संविदाकर्मियों की सेवा नियमित करने के एकलपीठ का आदेश रद्द
झारखंड हाईकोर्ट की खंडपीठ ने एकलपीठ का आदेश रद्द किया, झारखंड वन विकास निगम को सेवा नियमित करने को आदेश दिया था, एकलपीठ के आदेश को वन विकास निगम ने खं

रांची। विशेष संवाददाता झारखंड हाईकोर्ट की खंडपीठ ने एकलपीठ के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें संविदा पर कार्यरत कर्मियों की सेवा नियमित करने का निर्देश दिया गया था। चीफ जस्टिस एमएस रामचंद्र राव की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने गुरुवार को झारखंड राज्य वन विकास निगम की अपील याचिका को मंजूर कर लिया। इस मामले के प्रतिवादियों की नियुक्ति बिहार राज्य वन विकास निगम के अंतर्गत वन उत्पाद ओवरसीयर के रूप में एकीकृत बिहार के समय संविदा के आधार पर वर्ष 1987-88 में केवल तीन माह के लिए हुई थी। लेकिन ये कर्मी कुछ कारणों से वर्ष 2003 तक अपनी सेवा देते रहे थे।
झारखंड गठन के बाद बिहार राज्य वन विकास निगम के प्रबंध निदेशक ने झारखंड वन विकास निगम को एक पत्र भेजा गया था। जिसमें ऐसे लोगों की सूची दी गई थी, जो तीन माह के लिए नियुक्त हुए थे, लेकिन किसी कारण से वर्ष 2003 तक कार्य कर रहे थे। इन्हें नौकरी से हटाने को कहा गया था। इसके बाद उनकी सेवा समाप्त कर दी गई। सेवा समाप्त किए जाने को कर्मियों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। लेकिन हाईकोर्ट में उनकी रिट याचिका एवं अपील दोनों खारिज हो गई थी। इसके बाद उनकी ओर से सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल की गई, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से भी उनकी एसएलपी खारिज हो गई। हालांकि कुछ अन्य लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत रिट पिटीशन दाखिल किया था, जिसे बाद में वापस ले लिया। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका वापस लेने की अनुमति देते हुए इन्हें हाईकोर्ट जाने की छूट प्रदान की थी। इसके बाद वर्ष 2014 में पुनः हटाए गए कर्मियों की ओर से हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई। हाईकोर्ट की एकलपीठ ने झारखंड की नियमावली 2015 के तहत उनकी नियमितीकरण पर विचार करने का निर्देश सरकार को दिया, लेकिन झारखंड वन विकास निगम ने इन कर्मियों को नियमित नहीं किया। जिस पर कर्मियों ने अपने नियमितीकरण को लेकर हाईकोर्ट की एकल पीठ में फिर से चुनौती दी। एकल पीठ ने वर्ष 2024 में उनके पक्ष में फैसला सुनते हुए नियमित करने का आदेश दिया, जिसे झारखंड राज्य वन विकास निगम ने हाईकोर्ट में अपील दाखिल कर चुनौती दी थी।
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