बोले सीतापुर -इलाज देने वाले पीएचसी खुद ही बीमार
Sitapur News - सीतापुर में 86 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति चिंताजनक है। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। डॉक्टरों की कमी, वैक्सीन की अनुपलब्धता और पीने के पानी की समस्या जैसी...

सीतापुर। जिले के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों को लोगों का बेहतर इलाज के लिए 86 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को संचालित किया जा रहा है। सरकार ने जनता को सुविधाएं देने के लिए जिले की पीएचसी निर्माण में करोड़ों रुपए खर्च कर दिए लेकिन जिम्मेदारों की अनदेखी और स्टाफ कम होने के चलते जनता को उसका लाभ ठीक ढंग से नहीं मिल पा रहा है। कहीं पीने का पानी नहीं है तो किसी स्थान पर डाक्टर की तैनाती नहीं है। इतना ही नहीं पीएचसी में इलाज के दावे भी खोखले हैं। जनता बताती है कि किसी पीएचसी में वैक्सीन नहीं लगती तो किसी में समय पर डाक्टर नहीं मिलते हैं।
जनता को पीएचसी में होने वाली समस्याओं को लेकर हिन्दुस्तान ने जनता से बात की तो समस्याएं खुलकर सामने आ गईं। जिले में आमजन को इलाज देने के लिए सरकार द्वारा बनवाए गए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) की हालत किसी बीमार व्यक्ति से कम नहीं है। कुछ पीएचसी तो बेहतर स्थिति में मरीजों को इलाज दे रहे हैं। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों के कुछ पीएचसी को यदि खुद बीमार कहा जाए तो कोई गुरेज नहीं है। किसी में डाक्टर की तैनाती नहीं है तो किसी में डाक्टर के अलावा अन्य पैरामेडिकल स्टाफ की कमी है। कहीं वैक्सीन की कमी तो कहीं मरहम पट्टी तक नहीं है। तो किसी में समय से डाक्टर नहीं पहुंच रहे हैं। किसी किसी में वैक्सीन लगवाने में कुछ ऐसी शर्तों को लागू कर दिया गया है कि रैबीज का इंजेक्शन तक लगवा पाना मुश्किल है। कहीं पांच के कम लोग होने पर रैबीज का इंजेक्शन नहीं लग रहा है तो कहीं लगाने वालों की कमी है। ऐसे में हर स्थिति में जनता तो इलाज के लिए दूसरे स्थानों पर जाना पड़ रहा है। सबसे बुरी हालत तो ग्रामीण क्षेत्रों में है। पीएचसी में समुचित उपचार न मिल पाने की स्थिति में ग्रामीण अंचल के लोग झोलाछाप के पास जाकर अपना इलाज कराने लगते हैं जो कि कभी कभी खतरनाक साबित हो जाता है। इतना ही नहीं कुछ पीएचसी में पीने के पानी को लेकर भी संकट है। ग्रामीणों का साफ तौर पर कहना है कि सरकार ने इन केंद्रों पर लाखों रुपए खर्च कर दिए हैं, लेकिन जिला स्तर पर बैठे अधिकारी अगर अपनी जिम्मेदारी ठीक ढंग से निभाए तो उनको लाभ मिल सकेगा। डाक्टर है नहीं, फार्मासिस्ट दे रहे दवाएं जिले में रामकोट पीएचसी का हाल सबसे अलग है। इस पीएचसी में किसी भी डाक्टर की तैनाती नहीं है। ऐसे में फार्मासिस्ट सुशील राठौर ही डाक्टर की भूमिका में रहते हैं। मरीजों का मर्ज पूछते हैं, जांच की आवश्यकता हुई तो वह कराते हैं और दवा दे देते हैं। यदि किसी मरीज ने डाक्टर के बारे में पूछा तो स्वयं को डॉक्टर बताने से पीछे भी नहीं हटते हैं। यह पीएचसी डिलीवरी प्वाइंट भी है। यहां प्रशिक्षित स्टाफ नर्स द्वारा महिलाओं की डिलीवरी भी कराने की सुविधा है। हालांकि डॉक्टर न होने की दशा में किसी डिलीवरी के दौरान स्थिति बिगड़ती है तो उसके लिए भगवान ही जिम्मेदार है। इसके अलावा यदि कोई मरीज कुत्ता या बंदर काटने पर रैबीज का इंजेक्शन लगवाने यहां आ गया तो समझो उसने गलती कर दी। बिना पांच मरीज हुए किसी को यहां रैबीज का इंजेक्शन नहीं लगता है। पूछने पर बताया कि एक बार खोलने के बाद वॉयल खराब हो जाती है। इसलिए हम लोग पांच से कम लोग होने पर रैबीज नहीं लगाते हैं। आखिरी रैबीज का इंजेक्शन कब और किसके लगा था। यह भी किसी को नहीं पता था। कभी कभी तो जांच के लिए भी मरीजों को अगले दिन का समय दे दिया जाता है। फार्मासिस्ट ने बताया कि पीएचसी में कोई स्वीपर और गार्ड नहीं है, जिस वजह से काफी परेशानी होती है। ड्रेसिंग के लिए पट्टी तक नहीं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बरगावां की हालत खस्ता है। यहां पर बिजली जाने के बाद दूसरी कोई व्यवस्था नहीं है। इलाज के नाम पर केवल सर्दी, बुखार और जुकाम की दवाइयां ही उपलब्ध हैं। अगर कोई चोटिल होकर पीएचसी आ जाए तो उसकी ड्रेसिंग के लिए पट्टी तक नहीं है। बात करने पर वैक्सीन के बारे में भी मौजूद लोग कुछ खास जानकारी नहीं दे सके। प्रवेश के समय गेट से आने का रास्ता ऐसा है