बोले सहारनपुर : कार मैकेनिकों को चाहिए स्थायी ठिकाना, सुविधा और सम्मान
Saharanpur News - जिले के मोटर मैकेनिक, ऑटो इलेक्ट्रीशियन, डेंटर और पेंटर वर्षों से समाज की सेवा कर रहे हैं। लेकिन आज ये अस्थिर आय, सरकारी योजनाओं की कमी, और महंगे ऑटो पार्ट्स जैसी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। यदि...
जिलेभर में मोटर मैकेनिक, ऑटो इलेक्ट्रीशियन, डेंटर और पेंटर हैं जो वर्षों से वाहनों की मरम्मत और देखरेख का काम कर समाज की सेवा कर रहे हैं। लेकिन आज ये हजारों श्रमिक तमाम परेशानियों से जूझ रहे हैं -अस्थिर आय, सरकारी योजनाओं की पहुंच का अभाव, आधुनिक कंपनियों से बढ़ती प्रतिस्पर्धा और महंगे ऑटो पार्ट्स ने इनके जीवन को कठिन बना दिया है। जिलेभर में करीब दस हजार से अधिक मोटर मैकेनिक, ऑटो इलेक्ट्रीशियन, डेंटर और पेंटर हैं जो वर्षों से वाहनों की मरम्मत और देखरेख का काम कर समाज की सेवा कर रहे हैं। इनका कार्य न केवल आम जनता को राहत देता है, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था का भी एक बड़ा हिस्सा है।
लेकिन आज ये हजारों श्रमिक तमाम परेशानियों से जूझ रहे हैं –अस्थिर आय, सरकारी योजनाओं की पहुंच का अभाव, आधुनिक कंपनियों से बढ़ती प्रतिस्पर्धा और महंगे ऑटो पार्ट्स ने इनके जीवन को कठिन बना दिया है। इनका कहना है कि यदि जल्द ही ठोस उपाय नहीं किए गए तो आने वाले समय में बड़ी संख्या में पारंपरिक मैकेनिक इस पेशे को छोड़ने के लिए मजबूर हो जाएंगे। सबसे बड़ी समस्या अस्थिर आय है। कोई निश्चित सैलरी नहीं होती। काम की मात्रा सीज़न पर निर्भर करती है-कभी गाड़ियों(कारों) की भीड़ रहती है, तो कई बार पूरा दिन एक भी ग्राहक नहीं आता। त्योहारों के बाद, बरसात के दिनों या लॉकडाउन जैसी स्थितियों में तो महीनेभर तक आमदनी ना के बराबर हो जाती है। ज्यादातर मैकेनिकों का मानना है कि लॉकडाउन के बाद काम में काफी कमी आई है। पेट्रोल और डीजल की गाड़ियों की आयु सीमा तय करने से मैकेनिकों के काम में काफी बुरा असर पड़ा है। पेट्रोल के लिए 15 साल और डीजल गाड़ियों के लिए दस साल की आयु सीमा तय की गई है। सरकार के इस नियम से मैकेनिकों का काम प्रभावित हुआ है। मैकेनिकों का मानना है कि या तो इनकी आयु सीमा बढ़ाई जाए अथवा साल के हिसाब से नहीं फिटनेस के आधार पर इनकी आयु तय की जाए। कंपनियों द्वारा पांच साल की वारंटी से भी मैकेनिकों के रोजगार को प्रभावित किया है। पांच साल तक लोग अपनी गाड़ियों को कंपनी के सर्विस सेंटर में ही रिपेयर कराते हैं। पहले ऐसा नहीं होता था। एक साल तक लोग अपनी गाड़ियों को कंपनी सर्विस सेंटर में रिपेयर कराते थे उसके बाद बाहर से सर्विस कराते थे। ज्यादातार मैकेनिकों का रोजगार बुरी तरह से प्रभावित हुआ है और उनके सामने परिवार चलाने का संकट खड़ा हो गया है। इनका कहना है कि यदि जल्द ही ठोस उपाय नहीं किए गए तो आने वाले समय में बड़ी संख्या में पारंपरिक मैकेनिक