शामली में आम के साथ लीची के उत्पादन में हाथ आजमा रहे हैं किसान
Shamli News - कांधला के किसान अब आम की पैदावार के साथ-साथ लीची की खेती में भी अपनी पहचान बना रहे हैं। क्षेत्र में लीची की फसल तेजी से बढ़ रही है और इसकी बिक्री इस सप्ताह बड़े पैमाने पर होने की संभावना है। लीची की...

कांधला । सभी तरह के आम के लिए विख्यात कांधला के किसान अब लीची की पैदावार में भी अपनी पहचान बना रहे हैं। इस समय आम की फसल के साथ लीची की पैदावार पर भी उत्पादकों का ध्यान है। क्षेत्र में आम की फसल के साथ लीची की फसल तेजी के साथ वृद्धि कर रही है। मौसम की मार से बच गई तो लीची उत्पादन में किसानों लाभ होगा एक समय था जनपद शामली के कांधला कस्बे उसके आसपास के कृषि क्षेत्र में आम, आडू, नाशपत्ति की पैदावार ही फल उत्पादकों के लिए मुख्य लक्ष्य था। लेकिन आम की फसल के साथ लीची की बढ़ती लोकप्रियता को लेकर फल उत्पादकों की पहली पसंद लीची भी बन गई है।
पहाड़ी क्षेत्र व बिहार राज्य लीची की बंपर फसल की पैदावार देखने को मिलती थी। लेकिन क्षेत्र के किसान भी विशेष प्रशिक्षण लेकर आम के साथ लीची की फसल की पैदावार भी काफी समय से करने लगे हैं। लीची के फल लगने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। लीची के पेड़ों में आम के साथ ही बौर आता है, लेकिन लीची की फसल आम की फसल से पहले तैयार हो जाती है. लीची की बागवानी कर रहे बागवान कम लागत में अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। खण्ड विकास क्षेत्र गांव भारसी, आल्दी, गंगेरु, बुढाना मार्ग स्थित बाग में फल उत्पादक अब लीची की पैदावार में भी अपनी पहचान बना रहे हैं। लीची फल तैयार है। इसी सप्ताह के भीतर जनपद शामली की सभी फल मंडियों में लीची की बड़े पैमाने पर बिक्री देखने को मिलेगी। ---------------- देहरादून की लीची को टक्कर दे रही मैदानी लीची कांधला, शामली की लीची स्वाद और रंग के मामले में उत्तराखण्ड के देहरादून और बिहार के मुजफ्फरपुर की लीची को भी पीछे छोड़ रही है। अभी तक जनपद शामली में देहरादून में बिहार से आने वाली लीची का निर्यात व आयात होता रहा है। लीची के दिन प्रतिदिन बढ़ते दाम को लेकर उत्पादको ने क्षेत्र में भी बड़े पैमाने पर लीची का उत्पादन शुरू कर दिया है। लेकिन शामली में लीची के बहुत ज्यादा बागान नही हैं, लेकिन जो हैं, उनमें फल आ चुके हैं. यहां की लीची अपनी विशेषताओं के कारण अलग पहचान बना रही है.फायदेमंद लीची की खेती करने वाले बागवानों की मानें तो इस क्षेत्र में लीची की अच्छी बागवानी की जा सकती है. आम के साथ ही लीची की बागवानी करके अच्छी कमाई की जा सकती है. जिन बागवानों ने लीची के कुछ पेड़ तैयार कर लिए हैं, वह इससे अच्छी आमदनी कर रहे हैं. क्षेत्र में तैयार लीची को देख क्षेत्रीय बागवान भी लीची की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। -------------------- कम लागत व कड़ी मेहनत से मिल रहा है लाभ कांधला बागवान आबिद, मोहित सैनी, फिरोज और रामकुमार बताते हैं, कि वह आम के साथ-साथ लीची की भी बागवानी करते हैं. लीची की बागवानी आम के बागों से कम लागत में तैयार हो जाती है. आम की फसल तैयार होने से करीब एक महीने पहले ही लीची का फल तैयार हो जाता है. बात करें आम की तो उसको बेचने के लिए मंडियो में ले जाना पड़ता है. मगर, लीची के तैयार होने पर व्यापारी बागों से ही लीची खरीद लेते हैं. बागवान फिरोज ने बताया कि उन्होंने अपने बाग में तीन से चार वैरायटी की लीची के पेड़ लगा रखे हैं. इसमें देहरादून, कलकतिया, बी दाना शामिल हैं. 