Tractor Drivers Unsung Heroes of Modern Agriculture Struggle for Respect and Fair Wages बोले औरंगाबाद : ट्रैक्टर चालकों की स्वास्थ्य जांच के लिए पंचायतों में लगे शिविर, Aurangabad Hindi News - Hindustan
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बोले औरंगाबाद : ट्रैक्टर चालकों की स्वास्थ्य जांच के लिए पंचायतों में लगे शिविर

आधुनिक कृषि में ट्रैक्टर चालकों की भूमिका महत्वपूर्ण है, लेकिन उन्हें उचित सम्मान और आय नहीं मिलती। वे लंबे समय तक काम करते हैं, फिर भी उनकी मजदूरी कम होती है। स्वास्थ्य समस्याएं और सामाजिक सुरक्षा की...

Newswrap हिन्दुस्तान, औरंगाबादWed, 28 May 2025 11:46 PM
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 बोले औरंगाबाद : ट्रैक्टर चालकों की स्वास्थ्य जांच के लिए पंचायतों में लगे शिविर

आधुनिक युग में खेती-बारी परंपरागत तरीकों तक सीमित नहीं रही। मशीनीकरण और आधुनिक कृषि यंत्रों ने खेती को नई दिशा दी है, जिसमें ट्रैक्टर की भूमिका सबसे अहम है। ट्रैक्टर न केवल खेतों की जुताई, बुवाई, कटाई, थ्रेसिंग और माल ढुलाई जैसे कार्यों को आसान बनाता है, बल्कि यह किसानों के लिए समय और श्रम की बचत का एक अनिवार्य साधन बन चुका है। लेकिन इस प्रक्रिया में सबसे महत्वपूर्ण कड़ी, यानी ट्रैक्टर चालक, आज भी उपेक्षा और कई गंभीर समस्याओं का शिकार हैं। ये मेहनतकश लोग, जो दिन-रात खेतों में मेहनत करते हैं, न तो समाज का उचित सम्मान पाते हैं और न ही प्रशासन का ध्यान।

उनकी समस्याएं न केवल उनकी व्यक्तिगत जिंदगी को प्रभावित करती हैं, बल्कि पूरे कृषि क्षेत्र की स्थिरता पर भी सवाल उठाती हैं। ट्रैक्टर चालकों की सबसे बड़ी समस्या उनकी अत्यंत कम और अनिश्चित आय है। एक ट्रैक्टर चालक दिन में 10 से 14 घंटे तक कठिन परिश्रम करता है, लेकिन बदले में उसे मिलने वाली मजदूरी इतनी कम होती है कि वह अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी भी मुश्किल से जुटा पाता है। कई बार मालिक या ठेकेदार समय पर भुगतान नहीं करते, और भुगतान महीनों तक लटका रहता है। यह स्थिति चालकों को कर्ज के जाल में फंसने के लिए मजबूर करती है। ट्रैक्टर चालकों का काम मौसम और खेती के चक्र पर निर्भर करता है। बुवाई और कटाई के मौसम में काम का दबाव इतना बढ़ जाता है कि उन्हें रात-रात भर जागकर ट्रैक्टर चलाना पड़ता है। अनियमित कार्य समय और नींद की कमी उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित करती है। कई बार लगातार कई दिनों तक बिना छुट्टी के काम करने से उनकी कार्यक्षमता भी कम हो जाती है, जिसका असर उनकी आय और कार्य की गुणवत्ता पर पड़ता है। लंबे समय तक ट्रैक्टर चलाने से चालकों को कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ट्रैक्टर की सीट पर लगातार बैठने से कमर दर्द, पीठ दर्द और मांसपेशियों में खिंचाव आम बात है। इसके अलावा, ट्रैक्टर की तेज आवाज और कंपन से सुनने की क्षमता पर बुरा असर पड़ता है, और कई चालकों को समय के साथ सुनने में कमी की शिकायत होती है। इन स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज के लिए न तो उनके पास पर्याप्त धन होता है और न ही कोई स्वास्थ्य बीमा सुविधा। ट्रैक्टर चालकों को समाज में वह सम्मान नहीं मिलता, जिसके वे हकदार हैं। उन्हें अक्सर निम्न वर्ग का मजदूर समझा