बौसी का गौरव महाराणा हाट: खादी और मवेशियों के कारोबार की ऐतिहासिक धरोहर, अब बदहाली का शिकार
बोले बांकाबोले बांका प्रस्तुति- हरिनारायण सिंह बौसी( बांका)। निज संवाददाता। बांका जिले के बौसी प्रखंड स्थित महाराणा हाट न केवल एक पारंपरिक

बौसी( बांका)। निज संवाददाता। बांका जिले के बौसी प्रखंड स्थित महाराणा हाट न केवल एक पारंपरिक व्यापारिक केंद्र रहा है, बल्कि यह क्षेत्र की सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक जीवनधारा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी रहा है। कभी खादी वस्त्रों और मवेशी व्यापार के लिए यह हाट पूरे बिहार, झारखंड और बंगाल तक प्रसिद्ध था। इसकी चमक भले ही अब थोड़ी फीकी पड़ गई हो, लेकिन इसकी ऐतिहासिक पहचान आज भी जीवित है। अगर सरकार और समाज मिलकर इसके पुनर्जीवन की दिशा में कदम उठाएं तो यह हाट एक बार फिर से अपनी पुरानी रौनक पा सकता है। ग्रामीणों का मानना है कि अगर इन सुधारों पर अमल किया जाए, तो महाराणा हाट न केवल एक स्थानीय व्यापार केंद्र के रूप में बल्कि पूरे राज्य का एक मॉडल हाट बन सकता है।
यह न केवल क्षेत्रीय विकास को गति देगा, बल्कि ग्रामीण रोजगार को भी मजबूती देगा। महाराणा हाट सिर्फ एक व्यापारिक बाजार नहीं है, बल्कि यह बौसी और उसके आसपास के ग्रामीण इलाकों की सांस्कृतिक और आर्थिक विरासत का प्रतीक है। इसकी पहचान को बचाना और संवारा जाना आज की जरूरत है। सरकार, प्रशासन, समाज और व्यापारिक वर्ग मिलकर अगर इसमें भागीदारी करें, तो यह हाट एक बार फिर से अपने पुराने गौरव को पा सकता है और सैकड़ों ग्रामीणों की रोज़ी-रोटी का मजबूत आधार बन सकता है। खादी और सूती कपड़ों का ऐतिहासिक केंद्र महाराणा हाट की स्थापना वर्ष 1980 में हुई थी। शुरुआती वर्षों में ही इस हाट ने खादी और सूती वस्त्रों के थोक और खुदरा कारोबार में बड़ी पहचान बना ली थी। इस हाट की विशेष बात यह थी कि यहां खादी और सूती कपड़ों की 100 से अधिक दुकानें सजती थीं, जिनमें स्थानीय बुनकरों द्वारा तैयार वस्त्रों की खूब मांग होती थी। डहुआ, हेचला, कटोरिया जैसे बांका जिले के बुनकर बहुल गांवों में तैयार किए गए कपड़ों में न केवल पारंपरिक शिल्पकला की छाप होती थी, बल्कि उसमें स्थानीय संस्कृति की भी झलक दिखाई देती थी। इन कपड़ों को न केवल आसपास के ग्राहक खरीदते थे, बल्कि झारखंड, बंगाल और अन्य राज्यों से व्यापारी थोक में इन्हें खरीदकर अपने यहां ले जाते थे। इस व्यापार ने हजारों बुनकरों और दुकानदारों को रोजगार का जरिया दिया। महिलाएं, छोटे कारीगर और शिल्पी भी इस हाट से सीधे तौर पर जुड़े हुए थे। खादी की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कई व्यापारी सिर्फ महाराणा हाट के लिए ही बांका आते थे और यहां के कपड़ों की गुणवत्ता की चर्चा दूर-दराज़ तक होती थी। मवेशी व्यापार की पहचान महाराणा हाट सिर्फ वस्त्र व्यापार का केंद्र नहीं था, बल्कि यह मवेशी व्यापार का भी एक प्रमुख स्थल था। आज भी यहां हर सप्ताह दो दिन - गुरुवार