बिहार में मॉनसून से पहले ही डराने लगी ठनका से मौतें, जानिए क्यों होता है वज्रपात
बिहार में इस महीने अब तक वज्रपात से 43 लोगों की मौत हो चुकी है। अभी मॉनसून सीजन शुरू भी नहीं हुआ है और आकाशीय बिजली डरा रही है। हर साल मॉनसून के दौरान ठनका गिरने का खतरा ज्यादा रहता है।

Lightning Strike in Bihar: बिहार में मॉनसून सीजन से पहले ही वज्रपात डराने लगा है। आकाशीय बिजली गिरने से पिछले साल अप्रैल महीने में दो लोगों की मौत हुई थी। वहीं, इस साल अप्रैल के पहले पखवाड़े में ही ठनका गिरने से मौत का आंकड़ा 43 पहुंच गया है। वज्रपात के मामले में बिहार अधिक संवेदनशील राज्य है। यहां हर साल सैकड़ों लोगों की जान चली जाती है। आंकड़ों पर नजर डालें तो बीते 9 सालों में अब तक 2371 लोग आकाशीय बिजली की चपेट में आने की वजह से अपनी जान गंवा चुके हैं। आइए जानते हैं कि वज्रपात क्यों होता है।
बादलों में पानी के छोटे-छोटे कण होते हैं, जो वायु की रगड़ की वजह से आवेशित हो जाते हैं। कुछ बादलों पर पॉजिटिव चार्ज हो जाता है, तो कुछ पर निगेटिव। आसमान में जब दोनों तरह के बादल एक-दूसरे से टकराते हैं तो तेज आवाज के साथ लाखों वोल्ट की बिजली पैदा होती है। कभी-कभी इस तरह उत्पन्न होने वाली बिजली इतनी अधिक होती है कि धरती तक पहुंच जाती है। इस घटना को ही बिजली गिरना या वज्रपात कहा जाता है। बिहार में इसे ठनका गिरना भी कहते हैं।
इस बार उत्तर बिहार में ज्यादा मौतें, बदल रहा ट्रेंड
पिछले दो दिनों से वज्रपात से उत्तर बिहार में ज्यादा मौतें हुई हैं। यह पहले के ट्रेंड से अलग है। वर्ष 2020 में आपदा प्रबंधन विभाग ने अध्ययन में पाया था कि वज्रपात की घटनाएं दक्षिण बिहार के जिलों में ज्यादा होती हैं। इस प्राकृतिक आपदा के चलते राज्य में अब तक सबसे ज्यादा मौतें गया और औरंगाबाद जिले में हुई हैं। इसके अलावा जमुई, बांका, नवादा, पूर्वी चंपारण, छपरा, कटिहार, रोहतास, भागलपुर और बक्सर आदि जिलों में भी घटनाएं बढ़ी हैं।
हालांकि, इस बार बुधवार को बेगूसराय और दरभंगा में 5-5, मधुबनी में 3, समस्तीपुर-सहरसा और औरंगाबाद में दो-दो, गया और मधेपुरा में एक-एक मौत हुई है। वहीं गुरुवार को 23 मौतें हुईं। इससे पहले के आंकड़ों को देखें तो 2016 में 114 लोगों की मौत वज्रपात की चपेट में आने से हो गई थी। 2017 में 180, 2018 में 139, 2019 में 253, 2020 में 459 और 2021 में 280 लोगों की मौत हुई।
वज्रपात की घटनाएं अप्रैल से शुरू हो जाती हैं। अप्रैल में ज्यादा गर्मी पड़ने पर वज्रपात होता है। ज्यादा घटनाएं मॉनसून के दौरान दर्ज की गई हैं। दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर प्रधान पार्थसारथी ने कहा कि ज्यादा गर्मी पड़ने पर दोपहर बाद ऐसी घटनाएं होती हैं।
उन्होंने कहा कि बिहार वज्रपात के लिहाज से संवेदनशील है। अप्रैल-मई में ज्यादा तापमान होने पर घटनाएं बढ़ जाती हैं। क्यूलोनिंबस बादल के चलते दोपहर के बाद अक्सर वज्रपात या ओला गिरने की घटनाएं ज्यादा होती हैं।
खेतों में काम करने वाले ज्यादा हो रहे शिकार
आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अध्ययन में पता चला है कि राज्य के गांवों में वज्रपात से ज्यादा मौतें हो रही हैं। इनमें वे लोग अधिक संख्या में थे जो खेतों में काम कर रहे थे। यह देखा गया है कि जहां पानी जमा हुआ है या तालाब आदि है, वहां बिजली अधिक गिरती है। खेतों में पेड़ के आसपास खतरा अधिक रहता है। इसलिए ऐसे मौसम में खेतों में जाने से परहेज करना चाहिए।