आयुर्वेद कॉलेज के शिक्षकों को 10 वर्ष से वेतन नहीं, नामांकन भी बंद
मोतिहारी के रवींद्र नाथ मुखर्जी आयुर्वेद चिकित्सा महाविद्यालय की हालत बहुत खराब है। पिछले 10 वर्षों से शासी निकाय की बैठक न होने के कारण शिक्षकों और कर्मचारियों का वेतन नहीं मिल पा रहा है। सरकार को इस...
वाल्मिकी की तपोभूमि व महात्मा गांधी की कर्मभूमि मोतिहारी के बसवरिया-पतौरा अवस्थित लगभग 70 वर्ष पुराना रवींद्र नाथ मुखर्जी आयुर्वेद चिकित्सा महाविद्यालय अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। चंपारण के इस महाविद्यालय का जीर्णोद्धार जरूरी है। शासी निकाय की बैठक व चुनाव नहीं हो पाने की वजह से पिछले 10 वर्षों से महाविद्यालय के शिक्षक व शिक्षकेत्तर कर्मचारियों का वेतन नहीं मिल सका है। परिवार का भरण-पोषण मुश्किल हो गया है। महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ.नरेंद्र कुमार, प्रधान सहायक रामबाबू सिंह, सुधीर सिंह, पुष्कर बनर्जी, प्रभाकर तिवारी, चंदेश्वर सिंह, अजय कुमार पांडेय, रामकृष्ण प्रसाद आदि ने बताया कि इस महाविद्यालय की स्थापना 1955 में बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ.श्रीकृष्ण सिंह ने भारतीय चिकित्सा परिषद नई दिल्ली के मानदंड के अनुरूप किया था।
देश भर से विद्यार्थी यहां पढ़ने आते थे और आयुर्वेद चिकित्सक बन कर लौटते थे। देश में इस कॉलेज का 14वां स्थान प्राप्त था। यहां से पढ़े डॉक्टर देश के विभिन्न हिस्सों में अपनी सेवा प्रदान कर रहे हैं। बेतिया राज के महाराज महाराजा हरेंद्र किशोर द्वारा प्रद्दत जमीन पर निर्मित इस महाविद्यालय को चालू करने की कोई गंभीर पहल नहीं हुई है। लंबे समय से महाविद्यालय में शासी निकाय की बैठक नहीं हो सकी है। साल 2010 के बाद से महाविद्यालय की स्थिति खराब है। श्रीप्रकाश, संजय कुमार, जयश्री राय, राज किशोर चौधरी, अनिरुद्ध राय, श्रीसहनी, ओमप्रकाश शुक्ला, सुरेंद्र सिंह, अतुल कुमार दास ने बताया कि बिहार सरकार ने शासी निकाय को अवक्रमित कर 2015 में डीएम को महाविद्यालय के शासी निकाय का अध्यक्ष बनाया। बावजूद इसके बैठक व चुनाव नहीं हो सका। इसके पश्चात कर्मियों के वेतन व संसाधन की मांग के लिए फाइल बढ़ाने पर 2017 में डीडीसी को शासी निकाय का अध्यक्ष बना दिया गया। शासी निकाय की कमेटी का गठन नहीं होने की वजह से महाविद्यालय के शिक्षकों व कर्मियों का वेतन भुगतान पिछले 10 वर्षों से लंबित है। वेतन भुगतान नहीं होने से शिक्षकों व शिक्षकेत्तर कर्मचारियों का परिवार चलाना मुश्किल हो गया है। बच्चों की पढ़ाई व परिवार चलाने में परेशानी हो रही है। इस महाविद्यालय में बीएएमएस की पढ़ाई होती थी। इसके लिए 40 सीट निर्धारित था। नए प्रावधान के तहत 60 से 100 विद्यार्थियों का नामांकन हो सकता है। मगर, शासी निकाय की बैठक के अभाव में एनसीआईएसएम से मान्यता