बोले कटिहार: रेलवे स्टेशन और अस्पताल में बुजुर्गों के लिए हो अलग काउंटर
कटिहार में बुजुर्गों की स्थिति चिंताजनक है। जिन लोगों ने समाज की नींव रखी, आज उन्हें पेंशन, इलाज और सम्मान की कमी का सामना करना पड़ रहा है। सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा और बुजुर्ग अकेले और...

बुजुर्गों की परेशानी
प्रस्तुति: ओमप्रकाश अम्बुज, मोना कश्यप
कटिहार के बुजुर्ग आज अपने ही शहर में गुमनाम जिंदगी जीने को मजबूर हैं। जिन्होंने उम्रभर समाज और परिवार की नींव मजबूत की, आज वही चंद रुपयों की पेंशन, इलाज की सुविधा और दो मीठे बोल के मोहताज हैं। बढ़ती उम्र के साथ बढ़ती परेशानियों ने उन्हें अकेलेपन, असुरक्षा और उपेक्षा की दीवारों में कैद कर दिया है।
कटिहार जिले की गलियों और चौपालों में अगर गौर से देखें तो मिल जाएंगे कुछ थके हुए चेहरे, जिनकी आंखों में अनुभव की चमक तो है, पर उम्मीद धुंधली पड़ चुकी है। ये वही लोग हैं जिन्होंने गांव-समाज की नींव रखी, खेतों को जोता, स्कूलों में पढ़ाया, सड़कों पर पसीना बहाया। आज जब ये वयोवृद्ध जीवन की संध्या में थोड़ी राहत और सम्मान चाहते हैं, तो सिस्टम की उदासीनता और योजनाओं की अधूरी पहुंच उन्हें बेसहारा छोड़ चुकी है। कटिहार जिले में करीब तीन लाख वृद्धजन सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजनाओं के तहत नामित हैं, लेकिन 20% से ज्यादा बुजुर्ग अब भी इन योजनाओं से वंचित हैं। लेकिन जिन बुजुर्गों के नाम इन सूचियों में नहीं हैं, उनका जीवन बेहद कठिन है। गांव के सुदूर कोनों में रहने वाले बुजुर्ग हर महीने पेंशन के इंतजार में रहते हैं। जिन्हें पेंशन मिलती भी है, वह भी 350-500 रुपये प्रति माह। इतने में ना दवा आती है, ना राशन। वे कहते हैं कि बेटा, यही तो समय था कि सरकार हमारा हाथ थामती... पर यहां तो उम्र भी बोझ बन गई है।
दिल्ली में 2000 रुपये, हरियाणा में 3500 और बंगाल में 1000 रुपये तक पेंशन मिलती है, लेकिन बिहार में यह राशि बुजुर्गों की गरिमा के अनुरूप नहीं है। स्वास्थ्य की बात करें तो आयुष्मान योजना का लाभ भी सभी बुजुर्गों को नहीं मिल रहा। अभी सिर्फ 70 साल से ऊपर या राशन कार्ड वाले बुजुर्ग ही पात्र हैं। ऐसे में एक 65 वर्षीय बुजुर्ग जो किसी कारणवश राशन कार्ड नहीं बनवा पाए, उन्हें अस्पतालों में या तो जेब से खर्च करना होता है या इलाज अधूरा छोड़ना पड़ता है। कटिहार में न तो वृद्धाश्रम है जिससे शहर में अकेले रहने वाले बुजुर्ग किराए के मकानों में असुरक्षित और तन्हा जिंदगी बिता रहे हैं। रेलवे स्टेशन हो या बस स्टैंड, वहां भी वरीय नागरिकों के लिए कोई अलग सुविधा नहीं है। भीड़ में धक्के खाते ये बुजुर्ग जैसे रोज अपने सम्मान से समझौता कर रहे हैं। एक सेवानिवृत्त पुलिसकर्मी रोते हुए कहते हैं कि सरकार को क्या बताएं बेटा, पेंशन लेने शहर आता हूं तो ठहरने की जगह नहीं, कागजों की कमी बता कर लौटा देते हैं। क्या हमने 30 साल की सेवा इसी दिन के लिए की थी।
2.95 लाख है जिले में विभिन्न तरह के पेंशन पानेवाले
60 वर्ष से अधिक आयु के सभी बुजुर्गों को नहीं मिल पा रहा है आयुष्मान योजना का लाभ
