होलिका दहन पर भद्रा का साया, नोट कर लें पूजा का शुभ मुहूर्त, विधि, महत्व से लेकर सबकुछ
- हिंदू पंचांग के अनुसार होली का त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन होलिका दहन की परंपरा है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।

हिंदू पंचांग के अनुसार होली का त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन होलिका दहन की परंपरा है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। होलिका दहन के पीछे धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने होलिका का विनाश किया था। इसे बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग होलिका में पुरानी और नकारात्मक चीजें अर्पित करके जीवन में नई ऊर्जा और सकारात्मकता का स्वागत करते हैं। इस वर्ष होलिका दहन के दिन भद्रा का साया रहेगा, जिसके कारण शुभ मुहूर्त में कमी रहेगी। ऋषिकेश पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि 13 मार्च को सुबह 10 बजकर दो मिनट पर लग जाएगी। इस दिन भद्रा का साया भी रहेगा, जो रात 10 बजकर 44 मिनट पर समाप्त होगा। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार भद्रा काल में होलिका दहन अशुभ माना जाता है। इसलिए होलिका दहन का शुभ मुहूर्त भद्रा समाप्ति के बाद शुरू होगा।
भद्रा का साया और शुभ मुहूर्त : भद्रा को अशुभ माना जाता है और इसकी अवधि में किसी भी शुभ कार्य को करने से बचने की सलाह दी जाती है। इस बार फाल्गुन पूर्णिमा पर भद्रा का साया होने के कारण होलिका दहन का शुभ समय रात के मध्य में रहेगा।
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त :
पूर्णिमा तिथि का आरंभ : 13 मार्च रात 10:02 बजे
भद्रा समाप्ति : 13 मार्च रात 10:44 बजे
होलिका दहन का शुभ समय : 13 मार्च रात 10:44 बजे के बाद,
मध्य रात्रि में केवल 1 घंटा 4 मिनट का समय
भद्रा समाप्ति : मध्य रात्रि के बाद शुभ मुहूर्त अवधि : 1 घंटा 4 मिनट
होलिका दहन पूजा-विधि:
होलिका की पूजा करने से पहले भगवान श्रीगणेश और भक्त प्रह्लाद का ध्यान करें। इसके बाद होलिका में फूल, माला, अक्षत, चंदन, साबुत हल्दी, गुलाल, पांच तरह के अनाज, गेहूं की बालियां आदि अर्पित करें। इसके साथ ही भोग लगाएं। फिर कच्चा सूत लपेटते हुए होलिका के चारों ओर परिक्रमा करें। होलिका मंत्र- ‘असृक्पाभयसंत्रस्तै: कृता त्वं होलि बालिषै:। अतस्तवां पूजायिष्यामि भूते भूतिप्रदा भव।।’ का उच्चारण करते हुए तीन परिक्रमा करें। इसके बाद होलिका को जल का अर्घ्य दें। अब परिवार का खुशहाली व सुख-समृद्धि की कामना करें। फिर सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में होलिका दहन करें। होलिका दहन के समय अग्नि में उपले, उबटन, गेहूं की बाली, गन्ना व चावल आदि अर्पित करें। इसके बाद अगले होलिका दहन की राख माथे में लगाने के साथ पूरे शरीर पर लगाएं। मान्यता है कि ऐसा करने से जातक रोग मुक्त होता है।
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