पहाड़ी व ग्रामीण इलाके में चिकन पॉक्स से बच्चें हो रहे आक्रांत
पहाड़ी व ग्रामीण इलाके में चिकन पॉक्स से बच्चें हो रहे आक्रांत

चानन, निज संवाददाता। चिकन पॉक्स यानी छोटी माता का असर पहाड़ी इलाके के साथ ही ग्रामीण इलाके में भी हो रहे है। इससे हर उम्र के लोग आक्रांत हो रहे है, बावजूद लोग अस्पताल नहीं पहुंच रहे है। विशेषज्ञों की मानें तो चिकन पॉक्स बीमारी को लोग देवी माता का प्रकोप मनाते हैं और मरीज को अस्पताल ना लाकर घर में रखकर पूजा-पाठ करते है। चिकन पॉक्स की एंटी वायरल दवा एसाइक्लोबीर बाजार में उपलब्ध है। दवा का प्रयोग के बाद भी चिकन पॉक्स में बाहरी तौर पर तो कोई फायदा नहीं दिखता है, लेकिन शरीर में निकलने वाले दानों में कमी आती है।
सामान्यतः शुरूआती तीन दिनों में यह ज्यादा संक्रामक होती है। प्रखंड के रामनगर सहित कई गावों में लोग चिकन पॉक्स से आक्रांत हो रहे है। आज भी चिकन पॉक्स होने पर लोग झाड़ फूंक के चक्कर में रहते है। चिकन पॉक्स से आक्रांत लोग दो-तीन दिन तक कहीं नहीं जाते है, जिस वजह से स्वास्थ्य विभाग के पास कोई ठोस आकड़ भी उपलब्ध नहीं है। चिकन पॉक्स एक वायरल संक्रमण है, और यह मौसम वायरस बढ़ने के लिए सबसे अनुकूल माना जाता है। चिकन पॉक्स के कारण शरीर पर दाने या छाले हो जाते है, जिनमें काफी खुजली और जलन की समस्या होती है। यह रोग बच्चों को अधिक प्रभावित करता है। डॉक्टर के मुताबिक चिकन पॉक्स की समस्या में शरीर पर दाने और छाले हो जाते है। ये दाने खुजली, द्रव से भरे फफोले में बदल जाते है। दाने पहले, पीठ और चेहरे पर दिखाई दे सकते है और फिर संक्रमण बढ़ने के साथ मुंह, पलकों या जननांग सहित पूरे शरीर में फैल सकता है। आमतौर पर संक्रमण ठीक होने में एक सप्ताह तक का समय लग सकता है। शरीर पर दानों के साथ बुखार, थकान, भूख में कमी और सिरदर्द की समस्या भी हो सकती है। प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डा. विनय कुमार ने कहा कि चिकन पॉक्स का वैक्सीनेशन नहीं होता है, इसलिए अस्पताल के पास कोई आकड़ा नहीं है। बावजूद ग्रामीण इलाकों में चिकिन पॉक्स होने की बात सामने आ रही है। आमतौर पर इसमें डॉक्टर घरेलू उपायों को प्रयोग में लाने की ही सलाह देते है। कैलामाइन लोशन और एडेडबेकिंग सोडा, ओटमील बाथ आदि से खुजली से राहत मिल सकती है।
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