Devotees Gather for Grand Evening Aarti at Dhama Kali Temple दक्षिणेश्वर माता काली मंदिर धमना में संध्या आरती में खूब जुटे श्रद्धालु, Jamui Hindi News - Hindustan
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दक्षिणेश्वर माता काली मंदिर धमना में संध्या आरती में खूब जुटे श्रद्धालु

झाझा, नगर संवाददाता श्री श्री 1008 दक्षिणेश्वर माता काली मंदिर धमना में संध्या आरती

Newswrap हिन्दुस्तान, जमुईMon, 9 June 2025 04:11 AM
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    दक्षिणेश्वर माता काली मंदिर धमना में संध्या आरती में खूब जुटे श्रद्धालु

झाझा, नगर संवाददाता श्री श्री 1008 दक्षिणेश्वर माता काली मंदिर धमना में संध्या आरती में बड़ी संख्या में श्रद्धालु इकठ्ठा हुए। शनिवार देर शाम एवं रविवार की देर शाम 7:00 से रात्रि 8:30 बजे तक वाराणसी की गंगा आरती की तर्ज पर मां काली की भव्य संध्या आरती का आयोजन पंचायत के मुखिया प्रतीक शर्मा के सौजन्य से किया गया। इस आध्यात्मिक छटा से सभी भक्त जन मंत्र मुग्ध हो रहे हैं। साथ ही पूरे सप्ताह तक मेला का आयोजन तो होता ही है, इसके अलावा तरह-तरह के झूले आदि श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं। यहां के ग्रामीणों की इच्छा है कि धमना मां काली मंदिर का निबंधन बिहार के धार्मिक न्यास में होना चाहिए ताकि बिहार सरकार से सहायता राशि प्राप्त कर इसका बहुआयामी विकास किया जा सके तथा दूरदर्शन आने वाले भक्तजनों को समुचित व्यवस्था की जा सके।

