बोले औरंगाबाद : शकरकंद उत्पादक किसान निजी नलकूप से पटवन करने को विवश
मदनपुर प्रखंड के किसान शकरकंद की खेती कर रहे हैं लेकिन उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। किसानों का कहना है कि लोन की प्रक्रिया जटिल है और उचित दर पर खाद एवं बीज की कमी है। महंगाई और नीलगाय...
जिले के मदनपुर प्रखंड के नक्सल क्षेत्र के किसान बड़े पैमाने पर शकरकंद की खेती कर अपनी आजीविका चलाते हैं। शिवनगर, पिछुलिया, पीतांबरा बंगरे, जुडाही, लालटेनगंज, भगवानपुर, वकीलगंज समेत अन्य गांव के किसान बड़े पैमाने पर शकरकंद की खेती करते हैं लेकिन उनके सामने भी अनेक समस्याएं हैं। शकरकंद उत्पादक किसानों का कहना है कि किसानों के लिए लोन की प्रक्रिया बहुत जटिल है। आम किसानों को लोन आसानी से मिल सके। इसके लिए लोन की प्रक्रिया को स्थानीय अधिकारियों और सरकार के सूझबूझ से सरल बनाया जाना चाहिए ताकि छोटे किसान भी बैंकों में जाकर लोन की सुविधा का लाभ उठा सकें।
छोटे किसानों को सस्ते दरों पर कृषि यंत्र मिलना चाहिए, ताकि खेती करने में आसानी हो। छोटे किसानों के पास पूंजी नहीं होने के कारण हुए इधर-उधर से उधार लेकर कृषि यंत्र जुटाते हैं। अगर सरकार से छूट मिल सके तो वह छोटे स्तर के यंत्र खरीदने के लिए पैसे का इंतजाम कर खेती में उत्साहित होंगे। किसान विजय यादव, संजीत कुमार, सोनरिया देवी, महेश महतो, रामपुकार महतो, मृत्युंजय कुमार, शिवनारायण प्रसाद, रामलखन महतो आदि का कहना है कि शकरकंद की बुवाई खेतों में समय पर की जाती है। हालांकि शकरकंद की फसल में कई समस्याएं आती हैं। नीलगायों के झुंड के आने से फसल का नुकसान होता है और चूहे खेतों में शकरकंद के तनों को काटकर नुकसान पहुंचाते हैं। कभी-कभी फसल में दीमक लग जाने के कारण नुकसान उठाना पड़ता है। शकरकंद का आकार सही नहीं होता और बाजार में उसकी कीमत भी कम हो जाती है। इसके अलावा अनेक समस्याएं किसानों के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई हैं लेकिन कोई भी इनकी सुनवाई नहीं करता। किसानों का कहना है कि एक कट्ठा में शकरकंद का उत्पादन डेढ़ या दो क्विंटल होना चाहिए लेकिन सही समय पर पटवन और खाद भी डालने के बावजूद केवल 50 किलो या 1 क्विंटल ही निकल पाता है। इससे किसानों पर खर्च का बोझ बढ़ता है। शकरकंद उत्पादन में सभी खर्च को जोड़ने पर शकरकंद बोने में कोई फायदा नहीं होता बल्कि नुकसान ही होता है। आने वाले समय में शकरकंद की बुवाई कम हो सकती है। किसानों ने बताया कि शकरकंद की बुवाई के दौरान यूरिया की आवश्यकता होती है लेकिन सरकारी दुकानों पर उचित रेट पर यूरिया और डीएपी उपलब्ध नहीं होती। इसके कारण किसानों को इन्हें निजी दुकानों से ज्यादा कीमत पर खरीदना पड़ता है। लाइसेंसी दुकान हो या बिना लाइसेंस वाले इस वजह से उन्हें अतिरिक्त खर्च करना पड़ता है। किसानों का कहना है कि खाद, बीज की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं लेकिन सरकारी सप्लाई में किसी प्रकार की कोई स्थिरता नहीं है। किसानों को समय पर बीज और खाद नहीं मिल पाए जिसके कारण वह अपनी फसल को सही तरीके से उगा नहीं पाए। इसके अलावा उर्वरक की कमी और महंगाई ने उनकी आर्थिक स्थिति को और भी बिगाड़ दिया है। निजी नलकूपों के सहारे हो रहा है पटवन किसानों ने बताया कि शकरकंद की बुवाई बड़े शौक से की है। लोग इसे खाने के लिए भी पसंद करते हैं साथ ही इस शकरकंद का स्वाद भी अलग होता है। शकरकंद को जब खुदाई करने के लिए अपने खेत में पहुंची तब शकरकंद के साइज की कमी आई है। हमने मेहनत की है। समय पर खाद, पानी