बोले मिर्जापुर: बिजली न सुरक्षा,फिर भी नहीं टूटा मिट्टी से रिश्ता
Mirzapur News - महावीर पार्क, जो कभी कुश्ती का तीर्थ स्थल था, अब सरकारी उपेक्षा के कारण अंधेरे में डूब गया है। पहलवानों ने इसकी हालत सुधारने की मांग की है। स्व. कोमल पहलवान की परंपरा को जीवित रखने की कोशिश में लगे...
अखाड़ा रह गया सिर्फ नाम का... जहां कभी मिट्टी ललकारती थी। दंड-बैठक, मल्ल युद्ध और 'जोर लगाओ पहलवान' की गूंज सुनाई देती थी। जा पकड़, कमर नीचे कर, वाह बेटा जोर लगा... ये किसी फिल्म का सीन नहीं, अखाड़े की तस्वीर है। माटी में रचा-बसा महावीर पार्क एक समय कुश्ती के दीवानों का तीर्थ था। यही वह ऐतिहासिक धरती है, जहां कोमल पहलवान ने अनुशासन, परंपरा और पुरुषार्थ की नींव रखी थी। यहां स्थित अखाड़ा जीवन गढ़ने का स्कूल था। आज वही अखाड़ा अंधेरे में है। अखाड़े को दुरुस्त कराने की पहलवानों ने मांग की है। पूर्वांचल की पहलवानी परंपरा के सशक्त स्तंभ रहे स्व. कोमल पहलवान का नाम आज भी श्रद्धा और गर्व से लिया जाता है।
कभी घोड़े शहीद स्थित महावीर पार्क कुश्ती, व्यायाम और चरित्र निर्माण की जीवंत पाठशाला हुआ करता था, जो स्व. कोमल पहलवान की तपस्या की भूमि रहा है। दशकों से यह अखाड़ा केवल कसरत की जगह नहीं, बल्कि परंपरा, संस्कार और संघर्ष का केंद्र रहा है। पहले लोग इसे कोमल अखाड़ा के नाम से जानते थे, जो आज सरकारी उपेक्षा और संसाधनहीनता के चलते पहचान खोता जा रहा है। जो अखाड़ा कभी पहलवानों की दहाड़ से गूंजता था, आज टूटे झूलों, बुझी लाइट और चुपचाप चुराए गए डम्बलों की गवाही दे रहा है। नगर के सिविल लाइन स्थित महावीर पार्क में 'हिन्दुस्तान' से चर्चा के दौरान पहलवान लवकुश यादव ने कहा कि स्व. कोमल पहलवान पूर्वांचल की पहलवानी परंपरा का जीवंत प्रतीक थे। उन्होंने युवा पीढ़ी को सिर्फ कुश्ती नहीं सिखाई, बल्कि अनुशासन, चरित्र और संयम की शिक्षा दी। यह वही अखाड़ा है, जहां से निकलकर कई पहलवानों ने स्टेट और राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में झंडे गाड़े। पुराने रिकॉर्ड बताते हैं कि 80 और 90 के दशक में यहां के पहलवान लखनऊ, बनारस, प्रयागराज, गोरखपुर तक की दंगल पट्टियों में सिरमौर बनकर उभरे। उस वक्त शासन से पहलवानों को चना, दूध, गुड़ और घी जैसी चीजें नियमित रूप से दी जाती थीं, लेकिन अब सब कुछ बदल चुका है। नेहाल कहते हैं कि हर बार अधिकारी आते हैं, फोटो खिंचवाते हैं, फिर सब भूल जाते हैं। महावीर पार्क अब झूलों और पेड़ों से घिरा ‘पिकनिक स्पॉट बनता जा रहा है, लेकिन इसकी आत्मा तिल-तिल कर मर रही है। एकलव्य कहते हैं कि पार्क में चोरों का भी आंतक है। करीब 10 डम्बल, जोड़ियां, फरसा, प्लेट और यहां तक कि बैटरी तक चोर चुरा ले गए हैं। पार्क में न चौकीदार है, न सीसीटीवी कैमरे। ऐतिहासिक अखाड़े की हालत यह है कि व्यायामशाला में बिजली की वायरिंग तक नहीं है। रात के समय दिक्कत होता है। पहलवानों का कहना