भारत-थाईलैंड संबंधों को सशक्त बनाने में बौद्ध दर्शन की भूमिका अहम: जयंत मिश्रा
भारत और थाईलैंड के बीच ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों पर आधारित दो दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन मगध यूनिवर्सिटी में किया गया। इसमें 12 से अधिक विद्वानों ने भाग लिया और बौद्ध संस्कृति के माध्यम से...

भारत और थाईलैंड के ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक संबंध बेहद गहरे हैं और इस संगोष्ठी में बिम्सटेक व आसियान देशों के प्रतिनिधियों की सक्रिय भागीदारी से इसका महत्व और भी बढ़ गया है। उक्त बातें मगध यूनिवर्सिटी के राधाकृष्णन सभागार में प्राचीन भारतीय एवं एशियाई अध्ययन विभाग द्वारा “मगध-थाईलैंड: साझा सामाजिक-सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, धार्मिक, भाषिक एवं कलात्मक स्वरूप” विषय पर आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी के अंतिम दिन भारत सरकार के पूर्व वित्तीय सलाहकार जयंत मिश्रा ने कही। उन्होंने कहा कि बौद्ध संस्कृति के माध्यम से क्षेत्रीय सहयोग को नई दिशा मिल सकती है। वर्ल्ड बुद्धिस्ट कल्चरल फाउंडेशन के अध्यक्ष भंते दीपानकर सुमेधो ने कहा कि बौद्ध विचारधारा को केवल ग्रंथों तक सीमित न रखकर कला और पुरातत्व के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाने की आवश्यकता है।
उन्होंने जोर देते हुए कहा कि इस दिशा में वैश्विक मंचों पर समन्वित प्रयास किए जाने चाहिए। समापन अकादमिक व्याख्यान दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय, गया के प्रो. (डॉ.) आनंद सिंह द्वारा प्रस्तुत किया गया। उन्होंने भारत और थाईलैंड के ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक संबंधों की गहराई से विवेचना की। उन्होंने थेरवाद बौद्ध धर्म में मगध की केंद्रीय भूमिका को उजागर किया। 12 से अधिक विद्वानों ने भाग इस वैश्विक संगोष्ठी में देश-विदेश के 12 से अधिक विद्वानों ने भाग लिया। डॉ. बच्चन कुमार (आईजीएनसीए, नई दिल्ली), डॉ. कराबी मित्रा (कोलकाता विश्वविद्यालय), श्री शंकर शर्मा, डॉ. कुणाल किशोर, डॉ. जनमेजय सिंह और श्री लोलिम्ब राज मिश्रा सहित कई वक्ताओं ने शोध पत्र प्रस्तुत किए। वक्ताओं ने भारतीय प्रभाव, सांस्कृतिक संपर्क, वास्तुशिल्प समानताओं और धार्मिक प्रतीकों की ऐतिहासिक निरंतरता पर चर्चा की। समापन समारोह की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो. उपेंद्र कुमार ने की। उन्होंने कहा कि इस तरह के उच्चस्तरीय कार्यक्रम विश्वविद्यालय की शैक्षणिक गुणवत्ता का प्रतीक हैं। जबकि संगोष्ठी के समन्वयक डॉ. विनोद कुमार यादवेंदु ने सभी प्रतिभागियों को धन्यवाद ज्ञापित किया। वियतनाम, थाईलैंड, कंबोडिया और इंडोनेशिया से आए विद्वानों ने इस पहल की सराहना करते हुए भविष्य में भी ऐसे कार्यक्रमों की आवश्यकता जताई। कार्यक्रम में विभागीय शिक्षकों व विद्यार्थियों की सक्रिय भूमिका रही। संचालन डॉ. मीनाक्षी और डॉ. दिव्या मिश्रा ने किया।
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