नहीं मिल पा रही है। हाईकोर्ट के आदेश पर 2007-08 बैच के 65 विद्यार्थियों की परीक्षा होनी है। बता दें कि इस महाविद्यालय में सात क्लिनिकल डिपार्टमेंट संचालित होते थे। महाविद्यालय में आज भी 65 कर्मचारी सक्रिय रूप से अपनी भूमिका निभा रहे हैं। इसमें 20 शिक्षक तथा 45 शिक्षकेत्तर कर्मचारी शामिल हैं। पिछले 10 वर्षों से वेतन भुगतान नहीं हो पाने की वजह से इनके परिवार के समक्ष आर्थिक तंगी उत्पन्न हो गयी है। चार अप्रैल को जिला प्रशासन ने महाविद्यालय को नोटिस भेज कर लीज की अवधि पूरी होने, भूमि का सही उपयोग नहीं होने तथा बिहार सरकार की जमीन बताकर बेतिया राज की जमीन को खाली करने को कहा है, ताकि इसका इस्तेमाल सरकारी काम के लिए हो सके। ल्मिकी की तपोभूमि व महात्मा गांधी की कर्मभूमि मोतिहारी के बसवरिया-पतौरा अवस्थित लगभग 70 वर्ष पुराना रवींद्र नाथ मुखर्जी आयुर्वेद चिकित्सा महाविद्यालय अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। चंपारण के इस महाविद्यालय का जीर्णोद्धार जरूरी है। शासी निकाय की बैठक व चुनाव नहीं हो पाने की वजह से पिछले 10 वर्षों से महाविद्यालय के शिक्षक व शिक्षकेत्तर कर्मचारियों का वेतन नहीं मिल सका है। परिवार का भरण-पोषण मुश्किल हो गया है। महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ.नरेंद्र कुमार, प्रधान सहायक रामबाबू सिंह, सुधीर सिंह, पुष्कर बनर्जी, प्रभाकर तिवारी, चंदेश्वर सिंह, अजय कुमार पांडेय, रामकृष्ण प्रसाद आदि ने बताया कि इस महाविद्यालय की स्थापना 1955 में बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ.श्रीकृष्ण सिंह ने भारतीय चिकित्सा परिषद नई दिल्ली के मानदंड के अनुरूप किया था। देश भर से विद्यार्थी यहां पढ़ने आते थे और आयुर्वेद चिकित्सक बन कर लौटते थे। देश में इस कॉलेज का 14वां स्थान प्राप्त था। यहां से पढ़े डॉक्टर देश के विभिन्न हिस्सों में अपनी सेवा प्रदान कर रहे हैं। बेतिया राज के महाराज महाराजा हरेंद्र किशोर द्वारा प्रद्दत जमीन पर निर्मित इस महाविद्यालय को चालू करने की कोई गंभीर पहल नहीं हुई है। लंबे समय से महाविद्यालय में शासी निकाय की बैठक नहीं हो सकी है। साल 2010 के बाद से महाविद्यालय की स्थिति खराब है। श्रीप्रकाश, संजय कुमार, जयश्री राय, राज किशोर चौधरी, अनिरुद्ध राय, श्रीसहनी, ओमप्रकाश शुक्ला, सुरेंद्र सिंह, अतुल कुमार दास ने बताया कि बिहार सरकार ने शासी निकाय को अवक्रमित कर 2015 में डीएम को महाविद्यालय के शासी निकाय का अध्यक्ष बनाया। बावजूद इसके बैठक व चुनाव नहीं हो सका। इसके पश्चात कर्मियों के वेतन व संसाधन की मांग के लिए फाइल बढ़ाने पर 2017 में डीडीसी को शासी निकाय का अध्यक्ष बना दिया गया। शासी निकाय की कमेटी का गठन नहीं होने की वजह से महाविद्यालय के शिक्षकों व कर्मियों का वेतन भुगतान पिछले 10 वर्षों से लंबित