बोले सीतापुर- प्रशिक्षण पूरा करने के बाद रोजगार के लिए भटकाव
Sitapur News - सीतापुर में एएनएम और जीएनएम प्रशिक्षुओं के लिए बेरोजगारी एक गंभीर समस्या बन गई है। कठिन पढ़ाई के बाद भी उन्हें नौकरी पाने में अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। सरकारी और निजी क्षेत्र में स्थायी...

सीतापुर। तेजी से बढ़ती बेरोजगारी एक विकराल समस्या है। एएनएम और जीएनएम की पढ़ाई करने वाले प्रशिक्षु भी इससे अछूते नहीं हैं। कई सालों की कठिन पढ़ाई पूरी करने के बाद जब वह कॉलेज से बाहर निकलते हैं, तो एक अदद नौकरी हासिल करने के लिए उन्हें एक या दो नहीं बल्कि तमाम समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इनमें सरकारी नौकरी की बेहद कमी, निजी क्षेत्र में अधिक प्रतिस्पर्धा, और प्रशिक्षित नर्सों की संख्या में लगातार होने वाला इजाफा शामिल हैं। सरकारी अस्पतालों में स्थायी पदों की कमी और निजी क्षेत्र में बेहद कम मानदेया पर होने वाली नियुक्तियां आर्थिक शोषण को जन्म देती हैं।
सहायक नर्स मिडवाइफ (एएनएम) और जनरल नर्सिंग एंड मिडवाइफरी (जीएनएम) डिप्लोमा स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की बुनियाद है। यह कोर्स ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने के लिए आवश्यक कौशल प्रदान करते हैं। हर साल जिले के कई सैकड़ा छात्र और छात्राएं इन कोर्सों को पूरा करते हैं। प्रशिक्षण पूरा करने के बाद उन्हें यह उम्मीद होती है कि उन्हें एक सम्मानजनक और स्थायी करियर मिलेगा। लेकिन जब वह नौकरी की तलाश शुरू करते हैं, तो वह धरातल की कड़वी सच्चाई से रूबरू होते हैं। सरकारी अस्पतालों में स्थायी रोजगार की स्थिति चिंताजनक है। कहने को तो समय-समय पर भर्तियां निकलती हैं, उनमें से अधिकांश संविदा या फिर आउटसोर्स के माध्यम से होती हैं। संविदा पर काम करने वाले नर्सिंग कर्मचारियों को बेहद कम वेतन पर काम करना पड़ता है। उन्हें स्थायी कर्मचारियों के मुकाबले कोई अन्य लाभ नहीं मिलते हैं। इसके अलावा संविदा कर्मचारियों को सदैव ही नौकरी की असुरक्षा का सामना करना पड़ता है। संविदा पर काम करने वाले नर्सिंग कर्मचारियों का भविष्य हमेशा अनिश्चितता में घिरा रहता है। संविदा कर्मियों का अनुबंध कभी भी समाप्त किए जा सकतास है, या फिर एक निश्चित समय सीमा के बाद उनके अनुबंध का नवीनीकरण नहीं किया जा सकता है। आउटसोर्सिंग कंपनियों के माध्यम से होने वाली नियुक्तियों में और भी समस्याएं हैं। इन कंपनियों पर अक्सर कर्मियों के आर्थिक शोषण के आरोप लगते हैं। अपना नाम न छापने की शर्त पर ऐसे ही कुछ कर्मियों ने यह आरोप लगाया है कि आउटसोर्सिंग कंपनियां सरकार से तो भारी भरकम धनराशि लेती हैं, लेकिन कर्मचारियों को बहुत कम भुगतान करती हैं। कर्मचारियों के हक का एक बड़ा हिस्सा इन आउटसोर्सिंग कंपनियों के जिम्मेदारों की जेबों में जाता है। इसके अलावा आउटसोर्सिंग कंपनियों के कर्मियों को कर्मचारी भविष्य निधि और कर्मचारी राज्य बीमा जैसे बुनियादी सामाजिक सुरक्षा के लाभ भी नहीं मिल पाते हैं। इन कंपनियों पर कर्मचारियों के वेतन में कटौती करने या उन्हें समय पर भुगतान न करने का भी आरोप लगता है। निजी अस्पतालों के संचालक भी नौकरी के नाम पर प्रशिक्षित नर्सिंग कर्मचारियों से 'जॉइनिंग शुल्क' या 'प्रशिक्षण शुल्क' की मांग करने लगे हैं। यह स्थिति नर्सिंग कर्मचारियों का आर्थिक शोषण कर उन्हें वित्तीय रूप से कमजोर बनाती है। इन समस्याओं के बावजूद, प्रशिक्षित नर्सिंग कर्मचारियों के लिए रोजगार की तलाश जारी रहती है, क्योंकि कोर्स पूरा करने और अपनी शिक्षा पर पहले ही हजारों रुपये खर्च करने के बाद भी, नर्सिंग छात्रों को नौकरी पाने के लिए और पैसे देने पड़ते हैं। इन तमाम तरह की समस्याएं आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि के छात्रों के लिए नर्सिंग के पेशे में प्रवेश करना लगभग असंभव बना देती है। निजी नर्सिंग प्रैक्टिस