और रविवार - को मवेशियों का बड़ा बाजार लगता है, जिसमें भागलपुर, झारखंड, बंगाल और अन्य सीमावर्ती जिलों से व्यापारी और पशुपालक जुटते हैं। इस हाट में मवेशियों की कीमत 15 हजार रुपये से लेकर 1.5 लाख रुपये तक होती है। यहां गाय, बैल, भैंस जैसे मवेशियों की खरीद-बिक्री होती है और व्यापारी इनकी नस्ल, स्वास्थ्य, दुग्ध उत्पादन क्षमता आदि के आधार पर मोल-भाव करते हैं। पशुपालकों को इस हाट के माध्यम से न केवल बेहतर दाम मिलते हैं, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में पशुपालन की परंपरा को भी एक मंच प्राप्त होता है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ रहा हाट महाराणा हाट सिर्फ एक व्यापारिक मंडी नहीं, बल्कि यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आधार रहा है। कपड़े और मवेशी दोनों ही कारोबारों ने स्थानीय किसानों, पशुपालकों, बुनकरों और व्यापारियों की जीविका को सहारा दिया है। खासकर जिन परिवारों के पास न तो जमीन है और न ही शहरों में रोजगार के अवसर, उनके लिए यह हाट जीवन चलाने का मुख्य साधन रहा है। इसके माध्यम से कई परिवारों ने अपने बच्चों को पढ़ाया, बेटियों की शादी की और घरेलू जरूरतों को पूरा किया। स्थानीय अर्थव्यवस्था में इस हाट का योगदान काफी बड़ा और स्थायी रहा है। अब ढलती जा रही है रौनक हालांकि आज की स्थिति इस गौरवशाली अतीत से मेल नहीं खाती। हाट की रौनक अब धीरे-धीरे फीकी पड़ती जा रही है। खादी कपड़ों की मांग अब पहले जैसी नहीं रही, न ही बुनकरों को वह प्रोत्साहन मिल रहा है जो कभी उन्हें मिला करता था। कई बुनकरों ने पेशा बदल लिया है, कुछ ने पलायन कर लिया है, और जो बचे हैं वे कठिन परिस्थितियों में काम कर रहे हैं। मवेशी हाट में भी व्यवस्थाओं की कमी साफ़ देखी जा सकती है। न तो ठहरने की समुचित व्यवस्था है, न ही शुद्ध पेयजल, शौचालय और सफाई जैसी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध हैं। कई बार बारिश के दिनों में हाट स्थल कीचड़ में तब्दील हो जाता है, जिससे मवेशी और व्यापारियों दोनों को परेशानी होती है। स्थानीय लोगों की मांग: फिर से बने पहचान स्थानीय ग्रामीणों और व्यापारियों का कहना है कि अगर सरकार इस हाट के जीर्णोद्धार के लिए ठोस कदम उठाए, तो यह दोबारा अपनी पहचान बना सकता है। वे चाहते हैं कि- हाट परिसर का पक्काकरण किया जाए। मवेशियों के लिए शेड, पानी की व्यवस्था और स्वास्थ्य जांच केंद्र खोले जाएं। खादी वस्त्रों को बढ़ावा देने के लिए बुनकरों को सरकारी प्रोत्साहन और प्रशिक्षण दिया जाए। बाजार परिसर में पेयजल, शौचालय और साफ़-सफाई की नियमित व्यवस्था की जाए। सरकारी पहल की जरूरत आज जबकि सरकार ‘वोकल फॉर लोकल और आत्मनिर्भर भारत जैसी योजनाओं पर जोर दे रही है, ऐसे में महाराणा हाट जैसे पारंपरिक बाजारों का विकास अत्यंत आवश्यक है। यहां खादी वस्त्रों के पुनर्जीवन के लिए खादी एवं ग्रामोद्योग विभाग की योजनाएं चलाई जा सकती हैं। पशुपालकों के लिए कृषि एवं पशुपालन विभाग की मदद से