है कि जब कभी नेता पार्क घूमने आते हैं,तब बच्चों के साथ फोटो खिंचवाते हैं और अखाड़े की तारीफ करते नहीं थकते। इसके बाद अखाड़े को भूल जाते है। अब भी हैं प्रतिभाएं, मगर साधन विहीन: विनय कुमार कहते है कि स्व. कोमल पहलवान के बनाए अखाड़े से दर्जनों पहलवान निकले, जिन्होंने जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर पदक लहराए। आज भी अखाड़े की मिट्टी में दम है और शिष्य उस परंपरा को जीवित रखने की कोशिश कर रहे हैं, मगर साधनों की भारी कमी से वे टूटते जा रहे हैं। 19 मई 2025 को पहलवान आदित्य ने मेरठ में आयोजित स्टेट प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता। उनकी आंखों में गर्व है, लेकिन साथ में चिंता भी। वे कहते हैं कि बिना बिजली, डम्बल, रस्सी और बिना मैट के भी हम गोल्ड ले आए। सोचिए! सरकार थोड़ा साथ दे दे तो क्या नहीं कर सकते? बिजली के बिना अंधेरे में अखाड़ा: कृष्णा यादव कहते है कि अखाड़े के ठीक बगल में मंदिर भी है। पहले वहां पूजा होती थी, पहलवान भगवान के सामने झुककर अभ्यास शुरू करते थे। लेकिन अब न मंदिर में बिजली है, न अखाड़े में। रात में पूरा पार्क अंधेरे में डूब जाता है। जहां कभी ताजगी भरी सुबह और संजीदा शाम को पहलवानों की दंड-बैठक की आवाजें गूंजती थीं, अब वहां सन्नाटा और असुरक्षा का माहौल है। कृष्णा यादव कहते हैं कि शाम को बिजली नहीं रहती तो अभ्यास में डर लगता है। न सोलर लाइटें चल रही हैं, न कोई लाइट का स्थायी प्रबंध है। सोलर लाइटें भी सिर्फ 15 दिन की मेहमान निकलीं: मनोज यादव कहते हैं कि नगर पालिका की तरफ से पूरे पार्क में सोलर लाइटें लगाई गई थीं, लेकिन सिर्फ 15 दिनों में वे खराब हो गईं। उसके बाद कोई मरम्मत नहीं हुई। कोई पूछने तक नहीं आता। नतीजा यह है कि पार्क अंधेरे में डूबा रहता है, जिससे अभ्यास, सुरक्षा और सामाजिक माहौल तीनों पर असर पड़ता है। पहलवानों की मजबूरी- रस्सा तक नहीं: अनिकेत यादव बताते हैं कि कुश्ती और बॉडी बैलेंस के लिए रस्सी चढ़ना एक अहम अभ्यास होता है, लेकिन अब पार्क में रस्सी ही नहीं लगी है। पहले पहलवान रस्सी चढ़ते थे, बॉडी-बैलेंस और आत्मविश्वास का यह अभ्यास अब बंद हो गया है। विनय कुमार कहते हैं कि इस अखाड़े ने कई युवाओं को बर्बादी से बचाया है, लेकिन आज हालात देखकर मन रोता है। हम रोज यहां अभ्यास के लिए आते हैं। न रोशनी है, न शौचालय, न कोई गार्ड। सीसीटीवी कैमरे और लाइट लग जाए तो माहौल बेहतर हो जाएगा। सरकार न मंदिर की सुन रही, न पहलवानों की। झूला टूटा, बच्चों का खेल भी बंद: ओमप्रकाश कहते हैं कि महावीर पार्क में लगे झूले अब टूट चुके हैं। बच्चों के खेलने की जगह अब खतरनाक बन गई है। न गार्ड है, न मरम्मत, न मेंटेनेंस। बच्चे अब पार्क से दूरी बनाने लगे हैं और जो आते हैं, वो गिरते-पड़ते जाते हैं। पार्क में बच्चों की गतिविधि रुक गई है। इसके बाद भी प्रशासन को कोई फिक्र नहीं है। प्रस्तुति: कमलेश्वर शरण/गिरजाशंकर