जलवायु परिवर्तन काल में खेतीबारी में बदलाव लाना जरूरी
चांद प्रखंड के नौ गांवों में कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को नई तकनीक से खेती करने के लिए शिक्षित किया। उन्होंने धान की सब्बौर अर्धजल, अभिषेक, हर्षित, सहभागी और एमटीयू 10-10 जैसे कम पानी वाली...

विकसित कृषि संकल्प अभियान के तहत चांद प्रखंड के नौ गांवों में शिविर लगाकर कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को किया शिक्षित सब्बौर अर्धजल, अभिषेक, हर्षित, सहभागी, एमटीयू 10-10 प्रभेद की खेती पर जोर कहा, कम दिनों में फसल काटकर खाली खेत में दूसरी चीज की भी कर सकते हैं खेती चांद, एक संवाददाता। प्रखंड के नौ गांवों में मंगलवार को विकसित कृषि संकल्प अभियान के तहत शिविर लगाकर किसानों के साथ कृषि वैज्ञानिकों व कृषि विभाग के अफसरों ने सीधा संवाद किया और नई तकनीक से खेती करने के लिए शिक्षित किया। कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. अमित कुमार सिंह ने किसानों से कहा कि कैमूर के जीविकोपार्जन का मुख्य साधन खेती है।
जलवायु परिवर्तन हो रहा है। इसलिए आपको भी खेती में बदलाव लाना होगा। कम पानी व कम लागत में उत्पादित होनेवाले धान की खेती करनी होगी। वैज्ञानिक विधि को अपनाना होगा। तभी आप आर्थिक रूप से समृद्ध होंगे। उन्होंने किसानों को सलाह दी कि धान की सीधी बुआई करें। धान की सब्बौर अर्धजल, सब्बौर अभिषेक, सब्बौर हर्षित, सहभागी, एमटीयू 10-10 प्रभेद वाले धान की खेती करनी चाहिए। इस प्रजाति के पौधों को कम पानी उगाकर कम समय अच्छी उपज कर सकते हैं। सूखा प्रतिरोधी धान की खेती करना अब मुमकिन हो गया है। गेहूं की तरह अब धान उगाने के लिए नई तकनीक उपलब्ध हो गई है। धान के खेत को हमेशा पानी से भरा हुआ रखे बिना भी इसकी खेती की जा सकती है। नई तकनीक से धान की फसल के लिए पानी की जरूरत में 40-50 फीसदी तक कम करने में मदद मिलेगी। कृषि वैज्ञानिक ने किसानों को बताया कि जलवायु परिवर्तन से खेतीबारी प्रभावित हो रही है। बेसमय बारिश के कारण खेती भी असमय हो गई है। ऐसे में कम समय व कम पानी वाली प्रजाति के धान की खेती करना लाभदायक होगा। सब्बौर अर्धजल, सब्बौर अभिषेक, सब्बौर हर्षित, सहभागी, एमटीयू 10-10 प्रभेद वाले धान की फसल 115 से 120 दिन में तैयार हो जाएगी। इसमें प्रति हेक्टेयर 40-45 क्विंटल धान का उत्पादन होगा। जबकि एमटीयू 70 कुंती, राजेंद्र मंसूरी वन, स्वर्णा सब वन प्रभेद के धान 150-155 दिनों में तैयार होता है। ज्यादा पानी व ज्यादा समय में प्रति हेक्टेयर 60-65 क्विंटल धान की उपज होती है। कृषि वैज्ञानिक डॉ. राहुल कुमार ने कहा कि फसल में लगातार रसायनिक खाद का उपयोग किए जाने से उर्वरा शक्ति कमजोर हो रही है, जिससे उपज प्रभावित होती है। बिना जरूरत के कीटनाशक दवाओं का उपयोग किया जा रहा है। इससे नुकसान होता है। आप धान की सीधी बुआई कर 24 घंटों में दवा का छिड़काव करें, तो घास नहीं उगेगी। उन्होंने धान की फसल के रोग, उसके लक्षण व बचाव की जानकारी दी। मौके पर इफको कर्मी, सलाहकार, जनप्रतिनिधि, किसान थे। यह शिविर लसाढ़ी, खरांटी, बरहनी के अलावा सेंधुरा, भलुआरी, चंदोश, बहुअरा, सोनाव, दारुनपुर में आयोजित लगा। टैंसो मीटर से पानी की जरूरत का चलता है पता वैज्ञानिकों के मुताबिक धान की फसल के लिए प्रति एकड़ करीब 10 हजार क्यूबिक मीटर पानी का उपयोग हो रहा है। किसान औसतन धान के सीजन में 15 बार सिंचाई करते हैं। अधिकतर किसानों को तकनीकी रूप से ऐसी कोई जानकारी नहीं रहती है कि उन्हें सिंचाई के लिए कब कितना पानी उपयोग करना चाहिए। पानी का ज्यादा उपयोग भी फसल के लिए नुकसानदायक ही रहता है। इसलिए किसानों को टैंसो मीटर जैसे उपकरण का उपयोग करना चाहिए, ताकि गिरते भू-जल को बचाया जा सके। बिना पानी के कर सकते हैं बुआई धान की खेती की ऐसी ही सीधी बुआई की विधि है, जिसमें न तो खेत में पानी भरना पड़ता है और न ही रोपाई करनी पड़ती है। इस विधि से बुआई करने के लिए बीज की सीधी बुआई की जाती है। जहां पर सिंचाई का साधन नहीं है, वहां के किसान धान की अच्छी खेती कर सकते हैं। एक एकड़ में धान की बुआई के लिए 6 किलो बीज की जरूरत होती है। इसे सूखी जमीन पर भी लगाया जा सकता है। खर-पतवार नियंत्रण के लिए उपयुक्त ऐसी विधि से धान की खेती करने को खर-पतवार नियंत्रण के लिए उपयुक्त माना जाता है। एरोबिक धान की फसल को 115 से 120 दिन के अंदर उत्पादन किया जा सकता है। अगर धान की खेती कर रहे हैं तो यह भी ध्यान दें कि क्षेत्र में बारिश कैसी हो रही है। अगर 15 दिन तक बारिश नहीं होती है तो सिंचाई कर देनी चाहिए। जैसा गेहूं में सिंचाई करते हैं, उसी तरह से सिंचाई करनी चाहिए। फोटो 3 जून भभुआ- 4 कैप्शन- चांद प्रखंड के लसाढ़ी गांव में मंगलवार को आयोजित कार्यक्रम में किसानों को खरीफ फसल की खेती नई तकनीक से करने की जानकारी देते कृषि वैज्ञानिक।
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