इस पेशे को छोड़ने के लिए मजबूर हो जाएंगे। अस्थिर आय और मंदी की मार सबसे बड़ी समस्या अस्थिर आय है। कोई निश्चित सैलरी नहीं होती। काम की मात्रा सीज़न पर निर्भर करती है–कभी कारों की भीड़ रहती है, तो कई बार पूरा दिन एक भी ग्राहक नहीं आता। त्योहारों के बाद, बरसात के दिनों में तो महीनेभर तक आमदनी ना के बराबर हो जाती है। एक मैकेनिक ने बताया कि पिछले दो सालों में बहुत मंदी देखी है। पहले एक दिन में चार-पांच गाड़ियां आ जाती थीं, अब हफ्ते में दो ही मुश्किल से मिलती हैं। सरकारी योजनाओं से वंचित सरकार की मुद्रा लोन, ई-श्रम कार्ड, प्रधानमंत्री बीमा योजना से ज्यादातर मैकेनिक या तो अंजान हैं या पात्र होने के बावजूद लाभ नहीं ले पा रहे। सरकारी योजनाओं की जानकारी के लिए विशेष कैंप लगाए जाने चाहिए। जिससे एक बड़ा वर्ग इन योजनाओं का लाभ उठा सके। --- कंपनियों से चुनौती पिछले कुछ वर्षों में ऑटोमोबाइल कंपनियों ने अपने अधिकृत सर्विस सेंटर खोल लिए हैं, जहां ग्राहक वारंटी और ब्रांड के भरोसे के कारण रुख करते हैं। इसके कारण पारंपरिक गैराजों पर काम कम होता जा रहा है। एक मैकेनिक ने बताया कि कंपनियां ग्राहकों को बताती हैं कि बाहर मरम्मत कराने से गाड़ी की वारंटी खत्म हो जाएगी। इससे हमारा काम दिन-प्रतिदिन घटता जा रहा है।” तकनीकी प्रशिक्षण की कमी नई गाड़ियों में सेंसर, ईसीयू स्मार्ट सिस्टम जैसी तकनीके आ गई हैं। लेकिन पुराने मैकेनिकों को इसका कोई प्रशिक्षण नहीं मिला है। ज्यादातर मैकेनिक अनुभव के आधार पर काम करते हैं, जो नई गाड़ियों के साथ मुश्किल होता जा रहा है। एक मैकेनिक ने बताया कि अब कारों में बॉडी पेंटिंग भी मशीनों से होती है। अगर सरकार या कंपनियाँ हमें भी ट्रेनिंग दें, तो हम भी खुद को अपडेट कर सकें।” महंगे स्पेयर पार्ट्स ने तोड़ी कमर हर दिन बढ़ती महंगाई का असर इन मैकेनिकों की आय पर भी पड़ा है। खासकर स्पेयर पार्ट्स, पेंट, मशीनें और तेल के दाम में भारी बढ़ोतरी हुई है। लेकिन ग्राहक पुराने रेट से ही काम करवाना चाहते हैं, जिससे इनकी कमाई घटती जा रही है। एक इलेक्ट्रीशियन ने बताया कि एक बल्ब जो पहले 60 रुपये में आता था, अब 110 रुपये का हो गया है। स्वास्थ्य और सुरक्षा उपेक्षित गैरेज में काम करते वक्त मैकेनिक धुएं, केमिकल्स, धूल और भारी औजारों से घिरे रहते हैं। लेकिन सुरक्षा उपकरणों की कमी, लंबे कार्य घंटे और लगातार झुककर काम करने के कारण उन्हें कमर दर्द, आंखों की समस्या और सांस की तकलीफ जैसी समस्याएं होती हैं। एक मैकेनिक ने बताया कि हमारे पास कोई बीमा नहीं, न कोई मेडिकल सुविधा। कभी चोट लग जाए तो जेब से खर्च करना पड़ता है। दवाएँ भी खुद खरीदते हैं।” स्थायी ठिकाने और पहचान का संकट जिले में ज्यादातर मैकेनिक सड़क किनारे या किराए के छोटे शेडों में काम करते हैं। कोई स्थायी दुकान या ठिकाना नहीं होने से कई बार प्रशासन द्वारा हटाने की कार्रवाई भी होती है। इनकी मांग है कि