बेलडीहा–कुशमाहा ग्रामीण सड़क की बदहाली से लोग परेशान
बेलडीहा–कुशमाहा ग्रामीण सड़क की बदहाली से लोग परेशानबेलडीहा–कुशमाहा ग्रामीण सड़क की बदहाली से लोग परेशानबेलडीहा–कुशमाहा ग्रामीण सड़क की बदहाली से लोग

धोरैया(बांका), संवाद सूत्र। धोरैया-पंजवारा स्टेट हाईवे (एसएच-84) से निकलकर बिहार-झारखण्ड के सैकड़ों गांवों को जोड़ने वाली बेलडीहा-कुशमाहा ग्रामीण सड़क पर दशकों पुराने निर्माण की मुरम्मत नहीं होने के कारण सड़क पूरी तरह गहरें और ऊँचे गड्ढों में तब्दील हो चुकी है। यह मार्ग न केवल स्थानीय हजारों ग्रामीणों के दैनिक आवागमन के लिए जीवनरेखा है, बल्कि दोनों राज्यों के बीच व्यापारिक आवाजाही और आपसी आर्थिक संबंधों का महत्वपूर्ण पुल भी है। लगभग एक दशक पूर्व स्वीकृत एवं निर्मित इस ग्रामीण सड़क का उद्देश्य बिहार के बाँका जिले के कुशमाहा, बिरनिया, बंदरचूहा, धरहरा, रजौन, चिलरा, रामपुर, हिलावे, खट्टी सहित दर्जनों गांवों को झारखण्ड के गोड्डा जिला से सीधा जोड़ना था।
इस मार्ग का निर्माण स्थानीय स्तर पर विकास की प्रतीक माना गया, क्योंकि इससे न सिर्फ किसानों को अपनी उपज बाज़ार तक पहुँचाने में सुविधा हुई, बल्कि दैनिक जीवनचर्या में भी सुधार आया। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में इस सड़क का योगदान अमूल्य रहा है। झारखण्ड से आने वाले व्यवसायी एवं ग्राहक यहाँ के छोटे-बड़े कारोबारियों के साथ व्यापार करते हैं, वहीं बिहार के किसान अपनी कृषि उपज ऊँचे दामों पर बेचने के लिए इस मार्ग का सहारा लेते हैं। रोजाना सैंकड़ों छोटे और बड़े वाहन-मोटरसाइकिल, ऑटो, ट्रक, बुलडोज़र, बस एवं कारें-इस मार्ग पर परिचालित होती हैं। स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार, सड़क का निर्माण पूर्ण होते ही किसी भी स्तर पर इसका रख-रखाव नहीं किया गया। पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुका है और जगह-जगह गहरी दरारें तथा गड्ढे बन चुके हैं। बरसात के मौसम में तो सड़क पर कीचड़ और पानी के जमाव से यह मार्ग लगभग अनुपयोगी हो जाता है। काफी दूरी तक पैदल चलना भी नामुमकिन हो जाता है, जिससे ग्रामीणों की रोजमर्रा की दैनंदिनी प्रभावित होती है। बताते हैं, “यह सड़क हमारे लिए जीवनरेखा है, लेकिन आज हम खुद मरने-मारने की रेखा पर हैं। पिछले दस साल में कभी मरम्मत नहीं हुई। बारिश में यहाँ से गुजरना लगभग मौत के कुएँ में कूदी तरह है।” रहवरीथां क्षेत्र के वाहन चालक भी सड़क की दयनीय दशा से परेशान हैं। बड़े-बड़े गड्ढों में वाहन गिर जाने से ड्राइवर एवं सवारों को चोटें आती हैं। कई बार वाहन खराब हो जाने से चार-पाँच घंटे खड़ी रहना पड़ता है, जिससे भीड़-भाड़ बढ़ जाती है और दुर्घटना का जोखिम और भी बढ़ जाता है। ट्रक चालक ने बताया,“हर रोज कम से कम दस बार ब्रेक लगाकर गड्ढा पार करना पड़ता है। एक गड्ढा पार करते हुए टायर पंचर हो गया तो पूरा सामान सड़क पर फैल गया। मरम्मत से पहले हमें किसी भी यात्रा में दवाइयाँ, टायर, औज़ार साथ ले जाने पड़ते हैं।” स्थानीय महिलाओं ने भी इस सड़क की बदहाली की बात उठाई। वर्षा ऋतु के दौरान तोड़फोड़ और कीचड़ के कारण महिलाएँ घरों से निकलने में भी डरती हैं। बगडूम्बा की रहने वाली सीमा देवी कहती हैं,“सड़क की हालत देखकर हम तो बाहर निकलने से डरते हैं। डॉक्टर के पास जाना हो तो भी मुस्किल होती है। बर्नर, अँधेरा और गड्ढों का मेला लगता है।” एक वर्ष पूर्व जब क्षेत्र के विधायक क्षेत्र का दौरा कर रहे थे, तब ग्रामीणों ने पुनर्निर्माण की मांग की