Ram Navami Purushottam Ram, symbol of dignity and patience रामनवमी: मर्यादा और धैर्य के प्रतीक पुरुषोत्तम राम, एस्ट्रोलॉजी न्यूज़ - Hindustan
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रामनवमी: मर्यादा और धैर्य के प्रतीक पुरुषोत्तम राम

  • राम का महत्व इसलिए नहीं है कि उन्होंने जीवन में इतनी मुश्किलें झेलीं; बल्कि उनका महत्व इसलिए है कि उन्होंने उन तमाम मुश्किलों का सामना बहुत ही शिष्टतापूर्वक किया।

Saumya Tiwari लाइव हिन्दुस्तान, सद्गुरुTue, 1 April 2025 06:51 AM
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रामनवमी: मर्यादा और धैर्य के प्रतीक पुरुषोत्तम राम

अगर आप राम के जीवन की घटनाओं पर गौर करें तो पाएंगे कि वह मुसीबतों का एक अंतहीन सिलसिला था। सबसे पहले उन्हें अपने जीवन में उस राजपाट को छोड़ना पड़ा, जिस पर उस समय की परंपराओं के अनुसार उनका एकाधिकार था। उसके बाद चौदह साल वनवास झेलना पड़ा।

जंगल में उनकी पत्नी का अपहरण कर लिया गया। पत्नी को छुड़ाने के लिए उन्हें अपनी इच्छा के विरुद्ध एक भयानक युद्ध में उतरना पड़ा। उसके बाद जब वह पत्नी को लेकर अपने राज्य में वापस लौटे, तो उन्हें आलोचना सुनने को मिली। इस पर उन्हें अपनी पत्नी को जंगल में ले जाकर छोड़ना पड़ा, जो उनके जुड़वां बच्चों की मां बनने वाली थी। फिर उन्हें जाने-अनजाने अपने ही बच्चों के खिलाफ युद्ध लड़ना पड़ा। और अंत में वह हमेशा के लिए अपनी पत्नी से हाथ धो बैठे। यानी राम को अपने पूरे जीवनकाल में कभी सुख नहीं मिला।

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राम का पूरा जीवन ही त्रासदीपूर्ण रहा। इसके बावजूद लोग राम की पूजा करते हैं। भारतीय मानस में राम का महत्व इसलिए नहीं है, क्योंकि उन्होंने जीवन में इतनी मुश्किलें झेलीं; बल्कि उनका महत्व इसलिए है कि उन्होंने उन तमाम मुश्किलों का सामना बहुत ही शिष्टतापूर्वक किया। अपने सबसे मुश्किल क्षणों में भी उन्होंने खुद को बेहद गरिमापूर्ण रखा।

उस दौरान वे एक बार भी न तो क्रोधित हुए, न उन्होंने किसी को कोसा और न ही घबराए या उत्तेजित हुए। हर स्थिति को उन्होंने बहुत ही मर्यादित तरीके से संभाला। इसलिए जो लोग मुक्ति और गरिमापूर्ण जीवन की आकांक्षा रखते हैं, उन्हें राम की शरण लेनी चाहिए।

राम में यह देख पाने की क्षमता थी कि जीवन में बाहरी परिस्थितियां कभी भी बिगड़ सकती हैं। यहां तक कि अपने जीवन में तमाम व्यवस्था के बावजूद बाहरी परिस्थितियां विरोधी हो सकती हैं। जैसे घर में सब कुछ ठीक-ठाक हो, पर अगर तूफान आ जाए तो वह आपसे आपका सब कुछ छीन कर ले जा सकता है। अगर आप सोचते हैं कि ‘मेरे साथ ये सब नहीं होगा’ तो यह मूर्खता है। जीने का विवेकपूर्ण तरीका तो यही होगा कि आप सोचें, ‘अगर मेरे साथ ऐसा होता है तो मैं इसे हर हाल में शिष्टता से ही निपटूंगा।’

लोगों ने राम को इसलिए पसंद किया, क्योंकि उन्होंने राम के आचरण में निहित सूझबूझ को समझा। आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वाले अनेक लोगों में अकसर जीवन में किसी त्रासदी की कामना करने का रिवाज देखा गया है। वे चाहते हैं कि उनके जीवन में कोई ऐसी दुर्घटना हो, ताकि मृत्यु आने से पहले वे अपनी सहने की क्षमता को तौल सकें।

जीवन में अभी सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है और आपको पता चले कि जिसे आप हकीकत मान रहे हैं, वो आप के हाथों से छूट रहा है तो आपका अपने ऊपर से नियंत्रण छूटने लगता है। इसलिए लोग त्रासदी की कामना करते हैं।

सवाल यह नहीं है कि आपके पास कितना है, आपने क्या किया, आपके साथ क्या हुआ और क्या नहीं। असली चीज यह है कि जो भी हुआ, उसके साथ आपने खुद को कैसे संचालित किया। विपरीत परिस्थितियों में आपका व्यवहार कैसा होता है, आप उनका सामना कैसे करते हैं, वही व्यवहार आपको समाज में सम्माननीय और वंदनीय बनाता है।

दरअसल, राम की पूजा इसलिए नहीं की जाती कि हमारी भौतिक इच्छाएं पूरी हो जाएं- मकान बन जाए, प्रमोशन हो जाए, सौदे में लाभ मिल जाए। बल्कि राम की पूजा हम उनसे यह प्रेरणा लेने के लिए करते हैं कि मुश्किल क्षणों का सामना कैसे धैर्यपूर्वक बिना विचलित हुए भी किया जा सकता है।

राम ने अपने जीवन की परिस्थितियों को सहेजने की काफी कोशिश की, लेकिन वे हमेशा ऐसा कर नहीं सके। उन्होंने कठिन परिस्थितियों में ही अपना जीवन बिताया, जिसमें चीजें लगातार उनके नियंत्रण से बाहर निकलती रहीं, लेकिन इन सबके बीच सबसे महत्वपूर्ण यह था कि उन्होंने हमेशा खुद को संयमित और मर्यादित रखा। आध्यात्मिक बनने का यही सार है।