Morarari Bapu s Teachings on Detachment from Praise and Criticism during Ram Katha निंदा और प्रशंसा दोनों को समझें एक समान-मोरारी बापू, Biharsharif Hindi News - Hindustan
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निंदा और प्रशंसा दोनों को समझें एक समान-मोरारी बापू

रामकथा वाचन के 7वें दिन दी वासना से दूर रहने की सीख निंदा और प्रशंसा दोनों को समझें एक समान-मोरारी बापू निंदा और प्रशंसा दोनों को समझें एक समान-मोरारी बापू

Newswrap हिन्दुस्तान, बिहारशरीफFri, 30 May 2025 09:35 PM
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निंदा और प्रशंसा दोनों को समझें एक समान-मोरारी बापू

रामकथा वाचन के 7वें दिन दी वासना से दूर रहने की सीख अनुनायियों से की निंदा और स्तुति से बाहर निकलने की अपील फोटो: बापू01-राजगीर के कन्वेंशन सेंटर में शुक्रवार को कथा वाचन करते मुरारी बापू। बापू02-राजगीर के कन्वेंशन सेंटर में शुक्रवार को रामकथा का श्रवण करते श्रद्धालु। राजगीर, निज संवाददाता। अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन सेंटर में रामकथा वाचन के 7वें दिन विश्वप्रसिद्ध कथावाचक मोरारी बापू ने अपने अनुनायियों से निंदा और स्तुति से बाहर निकलने की अपील की। श्रद्धालुओं को वासना से दूर रहने की सीख देते हुए कहा कि सत्संग से प्राप्त विवेक से आलोचना में छिपे सच और प्रशंसा में छिपे झूठ को समझा जा सकता है।

आध्यात्म की यात्रा करनी है तो धीरज होना चाहिए। एक क्षण में भगवान की कृपा के द्वार खुल जाएं, ये और बात है। राम को भजते-भजते आलोचना और प्रशंसा से बाहर निकल जाएं। यही कोशिश करें कि दोनों को एक समान समझें या इससे बाहर निकल जाएं। निंदा से प्रभावित होंगे तो प्रशंसा से भी प्रभावित जाएंगे। प्रशंसा से जुड़ेंगे तो निंदा से भी जुड़ जाएंगे। श्रोता-वक्ता, गुरु-शिष्य युगल जोड़ी है। राम नाम में दो अक्षर हैं। यह भी युगल है। इसकी बड़ी महिमा है। श्रोता-वक्ता ज्ञान निधि है। ये जोड़ी उनकी और श्रोताओं की है। युगल भाव व्यवहार में आ जाए तो दाम्पत्य जीवन भी सुंदर हो जाएगा। रामकथा के युद्ध कांड में जोड़ी की महिमा: उन्होंने कहा कि रामकथा के युद्ध कांड में जोड़ी की महिमा है। मेघनाद, हनुमानजी या जामवंत से युद्ध नहीं करते। मेघनाथ, लक्ष्मण से युद्ध करते हैं। उस समय युद्ध में भी ईमानदारी थी। रामायण के युद्ध में भी बुद्धत्व छिपा है। युद्ध की कथा रम्य होती है, पर युद्ध भीषण होता है। तुलसीदास से युद्धवादी नहीं है। हिंसा के पक्षधर भी नहीं हैं। फिर भी उन्होंने युद्ध का वर्णन किया है। रामचरित मानस, रामकथा का संशोधित रूप है। माता सीता ने रावण को सुनायी थी रामकथा: बापू ने बाल्मिकी और तुलसी के रामायण की तुलना करते हुए कहा कि बाल्मिकी रामायण के अनुसार रावण जब सीताजी का अपहरण करने जाता है तब माता सीता उसे रामकथा सुनाती है। इसी वजह से उसे निर्वाण प्राप्त होता है। उन्होंने श्रद्धालुओं से कहा कि वे 66 साल के हैं। कुछ लिये बगैर लोगों की सेवा करते हैं, इसका कारण है कि वे लोगों से प्रेम करते हैं। जगत के कल्याण के लिए विश्वामित्रजी यज्ञ करते हैं। इसमें मारिच और सुबाहु विघ्न डालते हैं। विश्वामित्रजी दशरथ से अनुज सहित राम की मांग करते हैं। अनुज के रूप में रामजी के साथ लक्ष्मण जाते हैं। ताड़का का निर्वाण कर राम ने अपने अवतार का कार्य आरंभ किया। सुबाहु का वध किया और मारीच को समुद्र में फेंक दिया। बापू, विश्वामित्र के साथ राम-लक्ष्मण के जनकपुर जाने के प्रसंग के साथ ही कथा का समापन करते हैं।

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