01 भी वृद्धाश्रम नहीं है जिले में
शिकायतें
1. पेंशन के लिए महीनों इंतजार-समय पर राशि नहीं मिलती, बार-बार बैंक और कार्यालय के चक्कर काटने पड़ते हैं।
2. बैंक में लंबी कतारें और अपमानजनक व्यवहार-लाइफ सर्टिफिकेट जमा करने के दौरान सहयोग की बजाय तिरस्कार झेलना पड़ता है।
3. इलाज के लिए न सरकारी अस्पतालों में सम्मान मिलता है, न समय पर दवा-घंटों लाइन में खड़ा रहना पड़ता है।
4. यात्रा में कोई विशेष सुविधा नहीं-भीड़ भरे डिब्बों में सीनियर सिटीजन को सीट तक नहीं मिलती।
5. सुनने वाला कोई नहीं - शिकायत करने पर भी न तो फॉलोअप होता है, न समाधान। अधिकारियों की उदासीनता हावी रहती है।
सुझाव
1. पेंशन राशि बढ़ाई जाए–बिहार में ₹3500 प्रतिमाह पेंशन अपर्याप्त है, इसे अन्य राज्यों की तर्ज पर सम्मानजनक स्तर तक बढ़ाया जाए।
2. 60+ सभी बुजुर्गों को आयुष्मान योजना का लाभ मिलेउम्र या राशन कार्ड की शर्तों को हटाकर सभी वरिष्ठ नागरिकों को स्वास्थ्य बीमा मिले।
3. कटिहार में वृद्धाश्रम की स्थापना हो–परित्यक्त या एकाकी बुजुर्गों के लिए सुरक्षित और सम्मानजनक आवासीय सुविधा दी जाए।
4. सीनियर सिटीजन हेल्पलाइन सक्रिय हो–तत्काल सहायता और परामर्श के लिए जिला स्तर पर हेल्पलाइन शुरू की जाए।
5. बुजुर्गों के लिए बस/ट्रेन यात्रा में विशेष सुविधा–अलग काउंटर, रियायती टिकट और प्राथमिकता की सुविधा सुनिश्चित हो।
इनकी भी सुनें
सरकार पेंशन देती है, लेकिन महीनों देर हो जाती है। दवा खरीदने के लिए दूसरों पर निर्भर होना पड़ता है। हमने उम्र भर काम किया, अब जब शरीर जवाब देने लगा है, तो सम्मान नहीं मिल रहा। कम से कम नियमित पेंशन और इलाज की सुविधा तो मिलनी चाहिए।
- नंद गोपाल मंडल
अब तो शरीर भी थक चुका है। बेटे बाहर हैं, और हमें यहां राशन कार्ड, पेंशन के लिए दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। कोई यह नहीं समझता कि बुजुर्गों को कितना संघर्ष करना पड़ता है। सरकार अगर सेवा नहीं दे सकती, तो कम से कम परेशानी तो न दे।
रामानंद शर्मा
हर महीने पेंशन के इंतजार में बैंक जाना पड़ता है। लाइन में खड़ा होना अब भारी पड़ता है। अगर मशीनें सब कुछ तय कर रही हैं, तो बुजुर्गों को घर बैठे सेवा क्यों नहीं दी जाती? उम्र के इस पड़ाव पर तो चैन और सम्मान की दरकार है।
कैलाश प्रसाद मंडल
पेंशन तो मिलती है, पर बस गुजारे लायक। इलाज के लिए हाथ फैलाना पड़ता है। समाज में बुजुर्गों की आवाज सुनी नहीं जाती। नई पीढ़ी को समझना होगा कि बुजुर्ग भी कभी उनके जैसे थे, और अब उन्हें सहारे की जरूरत है, तिरस्कार की नहीं।
सूर्य नारायण मंडल
कभी स्कूल में पढ़ाया, अब पेंशन के लिए परेशान हूं। ‘पेंशनर भवन’ जैसी कोई सुविधा नहीं है, जहां हम आराम से बैठकर कागज जमा कर सकें। थक गया हूं सिस्टम से लड़ते-लड़ते। हमें भी इंसान समझो, सिर्फ फॉर्म भरने वाली मशीन नहीं।
कौशल किशोर
बीमार हूं, चलने-फिरने में कठिनाई है। पेंशन लेने खुद बैंक नहीं जा सकता। कोई हेल्पलाइन, कोई सुविधा नहीं। सरकार ने हमें अकेला छोड़ दिया है। डिजिटल इंडिया तो ठीक है, लेकिन बुजुर्गों के लिए मानवीय इंडिया कब बनेगा?
