संगम स्नान को महाकुंभ पहुंचे रामनामी, शरीर पर गुदवाया राम, कौशल्या को मानते बहन
- सिर पर मोरपंखी का मुकुट, बदन पर रामनामी चादर, पैर में घुंघरू और पूरे शरीर में राम नाम का गोदना, ऐसी वेशभूषा धारण किए रामनामी समुदाय के कुछ लोग बुधवार को संगम स्नान करने छत्तीसगढ़ से महाकुम्भ नगर पहुंचे।

महाकुंभ मेला क्षेत्र में भ्रमण कर रहे रामनामी समुदाय के लोगों को देखकर हर कोई उनकी ओर आकर्षित हो रहा है और उनके बारे में जानने को आतुर हो जा रहा है। सिर पर मोरपंखी का मुकुट, बदन पर रामनामी चादर, पैर में घुंघरू और पूरे शरीर में राम नाम का गोदना, ऐसी वेशभूषा धारण किए रामनामी समुदाय के कुछ लोग बुधवार को संगम स्नान करने छत्तीसगढ़ से महाकुम्भ नगर पहुंचे। इन्हें देख ऐसा लगा मानो मेला के विविध रंगों में एक और रंग घुल गया हो।
संत परशुराम रामनामी समाज के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने 1890 में माथे पर राम शब्द गोदवाया था। उन्हें ही इस सम्प्रदाय का संस्थापक माना जाता है। गुलाराम रामनामी बताते हैं कि रामनामी समुदाय के लोग कभी मंदिर नहीं जाते और न ही मूर्ति पूजा करते हैं। ये मानव शरीर को ही मंदिर मानते हैं और भगवान राम के सच्चे भक्त हैं।
माता कौशल्या को मानते हैं बहन
समूह में शामिल महिला ने बताया राम की मां कौशल्या को 'बहिनी' मानते हैं। बताया कि दो सौ वर्षों की परंपरा निभा रहे हैं। महाकुम्भ का नजारा बहुत अच्छा लग रहा है। यहां देश विदेश से अद्भुत साधु-संतों का दर्शन हो रहा है। समूह के अन्य लोगों ने बताया उनके पूर्वज संगम स्नान के लिए आते थे, वे भी आते रहे हैं और उनकी पीढ़ी भी आती रहेगी।
पूरे शरीर पर रामनाम लिखवाने वाले को नखशिख की उपाधि
सुनील बताते हैं कि शरीर में अलग-अलग हिस्सों में रामनाम लिखवाने पर अलग-अलग उपाधि भी दी जाती है। जैसे शरीर के एक भाग पर राम लिखाने पर 'रामनामी' माथे पर राम लिखाने वाले को 'शिरोमणि रामनामी' पूरे माथे पर लिखाने वाले को 'सर्वाग रामनामी' तथा पूरे शरीर पर राम नाम लिखवाने वाले को 'नखशिख रामनामी' कहते हैं। राम नाम लिखवाने वाला व्यक्ति कभी शराब नहीं पीता। वेशभूषा पर बताते हैं कि 'ओढ़नी अलखी मुकुट तन सोहे, भजन के समय मुनि का मन मोहे'।