बोले कटिहार, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में चिकित्सकों की हो तैनाती
कटिहार जिले के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र अब गांव वालों की उम्मीदों का प्रतीक नहीं रहे। डॉक्टरों की कमी, दवाओं की अनुपलब्धता और बुनियादी सुविधाओं का अभाव लोगों को मजबूर कर रहा है। मरीज बिना इलाज लौटते...

प्रस्तुति: ओमप्रकाश अंबुज/मोना कश्यप जिस इमारत से गांव वालों ने सेहत की उम्मीद लगाई थी, वही अब उजड़े सपनों का प्रतीक बन चुकी है। खिड़कियां टूटी हैं, दरवाजे गायब, पंखे और दवाएं तक चुराई जा चुकी हैं। डॉक्टर महीनों में कभी दिखते हैं, पानी की बूंद तक नसीब नहीं। बीमार शरीर तो यहां आते हैं, मगर लौटते हैं खाली हाथ-बिना इलाज, बिना भरोसा। ये कहानी सिर्फ एक अस्पताल की नहीं, पूरे गांव की टूटती उम्मीदों की है। अब लोग सवाल नहीं, बस इंसानियत से जवाब मांग रहे हैं-क्या गांवों को इलाज का हक नहीं कटिहार जिले के ग्रामीण इलाकों में जब प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खुले थे, तब लोगों की आंखों में उम्मीद की चमक थी।
लगा था, अब गांव में ही इलाज की सुविधा मिलेगी, महिलाओं को बेहतर देखभाल, बुजुर्गों को सहारा और घायल मरीजों को फौरन इलाज मिलेगा। पर हकीकत आज आंख नम कर देती है। आज इन स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टर नहीं हैं, दवा नहीं है, मशीनें नहीं हैं और न ही इंसानी संवेदना की वो व्यवस्था, जिसकी एक मरीज को सबसे ज्यादा ज़रूरत होती है। सबसे दर्दनाक बात यह है कि इन अस्पतालों की चारदीवारी तक नहीं है, दरवाजे टूटे हुए हैं, पंखे और लाइट तक चोरी हो चुके हैं। अस्पताल के स्ट्रेचर से लेकर टॉयलेट की नल-बेसिन तक गायब हैं। हृदयगंज और हाजीपुर जैसे घनी आबादी वाले इलाके, जहां 50 हजार से ज्यादा लोग रहते हैं, वहां का प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खुद वेंटिलेटर पर है। चिकित्सक बताते हैं कि मैं जब भी अस्पताल आता हूं, डर के साये में रहता हूं। पानी तक की व्यवस्था नहीं है। मरीजों को न दवा मिलती है, न मरहम। कई बार विभाग को पत्र लिखा, पर जवाब सन्नाटा ही रहा। यहां दो बोरिंग हैं, एक की मोटर चोरी हो गई, दूसरे में पानी मुश्किल से निकलता है। बिजली की हालत यह है कि गर्मी में वैक्सीन और दवाएं तक खराब हो जाती हैं। गंभीर मरीजों के लिए कोई इमरजेंसी ट्रीटमेंट नहीं है-सिर्फ नाम के लिए ओपीडी। एक बुजुर्ग की आंखों में आंसू छलक आए और कहा कि हमने सोचा था कि बुढ़ापे में कम से कम बीपी और शुगर की जांच गांव में ही हो जाएगी। लेकिन यहां तो दबाव की पर्ची भी बिना मशीन के बनती है। स्थानीय युवाओं का कहना है कि हादसे अक्सर होते हैं, लेकिन इलाज के लिए शहर भागना पड़ता है। कभी-कभी तो रास्ते में ही जान चली जाती है। क्या गांव वालों की जान की कीमत नहीं है। लोगों की मांग है कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में विशेषज्ञ डॉक्टर तैनात हों, नियमित दवा मिले, मशीनें और जांच की व्यवस्था हो, और सबसे ज़रूरी है कि अस्पताल को चोरों से बचाने के लिए सुरक्षा दी जाए। अब गांव को नहीं सिर्फ अस्पताल चाहिए, बल्कि भरोसे की एक नई सांस चाहिए। इलाज का हक, हर गांव के हर इंसान को मिलना चाहिए। इनकी भी सुनिए सरकारी अस्पताल से हमें उम्मीद थी कि इलाज पास में ही मिलेगा, लेकिन यहां डॉक्टर न समय पर आते