इनको भी निगम द्वारा स्थायी ठिए की सुविधा मिले जिससे यह बिना किसी परेशानी के अपना रोजगार चला सके। समस्याएं एवं सुझाव -अस्थिर आय -काम में मंदी की समस्या -सरकारी योजनाओं का अभाव -कंपनियों से मिल रही चुनौती -मंहगे पार्टर्स की समस्या सुझाव: -सरकारी योजनाओं का लाभ मिले -गाड़ियों की आयु सीमा बढ़ाई जाए -तकनीकी प्रशिक्षण दिया जाए -मैकेनिकों के लिए स्थायी ठिकाना की व्यवस्था की जाए -स्वास्थ्य और बीमा सुविधा मिले 0-वर्जन 1. हर मैकेनिक को ई-श्रम कार्ड, प्रधानमंत्री बीमा योजना, मुद्रा लोन, तकनीकी प्रशिक्षण योजना जैसी स्कीमों का लाभ मिलना चाहिए। इसके लिए डिजिटल कैंप और लोकल भाषा में फॉर्म भरवाने की व्यवस्था की जाए। शोएब शोबी 0-वर्जन 2. पेट्रोल गाड़ियों की वर्तमान आयु सीमा 15 साल और डीजल की 10 साल है। मैकेनिकों की मांग है कि इसे बढ़ाकर पेट्रोल गाड़ियों की 20 साल और डीजल की 15 साल की जाए। ताकि पुरानी गाड़ियों का मेंटेनेंस व मरम्मत का काम बना रहे। हारुन 0-वर्जन 3. प्रत्येक ब्लॉक या तहसील स्तर पर आधुनिक तकनीक की ट्रेनिंग के लिए केंद्र बनाए जाएं। साथ ही, ऑटोमोबाइल कंपनियों से सीएसआर के तहत प्रशिक्षण करवाया जाए। सोनू 0-वर्जन 4. सरकार को चाहिए कि नगर निगम के माध्यम से कम किराए पर स्थायी दुकानें या शेड्स की व्यवस्था की जाए जहाँ हम व्यवस्थित ढंग से काम कर सकें। सरफराज 0-वर्जन 5. मैकेनिकों को आर्थिक सहायता और सब्सिडी की सुविधा मिलनी चाहिए। उपकरण खरीदने, गैरेज खोलने या मशीन अपग्रेड करने के लिए सब्सिडी या ब्याज मुक्त लोन उपलब्ध कराया जाए। मो.फारुख 0-वर्जन 6. प्रत्येक मैकेनिक के लिए वार्षिक स्वास्थ्य जांच, औद्योगिक दुर्घटना बीमा और अस्पताल में मुफ्त इलाज की सुविधा सुनिश्चित की जाए। जिसके चलते हमारा जीवन बेहतर हो सके। सलमान 0-वर्जन 7. सात साल से डेंटिंग का काम कर रहा हूं। आधुनिक तकनीक से चुनौती मिल रही है। लोग कंपनियों से ज्यादा काम करवा रहे हैं। पार्ट्स मंहगे होने के कारण भी रोजगार प्रभावित हुआ है। मो.अहकाम 0-वर्जन 8. 25 साल से मैकेनिक का काम कर रहा हूं। गाड़ियों की आयु सीमा तय करने से रोजगार पर नकारात्मक असर पड़ा है। गाड़ियों की आयु सीमा बढ़ाई जाए। मो.आजम 0-वर्जन 9. कोई स्थायी दुकान या ठिकाना नहीं होने से कई बार प्रशासन द्वारा हटाने की कार्रवाई भी होती है। निगम द्वारा स्थायी ठिए की सुविधा मिले जिससे हम बिना किसी परेशानी के अपना रोजगार चला सके। अमित 0-वर्जन 10. दस साल से इस रोजगार से जुड़ा हूं। लॉकडाउन के बाद रोजगार में नकारात्मक असर पड़ा है। पहले के मुकाबले आय काफी कम हो गई है। सरकारी योजनाओं का लाभ मिले। बॉबी 0-वर्जन 11. सबसे बड़ी समस्या अस्थिर आय है। कोई निश्चित सैलरी नहीं होती। काम की मात्रा सीज़न पर निर्भर करती है। कभी गाड़ियों की भीड़ रहती है, तो कई बार पूरा दिन एक भी ग्राहक नहीं आता। अनूप कुमार
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