Farmers Demand Minimum Support Price for Maize in Bihar s Seemanchal Region 25 सौ रुपये प्रति क्विंटल किया जाय मक्का का न्यूनतम मूल्य निर्धारित , Araria Hindi News - Hindustan
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25 सौ रुपये प्रति क्विंटल किया जाय मक्का का न्यूनतम मूल्य निर्धारित

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Newswrap हिन्दुस्तान, अररियाSun, 15 June 2025 11:17 PM
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25 सौ रुपये प्रति क्विंटल किया जाय मक्का का न्यूनतम मूल्य निर्धारित

भरगामा। भरगामा सहित पूरे सीमांचल में मक्का को पीला सोना कहा जाता है। मक्का खेती के प्रति रूझान का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले पांच वर्षों में इसका रकवा लगातार बढ़ता जा रहा है । यह रकवा बढ़कर पांच गुना हो गयी है। लेकिन अब तक किसानों की न तो तकदीर बदली है और न ही तस्वीर। किसानों का कहना है कि सरकार धान व गेहूं फसल की तरह प्राथमिक कृषि साख सहयोग समिति पैक्स व व्यापार मंडल के जरिए न्यूनतम समर्थन मूल्य 25 सौ निर्धारित कर मक्का खरीद की व्यवस्था सुनिश्चित करे । ताकि किसानों की मेहनत के अनुरूप उचित मूल्य मिल सकेगा और व्यापारियों की मनमानी पर रोक लगेगी।

इससे किसानों के जीवन स्तर में और अधिक सुधार होगा। सरकारी स्तर पर खरीद के अलावे बाजार में सरकारी एजेंसियों की गैर मौजूदगी का सबसे बड़ा फायदा बिचलन बिचौलियों और बड़े व्यापारियों को हो रहा है यह व्यापारी किसानों से कम दाम पर मक्का खरीदने हैं और बाद में ऊंचे दामों पर बेचते हैं इसका नुकसान सीधे किस को होता है जो लागत निकालने में भी असमर्थ हो जाता है। प्रगतिशील किसान मुन्ना यादव , किसान नेता अशोक श्रीवास्तव, बैजू मंडल, पैकपार के किसान अमर चौहान, बंटी सिंह, हरिनंदन मंडल , संजय यादव , बब्बन सिंह , कृपानंद यादव, राजेश गुप्ता आदि बताते हैं कि यदि सरकार सरकारी स्तर पर मक्का की भी एमएसपी पर खरीद करें तो किसान आत्मनिर्भर बन सकेंगे । क्योंकि मक्का की खेती करने वाले अधिकतर किसान छोटे और सीमांत किसान हैं । इन्हें हर सीजन में घाटा झेलना पड़ रहा है । इस बार मक्का फसल कटाई के शुरुआती दौर में बारिश के कारण काफी नुकसान हुआ । अब हताश किसानों को अपनी मेहनत की उपज अचानक से बाजार भाव गिर जाने के चलते औने-पौने दम पर बेचना पड़ रहा है । इतना ही नही पानी में सड़ चुके मक्का फसल को फेंकना भी पड़ रहा है । कई किसानों का कहना है कि सरकारी स्तर पर भी मक्का को रखने के लिए गोदाम नहीं है । ऐसी स्थिति के चलते किसानों को कम दामों में ही मक्का बेचनी पड़ रही है। किसानों का आरोप है कि उनकी लाचारी का स्थानीय व्यापारी और बाहरी पूंजीपति भरपूर फायदा उठाकर कम कीमत पर मक्का खरीद रहे हैं। उसमें भी व्यापारी खरीद के वक्त किसानो को पैसा नहीं देते हैं। किसानों ने बताया कि मक्का उत्पादन में उन्हें बीज, खाद, सिंचाई, मजदूरी और कीटनाशक आदि पर भारी खर्च करना पड़ता है। लेकिन फसल तैयार होने के बाद जब बाजार में उसे बेचने की बारी आती है, तो सरकारी समर्थन मूल्य या न्यूनतम निर्धारित दर का कोई लाभ नहीं मिल पाता। उचित मूल्य से मेहनतकश किसान उपेक्षित रह जाते हैं। किसान और सामाजिक संगठनों ने जिला प्रशासन एवं सांसद विधायकों से आग्रह किया है कि वे इस मामले में इस मामले में हस्तक्षेप करें और उच्च अधिकारियों को रिपोर्ट भेज कर प्रत्येक प्रखंड स्तर पर गांव-गांव में मक्का सूखने के लिए अस्थाई ढांचे , सेड , भंडारण की सुविधा के अलावा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर मक्का अधिप्राप्ति की व्यवस्था सुनिश्चित कराएं। ऐसा करने पर न केवल किसानों की आय बढ़ेगी बल्कि कृषि क्षेत्र में स्थायित्व और विकास भी स्थापित होगा। मक्का एक ऐसी फसल है जिसमें निर्यात की भी बड़ी संभावना है। क्योंकि मक्का से पशु आहार, स्टार्च उद्योग और एथेनॉल निर्माण में भी होता है। लेकिन भरगामा एवं आसपास के इलाकों में मक्का आधारित उद्योग नही है। जिसके चलते किसानों को अपनी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है । किसानों का कहना है कि आसपास नजदीकी क्षेत्र में मक्का प्रसंस्करण , स्टार्च उत्पादन या पशु आहार निर्माण जैसी मक्का आधारित फैक्ट्रियां रहती तो उन्हें मक्का का उचित मूल्य मिलता । इसका सीधा फायदा किसानों को मिलता । अभी या तो फसल को किसान औने-पौने दाम में बेच देना पड़ता है या गांव से बाहर के शहरों में ले जाना पड़ता है। परिवहन में ही लाभ खत्म हो जाता है। भरगामा के प्रखंड सहकारिता पदाधिकारी जयशंकर झा ने बताया राज्य सरकार के द्वारा फिलहाल पैक्स और व्यापार मंडल के जरिए मक्का की सरकारी स्तर पर खरीद करने का कोई आदेश सहकारिता विभाग को नहीं है। गेहूं फसल को सरकारी स्तर पर खरीद करने का निर्देश पैक्सों को सहकारिता विभाग द्वारा निर्गत किया गया था। अगर किसान संगठन, पैक्स की समिति तथा अन्य संगठनों के द्वारा मक्का की सरकारी खरीद को लेकर कोई प्रस्ताव आता है तो उन्हें जिला प्रशासन व राज्य सरकार को भेजा जाएगा।

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