हैं, न दवा मिलती है। अस्पताल की हालत देखकर दुख होता है। एक मरीज के लिए जो जरूरी सुविधा होनी चाहिए, वो सब यहां गायब है। – हेमंत आनंद हमारे इलाके में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नाम का है, काम का नहीं। न पानी है, न टॉयलेट, और न कोई मशीन। बीमार पड़ो तो प्राइवेट क्लिनिक ही सहारा है। गरीब लोग कहां जाएं? ये सवाल हर रोज मन में उठता है। – मुकेश कुमार मोनी अस्पताल में न बिजली है, न पंखा। गर्मी में मरीज बेहाल रहते हैं। महिलाएं विशेष रूप से परेशान हैं, क्योंकि न अलग शौचालय है और न कोई निजता की व्यवस्था। ये स्वास्थ्य केंद्र नहीं, मज़ाक बन चुका है। – अजय विश्वाश एक बार चोट लगने पर अस्पताल गया था, पट्टी करने वाला तक नहीं था। कोई सिस्टम नहीं, कोई उपकरण नहीं। हर चीज बस कागजों में ही है। क्या सिर्फ नाम बदल देने से विकास हो जाएगा? – कुंदन स्वास्थ्य केंद्र के चारों ओर असुरक्षा का माहौल है। चोर सब कुछ उठा ले गए। मरीज डरते हैं आकर। सरकार को चाहिए कि यहां गार्ड लगाए, चारदीवारी बनाए और मरीजों को सुरक्षित माहौल दे। – नयनशी कुमारी डॉक्टर आते हैं लेकिन हाथ खाली है। बिना जांच के दवा लिख देते हैं। बिना ब्लड प्रेशर चेक किए रिपोर्ट बना दी जाती है। ऐसा इलाज खतरनाक है। गरीबों की सेहत से खिलवाड़ नहीं होना चाहिए। – स्वप्नश्री यहां बुजुर्गों के लिए कोई सुविधा नहीं है। डायबिटीज की जांच, बीपी मॉनिटर, शुगर मशीन-कुछ भी नहीं। उम्रदराज लोग कैसे इलाज कराएं? सरकार को अलग विंग बनाना चाहिए वरिष्ठ नागरिकों के लिए। – कोमल कुमारी हमारे गांव में इतनी आबादी है, लेकिन एक डॉक्टर पर सब निर्भर हैं। घंटों लाइन में लगने के बाद भी इलाज नहीं मिलता। लोगों को मजबूरी में झोलाछाप डॉक्टर के पास जाना पड़ता है। – पिंकी कुमारी महिलाओं को यहां बहुत मुश्किल होती है। प्रसव की स्थिति में या महिलाओं से जुड़े मामलों में कोई सुविधा नहीं है। महिला डॉक्टर तो कभी-कभी ही आती हैं। जननी सुरक्षा योजना का लाभ कहां है? – अपर्णा सिंहा बच्चों के टीकाकरण की व्यवस्था खराब है। वैक्सीन समय पर नहीं मिलती, और बिजली न रहने से दवा खराब हो जाती है। बच्चों की सेहत से ऐसा खिलवाड़ नहीं होना चाहिए। – प्याली घोष मेरे घर के पास अस्पताल है, लेकिन इलाज के लिए शहर जाना पड़ता है। ये कितना विडंबनापूर्ण है। अस्पताल का भवन है पर सिस्टम नहीं है। ये जिम्मेदारी किसकी है? – पूनम सिंहा अस्पताल में पानी नहीं है। मरीजों और डॉक्टरों को भी पीने का पानी बाहर से लाना पड़ता है। गर्मी में हालत और भी खराब हो जाती है। यह तो बुनियादी जरूरत है। – दीप्ति मंडल यहां एक्स-रे मशीन नहीं है, अल्ट्रासाउंड नहीं है, खून जांच की कोई व्यवस्था नहीं। इलाज बिना जांच के कैसे संभव है? ये तो आंख मूंद कर इलाज करने जैसा है। – मीनू कुमारी दवाएं नाममात्र की होती हैं। डॉक्टर के लिखे अनुसार दवा अस्पताल से नहीं मिलती। बाहर से खरीदनी पड़ती है, जो गरीबों के लिए भारी पड़ता है। यह मुफ्त इलाज की घोषणा का मजाक है। – पिंकी घोष स्वास्थ्य केंद्र में रात में कोई नहीं रहता। मरीज रात को आएं तो दरवाजा बंद मिलता है। इमरजेंसी का कोई इंतजाम नहीं। ये व्यवस्था ग्रामीणों की जरूरतों के हिसाब से नहीं बनी है। – पिंकी पंडित हर तरफ गंदगी रहती है। अस्पताल की सफाई नहीं होती। संक्रमण का खतरा हमेशा बना रहता है। स्वच्छता अभियान के पोस्टर