कीटों को जितना नियंत्रित किया उतने हुए सशक्त, पर्यावरण को क्षति
Santkabir-nagar News - संतकबीरनगर के किसान अपने मेहनत से तैयार की गई फसलों को कीटों के प्रकोप से बचाने के लिए दवाओं का प्रयोग करते हैं, लेकिन कीटों में प्रतिरोधकता बढ़ने से दवाएं असर नहीं कर रही हैं। किसान प्राकृतिक कीट...

संतकबीरनगर, हिन्दुस्तान टीम। संतकबीरनगर जिले के किसान महीनों अपने परिश्रम व पूंजी से फसलें तैयार करते हैं पर छोटे-छोटे कीट चंद दिनों में ही समूची फसल को बरबाद कर देते हैं। इन्हें नियंत्रण के लिए बड़े पैमाने पर दवाओं का प्रयोग किया जाता है। किसान जितना दवाओं का प्रयोग बढ़ाते गए कीट भी उतना ही सशक्त हो गए। यही कारण है कि अब कीटों पर दवाएं काम नहीं कर रही हैं। किसानों के मित्र कीटों को भी नुकसान पहुंच रहा है। कोई ऐसी फसल नहीं है, जो कीटों की मार से बच पा रही हैं। सब्जियों की फसलों में इनका प्रकोप अधिक होता है।
सब्जियों को बचाने के लिए किसान बड़े पैमाने पर दवाओं का प्रयोग करते हैं। कुछ फसलों पर तो दवाओं का असर 20 से 30 दिनों तक बना रहता है। इसी बीच सब्जियां बाजार में खेतों से तुड़ाई होकर आती हैं और लोगों की थाली में पहुंच जा रही हैं। प्रगतिशील किसान सुरेन्द्र राय ने कहा कि रसायनों का असर कम करने के लिए प्राकृतिक रूप से कीट प्रबंधन का विकल्प अपनाएं। इसमें नीम का तेल, नीम की खली, जैविक पेस्टीसाइड, गोमूत्र से बनने वाले कीटनाशक, जीवामृत, घनामृत का प्रयोग किया जा सकता है। ---------------------- एकीकृत जीवनाशी प्रबंधन भी होगा कारगर उप कृषि निदेशक डा. राकेश कुमार सिंह ने बताया कि एकीकृत जीवनाशी प्रबंधन की नीतियों को अपनाया जाए तो कीट और रोग पर काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है। इस विधि में परिणाम देर से आते हैं पर पूरी तरह से सार्थक होते हैं। धान की खेती करने वाले यदि बत्तख पाले तों उन्हें किसी प्रकार के कीटनाशी का प्रयोग करने की जरूरत नहीं है। बत्तख धान की खेत में अठखेलियां करते हैं और कीड़ों को खा जाते हैं। यही कारण है कि धान के खेत से कीड़े पूरी तरह से समाप्त हो जाते हैं और बत्तखों को मल मूत्र से फसल को जैविक खाद मिलती है। इसी प्रकार चना की खेती करने वाले किसान खेत के चारो ओर से तीसी और सरसों की फसल पहले लगाएं तो उस खेत में फली छेदक कीट नहीं लगते हैं। इसकी वजह फली छेदक कीट को अंडा देने के लिए अनुकूल वातावरण नहीं मिलता है। ये कीट सरसों और तीसी की फसल में उलझ कर रह जाते हैं। इस प्रकार आईपीएम यानी एकीकृत जीवनाशी प्रबंधन की नीति को अपना कर कीटों पर नियंत्रण के साथ बेहतर उपज हासिल किया जा सकता है। ------------------ फसलों पर छिड़क दी जाती है दो करोड़ की पेस्टीसाइड रबी, खरीफ और जायद तीनों फसलों की खेती में जिले किसान हर साल लगभग दो करोड़ रुपए का कीटनाशी दवाओं का छिड़काव फसलों पर कर देते हैं। इसमें सबसे अधिक दवाएं सब्जियों की खेती पर प्रयोग की जाती है। यही मानव जीवन के लिए सबसे अधिक नुकसानदेह माना जा रहा है। ------------------- कीट नियंत्रण न होने पर 25 से 30 फीसदी फसल हो जाती है बर्बाद वातावरण में तेजी से बदलाव व अन्य कारणों से फसलों पर कीटों का प्रकोप बहुत तेजी से होता है। अपनी फसल को बरबाद होता देख किसान के सामने दवाओं के छिड़काव के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं दिखता है। यही कारण है कि किसान कीटनाशी दवाओं का प्रयोग करते हैं। जिला कृषि अधिकारी डॉ सर्वेश कुमार यादव ने बताया कि यदि कीटनाशक का प्रयोग न किया जाए तो 25 से 30 फीसदी फसलों को कीट चट जाते हैं। ------------------- दवाओं के असर से कम हो रहे मित्र कीट, खेत की उर्वरता भी हो रही कम प्रगतिशील किसान सुरेन्द्र राय ने बताया कि जितना अधिक दवाओं का प्रयोग होता गया उतनी ही तेजी से कीटों में दवाओं के प्रति रेजिस्टेंस डेवलप होता गया। यही कारण है कि एक प्रकार की दवाएं अब कीटों पर काम नहीं कर रही हैं और दूसरी पीढ़ी की दवाओं का प्रयोग किया जाने लगा। या फिर उनकी मात्रा बढ़ा दी गई है। इसका असर हो रहा है कि मित्र कीट नष्ट होने से खेत की उर्वरता कम हो रही है। यही नहीं रसायनों की मात्रा अधिक होने से पर्यावरण को क्षति पहुंच रही है।
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