10 बीघा में पौधे लगा रखे हैं, जो खूब पैदावार देते हैं। --------------------- पहली पसंद बन रही मैदान की शाही लीची कांधला, लीची उत्पादक राजकुमार ने बताया कि क्षेत्र में फल उत्पादकों के लिए लीची में देहरादून की शाही लीची का आगेती पौध ही पहली पसंद बना हुआ है। जो आम की फसल तैयार होने से पहले ही मार्केट में आ जाता है। कम लागत में भरपूर पैदावार से किसान को लाभ पहुंचता है। उसके बाद कलकतिया, बी दाना लीची की पैदावार होती है जो अंत तक चलती है। लेकिन देहरादून की शाही लीची खाने में रसीली उत्तम है। ------------ 1 बिधा में लगते है 6 पौधे कांधला, लीची उत्पादक मोहित ने बताया कि 1 बीघा में 6 लीची के वृक्षों को रोपित किया जाता है। 5 से 6 साल के लीची का पौधा तैयार हो जाता है। अच्छी जलवायु का खाद के साथ पौधे के विकसित हो जाने के बाद प्रत्येक पौधा फलों से भर जाता है। सीजन के समय प्रत्येक पौधे पर 25 से 30 किलो लीची का उत्पादन होता है। लेकिन मौसम की मार व रोगों से बचाव न होने बाद पैदावर कम भी हो सकती है। -------------- लीची की फसल को फंगस पहुंचना है नुकसान कांधला, क्षेत्र के लीची उत्पादकों का कहना है कि दिन प्रतिदिन लीची की डिमांड बढ़ती जा रही है। जिस क्षेत्र में जमकर लीची के पैदावार को बढ़ावा दिया जा रहा है। लेकिन कभी- कभाक मौसम परिवर्तन में आने वाले फंगस के कारण फलों का उत्पादन प्रभावित होता है। लीची में आमतौर पर फंगस सुंडी जैसे रोग लग जाते हैं जिनकी उत्पादक समय रहते दवाइयां का छिड़काव कर बचाव करता है। ----------- यहां की जलवायु लीची के लिए अनुकूल: पोषक तत्वों से भरपूर लीची अपनी गुणवत्ता के लिए जानी जाती है. इसके फल में शर्करा (11%), प्रोटीन (0.7%), वसा (0.3%), और अनेक विटामिन भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. लीची का फल मरीजों और वृद्ध लोगों के लिए उपयोगी माना गया है. ------------ लीची करे रोगों से इस तरह बचाव कांधला, मौजूदा समय मे फल तैयार होने के बाद कई बार गिरने लगते हैं. उनको जमीन पर गिरने से बचाने के लिए कीट वैज्ञानिक डाक्टर सीपी वासु ने प्लैनोफिक्स नाम की दवा इस्तेमाल करने का सुझाव दिया है. अगर किसान 1 मिलीलीटर दवा 4 लीटर पानी मे मिलाकर महीने में दो बार छिड़काव करते हैं, तो फल जमीन पर गिरने की समस्या नहीं होगी. उत्तर भारत की लीची पकने के बाद फट जाती है. उद्यान विशेषज्ञ उसका भी उपाय बताते हैं कि जब फल पकने की अवस्था में आता है, तो फल में चटकन की समस्या आने लगती है. ऐसे में उस समय बागवान बोरान या पानी से कम से कम तीन बार छिड़काव कर दें. इससे समस्या दूर हो जाती है. छिड़काव करने से फल फटने का डर नहीं रहता है. ---------- 100 से 120 रुपये बिकती है लीची कांधला, क्षेत्र में लीची के कम उत्पादन के बाद भी मंडी व बाजार में मैदानी लीची की काफी डिमांड है। सीजन शुरू होते ही मंडी में फल व्यापारी बागन में पहुंचकर लीची के फल के बढ़िया दाम लगाकर खरीदते हैं। इस समय मंडी में लीची का भाव 100 से ₹120 प्रति किलो है। और सीजन शुरू होने के बाद रेट आसमान को छूने लगते हैं।
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