मिश्र उत्सव से कम नहीं नागपंचमी दंगल लवकुश कहते हैं कि घोड़े शहीद स्थित महावीर पार्क में हर साल नागपंचमी पर मिट्टी फिर से जिंदा हो जाती है। अखाड़े की टूटी दीवारें, उखड़े मैट और अंधेरे के बीच भी इस दिन खास रौनक होती है। पहलवान सुबह-सुबह पहुंचते हैं। वे बताते हैं कि यह परंपरा स्व. कोमल पहलवान के समय से चली आ रही है। उनके जीवनकाल में नागपंचमी का दंगल किसी उत्सव से कम नहीं होता था। दर्शकों की भीड़, नगाड़ों की थाप और 'जय बजरंगबली' के जयकारों के बीच जब दो पहलवान गुत्थमगुत्था होते थे, तो पूरा पार्क तालियों से गूंज उठता था। आज भी परंपरा जिंदा है, लेकिन संसाधन नहीं। पहलवान खुद अपने खर्चे से दूध, बादाम और मैट लेकर आते हैं। बिजली न पानी, फिर भी दंगल होता है- क्योंकि सम्मान की बात है। कोमल पहलवान का सपना अधूरा रह गया? मनोज यादव कहते हैं कि कोमल पहलवान न केवल माटी के पुत्र थे, बल्कि उन्होंने देसी कुश्ती की जड़ें पूर्वांचल की नस-नस में दौड़ाई। उनकी छत्रछाया में कई खिलाड़ी राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर चमके और यही अखाड़ा इनकी नींव बना। वे बताते हैं- स्व. कोमल पहलवान चाहते थे कि मिर्जापुर में आधुनिक अखाड़ा बने। बिजली-पानी, सुरक्षा, पोषण और ट्रेनिंग की पूरी व्यवस्था हो, लेकिन उनके निधन के बाद यह सपना अधूरा रह गया। उनके द्वारा तैयार की गई पीढ़ी आज भी कोशिश कर रही है, लेकिन बिना संसाधन के उनका संघर्ष अब सिर्फ जोश पर टिका है। सुझाव और शिकायत 1. व्यायामशाला-मंदिर में नियमित बिजली आपूर्ति की जाए। सोलर लाइटों की निगरानी हो। 2. सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं और एक स्थायी चौकीदार की तैनाती की जाए। 3. सरकारी पोषण योजना की बहाली हो। पहले की तरह पहलवानों को दूध, चना, घी, गुड़ की सुविधा दी जाए। शारीरिक प्रशिक्षण को बढ़ावा मिले। 4. महावीर पार्क को 'प्राचीन अखाड़ा संरक्षण योजना' या खेल मंत्रालय के सहयोग से पुनः विकसित किया जाए। अखाड़े को 'पूर्वांचल विरासत अखाड़ा' का दर्जा मिले। 5. स्कूली बच्चों को कुश्ती से जोड़ने के लिए स्कूलों और अखाड़े के बीच अभ्यास, सेमिनार और प्रतियोगिताओं का आयोजन हो। 1. बिजली और पानी का अभाव है। अखाड़े और मंदिर दोनों में न तो वायरिंग है, न ही बिजली। सोलर लाइटें 15 दिन में खराब हो गईं। 2. गार्ड है न सीसीटीवी कैमरा। व्यायामशाला से डंबल, जोड़ी, रस्सा, फरसा तक चोरी हो गई। 3. जरूरी उपकरणों की कमी है। मैट, रस्सी, डम्बल जैसी बुनियादी चीजें भी पहलवानों को खुद के पैसे से जुटानी पड़ रही हैं। 4. शौचालय और पानी की व्यवस्था नहीं है। संसाधनों की कमी और उपेक्षा के कारण युवाओं में कुश्ती के प्रति लगाव कम हो रहा है। 5. पार्क का जीर्ण-शीर्ण हाल है। टूटे झूले, असुरक्षित वातावरण है। महावीर पार्क में अब बच्चे और युवा खेलने अथवा अभ्यास के लिए कम आते हैं।
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