अहिल्याबाई ने बदली थी पितृसत्ता परंपरा
Varanasi News - प्रख्यात कवि डॉ. कुमार विश्वास ने त्रिशताब्दी जयंती उत्सव के उपलक्ष्य में आयोजित व्याख्यान

वाराणसी, विशेष संवाददाता। प्रख्यात कवि डॉ. कुमार विश्वास ने कहा कि हजार वर्षों से चली आ रही पितृसत्ता परंपरा बदलने का जो साहस अहिल्याबाई ने दिखाया, वह आज लाखों महिलाओं को प्रेरणा दे रहा है। नारियां कभी किसी से कम नहीं रहीं, चाहे वह किसी भी क्षेत्र में हों। वह शनिवार को सिगरा स्थित अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन सेंटर रुद्राक्ष में अहिल्याबाई होलकर की त्रिशताब्दी जयंती उत्सव के उपल्क्ष्य में राष्ट्रीय महिला आयोग की ओर से आयोजित विशेष व्याख्यान को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने ‘दुहिता का अर्थ स्पष्ट करते हुए कहा कि जो दो कुलों को जोड़े और एक साथ संभालकर चले, वही दुहिता है।
जिन महिलाओं को पाकिस्तान ने नीचा दिखाया था, उन्हीं महिलाओं को सामने खड़ा करके हमने दिखा दिया कि हमारे देश की महिलाएं किसी से कम नहीं है। इस दौरान उन्होंने मैं काशी हूं... गीत गाया तो लोग तालियां बजाकर उनका समर्थन करने लगे। बनारस की गलियों-चौराहों पर फक्कड़ अंदाज में घूमती लेकिन अलंकृति विभूतियों के जिक्र से लेकर अस्सी के पप्पू की अड़ी, लंका की ललकार को अपनी पंक्तियों से याद किया। इसी क्रम में भारत के रत्न कहते हैं- ‘मेरी मिट्टी के कुछ जाए, हर चौराहे पर पद्मश्री, पद्मविभूषण मिल जाए। जिसको हो ज्ञान गुमान यहां, लंका पर लंका लगवाए, दुनिया है जिसके ठेंगे पे, पप्पू की अड़ी पर आ जाए... पर खूब ठहाके लगवाए। इसके बाद गोदौलिया की ठंडई से चूकता हुआ रांड़, सांड़, सीढ़ी के दर्शन पहुंचे। गीत में भारतेंदु, प्रसाद, प्रेमचंद, बेढब बनारसी का स्मरण किया। महामना के गुरुकुल, लाल बहादुर शास्त्री, राजर्षि उदय प्रताप के साथ बिना नाम लिए नरेंद्र मोदी से काशी के वर्तमान को जोड़ा। सबसे आगे बैठने वाले को आराम करना गलत डॉ. कुमार विश्वास ने परंपराओं और महिला सशक्तीकरण पर विचार साझा करते हुए कहा कि काशी में सबसे आगे बैठने वाले को आराम करना गलत है, क्योंकि पंक्ति में सबसे पीछे बैठने वाला भी यहां भारत रत्न निकल सकता है। उन्होंने मराठा साम्राज्य की महान शासिका अहिल्याबाई होल्कर को याद करते हुए कहा कि आज के स्कूलों में बच्चों को उनके बारे में कम जानकारी है, लेकिन जो अभियान उनके नाम और काम को पुनर्जीवित करने के लिए चलाया जा रहा है। वह आने वाले समय में बहुत लाभदायक सिद्ध होगा। मालवा और काशी के बीच सांस्कृतिक समानताओं पर कहा कि मालवा का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक स्वरूप काशी जैसा ही है। यही कारण था कि मालवीय परिवार ने काशी को अपना निवास स्थान बनाने का निर्णय लिया था। राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष विजय राहाटकर ने कहा कि अहिल्याबाई सभी गुणों का समुच्चय थीं। वाराणसी और अहिल्याबाई का रिश्ता सबसे गहरा है। उनकी जयंती का उत्सव काशी में मनाना गर्व की बात है। इस मौके पर विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वालीं नारी शक्ति, पद्मश्री और पदमविभूषण से अलंकृत लोगों को भी सम्मानित किया गया।
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