अंग्रेजों ने बनाई थी यह मीनार, दो जिलों की होती थी निगरानी, लगा था टेलिस्कोप
बहराइच की एक तहसील में पुराना गुरगुज यानी वॉच टॉवर है जहां से दो जिलों की निगरानी होती थी। सैनिकों को संदेश भेजने का कंट्रोल प्वाइंट था। देखरेख के अभाव में यह जर्जर हो चुका है

जिले के महसील तहसील क्षेत्र में एक ऐसा स्थान है जहां से कभी बहराइच से लेकर सीतापुर तक की निगरानी होती थी। इसके लिए एक ‘गुरगुज’ यानी ऊंची मीनार बनवाया गया था। यह एक कंट्रोल प्वाइंट था। यहां से सैनिकों को जानकारी दी जाती थी। साथ ही आपदाओं के बारे में भी जानकारी मिलती थी। मौसम विभाग भी यही से संचालित होता था।
अंग्रेजों ने इसको बनवाया था। यह कपूरथला रियासत के अधीन थी। गुरगुज पर बड़ी दूरबीन लगी हुई थी जो अब खत्म हो चुकी है। साथ ही जिस गुरगुज पर चढ़कर विशेषज्ञ जानकारियां इकट्ठा करते थे वहां सिर्फ निशानी रह गई है। काफी जीर्णशीर्ण हो चुकी है। बताया जा रहा है कि यहां अंग्रेज कई रियासतों से सम्बंधित लेखपत्र रखते थे। यहां सीतापुर, लखीमपुर स्थित कई रियासतों के कागजात रखे जाते थे। इन जिलों का भी निगरानी का पूरा सिस्टम था। स्थानीय बुजुर्गों की माने तो कपूरथला रियासत के महसी में यह गुरगुज अंग्रेजों ने अपने राजकाज की सुविधा के लिए बनाया था। बाद में यह स्वतंत्रा आंदोलनकारियों के लिए भी माकूल जगह हो गई। भारत छोड़ो आंदोलन के समय यहां से अंग्रेजों की निकासी के बाद आंदोलनकारियों ने अपने सूचना तंत्र के तौर पार इस्तेमाल किया। इतिहासकार रमेश शास्त्री का कहना है कि यह गुरगुज मटेरा थाने के जंगलीनाथ व सीतापुर के गुरगुचपुर में बना गुरगुज भी महसी के गुरगुज की एक सिधाई में है। इसकी भी ऐतिहासिकता है। इस पर रिसर्च किया जाना है। इसके लिए इसका संरक्षण जरूरी है। अब महसी में यह खंडहर हो गया है। स्थानीय निवासी लगभग 87 वर्षीय गोकुला मिश्रा ने बताया कि जब हम लोग बहुत छोटे थे तब यहां हाथियों से अधिकारी आते थे और इस पर चढ़कर किसी मशीन से चारों तरफ देखते थे। वहीं प्रसिद्ध साहित्यकार व कवि रामकरण मिश्र सैलानी ने बताया कि बुजुर्ग भी बताते थे कि यह गुरगुज अंग्रेजों ने बनवाया था। इसमें वह अपनी रियासत के ताम्रपत्र पर अंकित अभिलेख रखते थे। इसके अलावा उनके अधिकारी समय समय पर आते और काफी ऊंचाई पर चढ़कर दूरबीन से चारों तरफ निगरानी करते थे ।
पीपल के पेड़ में बांधे जाते थे अंग्रेजों के हाथी
महसी निवासी व पूर्व प्रधान अर्जुन प्रसाद मिश्रा ने बताया कि यहां जब अंग्रेज अधिकारी आते थे तो यहां लगे एक पीपल के पेड़ में उनके हाथी बांधे जाते थे। यज्ञ नारायण मिश्रा ने कहा कि हमारे यहां जो प्राचीन देवी मंदिर के पास जो वर्षों पुराना पीपल का पेड़ लगा है। उसमें जब हम लोग छोटे थे तो हाथी बांधे जाते थे। तब बुजुर्ग बताया करते थे कि ये हाथी अंग्रेज अधिकारियों के हैं। कुछ पीपल के पेड़ गिर गए उसे संरक्षित किया जा सकता था क्योंकि स्वतंत्रता आंदोलन से भी जुड़ी हैं।
महसी का प्राचीन नाम महर्षि था
महसी का प्राचीन इतिहास बड़ा ही रोचक है जिसके निशान आज भी गवाही दे रहे हैं। यह महर्षि बालार्क की तपोस्थली थी। उन्हीं के नाम से इसका प्राचीन नाम महर्षि पड़ा था। उनके द्वारा बनाए गए गौलोक कोंड़र एवं नितकर्मा नदी का नाम आज भी जीवंत है। ऐसे ही तमाम ऐतिहासिक निशान महसी के रोचक इतिहास की गवाही दे रहे हैं।