बोले कटिहार: सुरक्षा और सुविधा मिले, तभी शहरी महिलाएं बनेंगी आत्मनिर्भर
कटिहार की कामकाजी महिलाएं शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं, लेकिन सुरक्षित माहौल, सार्वजनिक शौचालयों की कमी और आर्थिक सहायता की कमी जैसी समस्याएं उनके आत्मनिर्भर बनने में बाधा डाल रही...
शहरी कामकाजी महिलाओं की परेशानी
प्रस्तुति:
ओमप्रकाश अम्बुज, मोना कश्यप
कटिहार शहर की महिलाएं आज शिक्षा, रोजगार और स्वरोजगार के क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं, लेकिन उनकी राह में अभी भी कई बुनियादी अड़चनें हैं। सुरक्षित माहौल, सार्वजनिक शौचालयों की सुविधा, घर-परिवार का सहयोग और आर्थिक सहायता की कमी उनके आत्मनिर्भर बनने में बाधक बन रही है। कामकाजी महिलाएं न केवल खुद को सशक्त बना रही हैं, बल्कि दूसरों को भी रोजगार दे रही हैं। फिर भी उन्हें रोज़ सामाजिक और मानसिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। अगर उन्हें एक बेहतर, सुरक्षित और सहायक माहौल मिले, तो वे न सिर्फ अपने सपनों को साकार करेंगी, बल्कि समाज को भी नई दिशा देंगी।
कटिहार शहर की महिलाएं आज हर क्षेत्र में अपने हुनर और मेहनत से पहचान बना रही हैं। लेकिन इसके बावजूद उन्हें कई ऐसी बुनियादी समस्याओं से जूझना पड़ता है, जो उन्हें आगे बढ़ने से रोकती हैं। सबसे बड़ी चिंता सुरक्षा और सार्वजनिक सुविधाओं की है। महिलाएं कहती हैं कि अगर उन्हें सुरक्षित माहौल और जरूरी सुविधाएं मिलें, तो वे किसी भी मुकाम को हासिल कर सकती हैं। कामकाजी महिलाओं का कहना है कि वे खुद तो आत्मनिर्भर बन ही रही हैं, साथ ही दूसरों को भी रोजगार दे रही हैं। लेकिन समाज में आज भी ऐसे माहौल की कमी है जहां महिलाएं बेझिझक काम कर सकें। स्वरोजगार शुरू करने की चाह रखने वाली महिलाओं को पूंजी जुटाने और बाजार तलाशने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। वहीं नौकरी करने वाली महिलाओं को घर और ऑफिस दोनों जगहों की जिम्मेदारी निभानी पड़ती है।
कामकाजी महिलाओं ने बतायी परेशानी
कामकाजी महिलाओं ने बताया कि घरवालों का साथ हो तो मुश्किलें कुछ आसान हो जाती हैं, लेकिन ज्यादातर मामलों में महिलाओं को अकेले ही सबकुछ संभालना पड़ता है। इसका सीधा असर बच्चों की परवरिश और परिवार के साथ संबंधों पर पड़ता है। समाज की अपेक्षाएं भी सिर्फ महिलाओं से होती हैं, लेकिन उनकी अपनी जरूरतों और भावनाओं को समझने वाला कोई नहीं होता।
शहर में सार्वजनिक शौचालय का है अभाव
शहर की एक और बड़ी समस्या है—सार्वजनिक शौचालयों का अभाव। बाजार या ऑफिस जाने वाली महिलाएं बताती हैं कि मजबूरी में वे पानी कम पीती हैं ताकि बाहर उन्हें टॉयलेट की जरूरत न पड़े। यह आदत उन्हें गंभीर बीमारियों की ओर धकेल रही है। महिलाओं ने बताया कि कई बार तीन-चार घंटे तक यूरिन रोकना पड़ता है, जो अत्यंत पीड़ादायक होता है।
