बिना बीजोपचार के न करें धान की नर्सरी की बुवाई
नर्सरी बुवाई से पूर्व बीजों का फफूंदनाशक, कीटनाशक और जैविक कल्चर से उपचार करना भी अत्यंत आवश्यक बिना बीजोपचार के न करें धान की नर्सरी की बुवाई

नर्सरी बुवाई से पूर्व बीजों का फफूंदनाशक, कीटनाशक और जैविक कल्चर से उपचार करना भी अत्यंत आवश्यक इस चरण को अनदेखा करने से फसल पर पड़ सकता है बुरा असर, बीजों की अंकुरण क्षमता हो जाती है कमजोर कुचायकोट। एक संवाददाता मई-जून का महीना आते ही धान की खेती की तैयारियां गांवों में शुरू हो जाती हैं। खेतों में धान की नर्सरी की बुवाई इस समय की सबसे जरूरी गतिविधियों में से एक होती है, जो मुख्य फसल के स्वास्थ्य और उपज की नींव रखती है। लेकिन अगर इस चरण में किसान बीजोपचार की अनदेखी करते हैं, तो उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि नर्सरी बुवाई से पूर्व बीजों का फफूंदनाशक, कीटनाशक और जैविक कल्चर से उपचार करना अत्यंत आवश्यक है। यह बीजों के चारों ओर एक सुरक्षात्मक परत बना देता है, जिससे वे मिट्टी में मौजूद हानिकारक फफूंद और जीवाणुओं से सुरक्षित रहते हैं। इससे बीजों की अंकुरण क्षमता में न सिर्फ सुधार होता है, बल्कि पौधों की मृत्यु दर भी कम हो जाती है। उपज में आती है गिरावट यदि बीज बिना उपचार के बोए गए हों, तो फसल बीजजनित और मृदाजनित रोगों की चपेट में जल्दी आ जाती है। इससे अंकुरण प्रभावित होता है, पौधे कमजोर बनते हैं और अंततः उपज में गिरावट आती है। यही कारण है कि कृषि विभाग लगातार किसानों को जागरूक कर रहा है कि वे नर्सरी बुवाई से पहले बीजों का उपचार जरूर करें। ऐसे करें बीजोपचार बीजोपचार की प्रक्रिया भी अत्यंत सरल है। सबसे पहले बीजों की छंटाई की जाती है। इसके लिए दो प्रतिशत नमक का घोल तैयार करना होता है, प्रति लीटर पानी में 20 ग्राम नमक डालकर। फिर बीजों को इस घोल में डालकर हिलाया जाता है। जो बीज ऊपर तैरते हैं, वे हल्के और रोगग्रस्त होते हैं, उन्हें अलग कर देना चाहिए। जो बीज नीचे बैठते हैं, वे उपयुक्त होते हैं। इन्हें साफ पानी से धोकर छाया में सुखाना जरूरी है। फिर फफूंदनाशक से करें उपचार इसके बाद बीजों का रासायनिक या जैविक फफूंदनाशक से उपचार किया जाता है। जैसे-बाविस्टीन, कैप्टान या थीरम का उपयोग 2 से 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के अनुसार किया जा सकता है। जैविक विकल्प के रूप में ट्राइकोडर्मा विरिडे 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से प्रयोग किया जा सकता है। इसके बाद जैविक कल्चर जैसे पीएसबी (फॉस्फेट घुलनशील बैक्टीरिया) या एजेटोबैक्टर से 6-6 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करना चाहिए। नम जूट की बोरी पर छाया में फैलाएं उपचारित बीजों को किसी नम जूट की बोरी पर छाया में फैला देना चाहिए और जब वे हल्के सूख जाएं, तभी नर्सरी बुवाई के लिए प्रयोग में लाना चाहिए। यह ध्यान रखना जरूरी है कि बीजों को पहले फफूंदनाशक, फिर कीटनाशक और अंत में जैविक कल्चर से उपचारित करें। प्रशिक्षित कृषि सलाहकारों का कहना है कि बीजोपचारित बीज न केवल रोगों से सुरक्षित रहते हैं, बल्कि वे लंबे समय तक अपनी अंकुरण क्षमता भी बनाए रखते हैं। यदि बचे हुए उपचारित बीजों को संग्रह करना हो तो वे दीर्घकाल तक सुरक्षित रहते हैं। सावधानी भी जरूरी हालांकि एक महत्वपूर्ण सावधानी यह भी है कि बचे हुए उपचारित बीजों का उपयोग मानव या पशु भोजन के रूप में कभी न करें, क्योंकि इनमें रसायनों की मात्रा मौजूद होती है, जो स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह हो सकती है। थोड़े से प्रयास और जागरूकता से किसान न सिर्फ अपनी धान की फसल को रोगों से सुरक्षित रख सकते हैं, बल्कि उपज में भी उल्लेखनीय वृद्धि कर सकते हैं। इसलिए विशेषज्ञों और कृषि विभाग की सलाह को गंभीरता से लेते हुए, सभी किसान बीजोपचार को अपनाएं और इस वर्ष बेहतर उत्पादन की दिशा में कदम बढ़ाएं।
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