सब कुछ दिया। इसके बावजूद हमें निराशा ही हाथ लग रही है। किसानों ने बताया की खेती में पैसे तो लग रहे हैं लेकिन उन पैसों के हिसाब से खेती में फसल नहीं उग रहे हैं। हम खेती कर रहे हैं, लेकिन हमारे औलाद बढ़ती महंगाई से खेती करने से नाखुश है। वे मेहनत मजदूरी करने में जायदा रुचि लेते हैं। पटवन करने के लिए सरकारी नलकूप नहीं हैं। निजी नलकूप के सहारे पटवन करना पड़ता है। इसके कारण अधिक पैसे भी खर्च हो जाते हैं। उधर किसानों के लिए यूरिया डीएपी भरपूर मात्रा में स्टॉक रहना चाहिए। जब हम सरकारी दुकानों पर जाते हैं तो डीएपी यूरिया का स्टॉक खत्म ही रहता है तब हमें दुगनी दाम देकर और दुकानों से यूरिया खरीदना पड़ता है। हम छोटे किसानों पर ध्यान देना चाहिए साथ ही हमें सस्ते दर पर सब कुछ उपलब्ध हो, इसके लिए सरकार को पहल करनी चाहिए। किसानों ने बताया की शकरकंद की बुवाई के तुरंत बाद और बाद में 7 से 10 दिनों के अंतराल पर पानी का पटवन करना पड़ता है। फसल छह महीने में तैयार होती है। जून, जुलाई और अक्टूबर, नवंबर में इसकी रोपाई होती है। इसकी खेती करने वाले किसानों को लाभ नहीं मिलने के कारण इस तरह की खेती से दूरी होती जा रही है। सुझाव 1. खेती के समय हर हाल में बीज और खाद की पुख्ता व्यवस्था हो ताकि किसान समय से खेतों में बीज बो सकें 2. फसलों पर छिड़काव के लिए ड्रोन की व्यवस्था हो, जिले में इसकी उपलब्धता सुनिश्चित हो। 3. नीलगयों से शकरकंद के किसान उत्पादक परेशान हैं, बुवाई के बाद नीलगाय फसल को बर्बाद कर देती है, नीलगाय से फसलों को सुरक्षा चाहिए। 4. पटवन के लिए हम निजी नलकूपों के सहारे हैं खेती कर रहे हैं, सरकारी नलकूप की जरूरत है। 5. महंगाई की मार हम किसानों को ही अधिक झेलनी पड़ती है, बुवाई के समय शकरकंद का रेट आसमान छू रहा होता है। 6. छोटे किसानों को कृषि यंत्र व लोन की सुविधा के लिए सरल उपाय सरकार को करनी चाहिए 7. आम किसानों को कृषि यंत्र खरीद पर आसानी से लोन भी मिले। हमारी भी सुनिए किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत हो, इसके लिए सरकार को विशेष नजर रखनी चाहिए। शकरकंद की खेती करने में अधिक मेहनत होती है और फायदा कम दिखता है। अशोक देवी छोटे किसानों को सस्ते दर पर कृषि यंत्र उपलब्ध कराया जाए ताकि युवाओं की भी खेती करने में रुचि पैदा हो। महेंद्र कुमार इस बार शकरकंद की बुवाई कम हुई है। बढ़ती महंगाई और नीलगाय से परेशान होकर अब किसान अधिक मात्रा में शकरकंद की खेती करने से पीछे हट रहे हैं। किसानों को सस्ते दर पर कृषि यंत्र सरकार द्वारा खेती करने के लिए उपलब्ध कराना चाहिए। रोशन कुमार छोटे साइज की शकरकंद की मांग नहीं होने पर रेट भी अच्छा नहीं मिलता है। शकरकंद साइज में नहीं होने की वजह से समय पर पानी, खाद का नहीं मिलना। अखिलेश यादव शकरकंद की खुदाई करवाने के लिए हमें मजदूरों की आवश्यकता पड़ती है। एक मजदूर को कम से कम तीन चार सौ रुपए देने होते हैं। बुवाई से लेकर शकरकंद की खुदाई तक अगर सभी पैसे को जोड़ दे तो शकरकंद के रोपने में किसानों को कोई लाभ नहीं है। गुलशन कुमार प्रखंड में समय-समय पर स्टॉक में डीएपी यूरिया नहीं रहने पर हम किसानों को डीएपी यूरिया नहीं मिलता। मजबूरन हमें बाजारों से महंगे दर पर यूरिया डीएपी खरीदना पड़ता है। इसमें हमारे पैसे अधिक लग जाते हैं। अधिकारियों को कम से कम प्रखंड में भरपूर मात्रा में स्टॉक रखना चाहिए। विजय यादव किसानों को खेती करने के लिए अधिक मात्रा में लोन मिले। लोन मिलने की प्रक्रिया बहुत जटिल होती है। इससे सरकार और अधिकारियों को मिलकर सरल