कि हल्की बूंदाबांदी में ही गेट पर पानी भर जाता है। जल निकासी तक की व्यवस्था नहीं है। पीएचसी में डॉ. अर्चित आनंद ने बताया कि सभी सुविधाएं ठीक हैं। यहां आने वाले सभी मरीजों का उपलब्ध संसाधनों के हिसाब से उचित उपचार कर दिया जाता है। पीने का पानी भी नहीं विकास खंड बेहटा की ग्राम पंचायत शाहपुर स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र शाहपुर अस्पताल के परिसर में चारों तरफ गंदगी ही गंदगी मिली। थोड़ी सी बरसात में जल भराव की समस्या तथा इंडियामार्का हैंडपंप का पानी पीने के लायक नहीं है। मरीजों ने बताया कि पानी पीने के लिए बाहर का रास्ता देखना पड़ता है। अस्पताल परिसर की बाउंड्री वॉल कई जगह गिर चुकी है, जिसमें आवारा जानवरों कुत्ते बकरियों का आना-जाना रहता है। अस्पताल परिसर में जगह-जगह कूड़े के लगे ढेर लगे मिले। अस्पताल में एक डॉक्टर राकेश और फार्मासिस्ट पीयूष वर्मा के सहारे व्यवस्था चल रही है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र शाहपुर कोई भी सफाई कर्मी नहीं है। डाक्टर ने बताया कि सुबह से करीब 25 मरीज का इलाज किया जा चुका था, जो की सर्दी जुकाम बुखार आदि से परेशान थे टंकी तो है लेकिन पानी नहीं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र अकबरपुर में आने वाले मरीजों के लिए पानी की समस्या बनी हुई है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से दूर लगभग 300, 400 मीटर गांव के अंदर हैंडपंप लगे हुए हैं। परिसर में लाखों रुपए खर्च करके पानी टंकी का निर्माण तो कराया गया था लेकिन अराजक तत्वों द्वारा उसे नष्ट कर दिया गया है। पानी की कोई व्यवस्था नहीं है। शौचालय टॉयलेट सब टूटे पड़े हुए हैं। स्टाफ को भी भारी समस्या का सामना करना पड़ता है। वहीं पीछे की ओर झाड़ झंखाड़ है, जिससे जंगली जानवरों का भी खतरा बना रहता है। इस पीएचसी में तीन लोगों की तैनाती है डॉक्टर अख्तर हुसैन ,फार्मासिस्ट जयप्रकाश और स्टाफ नर्स साक्षी वर्मा। बताया कि हम लोग प्रतिदिन अस्पताल आते हैं। ओपीडी में रोजाना 30 से 40 मरीज देखे जा रहे हैं। केवल डाक्टर और एलटी की पोस्टिंग प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र देवकलिया खंडहर में तब्दील हो चुका है। यहां फार्मासिस्ट अटैच है, डाक्टर एवं एलटी की पोस्टिंग है। बाकी पद खाली पड़े हैं। सारी जिम्मेदारी फ़ार्मासिस्ट निभाते हैं। महिला शौचालय चलताऊ हालात में है वहीं पुरूष शौचालय खराब पड़ा है। रात में अस्पताल बंद रहता है। मरीजों को सीएचसी बिसवां रिफर कर दिया जाता है। पंखे लगे हैं लेकिन बिजली कम आती है। स्टाफ की तैनाती न होने से गर्भवती महिलाओं को सुविधाएं मुहैया नहीं हो पा रही है। पड़ताल के दौरान पता चला कि डॉक्टर वीके सिद्धार्थ छुट्टी पर हैं। केवल फार्मासिस्ट अखिलेश पाण्डेय मौजूद मिले। इस आवासीय स्वास्थ्य केन्द्र में आवारा जानवर और असामाजिक तत्वों का जमावड़ा रहता है। ग्रामीणों ने बताया कि जब अस्पताल खुला था तो आस-पास के बड़ी संख्या में ग्रामीणों को आस जगी थी कि अब हम लोगों को अच्छा इलाज अपने क्षेत्र में मिलेगा। लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों की उदासीनता से यह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खुद बीमार है। बिसवां की अंतिम सीमा सात किलोमीटर दूर होने की वज़ह से यहां पर अधिकारियों का आना जाना नहीं होता। जिस कारण जिम्मेदार मनमानी करते हैं। जिले में कुल पीएचली - 86 ग्रामीण क्षेत्रों की पीएचसी - 76 शहरी क्षेत्रों की पीएचसी - 10 हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर - 431 स्वास्थ्य उपकेंद्र - 770 शिकायतें कुछ पीएचसी में डाक्टर की तैनाती तक नहीं। पीएचसी में रखरखाव का अभाव, जिम्मेदार नहीं देते ध्यान। रैबीज का इंजेक्शन लगाने के लिए पांच लोगों का होता इंतजार। कुछ कुछ पीएचसी में पानी की व्यवस्था भी नहीं। ग्रामीण क्षेत्र के पीएचसी में बिजली जाने पर होती है समस्या। स्टाफ नर्स के सारे चल रहा डिलीवरी का काम। सुझाव अधिकारी समय-समय पर पीएचसी का निरीक्षण करें। सभी पीएचसी में डॉक्टर समय से आए और मरीजों को देखें। जिले की सभी पीएससी में डॉक्टरों की तैनाती की जाए। सभी पीएचसी को सीसीटीवी कैमरे से लैस किया जाए और उनकी मॉनिटरिंग हो। पीएचसी पर वैक्सीन लगे और सभी जांच नियमित रूप से हो। प्रस्तुति - दिव्यांश सिंह, धर्मेंद्र नाग, रमाकांत शुक्ला, राहुल मिश्रा
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