प्रदीप मंडल
हमारे लिए तो जिंदगी की शाम बहुत भारी हो गई है। पहले खेती करते थे, अब कमर नहीं साथ देती। दवा, खाना, कपड़ा—सब महंगा हो गया है। तीन हजार की पेंशन से क्या होगा? सरकार को हमारी हालत देखनी चाहिए, न कि सिर्फ आंकड़े।
विभाष लाल मंडल
बेटा बाहर नौकरी करता है, मैं यहां अकेला रहता हूं। राशन कार्ड में नाम नहीं है, इसलिए आयुष्मान योजना का लाभ भी नहीं मिलता। 65 साल की उम्र में खुद इलाज के लिए दौड़ना पड़ता है। ये उम्र अब सहारे की है, लेकिन सहारा कहीं नहीं।
दामोदर मोहाली
जिंदगी में मेहनत करके जोड़ा, अब सब खत्म हो गया। घर में कोई नहीं, अकेले पेंशन का इंतजार करता हूं। अगर महीने में एक बार कोई अधिकारी हमारी खबर भी ले, तो लगे कि सरकार है। हम बूढ़े लोग भी वोट देते हैं, अधिकार मांगते हैं।
रामजी पोद्दार
चार बेटों की मां हूं, पर बूढ़ी होने के बाद कोई साथ नहीं देता। हर महीने 3500 की उम्मीद में बैंक जाती हूं, कभी पैसा आता है, कभी नहीं। क्या बुजुर्गों की कोई इज्जत नहीं? हमें भी इंसान समझो, सिर्फ बोझ नहीं।
दुखाई मंडल
मैं अब बोल भी ठीक से नहीं पाती। फिर भी दफ्तरों में दस्तखत करवाने के लिए जाना पड़ता है। कोई सहारा नहीं, और सरकार की योजनाएं नाम की हैं। बुजुर्गों के लिए अगर सच्चा सम्मान चाहिए, तो सुविधा घर पर मिलनी चाहिए।
प्रतिमा देवी
बच्चे बाहर हैं, और मैं किराए के घर में अकेली हूं। पेंशन मिलने से कुछ सहारा मिलता है, पर कब मिलेगी, पता नहीं। वृद्धाश्रम तो दूर की बात है, कोई पूछने वाला भी नहीं। सरकार को बुजुर्गों के लिए ठोस योजना बनानी चाहिए।
अमला कुमारी
हमने देश और समाज के लिए काम किया, अब खुद उपेक्षित हैं। बैंक वाले भी बुजुर्गों से जैसे पीछा छुड़ाना चाहते हैं। बैठने की जगह नहीं, सुनने वाला कोई नहीं। इस उम्र में इज्जत ही सबसे बड़ी जरूरत है।
श्रीनिवास
बुजुर्गों के लिए सरकार सिर्फ घोषणा करती है, ज़मीनी फायदा कुछ नहीं मिलता। अगर राशन कार्ड में नाम नहीं है, तो आयुष्मान योजना से वंचित कर देते हैं। पेंशन भी कभी आती है, कभी नहीं। हमें भुला दिया गया है।
भानु देवी
अब तो जीवन भर की थकान शरीर पर है। सुबह से लाइन में लगकर पेंशन के लिए इंतजार करना पड़ता है। कोई कहां सुनता है? कभी-कभी लगता है, बुजुर्ग होना ही सजा है। एक सम्मानजनक व्यवस्था होनी चाहिए।
सखिया
पेंशन आने के बाद भी बैंक कर्मचारी मदद नहीं करते। फार्म भरने और लाइन लगाने में बहुत परेशानी होती है। अगर डिजिटल सिस्टम है, तो बुजुर्गों के लिए मोबाइल सुविधा क्यों नहीं? हमारी तकलीफें भी किसी को दिखनी चाहिए।
शिव कुमारी
बीमारी के समय अस्पताल में घंटों इंतजार करना पड़ता है। कोई डॉक्टर जल्दी नहीं देखता। पेंशन से दवा नहीं आती, और जीवन की जरूरतें भी अधूरी रह जाती हैं। इस उम्र में संघर्ष का मतलब क्या है? हमें आराम की उम्मीद थी।
शारदा देवी
कभी स्कूल में पढ़ी थी, अब अपने दस्तावेजों को लेकर ऑफिस-ऑफिस भटक रही हूं। कोई कहता है फॉर्म गलत है, कोई आधार कार्ड मांगता है। बुजुर्गों के लिए एक अलग, सरल व्यवस्था क्यों नहीं बनती? हम भी इस देश के नागरिक हैं।
विद्या
जिम्मेदार
जिले में लगभग तीन लाख वृद्ध, विधवा, दिव्यांग एवं निराश्रित लाभुकों को पेंशन योजनाओं के अंतर्गत लाभ दिया जा रहा है। पात्रता की पुष्टि एवं आधार, राशन कार्ड, बैंक खाता आदि के सत्यापन में समय लगता है, जिससे कभी-कभी विलंब होता है। सरकार की मंशा सभी योग्य लाभुकों तक पेंशन पहुंचाने की है। आयुष्मान योजना को लेकर भी विभाग लगातार जागरूकता फैला रहा है और सभी वरिष्ठ नागरिकों को लाभ मिले, इसके लिए प्रयास जारी हैं। पेंशन प्रक्रिया को सरल व पारदर्शी बनाने के लिए डिजिटल प्रणाली को मजबूत किया जा रहा है।
अमरेश कुमार
सहायक निदेशक, सामाजिक सुरक्षा कोषांग, कटिहार
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