जरूर लगे हैं, लेकिन ज़मीन पर कुछ भी नहीं है। – सोनी वर्मा बुजुर्गों के लिए अलग कतार तक नहीं होती। घंटों इंतजार करना पड़ता है। सरकार को चाहिए कि वृद्ध लोगों के लिए अलग से व्यवस्था बनाए और सम्मानपूर्वक इलाज का अधिकार दे। – दिव्या भारती कई बार देखा है कि अस्पताल में जरूरी उपकरण आने से पहले ही चोरी हो जाते हैं। ऐसा लगता है जैसे प्रशासन को फर्क ही नहीं पड़ता। यहां जवाबदेही तय होनी चाहिए। – शालिनी कुमारी दवा लेने गई थी, लेकिन कहा गया कि स्टॉक नहीं है। हर बार यही जवाब मिलता है। आखिर दवाएं कब आती हैं, और जाती कहां हैं? इसकी जांच होनी चाहिए। – रूपमणि देवी हम गांव में रहते हैं तो क्या हमें बेहतर इलाज का हक नहीं? शहरों की तरह सुविधाएं यहां भी होनी चाहिए। स्वास्थ्य के नाम पर ये भेदभाव कब तक चलेगा? – प्रीति सिंह बोले जिम्मेदार प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति सुधारने के लिए विभाग लगातार प्रयासरत है। डॉक्टरों की तैनाती, उपकरणों की उपलब्धता और दवा की आपूर्ति को लेकर जिलास्तरीय समीक्षा की जा रही है। जहां-जहां लापरवाही या अनियमितता सामने आई है, वहां संबंधित कर्मियों से जवाब-तलब किया जा रहा है। बीपी या वजन जैसी जांचों को अंदाजे से भरना गंभीर त्रुटि है-ऐसे मामलों में संबंधित डॉक्टर पर विभागीय कार्रवाई की जाएगी। सुरक्षा की दृष्टि से भवनों की मरम्मत और चौकीदार की तैनाती को भी प्राथमिकता में लिया गया है। स्वास्थ्य सेवा को मजबूत करना हमारी जिम्मेदारी है और इसमें कोई कोताही नहीं होगी। - डॉ जितेन्द्र नाथ सिंह, सिविल सर्जन, कटिहार सुझाव 1. विशेषज्ञ डॉक्टरों की तैनाती की जाए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में नियमित रूप से चिकित्सक, विशेषकर महिला एवं विशेषज्ञ डॉक्टर की उपस्थिति सुनिश्चित की जाए। 2. चोरी रोकने को सुरक्षा व्यवस्था हो अस्पताल परिसर में चौकीदार की नियुक्ति और चारदीवारी निर्माण कराया जाए ताकि चोरी की घटनाएं रोकी जा सकें। 3. स्वच्छ पेयजल और शौचालय की व्यवस्था हो अस्पताल में साफ पानी के लिए मोटर दोबारा लगाया जाए और महिला-पुरुष के लिए अलग स्वच्छ शौचालय की व्यवस्था हो। 4. बिजली और बैकअप की सुविधा दी जाए वैक्सीन, दवा और अन्य उपकरणों के रख-रखाव हेतु अस्पताल को नियमित बिजली और इन्वर्टर बैकअप से जोड़ा जाए। 5. फर्स्ट एड से आगे की सुविधा सुनिश्चित की जाए एक्स-रे, ब्लड टेस्ट, शुगर टेस्ट, अल्ट्रासाउंड जैसी मूलभूत जांच की सुविधा और दवाओं का स्थायी स्टॉक उपलब्ध हो। शिकायत 1. डॉक्टर कभी समय पर नहीं आते महीने में 2-3 बार ही डॉक्टर की उपस्थिति रहती है, जिससे मरीजों को निजी क्लिनिक का रुख करना पड़ता है। 2. पंखा, लाइट, स्ट्रेचर तक चोरी हो गया अस्पताल में बुनियादी सामान तक नहीं बचा है, यहां तक कि दरवाजे-खिड़की और शौचालय के नल भी गायब हैं। 3. बीपी, शुगर जैसे टेस्ट बिना मशीन के किए जाते हैं अनुमान से पर्ची पर बीपी और वजन लिखा जाता है, जिससे गलत इलाज की आशंका रहती है। 4. बिजली न होने से दवाएं खराब हो जाती हैं गर्मी में वैक्सीन और जरूरी दवाएं फ्रिज में नहीं रह पाने के कारण खराब हो जाती हैं। 5. टॉयलेट और पानी की हालत बेहद खराब है मरीजों और स्टाफ के लिए पीने का पानी नहीं है, और टॉयलेट गंदे व टूटे हुए हैं-महिलाओं को विशेष परेशानी होती है।
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