बनाना चाहिए। संजीत कुमार शकरकंद की बुवाई हम सभी समय पर करते हैं। साथ ही समय से पटवन भी किया जाता है। खाद, बीज भी खेतों में डाला जाता है। इसके बावजूद जब शकरकंद तैयार होता है तो खेतों में तो चूहों के द्वारा इसके तने को काट दिया जाता है। इस वजह से शकरकंद की खेती बर्बाद हो जाती है। सोनरीया देवी हम मध्यम वर्गीय किसान हैं। अगर हम महंगे दर पर सब कुछ खरीदना पड़ेगा तो खेती करने में हमें कोई दूर-दूर तक फायदा नहीं दिखता है। ऐसे में आने वाले समय में शकरकंद की बुवाई और कम हो जाएगी। महेश महतो शकरकंद की बुवाई के लिए महंगे दर पर शकरकंद का बीज खरीद कर अपने खेतों में रोपते हैं। जब शकरकंद निकलने लगता है तब बाजार में शकरकंद का रेट सस्ता हो जाता है। इस पर हमें मन मुताबिक पैसा बाजार में बेचने पर नहीं मिलता है। राम पुकार महतो सरकारी नलकूप नहीं होने से प्राइवेट नलकूपों से पटवन किया जाता है। इसमें पैसा भी अधिक देना होता है वहीं सरकारी नलकूप अगर सरकार द्वारा लगाया जाए तो किसानों को फायदा होगा। मथुरा महतो शकरकंद की खेती समय पर होती है। हम पैसा भी लगाते हैं। खाद, बीज भी खरीद कर मात्रा के अनुसार डालते हैं लेकिन सब कुछ करने के बाद हमारे खेतों में नीलगाय का झुंड बार-बार आता है। शकरकंद की खेती को नीलगाय द्वारा खा लिया जाता है। सरकार को इस पर विचार करना चाहिए। राम लखन महतो शकरकंद के उत्पादन में कमी आई है। शकरकंद रोपने वाले किसान को कम दर पर बीज उपलब्ध कराया जाए। किसान को शकरकंद की खेती करने में तब सहूलियत होगी। महंगाई की मार से किसानों के चेहरे पर मायूसी छाई रहती है। शिवनारायण प्रसाद शकरकंद की खेती करने में बहुत समस्या होती है। समय पर खाद, बीज नहीं मिलने पर फसल की पैदावार में नुकसान होता है। हमें पटवन के लिए निजी नलकूप की सहायता लेनी पड़ती है। पैसा अधिक धोना होता है। ऐसे में हमें खेती में पैसा अधिक लग जाता है। सरकार इस पर विचार करें। मृत्युंजय कुमार हमारे घर की खेती मेरे उपर ही टिकी हुई है। मैं खेती से बहुत मेहनत करती हूं। यही मेरा सहारा है। इसी से हमारे घर का खर्च चलता है लेकिन महंगाई से खेती करना सबसे कठिनाई वाला काम होता है। शकरकंद की बुवाई समय हमें पैसे का इंतजाम करना पड़ता है। प्रमिला देवी शकरकंद रोपने के बाद एक कट्ठा खेत में लगभग डेढ़ या दो क्विंटल शकरकंद निकालना चाहिए लेकिन उसे खेत से एक क्विंटल या 50 किलो ही शकरकंद निकलता है। ऐसे में पैदावार में कमी होगी तो हमें फसल की बुवाई करने में जितना पैसा लगता है, वह भी मुश्किल से नहीं निकल पाएगा। देव कुमार महतो किसानों के लिए प्रचुर मात्रा में डीएपी यूरिया का स्टॉक हमेशा रखा जाए ताकि समय से उन्हें डीएपी यूरिया उपलब्ध हो पाए। इसकी किल्लत होने पर अधिकारियों से संपर्क किया जाता है तो कोई जवाब नहीं मिलता है। नरेश महतो प्रमाणिक बीज और खाद की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होती। इससे किसानों को परेशानी होती है। खेती के समय यूरिया की किल्लत हो जाती है। यूरिया की कालाबाजारी भी होने लगती है। किसानों को अधिक कीमत देनी पड़ती है। अखिलेश कुमार खेती में उपज बढ़ाने के लिए रासायनिक खाद नहीं बल्कि वर्मी कंपोस्ट की व्यवस्था की जाए। सभी प्रखंडों में छिड़काव के लिए ड्रोन की व्यवस्था सरकार के स्तर से हो। सुनीता देवी शकरकंद उत्पादक किसानों को लिए एक रेट तय होना चाहिए जिससे सभी किसानों को लाभ मिलेगा। छोटे किसानों को कृषि लोन मिले और इसकी सुविधा को सरल बनाया जाए। देवंती देवी
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।