Street Vendors Struggle for Security and Recognition Amid Government Initiatives बोले सहारनपुर : वेंडर जोन तो बने, हमारी कब आएगी बारी, Saharanpur Hindi News - Hindustan
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बोले सहारनपुर : वेंडर जोन तो बने, हमारी कब आएगी बारी

Saharanpur News - जनपद में एक लाख से अधिक ठेला-रेहड़ी वाले सड़क किनारे छोटे व्यापार कर रहे हैं। स्थायी ठिकाना न होने के कारण वे असुरक्षित महसूस करते हैं। सरकार ने वेंडर जोन बनाए हैं, लेकिन अधिकतर वेंडरों को स्थायी...

Newswrap हिन्दुस्तान, सहारनपुरMon, 28 April 2025 01:05 AM
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बोले सहारनपुर : वेंडर जोन तो बने, हमारी कब आएगी बारी

जनपद में एक लाख से अधिक ठेला-रेहड़ी वाले सड़कों के किनारे छोटा-मोटा व्यापार कर अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे है। इनमें से अधिकांश के पास कोई स्थायी ठिकाना नहीं है। वे कभी फुटपाथ तो कभी सड़क किनारे, ट्रैफिक की चहल-पहल और प्रशासन की नजर से बचते हुए काम करते हैं। कई बार इन्हें नगर निगम या पुलिस द्वारा अतिक्रमण के नाम पर परेशान किया जाता है। स्थायी पंजीकरण या पहचान पत्र न होने के कारण ये खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं। अगर वेडिंग जोन बने तो काफी राहत मिले। सड़कों के किनारे ठेलों, खोमचों और टेंटों पर अपनी जिंदगी की गाड़ी खींचते हैं। पंचर लगाने वाले और चाय बेचने वाले, जूते बनाने वाले तक ये सभी वे लोग हैं जो अपने हाथों की मेहनत से न सिर्फ खुद का बल्कि अपने परिवार का पेट पालते हैं। लेकिन सवाल यह है कि जब सरकार वेंडरों को सुरक्षित और व्यवस्थित स्थान देने के लिए वेंडर जोन बना रही है, तो इन लाखों लोगों की बारी कब आएगी? जनपद में अनुमानतः एक लाख से अधिक लोग सड़क किनारे छोटे-मोटे व्यापार से रोजी-रोटी कमाते हैं। इनमें से अधिकांश के पास कोई स्थायी ठिकाना नहीं है। वे कभी फुटपाथ तो कभी सड़क किनारे, ट्रैफिक की चहल-पहल और प्रशासन की नजर से बचते हुए काम करते हैं।

शहर की चमकती सड़कों के किनारे हर दिन न जाने कितने लोग अपने छोटे-छोटे ठेलों, खोमचों और टेंटों पर अपनी जिंदगी की गाड़ी खींचते हैं। पंचर लगाने वाले और चाय बेचने वाले, जूते बनाने वाले तक ये सभी वे लोग हैं जो अपने हाथों की मेहनत से न सिर्फ खुद का बल्कि अपने परिवार का पेट पालते हैं। लेकिन सवाल यह है कि जब सरकार वेंडरों को सुरक्षित और व्यवस्थित स्थान देने के लिए वेंडर जोन बना रही है, तो इन लाखों लोगों की बारी कब आएगी? जनपद में अनुमानतः एक लाख से अधिक लोग सड़क किनारे छोटे-मोटे व्यापार से रोजी-रोटी कमाते हैं। इनमें से अधिकांश के पास कोई स्थायी ठिकाना नहीं है। वे कभी फुटपाथ तो कभी सड़क किनारे, ट्रैफिक की चहल-पहल और प्रशासन की नजर से बचते हुए काम करते हैं।

भारत सरकार द्वारा 2014 में स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट लागू किया गया था। इस अधिनियम के तहत हर शहर में वेंडर सर्वे किया जाना था और उन्हें पहचान पत्र व स्थायी स्थल देने की योजना थी। सहारनपुर नगर निगम द्वारा कुछ हद तक पहल की गई और पांच वेंडर जोन बनाए गए-जैसे कि नुमाईश कैंप, कोर्ट रोड, कंपनी बाग के पास, 62 फुटा रोड, सिविल अस्पताल के पीछे। लेकिन, जिन पांच क्षेत्रों में वेंडर जोन बने, वहां भी जगह सीमित है और मांग अधिक। यह पहल सराहनीय है, लेकिन इसकी पहुंच अब तक सीमित है। पांचों वेंडर जोनों में अभी तक केवल लगभग 300 लोगों को ही स्थायी स्थान मिल पाया है। बाकी हजारों लोग अब भी प्रशासनिक फैसलों और योजनाओं की प्रतीक्षा में हैं। इन वेंडरों में तरह-तरह के लोग शामिल हैं। कोई चाय बनाता है, तो कोई कढ़ी चावल का ठेला लगाता है। कोई चश्मे बेचता है तो कोई बर्तन या कपड़े। कुछ लोग पुराने मोबाइल ठीक करते हैं तो कुछ लोग किताबों की दुकान चलाते हैं। यह पूरा असंगठित क्षेत्र नगर की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, फिर भी इन्हें समाज और व्यवस्था में उचित मान्यता नहीं मिल पाती।

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स्वास्थ्य सुविधाएं और सामाजिक सुरक्षा भी मांगों में शामिल