पुरुष स्त्री बालक बलिका वृद्ध सभी उम्र वर्ग के लोग पूरे श्रद्धा भाव से संध्या आरती में इकट्ठा हुए। यहां के ग्रामीण एवं झारखंड सरकार से हाल ही में सेवानिवृत हुए अवर सचिव स्तर के अधिकारी विनय कुमार बरनवाल बतलाते हैं कि प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष मंगलवार को मां की पूजा में सदियों हजार भक्तों की भीड़ जमा हो जाती है और मां का दरबार सज धज कर स्वर्ग की छटा बिखेरने लगता है। प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में सोमवार को कलश स्थापना होती है और 9 दिनों के बाद मंगलवार को काली मंदिर में मां दक्षिणेश्वरी की पूजा होती है। धमना काली मां का दरबार, महिमा अपरंपार धमना काली मां के दरबार की महिमा अपरंपार है। यहां कष्टि करने वालों की भी अच्छी खासी संख्या देखी गई।ऐसे अनेकों पुरुष महिला श्रद्धालु भक्तों ने बताया कि कोई पूरे 9 दिन से फलाहार करते हैं तो कोई 5 दिन कोई 7 दिन कोई 3 दिन। जो भी कष्टि व्रत करने वाले हैं वे सभी मंदिर परिसर में ही अपने पूरे दिन और रात बिताते हैं और माता की भक्ति में लीन रहते हैं। मंदिर के प्रधान पुजारी जय नारायण पंडित कहते हैं कि इन पूरे नौ दिनों तक मांस मदिरा की कौन पर है गांव में लोग प्याज लहसुन तक से भी परहेज करते हैं। 1684 ईस्वी से हो रही पूजा में डेढ़ से दो हजार पशु बलि चढ़ाए जाने की परंपरा मंगलवार को नौवें दिन देर रात समाप्त होने वाली पूजा में यहां लगभग डेढ़ से दो हजार पशु बलि चढ़ाए जाने की परंपरा चली आ रही है। धमना के वयोवृद्ध ग्रामीणों के अलावे वहां के पुजारियों का कहना था की दक्षिणेश्वर काली के रूप में विख्यात माता के मंदिर में बीते 1684 ईस्वी से पूजा होती चली आ रही है। बताते हैं कि सुखी जीवन व्यापार के अलावे संतान नौकरी समेत अन्य मनोकामनाएं पूरी करने हेतु श्रद्धालु माता के मंदिर पधारते हैं और माता के चरणों में अपनी याचना करते हैं। कहा जाता है कि जो भी आकर सच्चे मन से मन्नतें मांगते हैं उनकी मनोकामना मां काली अवश्य पूरी करती हैं। इस मंदिर के वार्षिक पूजन उत्सव की अपनी एक अलग ही पहचान है। ग्रामीणों वरिष्ठ नागरिक हरिप्रसाद मोदी धमना राज घराने के पप्पू जी पंचायत के मुखिया प्रतीक शर्मा समेत अन्य की मंदिर के प्रति भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता। युवा मिथिलेश कुमार केंद्रीय उत्पाद शुल्क विभाग के निरीक्षक राजीव रंजन बरनवाल कस्टम विभाग के अधीक्षक प्रमोद कुमार राजेंद्र रावत आदि बतलाते हैं कि ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में अमावस्या के प्रथम सोमवार को कलश स्थापना के बाद ही पूजा शुरू हो जाती है जो 9 दिनों तक जारी रहती है। दसियों हजार लोग दर्शन लाभ प्राप्त करने आते हैं। पूजा के 9 दिन पूरा होने पर मंगलवार को मां काली को पाठा अर्थात बकरे की बलि देने के बाद हवन कर माँ को खीर पूरी पकवान का भोग लगाकर पूजा संपन्न होती है। बताया जाता है कि यहां पूजा प्रारंभ होने के बाद श्रद्धालु भक्तों के अलावे पूरे गांव एवं आसपास के क्षेत्रों में खाने में लहसुन प्याज तक का प्रयोग बंद हो जाता है। मंगल बुधवार की मध्य रात्रि 12:00 बजे मां काली की पूजा कर बकरे की बलि का कार्यक्त्रम शुरू होता जो प्रात: काल तक चलता रहता है। इसके बाद हवन कार्यक्त्रम के बाद माँ को प्रसाद का भोग लगाया जाता है। लोगों का कहना है कि जब पूजा का कार्यक्त्रम मंदिर में शुरू हो जाता है तो इस गांव के निवासी अपने घरों में मीठा व्यंजन पूरी खीर पकवान मांसाहारी भोजन सहित मद्यपान पर 9 दिनों तक पूर्ण रूप से पाबंदी लगाए रहते हैं। पूजा के अंतिम दिन गांव में रिश्तेदार सहित अतिथियों का भी काफी संख्या में आवागमन होता है। लोग काफी श्रद्धा से मंदिर आते हैं और प्रसाद ग्रहण कर अपने भाग्य को सराहते जाते हैं। श्रद्धा का आलम यह है कि पुरुष स्त्री बच्चे बच्चियां पूरे 9 दिन तक 2:00 बजे रात को ही स्नान कर मंदिर में पहुंच कर मंदिर के आंगन एवं मंदिर सहित पूरे मंदिर परिसर को साफ करते हैं। कष्टी करने वाले पुरुष एवं स्त्री कोई 5 दिनों का तो कोई 9 दिनों का उपवास व फलाहार रखते हैं। उपवास के ये दिन श्रद्धालु माता के मंदिर में ठहर कर बीताते हैं। मंदिर में पूजा के अंतिम दिन लगभग 2 क्विंटल धूप सामग्री से हवन किया जाता है। मंदिर की महत्ता का इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां पूजा प्रारंभ होने के बाद ही क्षेत्र के काली मंदिरों में वार्षिक पूजन उत्सव प्रारंभ होता है।

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