मवेशी चिकित्सा शिविर, टीकाकरण, और नस्ल सुधार केंद्र शुरू किए जा सकते हैं। यदि सरकार और स्थानीय प्रशासन इस दिशा में गंभीरता से पहल करें, तो न सिर्फ बांका, बल्कि बिहार के अन्य जिलों के लिए भी यह एक उदाहरण बन सकता है। कहते हैं जिम्मेवार महाराणा हाट के आसपास विकास का कार्य किया गया है। साथ ही अन्य कई योजनाएं भी वहां जल्द ही होगी। हाट में मुलभूत सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जा रही है। अमित कुमार। बीडीओ बौसी। क्या कहते हैं क्षेत्र वासी महाराणा हाट कभी बौंसी का सबसे बड़ा और ख्यातिप्राप्त बाजार था। यहाँ दूर-दूर से व्यापारी आते थे और अच्छी खासी भीड़ होती थी। समय के साथ लोगों की रुचियों में बदलाव आया और यहाँ आने वालों की संख्या भी घटी है। अब यह हाट अपने पुराने स्वरूप से दूर हो गया है। मैं सरकार से आग्रह करता हूँ कि इस ऐतिहासिक हाट को पुनर्जीवित किया जाए, ताकि आम लोगों को इसका भरपूर लाभ मिल सके और व्यापार फिर से फले-फूले। मो. तस्लीम, पूर्व मुखिया, बगडूम्बा महाराणा हाट बौंसी का एकमात्र ऐसा हाट है जहाँ सभी आवश्यक वस्तुएँ एक ही जगह मिल जाती हैं। अगर इस हाट को सुव्यवस्थित तरीके से विकसित किया जाए, तो यह न केवल व्यापार को प्रोत्साहित करेगा बल्कि स्थानीय लोगों को बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर भी देगा। हमें उम्मीद है कि प्रशासन इसकी ओर ध्यान देगा और इसे एक मॉडल हाट के रूप में विकसित करेगा, जिससे क्षेत्र की आर्थिक स्थिति भी मजबूत होगी। राजीव कुमार सिंह, व्यवसायी कल्याण समिति अध्यक्ष महाराणा हाट की पहचान उसके सूती कपड़ों से रही है। एक समय था जब दूर-दराज़ से लोग यहां कपड़े खरीदने आते थे। लेकिन फैशन और बाजार की बदलती मांग ने इस पर असर डाला है। अब इस हाट को फिर से उसी रूप में लाने के लिए जरूरी है कि इसे आधुनिक सुविधाओं से जोड़ा जाए और पारंपरिक हस्तशिल्प को बढ़ावा दिया जाए। अगर सही दिशा में काम हो, तो यह हाट फिर से पुराने गौरव को पा सकता है। निखिल बहादुर सिंह, सबलपुर मेरे पूर्वजों ने इस हाट की नींव रखी थी। यह बाजार एक समय पूरे इलाके का व्यापारिक केंद्र था। आज भी व्यापारी यहाँ आते हैं, लेकिन पहले जैसी चहल-पहल नहीं रही। अगर सरकार आसपास की सुविधाएं बढ़ा दे - जैसे सड़क, बिजली, पानी आदि - तो यह हाट दोबारा वही रौनक हासिल कर सकता है। यह सिर्फ व्यापार का स्थान नहीं बल्कि हमारी विरासत है, जिसे सहेजना हम सब की जिम्मेदारी है। मो. सलमान, महाराणा हाट खादी के प्रचार-प्रसार की दिशा में सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं, लेकिन यह हाट अब भी उपेक्षित है। अगर खादी को बढ़ावा देना है तो महाराणा हाट जैसे पारंपरिक बाजारों को भी प्राथमिकता दी जाए। यहां के बुनकरों और विक्रेताओं को सुविधा मिलेगी तो बाजार भी फलेगा। यहां का खादी और हस्तशिल्प दूर-दूर तक लोकप्रिय हो सकता है, बशर्ते प्रशासन इसकी ओर ध्यान दे। अब्दुल हन्नान, महाराणा हाट एक समय था जब महाराणा हाट में हर सप्ताह