बीपी की दवा लेने वाली महिलाओं की समस्या और भी गंभीर है। यूरिन की आशंका के चलते वे जरूरी दवा तक छोड़ देती हैं, जो उनके स्वास्थ्य के लिए घातक साबित हो सकता है। कार्डियोलॉजी विशेषज्ञ डॉ. सत्यजीत भानू बताते हैं कि बीपी की दवा यूरिन बढ़ाती है, लेकिन उसे रोकना खतरे को न्योता देना है। कटिहार की महिलाओं का साफ कहना है कि अगर शौचालय, सुरक्षा और सहयोग जैसी बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित कर दी जाएं, तो वे किसी भी चुनौती से लड़ सकती हैं। जरूरत है तो बस एक संवेदनशील और समर्पित सिस्टम की, जो महिला सशक्तिकरण को सिर्फ नारों में नहीं, ज़मीन पर भी उतारे।
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85 प्रतिशत सार्वजनिक स्थलों पर महिलाओं के लिए शौचालय की नहीं है समुचित व्यवस्था
62 प्रतिशत कामकाजी महिलाएं मानती है कि उन्हें सुरक्षा को लेकर रोज बना रहता है डर
70 प्रतिशत स्वरोजगार करनेवाली महिलाओं के पास है पूंजी की कमी
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शिकायतें
1. सार्वजनिक टॉयलेट की भारी कमी – बाजारों और बस स्टैंड जैसे भीड़भाड़ वाले स्थानों पर महिलाओं के लिए शौचालय नहीं हैं।
2. सुरक्षा की चिंता – सड़कों, दफ्तरों और सार्वजनिक जगहों पर महिलाओं को खुद को असुरक्षित महसूस करना पड़ता है।
3. घर और काम के बीच संतुलन की परेशानी – नौकरी और घरेलू जिम्मेदारियों को एक साथ निभाना बेहद कठिन हो जाता है।
4. सरकारी योजनाओं की पहुंच नहीं – स्वरोजगार या महिलाओं के लिए चलाई जा रही योजनाओं की जानकारी और लाभ अभी भी बहुत कम महिलाओं तक पहुंचते हैं।
5. स्वास्थ्य उपेक्षा की मजबूरी – टॉयलेट न होने के डर से महिलाएं पानी कम पीती हैं और बीपी की दवा तक नहीं लेतीं, जिससे स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है।
सुझाव
1. हर बाजार और सार्वजनिक स्थल पर महिला टॉयलेट अनिवार्य किया जाए – नगर निगम इसे प्राथमिकता से लागू करे।
2. महिलाओं के लिए अलग हेल्पलाइन और चौकसी – सुरक्षा के लिए महिला पेट्रोलिंग टीम और सीसीटीवी निगरानी बढ़ाई जाए।
3. घरेलू महिला उद्यमियों को आसान ऋण और प्रशिक्षण मिले – ताकि वे स्वरोजगार में आत्मनिर्भर बन सकें।
4. समय-समय पर महिला स्वास्थ्य शिविर आयोजित हों – जिससे वे नियमित जांच करवा सकें और बीमारी से बच सकें।
5. नारी शक्ति समूह बनाकर सामूहिक प्रयास किए जाएं – जिससे महिलाएं मिलकर अपनी समस्याएं साझा कर सकें और समाधान पा सकें।
इनकी भी सुनें
शहर की महिलाएं आज आत्मनिर्भर बनना चाहती हैं, लेकिन बुनियादी सुविधाओं की कमी उन्हें रोकती है। सबसे जरूरी है कि बाजारों और सार्वजनिक स्थलों पर साफ और सुरक्षित महिला टॉयलेट की व्यवस्था हो। इसके साथ-साथ महिलाओं को स्वरोजगार हेतु प्रशिक्षण और आसान ऋण की सुविधा मिलनी चाहिए, ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें।
– गीता शर्मा
महिलाएं आज घर और समाज दोनों में अपनी भूमिका निभा रही हैं, परंतु शहर में उनके लिए अनुकूल माहौल अब भी नहीं है। खासकर सुरक्षा और स्वास्थ्य को लेकर चिंता बनी रहती है। प्रशासन को महिला सुरक्षा हेल्पलाइन को और सक्रिय करना चाहिए और बाजार क्षेत्रों में महिला शौचालय की निगरानी अनिवार्य होनी चाहिए।
– कृष्णा डालमिया