जाता है और सामाजिक रूप से हाशिए पर रखा जाता है। इसके अलावा, सामाजिक सुरक्षा योजनाओं जैसे स्वास्थ्य बीमा, पेंशन या अन्य सरकारी लाभों से वे वंचित रहते हैं। किसी दुर्घटना या बीमारी की स्थिति में उन्हें इलाज के लिए कर्ज लेना पड़ता है, जो उनकी आर्थिक स्थिति को और कमजोर करता है। ट्रैक्टर मालिकों और ठेकेदारों द्वारा चालकों का शोषण एक आम समस्या है। मामूली गलतियों के लिए उन्हें डांट-फटकार और अपमान सहना पड़ता है। कई बार उन्हें बिना किसी उचित कारण के काम से निकाल दिया जाता है। इसके अलावा, मालिकों द्वारा उन पर अनुचित दबाव डाला जाता है। यह शोषण न केवल उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाता है, बल्कि उनकी कार्यक्षमता को भी प्रभावित करता है। ट्रैक्टर चालक असंगठित क्षेत्र का हिस्सा हैं, और इस कारण उन्हें श्रमिकों के लिए बनाई गई किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिलता। न तो उनके पास श्रमिक पहचान पत्र होता है और न ही स्वास्थ्य बीमा, पेंशन या अन्य सामाजिक सुरक्षा योजनाओं तक उनकी पहुंच है। सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएं, जैसे कि किसान सम्मान निधि या अन्य कृषि आधारित सहायता, मुख्य रूप से किसानों तक सीमित रहती हैं, जबकि ट्रैक्टर चालकों जैसे सहायक श्रमिकों को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया जाता है। ट्रैक्टर चालकों की समस्याओं को हल करने के लिए समाज, सरकार और नीति निर्माताओं को मिलकर ठोस कदम उठाने होंगे। ट्रैक्टर चालकों की मेहनत को सम्मान की जरूरत खेतों में ट्रैक्टर की गूंज केवल मेहनत का प्रतीक नहीं, बल्कि आधुनिक कृषि की रीढ़ है। ट्रैक्टर चालक अपनी कुशलता से न केवल खेती के कार्यों को आसान बनाते हैं, बल्कि समय और श्रम की बचत कर उत्पादन को बढ़ावा देते हैं। फिर भी, समाज में उनकी मेहनत को वह सम्मान नहीं मिलता, जिसके वे हकदार हैं। अक्सर उन्हें केवल 'मजदूर' या 'ड्राइवर' कहकर उनकी तकनीकी दक्षता और मेहनत को कम आंका जाता है। ट्रैक्टर चालक एक कुशल तकनीशियन होता है, जो भारी मशीनों को संभालने, विभिन्न प्रकार की भूमि पर उन्हें संतुलित करने और जरूरत पड़ने पर औजारों की मरम्मत करने में पारंगत होता है। इसके बावजूद, न तो उन्हें सामाजिक सम्मान मिलता है और न ही कृषि मेलों, समारोहों या सरकारी आयोजनों में आमंत्रण। यदि उनके कार्य को सामाजिक मान्यता और सम्मान दिया जाए, तो यह पेशा न केवल आकर्षक बनेगा, बल्कि अधिक स्थिरता भी प्रदान करेगा। ट्रैक्टर चालकों का रोजगार पूरी तरह मौसम और खेती के सीजन पर निर्भर है। बुवाई, जुताई, सिंचाई और कटाई के समय ही उनके लिए काम उपलब्ध होता है। बरसात और सर्दियों में जब खेतों में मशीनों का उपयोग सीमित हो जाता है, तो उन्हें वैकल्पिक रोजगार की तलाश करनी पड़ती है। कई चालक मनरेगा में पंजीकरण करवाते हैं, तो कुछ शहरों की ओर पलायन कर निर्माण कार्यों या छोटी-मोटी दुकानदारी में हाथ आजमाते हैं। ट्रैक्टर चालकों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उनकी आवाज उठाने वाला कोई संगठित मंच नहीं है। न तो मजदूर संगठनों में उनकी गिनती होती है और न ही किसान संगठनों में उन्हें स्थान मिलता है। इसके चलते वे न तो अपनी मजदूरी बढ़ाने की मांग कर पाते हैं और न ही बीमा, प्रशिक्षण या अन्य सुविधाओं की। यदि सरकार और