इन मेहनतकश लोगों को सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं का सीधा लाभ नहीं मिल पाता। न ही इनके पास नियमित रूप से इलाज कराने के लिए आर्थिक संसाधन होते हैं। यदि किसी को बीमार पड़ने पर अस्पताल जाना पड़े, तो उसकी दुकान बंद हो जाती है और रोज की कमाई रुक जाती है। इसलिए इनकी मांग है कि इन्हें भी आयुष्मान योजना जैसी योजनाओं का लाभ सरलता से मिले और सरकार इनके लिए विशेष स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन करे।

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सुनवाई की दरकार, पहचान की जरूरत

कई बार इन्हें नगर निगम या पुलिस द्वारा अतिक्रमण के नाम पर परेशान किया जाता है। स्थायी पंजीकरण या पहचान पत्र न होने के कारण ये खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं। सड़क किनारे ठिया लगाने वाले लोगों की मांग है कि सरकार उन्हें पहचान पत्र प्रदान करे ताकि वे कानूनी रूप से अपना काम कर सकें और अतिक्रमण का डर खत्म हो।

वेंडरों की समस्याएं और मांगे

-स्थायी ठिकाने की समस्या

-स्थायी रोजगार की समस्या

-सरकारी सुविधाओं की जानकारी की समस्या

-स्वास्थ्य बीमा का लाभ नहीं मिलने की समस्या

-पेयजल व शौचालय की समस्या

मांगे-

-वेंडर जोन की संख्या बढ़ाए जाने की मांग

-स्थायी ठिकाना नहीं मिलने तक कोई कार्रवाई नहीं किए जाने की मांग

-स्थायी रोजगार की मांग

-सरकारी सुविधाओं की जानकारी के लिए विशेष कैंप लगाए जाने की मांग

-पेयजल व शौचालय व्यवस्था की मांग

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अधिकांश वेंडर किसी निश्चित स्थान पर काम नहीं कर पाते। कभी नगर निगम का अभियान चलता है तो अपना ठेला हटाना पड़ता है। कभी पुलिस आकर खदेड़ देती है। विशाल

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सुना है कि नगर निगम ने वेंडर जोन बनाकर दिए हैं। हमें तो नहीं मिला और ना ही मुझे जानकारी है कि वेंडर जोन मिलने की प्रक्रिया क्या है? सारी जिंदगी इसी पेड़ के नीचे काम करते करते बीत गई। बसंता

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वेंडरों को नगर निगम द्वारा लाइसेंस दिए जाते हैं, लेकिन प्रक्रिया बेहद धीमी है। बहुत सारे लोग आज भी बिना लाइसेंस के काम कर रहे हैं, जिससे वे किसी भी समय हटाए जा सकते हैं। राकेश

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जब सड़क किनारे से हटाया जाता है, तो हमारा काम-काज रुक जाता है। इससे रोजाना की कमाई पर असर पड़ता है और परिवार भूखे पेट सोने को मजबूर हो जाता है। सोनू

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परिवार चलाने के लिए फूल बेचने का काम करता हूं। आमदनी ना के बराबर है। मौसम की मार अलग से पड़ रही है। गर्मी से बचने के लिए पेड़ के नीचे ठिया लगाया है। पक्के शेड वाले ठिए मिले तो जीवन में सकारात्मक बदलाव आएगा। योगेश

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मेरी तो जीवन ही इस पेड़ के नीचे बीत रहा है। करीब दस साल से यहां मोची का काम करता हूं। यही मेरा घर है, यही ठिकाना। सरकारी योजनओं का लाभ मिले तो कुछ बात बने। राजेश

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खाने का काम करता हूं। पहले सब्जी बेचकर परिवार चलाता था। लेकिन कमाई नहीं होने के चलते काम बदल लिया है। इस काम में काफी मेहनत है। आमदनी कम है खर्चा ज्यादा है। विनोद

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करीब 40 साल से संदूक रिपेयरिंग का काम करता हूं। नगर निगम में पंजीकरण हुआ है। सर्दी, गर्मी हो या बरसात पेड़ के नीचे ही काम करके अपना परिवार चलाता हूं। आयुष्मान कार्ड बने तो चिंता कम हो। शाहनवाज

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पढ़ाई के बाद भी रोजगार की समस्या बनी है। सड़क किनारे बिना किसी शेड के कढ़ी-चावल का काम करता हूं। हम लोगों की मदद के लिए विशेष योजनाएं बनाई जानी चाहिए। नरेश धीमान

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हसनपुर चुंगी पर पंचर का काम करता हूं। गर्मी लगातार बढ़ रही है। बिना शेड के काम करना मुश्किल होता जा रहा है। नगर निगम ने वेंडर जोन बनाए हैं लेकिन सीमीत संख्या में हैं। सबको लाभ नहीं मिला है। उस्मान

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काम की तलाश में शहर आना पड़ता है। पंचर लगाने काम है। इतनी कम आमदनी में परिवार चलाना मुश्किल होता जा रहा है। रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए योजनाएं बनाई जानी चाहिए। प्रदीप

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पिनयाली गांव से शहर में काम करने आता हूं। पंचर की दुकान पर काम करता हूं। हमने तो अपना जीवन जैसे-तैसे गुजार दिया है। लेकिन हमारे बच्चों का भविष्य सुधर सके इसके लिए सरकारी योजनाए बनाई जानी चाहिए। मनोज

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