बड़ी संख्या में मवेशियों की खरीद-बिक्री होती थी। लोग सैकड़ों किलोमीटर दूर से यहां आते थे। अब यह संख्या घट गई है, क्योंकि सुविधाओं का अभाव है। अगर मवेशी हाट को व्यवस्थित तरीके से चलाया जाए, तो यह फिर से किसानों और पशुपालकों का प्रमुख केंद्र बन सकता है। इसके लिए प्रशासन को नियोजित ढंग से कार्य करना होगा। मो. इजहार, बौंसी महाराणा हाट में आने वाले लोगों को सबसे ज्यादा पेयजल और शौचालय की कमी से जूझना पड़ता है। इतनी बड़ी संख्या में लोग आते हैं, लेकिन बुनियादी सुविधाओं का अभाव बना हुआ है। कई बार महिलाओं और बुजुर्गों को भारी परेशानी होती है। अगर सरकार सच में इस हाट को जीवित करना चाहती है, तो सबसे पहले इन मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था करनी होगी। मो. अंसार, महाराणा गर्मी के दिनों में महाराणा हाट में धूप से बचने का कोई इंतजाम नहीं होता। लोग घंटों खुले आसमान के नीचे खड़े रहते हैं। आसपास अगर एक यात्री शेड बना दिया जाए, तो दूर से आने वाले लोगों को काफी राहत मिलेगी। खासकर वृद्ध, महिलाएं और बच्चे खुले में बेहद परेशान होते हैं। सरकार को चाहिए कि यात्री सुविधा के लिए तत्काल कदम उठाए। मो. इमदाद, महाराणा यह हाट सप्ताह में दो दिन बड़ी संख्या में लोगों को आकर्षित करता है, लेकिन इसके बावजूद यात्री शेड जैसी बुनियादी सुविधा का अभाव है। हजारों लोगों के भरोसे मात्र एक शेड है, जो अपर्याप्त है। प्रशासन को चाहिए कि बाहर से आने वाले व्यापारियों और ग्रामीणों के लिए उचित बैठने की व्यवस्था करे ताकि वे सुकून से व्यापार कर सकें और ग्राहकों से संवाद कर सकें। सईद अंसारी, महाराणा बांध महाराणा हाट में वर्तमान में सिर्फ एक हाईमास्ट लाइट लगी है, जिससे हाट का केवल एक भाग ही रोशन होता है। जबकि दूसरी तरफ अंधेरा रहता है, जिससे लोगों को असुविधा होती है। अगर एक और हाईमास्ट लाइट दूसरी दिशा में लगा दी जाए, तो पूरा क्षेत्र रोशन हो सकता है। रात को भी व्यापारी और ग्राहक सुरक्षित महसूस करेंगे और हाट की गतिविधियाँ देर तक चल सकेंगी। मो. कौशर, महाराणा इस हाट की प्रसिद्धि दूर-दूर तक है, लेकिन सरकार की तरफ से अब तक कोई ठोस विकास कार्य नहीं हुआ है। न तो परिसर का विकास किया गया और न ही स्थायी व्यापारिक संरचनाएँ बनाई गई हैं। अगर सरकार इस ऐतिहासिक बाजार को पहचान दिलाने में रुचि ले तो यह क्षेत्र का सबसे बड़ा और व्यवस्थित बाजार बन सकता है। विकास की पहल अब ज़रूरी हो गई है। मो. मुस्तकीम, महाराणा सरकारी स्तर पर अब तक महाराणा हाट के विकास की दिशा में कोई गंभीर प्रयास नहीं हुआ है। यह हाट कभी बौंसी का गौरव हुआ करता था, लेकिन सुविधाओं के अभाव में इसकी चमक फीकी पड़ रही है। अगर इसे आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित किया जाए, तो यह एक बार फिर से बिहार के सबसे बड़े पारंपरिक बाजारों में गिना जा सकता है। अब वक्त है कि इसे सरकारी प्राथमिकता मिले। सईद आलम, महाराणा
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