समाज इस दिशा में कदम उठाए, जैसे कि ट्रैक्टर चालकों के लिए यूनियन गठन, प्रशिक्षण कार्यक्रम, और मौसम आधारित रोजगार योजनाएं, तो उनकी स्थिति में सुधार संभव है। ट्रैक्टर चालकों की मेहनत और कौशल को सम्मान देने का समय आ गया है। उन्हें प्रोत्साहित करने की जरूरत है, ताकि यह पेशा अधिक सम्मानजनक और स्थायी बन सके। शिकायत 1. ट्रैक्टर चालकों को कम मजदूरी मिलती है, जिससे परिवार का खर्च चलाना मुश्किल होता है। अनियमित रोजगार उनकी आर्थिक स्थिति को कमजोर करता है। 2. लंबे समय तक ट्रैक्टर चलाने से कमर दर्द, जोड़ों में दर्द और थकान जैसी समस्याएँ होती हैं। धूल, धूप और शोर के संपर्क में रहने से सांस और सुनने की समस्याएं बढ़ती हैं। 3. ट्रैक्टर चालकों को समाज में अक्सर कमतर माना जाता है, जिससे आत्मसम्मान प्रभावित होता है। उनके काम को मेहनतकश होने के बावजूद उचित मान्यता नहीं मिलती। 4. मौसमी खेती के कारण ट्रैक्टर चालकों को साल भर नियमित काम नहीं मिलता। इससे उनकी आय अनिश्चित रहती है और जीवनयापन चुनौतीपूर्ण हो जाता है। 5. ट्रैक्टर चालकों को अक्सर मशीनों की मरम्मत का खर्च खुद उठाना पड़ता है। पुराने या खराब ट्रैक्टरों के साथ काम करने से समय और मेहनत की बर्बादी होती है। सुझाव 1. सरकार को ट्रैक्टर चालकों के लिए न्यूनतम वेतन निर्धारित करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनका भुगतान समय पर हो। 2. ट्रैक्टर चालकों को असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए बनाई गई योजनाओं, जैसे कि ई-श्रम पोर्टल, के तहत पंजीकृत किया जाना चाहिए। उन्हें स्वास्थ्य बीमा, दुर्घटना बीमा और पेंशन जैसी सुविधाएं मिलनी चाहिए। 3. ट्रैक्टर चालकों के लिए नियमित स्वास्थ्य जांच शिविरों का आयोजन किया जाना चाहिए। उन्हें धूल और धूप से बचाने के लिए मास्क, दस्ताने और अन्य सुरक्षात्मक उपकरण उपलब्ध कराए जाने चाहिए। 4. चालकों के लिए अधिकतम कार्य समय निर्धारित करना और नियमित छुट्टियों की व्यवस्था करना आवश्यक है। 5. ट्रैक्टर चालकों के लिए प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए जाने चाहिए, जहां उन्हें आधुनिक कृषि यंत्रों के उपयोग, रखरखाव और सुरक्षित ड्राइविंग की तकनीकों का प्रशिक्षण दिया जाए। हमारी भी सुनिए ट्रैक्टर चलाने की मजदूरी बहुत कम है, दिनभर मेहनत के बाद भी घर खर्च चलाना मुश्किल हो जाता है। मालिक समय पर पैसे नहीं देते, और गाड़ी का रखरखाव भी हमें ही देखना पड़ता है। सीता राम काम के घंटे बहुत लंबे हैं, कभी-कभी रात तक काम करना पड़ता है। मालिक ट्रैक्टर की मरम्मत का खर्च हमसे ही वसूलते हैं। कोई बीमा या छुट्टी नहीं मिलती। यदुनंदन यादव काम की कोई गारंटी नहीं, मौसम खराब हो तो काम बंद। मालिक किराए का हिस्सा कम देते हैं, और ट्रैक्टर की खराबी का इल्जाम हम पर डालते हैं। मजदूरी बढ़ाने की बात करने पर काम से निकालने की धमकी मिलती है। मनोज यादव ट्रैक्टर चलाने में कमर और पीठ दर्द की समस्या आम है, लेकिन कोई मेडिकल सुविधा नहीं। मालिक सिर्फ काम निकालते हैं, हमारी सेहत का ध्यान नहीं रखते। काम के हिसाब से मेहनताना भी बहुत कम है। मिथिलेश यादव नए ट्रैक्टरों में तकनीक जटिल होती है, लेकिन हमें कोई ट्रेनिंग नहीं दी जाती। ईंधन और मरम्मत का खर्च बढ़ रहा है, पर मजदूरी वही पुरानी। काम के दबाव में परिवार को समय देना