबड़ सड़कों पर ही खेलते हैं। धीरज कुमार बिंद ने कहा कि बच्चे खेलने निकलते हैं तो डर लगता है कि कहीं खुले चैंबर या कीचड़ में गिर न जाए। पास में सरकारी स्कूल है, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण पढ़ाई नहीं करा पाते हैं। स्ट्रीट लाइट की दरकार: बस्ती में एक शिव मंदिर है, लेकिन वहां रात को अंधेरा ही अंधेरा रहता है। रविशंकर प्रजापति ने कहा कि हम रोज पूजा करते हैं, लेकिन बल्ब नहीं है, दीया जलाकर पूजा करते हैं। कई बार बिजली विभाग से कह चुके हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती। गलियों में भी अंधेरा छाया रहता है। स्ट्रीट लाइट लग जाए तो बस्ती के साथ मंदिर भी जगमगाने लगे। प्रस्तुति: कमलेश्वर शरण/गिरजा शंकर मिश्र बाल्टी भर पानी के लिए लगानी पड़ती है लाइन बस्ती में तीन हैंडपंप हैं, लेकिन दो खराब पड़े हैं। दो मिनी ट्यूबवेल हैं, पर मरम्मत के अभाव में जल संकट है। यदि ट्यूबवेल खराब हुआ तो गर्मियों में लोग बाल्टी भर पानी के लिए जद्दोजहद करते हैं। निर्मला देवी ने कहा कि बर्तन धोना छोड़िए, नहाने को भी पानी नहीं मिलता। कई बार समय पर खाना भी नहीं बन पाता। कहीं रिश्तेदार आ जाएं तो शर्मिंदा होना पड़ता है। गर्मियों में हाल और बुरा हो जाता है। बाल्टी भर पानी के लिए बच्चों को भी लाइन में लगना पड़ता है। गंदगी की मार, बीमार हर बार: यहां की गली में पैर रखते ही कीचड़, दुर्गंध स्वागत करती है। खुले नाले, उठे चैंबर और ऊबड़-खाबड़ रास्ते बताते हैं कि आफसरों ने यहां झांक कर भी नहीं देखा। सफाई वाला महीने में एक बार आता है, सिर्फ झाड़ू दिखाकर चला जाता है। चम्पा देवी ने कहा कि मच्छरों ने चैन छीन लिया है। डेंगू-मलेरिया हर साल घर-घर दस्तक देते हैं। दवा का छिड़काव कब हुआ था, किसी को याद नहीं। हम झाड़ू खुद ही लगाती हैं, बच्चा अगर बीमार हो जाए तो कहां जाएं? यह दर्द हर घर का है। बुनियादी सुविधाओं से दूर बस्ती बीएसएनएल ऑफिस और रेलवे स्टेशन रोड से बिल्कुल पास है। बावजूद इसके मूलभूत सुविधाएं यहां नहीं पहुंची हैं। हम नागरिक हैं, वोट भी देते हैं, फिर क्यों उपेक्षा होती है? मुकेश बिंद ने कहा कि बस्ती की सड़कों की हालत इतनी खराब है कि बाइक भी ठीक से नहीं चल पाती। जगह-जगह गड्ढे हैं, बारिश हो जाए तो कीचड़ से चलना मुश्किल हो जाता है। सुझाव और शिकायतें 1. आवास योजना की जांच हो। पुराने फॉर्म खंगाले जाएं। दलालों पर अंकुश लगे, जिनका हक है, उन्हें आवास मिले। 2. आयुष्मान और शौचालय योजनाओं के लिए बस्ती में कैंप लगे। अफसर आएं और कार्ड बनवाएं, तभी लाभ मिलेगा। 3. पानी की व्यवस्था तत्काल हो। हैंडपंप की मरम्मत तुरंत हो। मिनी ट्यूबवेल की समय-समय जांच हो। नई टंकी या बोरिंग हो। 4. नियमित सफाई और दवा छिड़काव हो। सफाईकर्मियों की जिम्मेदारी तय हो और हर सप्ताह दवा छिड़काव अनिवार्य किया जाए। 5. गली-नाली. लाइट की सुधि ली जाए। चैंबर ढंकें, सड़कें शीघ्र ठीक की जाएं और गली में और मंदिर के पास लाइट लगाएं। 1. फाॅर्म भरने के बाद भी प्रधानमंत्री आवास योजना के लाभ की सूची में नाम नहीं आता। वास्तविकता की जांच भी नहीं होती है। 2. आयुष्मान कार्ड नहीं बनाया गया है। कैंप की केवल बात होती है, कोई आता ही नहीं। इलाज के लिए उधार लेना पड़ता है। 3. ट्यूबवेल खराब होने पर पानी की किल्लत होती है। हैंडपंप भी खराब पड़े हैं। बाल्टी भर पानी के लिए लाइन लगानी पड़ती है। 4. सफाई और दवा छिड़काव नदारद है। माह में एक बार सफाईकर्मी आते हैं। मच्छरों का प्रकोप है, दवा का छिड़काव नहीं होता। 5. बस्ती में पर्याप्त प्रकाश व्यवस्था नहीं है। गली और मंदिर दोनों अंधेरे में डूबे रहते हैं। शिकायतें की गईं, लेकिन सुनवाई नहीं हुई।
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