Vaishakha month: वैशाख के महीने में किस चीज का दान दिलाता है सभी तीर्थों के दर्शन का फल?
बैसाख शुक्ल पक्ष की एकादशी से बैसाख पूर्णिमा तक इन पांच दिनों में सूर्योदय पूर्व स्नान करने से न सिर्फ पूरे माह के स्नान करने का बल्कि वर्ष भर के पूजा-पाठ, दान और स्नान का फल मिल जाता है।

न माधवसमो मासो न कृतेन युगं समम्।
न च वेदसमं शास्त्रं न तीर्थं गंगया समम्।।
(-स्कंद पुराण, वैष्णव खंड)
-‘बैसाख के समान कोई मास नहीं, सतयुग के समान कोई युग नहीं, वेदों के समान कोई शास्त्र नहीं और गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं है।’अपनी इसी विशिष्टता के कारण ही बैसाख मास को सभी मासों में उत्तम मास कहा गया है। भगवान विष्णु ने बैसाख मास में मधु दैत्य का वध किया था, इसलिए इस महीने को ‘माधव’ मास भी कहा जाता है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार देवर्षि नारद ने राजा अम्बरीश से कहा था कि स्वयं ब्रह्माजी ने बैसाख मास को सब मासों में उत्तम कहा है। बैसाख मास में सभी तीर्थ, देवी-देवता आदि जल में निवास करते हैं। भगवान विष्णु की आज्ञा से मनुष्यों का कल्याण करने के लिए वे सूर्योदय से लेकर छह दंड के भीतर तक वहां उपस्थित रहते हैं। जो पुण्य सभी प्रकार के दान और जो फल सभी तीर्थों के दर्शन से मिलता है, उसी पुण्य और फल की प्राप्ति बैसाख मास में केवल जल का दान करने से हो जाती है। महीरथ नामक एक राजा को केवल बैसाख मास के स्नान से ही मोक्ष मिल गया था।
बैसाख मास में भगवान विष्णु के माधव रूप की पूजा की जाती है। उनकी आराधना करते हुए प्रार्थना की जाती है-
मधुसूदन देवेश वैशाखे मेषगे रवौ।
प्रात:स्नानं करिष्यामि निर्विघ्नं कुरु माधव।।
‘हे मधुसूदन! हे देवेश्वर माधव! मैं सूर्य के मेष राशि में स्थित होने पर बैसाख मास में प्रातः स्नान करूंगा, आप इसे निर्विघ्न पूर्ण कीजिए।’ ऐसी मान्यता है कि बैसाख मास में जो सूर्योदय पूर्व स्नान करता है, उसे भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। जो मनुष्य सात गंगाओं- जाह्नवी (गंगा), वृद्ध गंगा (गोदावरी), कालिंदी (यमुना), सरस्वती, कावेरी, नर्मदा और वेणी- इन सात गंगाओं में से किसी एक में भी बैसाख मास में सूर्योदय पूर्व स्नान करता है, उसे मोक्ष मिलता है।
पद्म पुराण के अनुसार बैसाख मास में प्रात: स्नान का महत्व अश्वमेध यज्ञ के समान माना गया है।
यह मास सभी देवी-देवताओं द्वारा पूजनीय है। ऐसी मान्यता है कि बैसाख शुक्ल पक्ष की एकादशी से बैसाख पूर्णिमा तक इन पांच दिनों में सूर्योदय पूर्व स्नान करने से न सिर्फ पूरे माह के स्नान करने का बल्कि वर्ष भर के पूजा-पाठ, दान और स्नान का फल मिल जाता है।
बैसाखी पूर्णिमा के दिन ही ब्रह्माजी ने तिलों को उत्पन्न किया था। एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु के स्वेद से सफेद तथा काले तिलों का जन्म हुआ था। इसलिए इस मास में सभी प्रकार के धार्मिक अनुष्ठानों में काले तिलों का प्रयोग किया जाता है। लेकिन देवी लक्ष्मी की पूजा में सिर्फ सफेद तिलों का प्रयोग किया जाता है। इसी प्रकार इस माह में तिल के दान और सेवन के साथ-साथ जल, छाता, पंखा, चटाई, चरण पादुका दान करना विशेष पुण्य देने वाला होता है।
जिस प्रकार माघ मास में प्रयाग में कल्पवास करना पुण्यदायी माना गया है। उसी प्रकार बैसाख मास में उज्जैन में कल्पवास करना विशेष पुण्य फलदायी माना गया है। चैत्र पूर्णिमा से बैसाखी पूर्णिमा पर्यंत कल्पवास, प्रतिदिन क्षिप्रा स्नान का महत्व है। ऐसी मान्यता है कि जाे व्यक्ति बैसाख मास में यहां वास करता है, वह साक्षात शिव स्वरूप हो जाता है।