भी कर सकते हैं --- जीएनएम की पढ़ाई पूरी करने के बाद छात्र-छात्राओं के पास स्वास्थ्य के क्षेत्र में करियर के कई अवसर होते हैं। यह प्रशिक्षणार्थी सरकारी स्वास्थ्य विभागों, गैर सरकारी संगठनों, निजी अस्पतालों, क्लीनिकों और नर्सिंग होम में स्टाफ नर्स के रूप में नौकरी कर सकते हैं। इसके अलावा वह बाल चिकित्सा नर्सिंग, मनोरोग नर्सिंग या क्रिटिकल केयर नर्सिंग जैसे कुछ विशेष क्षेत्रों में सीधे रोगी देखभाल के साथ काम करना भी चुन सकते हैं। यह प्रशिक्षणार्थी स्नातक मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन, हेल्थकेयर मैनेजमेंट या मेडिकल राइटिंग में भी अपना करियर बना सकते हैं। इसके अलावा वह नर्सिंग में मास्टर डिग्री प्राप्त कर जो नर्स शिक्षक, नर्स मैनेजर या शोधकर्ता के रूप में भी अपना करियर चुन सकते हैं। यह लोग अस्पताल या सार्वजनिक स्वास्थ्य संगठन में प्रबंधकीय पदों पर के साथ ही योग्यता के स्तर के आधार पर अपनी निजी नर्सिंग प्रैक्टिस भी शुरू कर सकते हैं। समायोजन को लेकर सरकार बनाए स्पष्ट नीति --- प्रशिक्षण प्राप्त करने वाली एएनएम और जीएनएम को प्रशिक्षण अवधि के दौरान न तो बेहतर सुविधाएं ही मिल पाती हैं और न ही प्रशिक्षण के बाद अस्पतालों में स्थायी समायोजन की ही सुविधा मिल पाती है। एएनएम और जीएनएम के प्रशिक्षणार्थियों का कहना है कि प्रशिक्षण के दौरान उन्हें जो भी सुविधाएं मिलती हैं, वह अपर्याप्त हैं। इन प्रशिक्षणार्थियों को न तो रहने के लिए उचित आवास मिल पाता है और न ही इनके खाने की ही बेहतर व्यवस्था होती है। कई कॉलेजों में पुस्तकालय की सुविधा भी नहीं है। इसके अलावा पढ़ाई के दबाव को लेकर इन प्रशिक्षणार्थियों को किसी भी तरह का मनोवैज्ञानिक परामर्श भी नहीं मिल पाता है। कई प्रशिक्षुओं को दूरदराज के क्षेत्रों से आकर प्रशिक्षण लेना पड़ता है, और उन्हें रहने-खाने की उचित व्यवस्था न होने से काफी परेशानी होती है। इन प्रशिक्षार्णियों की सबसे बड़ी समस्या प्रशिक्षण पूरा होने के बाद उनके समायोजन की है। प्रशिक्षण पूरा करने के बाद भी इन प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मियों को स्थायी नौकरी के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है। इससे उनमें निराशा और अनिश्चितता का माहौल बना रहता है। प्रशिक्षुओं का कहना है कि हम लोगों के समायोजन को लेकर सरकार को एक स्पष्ट नीति बनानी चाहिए जिसके तहत प्रशिक्षण पूरा करने के तुरंत बाद हमें सरकारी अस्पतालों में रिक्त पदों पर समायोजित किया जा सके। इससे हम प्रशिक्षणार्थियों का न सिर्फ मनोबल बढ़ेगा बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं को और भी मजबूती मिलेगी। - शिकायतें - - प्रशिक्षित नर्सिंग छात्रों के लिए सम्मानजनक और सुरक्षित रोजगार नही है। - सरकार द्वारा स्वास्थ्य विभाग में नर्सिंग के स्थायी पदों की संख्या बेहद कम है। - नर्सिंग कर्मियों के लिए छात्रवृत्ति और वित्तीय सहायता आदि सुविधाएं नहीं हैं। - संविदा और आउटसोर्सिंग के कर्मचारियों को वेतन व अन्य भत्ते नहीं मिलते हैं। - संविदा और आउटसोर्सिंग कर्मचारियों को नियमित कर्मियों के मुकाबले कम वेतन मिलता है। - संविदा और आउटसोर्सिंग के प्रशिक्षुओं को काम करने का पूरा मौका नहीं मिलता है। सुझाव - - प्रशिक्षित नर्सिंग छात्रों के लिए सम्मानजनक और सुरक्षित रोजगार होना चाहिए। - सरकार द्वारा स्वास्थ्य विभाग में नर्सिंग के स्थायी पदों की संख्या शीघ्र बढाई जाए। - नर्सिंग कर्मियों के लिए छात्रवृत्ति और वित्तीय सहायता प्रदान की जानी चाहिए। - संविदा और आउटसोर्सिंग के कर्मचारियों को वेतन के साथ अन्य भत्ते भी मिलने चाहिए। - संविदा और आउटसोर्सिंग के कर्मचारियों को समान काम समान दाम मिलना चाहिए। - संविदा और आउटसोर्सिंग के प्रशिक्षुओं को काम करने का पूरा मौका मिलना चाहिए। प्रस्तुति - राजीव गुप्ता
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