कामकाजी महिलाओं के लिए सबसे बड़ी समस्या है—संतुलन। घर, ऑफिस और बच्चों के बीच तालमेल बनाना बेहद कठिन है। अगर सरकार कामकाजी महिलाओं के लिए डे-केयर सुविधा वाले कार्यस्थल विकसित करे तो यह एक बड़ी राहत होगी। साथ ही, टॉयलेट की सुविधा हर सार्वजनिक स्थल पर जरूरी है।
– किरण सोनी
स्वरोजगार की चाह रखने वाली महिलाओं को पूंजी और बाजार की सबसे अधिक जरूरत होती है। अगर सरकार हर वार्ड में महिला उद्यमिता सहायता केंद्र खोल दे, तो कई महिलाओं का सपना साकार हो सकता है। इसके साथ महिला हाट भी बनना चाहिए, जहां वे अपने उत्पाद सीधे बेच सकें।
– रेखा डालमिया
महिलाएं आज मानसिक और शारीरिक दोनों स्तर पर परेशान हैं। विशेषकर बीपी या अन्य बीमारियों से ग्रसित महिलाओं के लिए बाहर निकलना बड़ी चुनौती है। टॉयलेट नहीं होने से वे दवा तक नहीं ले पातीं। प्रशासन को महिला स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए हर बाजार में स्वच्छ महिला शौचालय उपलब्ध कराने चाहिए।
– सरला शर्मा
शहर के विकास में महिलाओं की भागीदारी तभी संभव है जब उन्हें सुरक्षित, सम्मानजनक और सहूलियतभरा वातावरण मिले। पुलिस गश्ती बढ़ाई जाए, खासकर शाम के समय। साथ ही, स्कूल-कॉलेजों में महिला सुरक्षा को लेकर जागरूकता अभियान चलाया जाए, ताकि आने वाली पीढ़ी निर्भीक होकर आगे बढ़ सके।
– गुड़िया अग्रवाल
अगर महिलाएं आत्मनिर्भर बनें तो पूरा समाज बदल सकता है। लेकिन इसके लिए ज़रूरी है कि उन्हें स्वास्थ्य, सुरक्षा और प्रशिक्षण के अवसर मिलें। नगर निगम महिलाओं के लिए अलग से हेल्प डेस्क बनाए जो रोजगार, स्वास्थ्य और शिकायतों को प्राथमिकता दे। महिला सलाहकार समिति की भी जरूरत है।
– सुमित्रा केडिया
हर बाजार में महिला टॉयलेट की अनुपलब्धता बेहद दुखद है। सिर्फ निर्माण नहीं, उसकी नियमित सफाई और निगरानी की भी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। हर महिला की गरिमा का सवाल है ये। नगर निकाय को इस दिशा में ठोस पहल करनी चाहिए और महिलाओं की भागीदारी भी इसमें सुनिश्चित करनी चाहिए।
– द्रौपदी सोनी
कामकाजी महिलाओं के लिए शहरी यातायात और सुरक्षित पब्लिक ट्रांसपोर्ट की सुविधा भी बेहद अहम है। अगर शहर में महिलाओं के लिए विशेष बस या ई-रिक्शा सेवा शुरू की जाए, तो कई महिलाएं निडर होकर काम के लिए बाहर निकल पाएंगी। यह आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़ा कदम होगा।
– शशि महेश्वरी
बाजार या ऑफिस जाते समय टॉयलेट का डर हर महिला की दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है। यह बेहद चिंताजनक है। प्रशासन को चाहिए कि महिला टॉयलेट की संख्या और उनकी गुणवत्ता दोनों पर ध्यान दे। साथ ही, टॉयलेट लोकेशन को मोबाइल ऐप्स में जोड़ना उपयोगी रहेगा।
– संगीता महेश्वरी
शहर की योजनाएं अक्सर महिलाओं की आवश्यकताओं को दरकिनार कर देती हैं। हर वार्ड स्तर पर महिलाओं के लिए बैठकें होनी चाहिए, जहां वे अपनी समस्याएं साझा कर सकें। इससे योजना निर्माण में जमीनी जरूरतों को जगह मिलेगी और महिलाएं खुद को समाज का अहम हिस्सा महसूस करेंगी।
– इंदू महेश्वरी
