हिंदू धर्म में विदाई का समय पंचांग और ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर तय किया जाता है। विवाह के बाद विदाई के लिए अभिजीत मुहूर्त, विजय मुहूर्त या गोधूलि बेला (सूर्यास्त से ठीक पहले) को शुभ माना जाता है। ये मुहूर्त सकारात्मक ऊर्जा से भरे होते हैं और नववधू के नए जीवन में सौभाग्य लाते हैं।
गोधूलि बेला यानी सूर्यास्त से ठीक पहले का समय, विदाई के लिए सबसे शुभ माना जाता है। हिंदू मान्यता के अनुसार, इस समय गायें घर लौटती हैं, जो सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक है। इस बेला में विदाई करने से नववधू का नया जीवन सुखमय और समृद्ध होता है। गोधूलि बेला में वातावरण शांत और सकारात्मक होता है, जो दांपत्य जीवन के लिए शुभ संकेत देता है।
हिंदू शास्त्रों में कुछ समय विदाई के लिए अशुभ माने जाते हैं। रात्रि में, विशेष रूप से मध्यरात्रि या गहरी रात में विदाई से बचें, क्योंकि यह नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित कर सकता है। राहुकाल, यमगंड काल, और भद्रा काल में भी विदाई वर्जित है। इन अशुभ मुहूर्तों में विदाई करने से नववधू के वैवाहिक जीवन में परेशानियां, जैसे स्वास्थ्य समस्याएं या आर्थिक तंगी आ सकती हैं।
ज्योतिष के अनुसार, विदाई के लिए शुभ नक्षत्र और तिथि का चयन जरूरी है। रोहिणी, मृगशिरा, पुष्य और हस्त जैसे नक्षत्र विदाई के लिए शुभ होते हैं। शुक्ल पक्ष की द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी और एकादशी तिथियां भी अनुकूल मानी जाती हैं। इन नक्षत्रों और तिथियों में विदाई करने से नववधू का नया जीवन सुख, समृद्धि और प्रेम से भरा रहता है। अशुभ नक्षत्र जैसे भरणी या क्रूर तिथियों से बचें।
हिंदू विवाह में विदाई से पहले कई रस्में, जैसे गृह प्रवेश की तैयारी, कन्यादान, और आशीर्वाद पूरी की जाती हैं। इन रस्मों को समय रहते पूरा करें ताकि विदाई शुभ मुहूर्त में हो सके। विदाई के समय परिवार की उपस्थिति और आशीर्वाद जरूरी है। नववधू को मांग में सिंदूर, मंगलसूत्र और शुभ वस्त्रों में विदा करें। यह सुनिश्चित करें कि विदाई की रस्में शांत और सकारात्मक माहौल में हों, जो नवदंपति के लिए शुभ हो।
शुभ मुहूर्त, जैसे गोधूलि बेला, शुभ नक्षत्र, और अनुकूल तिथि में विदाई करने से नववधू का वैवाहिक जीवन सुख, समृद्धि, और प्रेम से भर जाता है। अशुभ समय और राहुकाल से बचें। पंडित की सलाह और परिवार के आशीर्वाद के साथ विदाई करें। वास्तु और ज्योतिष के नियमों का पालन करके नवदंपति के नए जीवन को शुभ और मंगलमय बनाएं।