थी। विधायक ने स्वीकृति मिलने का आश्वासन दिया, लेकिन आज तक कोई ठोस पहल नहीं हुई। ग्रामीणों ने कई बार स्थानीय बीडीओ, ज़िला अभियंता और पंचायत प्रतिनिधियों के माध्यम से भी मांग रखी, मगर अफसरशाही और राजनैतिक संकीर्णता के चलते कोई सुनवाई नहीं हुई। पिछले साल पंद्रह अगस्त के कार्यक्रम के दौरान विधायक श्री राजेश कुमार ने घोषणा की थी कि सड़क का पुनर्निर्माण बजट निस्तारित हो चुका है और अगले मानसून से पहले कार्य शुरू कर दिया जाएगा। परंतु आज स्थिति जस की तस बनी हुई है। यह सड़क न सिर्फ परिवहन का मार्ग है, बल्कि गाँव के विकास कार्यक्रम-स्वास्थ्य शिविर, शिक्षा, पशुचारा, और कृषि तकनीक-भी इसी मार्ग से होते हुए पहुँचा करते थे। सड़क के खराब हालात के कारण इन कार्यक्रमों में किसानों, बुनकरों, स्वास्थ्यकर्मियों और शिक्षकों की उपस्थिति घटती जा रही है। व्यापारिक दृष्टि से भी यहाँ की अर्थव्यवस्था पिछड़ती जा रही है। मिट्टी का तिलहन, तरबूज, अदरक, आंवला व अन्य फसलें गोड्डा व आस-पास के बाजारों तक नहीं पहुँच पातीं, जिससे किसानों को अपनी उपज उचित मांग मूल्य पर नहीं बेचने का मौका मिलता। स्थानीय ज़िला अभियंता कार्यालय ने हाल ही में बताया कि सड़क मरम्मत के लिए बजट स्वीकृत प्रक्रिया में है, लेकिन कार्य आदेश नहीं जारी हुआ। बीडीओ धोरैया कार्यालय का कहना है कि खेतों में खरपतवार एवं बाढ़ नियंत्रण कार्य प्राथमिकता पर हैं, सड़क निर्माण बाद में आएगा। ग्रामीणों का मानना है कि लंबे अरसे से आधिकारिक ढुलमुल रवैये ने उनके जीवन को जोखिम में डाल दिया है। “हम सिर्फ मरम्मत नहीं बल्कि पुनर्निर्माण चाहते हैं, ताकि आने वाले दशकों तक यह सड़क सुरक्षित रहे,” वे कहते हैं। बारिश का मौसम शुरू होने में अब सिर्फ कुछ सप्ताह बचे हैं। इस बीच यदि मरम्मत कार्य नहीं शुरू हुआ तो सड़कों का अस्त-व्यस्त होना और तेज़ गति से बढ़ेगा। घनी आबादी वाले इस क्षेत्र में स्वास्थ्य, शिक्षा व आजीविका को सीधे तौर पर सड़क की स्थिति प्रभावित करती है। विकास कार्यों के ठप पड़े रह जाने से न सिर्फ सरकार की योजनाएं अटक जाएँगी, बल्कि स्थानीय युवाओं के लिए भी रोज़गार व कारोबार के अवसर सीमित हो जाएंगे। ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि अगले एक महीने में सड़क मरम्मत कार्य का ठोस बिगुल नहीं बजा, तो वे धरना-प्रदर्शन और सड़क बंद कर प्रदर्शन करने को विवश होंगे। बेलडीहा-कुशमाहा ग्रामीण सड़क की बदहाली सिर्फ कच्चे गड्ढों का मसला नहीं, बल्कि यहाँ के लोगों की जिंदगी, आजीविका और सुरक्षा का सवाल है। दशकों पुराने इस निर्माण की मरम्मत और पुनर्निर्माण की घोर आवश्यकता है, ताकि दोनों राज्यों-बिहार एवं झारखण्ड-के बीच सुगम आवाजाही बनी रहे और ग्रामीणों को आंशिक विकास का विस्मयकारी अनुभव हो। अब निर्भर करता है कि स्थानीय प्रशासन, जनप्रतिनिधि, ज़िला एवं राज्य स्तर के अधिकारी कब तक इस “जीवनरेखा” की पुनीत मरम्मत का भरोसा पूरा करेंगे। ग्रामीणों की उम्मीद अब कार्ययोजना के शीघ्र क्रियान्वयन में टिकी हुई है, ताकि वे भी अपने गाँव की सड़क पर सुरक्षित कदम रख सकें और विकास की रफ्तार का हिस्सा बन सकें। बोले जिम्मेदार झारखण्ड सीमा क़े बिरनिया गांव से बिरनिया पथ क़े 480 मीटर सड़क की 27 लाख 25 हजार में एकरार नामा हो चुका है। एक सप्ताह क़े अंदर कार्य शुरू कर दिया जाएगा। और सात वर्ष तक सड़क क़े अनुरक्षण की अवधि है। सनोज कुमार, सहायक अभियंता, ग्रामीण कार्य विभाग बांका -2
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