रामकथा आधारित चौसागढ़ मृण्मूर्तियों से जुड़ेगा नया अध्याय
बक्सर के सीताराम संग्रहालय में आयोजित संगोष्ठी में 2011 से 2014 के बीच पुरातत्व निदेशालय द्वारा किए गए उत्खनन के दौरान मिली रामायण आधारित दुर्लभ मृण्मूर्तियों का लोकार्पण किया गया। पूर्व सांसद...

युवा के लिए ---------- संगोष्ठी 2011 से 2014 तक पुरातत्व निदेशालय ने कराया था पुरातात्विक उत्खनन 04 से 5 हजार पूर्व सभ्यता का प्रमाण है मिलीं रामायण आधारित मृण्मूर्तियां फोटो संख्या-12, कैप्सन- रविवार को सीताराम संग्रहालय में नगर परिषद चेयरमैन कमरुन निशा व अन्य। बक्सर, निज संवाददाता। कला संस्कृति एवं युवा विभाग द्वारा उत्खनित दुर्लभ मृण्मूर्तियों से भारतीय कला इतिहास का नया अध्याय जुड़ सकेगा। ये बातें सीताराम उपाध्याय संग्रहालय में चौसागढ़ मृण्मूर्ति दीर्घा के लोकार्पण समारोह के अवसर पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करते हुए राज्यसभा के पूर्व सदस्य नागेन्द्रनाथ ओझा ने कही। श्री ओझा के अनुसार प्राचीन मूर्तियां बनाने वाले कुशल शिल्पियों के जीवन शैली उनके रहन-सहन एवं कार्यकलापों पर भी अनुसंधान होना चाहिए।
रामकथा पर आधारित चौसागढ़ मृण्मूर्ति दीर्घा का शुभारंभ पूर्व सांसद नागेन्द्रनाथ ओझा, नगर परिषद की चेयरपर्सन कमरुन निशा एवं डुमरांव राज के मानविजय सिंह के हाथों संयुक्त रूप से संपन्न हुआ। संग्रहालयाध्यक्ष डॉ. शिव कुमार मिश्र ने अतिथियों का स्वागत मिथिला पेंटिंग से युक्त अंगवस्त्र एवं नालंदा विश्वविद्यालय के मुहर की प्रतिकृति से बनी स्मृति चिन्ह प्रदान कर किया गया। चौसागढ़ की मृण्मूर्तियों के बारे डॉ. मिश्र ने बताया कि 2011 से 2014 तक कला संस्कृति एवं युवा विभाग के पुरातत्व निदेशालय द्वारा संग्रहालय बिहार के निदेशक डॉ. उमेश चन्द्र द्विवेदी के निर्देशन में पुरातात्विक उत्खनन कराया गया था। इस दौरान एक वैष्णव मंदिर का भग्नावशेष मिला था। यह मंदिर भी टेराकोटा से निर्मित था। इनके आधार पर कहा जा सकता है कि यहां पर चार से पांच हजार वर्ष पुरानी सभ्यता स्थापित थी। डॉ. मिश्र ने बताया कि चौसा से पूर्व में भी रामायण पर आधारित मृण्मूर्ति मिली थीं। जिसमें राम, लक्ष्मण, सुग्रीव एवं हनुमान द्वारा सीता को खोजते हुए दिखाया गया था। यह मूर्ति बिहार संग्रहालय में संगृहित है। नप चेयरमैन ने बक्सर की दुर्लभ एवं समृद्ध विरासत को बचाने के लिए संग्रहालय प्रशासन को धन्यवाद दिया। साथ ही, अपने स्तर से सहयोग का आश्वासन दिया। मानविजय सिंह, पूर्व अभिलेख पदाधिकारी डॉ. जवाहर लाल वर्मा, रजनीश कुमार सिंह, साहित्यकार लक्ष्मीकांत मुकुल, डॉ. विजय शंकर मिश्र, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी के शोध छात्र प्रीतम कुमार, चंदन कुमार एवं कमलेश कुमार ने भी संगोष्ठी को संबोधित किया।
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