मुश्किल है। संतन काम के लिए रोज दूर जाना पड़ता है, लेकिन किराया या खाने का खर्च नहीं मिलता। मालिक ट्रैक्टर की देखभाल की जिम्मेदारी हम पर डालते हैं। मजदूरी समय पर नहीं मिलती, जिससे कर्ज बढ़ता जा रहा है। देवी यादव खेतों में कीटनाशक और धूल से सेहत खराब होती है, लेकिन कोई सुरक्षा उपकरण नहीं मिलते। काम के घंटे अनिश्चित हैं, कभी-कभी दिन-रात काम करना पड़ता है। मजदूरी इतनी कम है कि बचत करना असंभव है। योगेश ट्रैक्टर चलाने में जोखिम बहुत है, लेकिन कोई बीमा नहीं। मालिक काम का दबाव डालते हैं, और गलती होने पर पैसे काट लेते हैं। मजदूरी में बढ़ोतरी की बात करने पर काम से हटाने की धमकी मिलती है। लालू काम के लिए सुबह जल्दी उठकर दूर जाना पड़ता है, लेकिन मजदूरी मेहनत के हिसाब से नहीं। ट्रैक्टर की मरम्मत का खर्च हमारी जेब से जाता है। मालिक समय पर पैसे नहीं देते, जिससे परिवार चलाना मुश्किल है। बलि मौसम खराब होने पर काम नहीं मिलता, लेकिन खर्चे वही रहते हैं। मालिक ट्रैक्टर की खराबी का इल्जाम हम पर डालते हैं। कोई छुट्टी या बोनस नहीं, जिससे आर्थिक तंगी बनी रहती है। गुड्डू ट्रैक्टर चलाने में शारीरिक थकान बहुत होती है, लेकिन आराम का समय नहीं मिलता। मालिक काम का हिसाब ठीक से नहीं देते। मजदूरी इतनी कम है कि बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाना मुश्किल है। जितेंद्र नए ट्रैक्टरों की तकनीक समझने में दिक्कत होती है, लेकिन कोई प्रशिक्षण नहीं मिलता। मालिक मरम्मत का खर्च हमसे वसूलते हैं। काम के घंटे इतने लंबे हैं कि परिवार को समय नहीं दे पाता। रमेश खेतों में काम करने से धूल और कीटनाशक से एलर्जी हो जाती है। मालिक कोई मेडिकल मदद नहीं देते। मजदूरी इतनी कम है कि इलाज का खर्च भी नहीं निकल पाता। बिगू ट्रैक्टर चलाने में जोखिम है, कई बार दुर्घटना का डर रहता है। मालिक समय पर मजदूरी नहीं देते, और काम का दबाव बहुत ज्यादा है। कोई छुट्टी या बीमा नहीं, जिससे भविष्य असुरक्षित लगता है। अमरेश काम के लिए रोज कई किलोमीटर जाना पड़ता है, लेकिन किराया नहीं मिलता। ट्रैक्टर की मरम्मत का खर्च हमारी जेब से जाता है। मालिक मजदूरी बढ़ाने की बात सुनते ही नाराज हो जाते हैं। कैशन कुमार काम के घंटे अनियमित हैं, कभी-कभी रात तक काम करना पड़ता है। मालिक ट्रैक्टर की देखभाल की जिम्मेदारी हम पर डालते हैं। मजदूरी इतनी कम है कि कर्ज चुकाना मुश्किल हो गया है। पांडेय कुमार ट्रैक्टर चलाने में कमर दर्द की समस्या आम है, लेकिन मेडिकल सुविधा नहीं। मालिक काम का दबाव डालते हैं, और गलती होने पर पैसे काट लेते हैं। मजदूरी समय पर नहीं मिलती। सूरज यादव मौसम खराब होने पर काम बंद हो जाता है, लेकिन खर्चे नहीं रुकते। मालिक ट्रैक्टर की मरम्मत का खर्च हमसे वसूलते हैं। मजदूरी इतनी कम है कि बचत करना असंभव है। नितेश कुमार ट्रैक्टर चलाने में जोखिम बहुत है, लेकिन कोई सुरक्षा उपकरण नहीं मिलते। मालिक काम का हिस्सा ठीक से नहीं देते। मजदूरी बढ़ाने की बात करने पर काम से निकालने की धमकी मिलती है। अजय कुमार यादव काम के लिए रोज सुबह जल्दी उठना पड़ता है, लेकिन मजदूरी मेहनत के हिसाब से नहीं। ट्रैक्टर की खराबी का इल्जाम हम पर डालते हैं। कोई छुट्टी या बोनस नहीं, जिससे आर्थिक तंगी बनी रहती है। सुभाष कुमार

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