स्वास्थ्य की उपेक्षा महिलाओं की सबसे बड़ी विडंबना है। बीपी और यूरिन इन्फेक्शन जैसी समस्याएं सिर्फ सुविधा के अभाव से बढ़ रही हैं। प्रशासन को स्वास्थ्य केंद्रों में महिलाओं के लिए अलग ओपीडी और नि:शुल्क मासिक चेकअप सुविधा शुरू करनी चाहिए, ताकि वे समय रहते अपना ख्याल रख सकें।
– सीमा कबड़ा
शहर में महिला सुरक्षा सिर्फ कानून की नहीं, समाज की भी जिम्मेदारी है। अगर हर मोहल्ले में महिला सुरक्षा स्वयंसेवी दल बनाए जाएं और युवा लड़कियों को आत्मरक्षा का प्रशिक्षण दिया जाए, तो माहौल बदलेगा। साथ ही, हर स्कूल-कॉलेज में महिला सुरक्षा प्रकोष्ठ होना चाहिए।
– मंजू जाजोदिया
कई महिलाएं सिर्फ इस वजह से बाहर नहीं निकल पातीं क्योंकि परिवार में उनके फैसलों को सम्मान नहीं मिलता। हमें सामाजिक स्तर पर महिलाओं की आवाज को महत्व देना सीखना होगा। प्रशासन और समाज मिलकर ऐसा माहौल बनाए, जहां महिलाओं की इच्छाएं दबाई न जाएं, सुनी जाएं।
– वीणा देवी
शहर में महिला सशक्तिकरण के लिए सिर्फ स्कीमें नहीं, क्रियान्वयन भी जरूरी है। स्वरोजगार योजनाएं सिर्फ नाम की नहीं, सुलभ और पारदर्शी होनी चाहिए। महिला उद्यमियों को सब्सिडी और आसान बाजार तक पहुंच दिलाई जाए। महिला उद्यम मेला और बाजार सप्ताहिक रूप से आयोजित किए जाने चाहिए।
– सीमा वर्णवाल
नारी सशक्तिकरण सिर्फ आर्थिक नहीं, मानसिक और भावनात्मक भी होना चाहिए। महिलाओं के लिए काउंसलिंग और प्रेरणादायक कार्यशालाएं होनी चाहिए, ताकि वे आत्मविश्वास से भरें। अगर वे मानसिक रूप से मजबूत होंगी, तो किसी भी कठिनाई से खुद लड़ सकेंगी। समाज को इस दिशा में भी निवेश करना होगा।
– इंदु गुप्ता
आज की महिलाएं साहसी हैं, लेकिन उन्हें दिशा और समर्थन की जरूरत है। हर वार्ड में महिला सहायता समूह सक्रिय किए जाएं, जो महिलाओं को उनके अधिकारों, योजनाओं और स्वरोजगार के बारे में जानकारी दें। प्रशासन को उनके साथ नियमित संवाद बनाना चाहिए ताकि नीतियां सिर्फ कागज़ों तक न रहें।
– आशा पाण्डेय
शहर की महिलाएं सिर्फ पीड़िता नहीं, समाधान का हिस्सा बनना चाहती हैं। इसलिए महिलाओं को नगर विकास, बजट और योजना समिति में प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। जब निर्णय प्रक्रिया में महिलाएं शामिल होंगी, तभी सच्चे अर्थों में बदलाव आएगा। ये सिर्फ हक नहीं, समाज की ज़रूरत भी है।
– प्रिया घोष
जिम्मेदार
शहरी महिलाओं की समस्याएं बेहद गंभीर और संवेदनशील हैं। महिला टॉयलेट की कमी को दूर करने के लिए निगम की ओर से विशेष अभियान चलाया जा रहा है। प्रत्येक प्रमुख बाजार में स्वच्छ और सुरक्षित महिला शौचालय का निर्माण प्राथमिकता पर है। साथ ही, महिलाओं के लिए स्वरोजगार योजनाओं की जानकारी पहुंचाने और उनके सुझावों के आधार पर सुविधाएं बढ़ाने की योजना है। उन्होंने कहा कि महिलाओं की सुरक्षा और सुविधा के बिना स्मार्ट सिटी की कल्पना अधूरी है। नगर निगम पूरी गंभीरता से महिलाओं की शिकायतों और सुझावों पर कार्य कर रहा है।
संतोष कुमार, नगर आयुक्त, कटिहार
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