है। वेतन भुगतान नहीं होने से शिक्षकों व शिक्षकेत्तर कर्मचारियों का परिवार चलाना मुश्किल हो गया है। बच्चों की पढ़ाई व परिवार चलाने में परेशानी हो रही है। इस महाविद्यालय में बीएएमएस की पढ़ाई होती थी। इसके लिए 40 सीट निर्धारित था। नए प्रावधान के तहत 60 से 100 विद्यार्थियों का नामांकन हो सकता है। मगर, शासी निकाय की बैठक के अभाव में एनसीआईएसएम से मान्यता नहीं मिल पा रही है। हाईकोर्ट के आदेश पर 2007-08 बैच के 65 विद्यार्थियों की परीक्षा होनी है। बता दें कि इस महाविद्यालय में सात क्लिनिकल डिपार्टमेंट संचालित होते थे। महाविद्यालय में आज भी 65 कर्मचारी सक्रिय रूप से अपनी भूमिका निभा रहे हैं। इसमें 20 शिक्षक तथा 45 शिक्षकेत्तर कर्मचारी शामिल हैं। पिछले 10 वर्षों से वेतन भुगतान नहीं हो पाने की वजह से इनके परिवार के समक्ष आर्थिक तंगी उत्पन्न हो गयी है। चार अप्रैल को जिला प्रशासन ने महाविद्यालय को नोटिस भेज कर लीज की अवधि पूरी होने, भूमि का सही उपयोग नहीं होने तथा बिहार सरकार की जमीन बताकर बेतिया राज की जमीन को खाली करने को कहा है, ताकि इसका इस्तेमाल सरकारी काम के लिए हो सके।
शिकायतें
1. महाविद्यालय के शासी निकाय के गठन व बैठक नहीं हो पाने के कारण मान्यता नहीं मिल पा रही है।
2. 2015 में डीएम व 2017 में डीडीसी को महाविद्यालय के शासी निकाय का अध्यक्ष बनाया गया। मगर, बैठक नहीं हो पायी।
3. शासी निकाय की बैठक व चुनाव नहीं हो पाने की वजह से पिछले 10 वर्षों से शिक्षक व शिक्षकेत्तर कर्मचारियों का वेतन बंद है।
4. बेतिया राज से महाविद्यालय को जमीन 99 साल के लिए लीज पर दी गई थी। अवधि पूरा होने से पहले ही नोटिस भेज दिया गया है।
5. महाविद्यालय में बीएएमएस के लिए 40 सीट निर्धारित था। नए प्रावधान के तहत 60 से अधिक विद्यार्थियों का नामांकन होता।
सुझाव
1. महाविद्यालय के शासी निकाय का गठन व बैठक आवश्यक है। बैठक होने से मान्यता व वेतन मिलने में सुविधा होगी।
2. 2015 में डीएम व 2017 में डीडीसी को महाविद्यालय के शासी निकाय का अध्यक्ष बनाया गया। इसकी बैठक आवश्यक है।
3. पिछले 10 वर्षों से महाविद्यालय के शिक्षक व शिक्षकेत्तर कर्मचारियों का वेतन बंद है। इस दिशा में सार्थक पहल जरूरी है।
4. बेतिया राज से महाविद्यालय को जमीन 99 साल के लिए लीज पर मिली थी। अवधि पूरा होने से पहले ही नोटिस भेजना सही नहीं है।
5. महाविद्यालय में बीएएमएस का 40 सीट था। मान्यता मिले तो 60 से अधिक विद्यार्थियों का होगा नामांकन, रुकेगा पलायन।
बोले जिम्मेदार
शहर के बसवरिया-पतौरा अवस्थित रवींद्र नाथ मुखर्जी आयुर्वेद चिकित्सा महाविद्यालय मोतिहारी शहर की धरोहर है। इसे हर हाल में चलाना चाहिए। डीएम के नेतृत्व में कॉलेज पदाधिकारियों व स्थानीय जनप्रतिनिधियों की बैठक कर इस महाविद्यालय का संचालन सुचारू रूप से कराने की जरूरत है। डॉक्टर बनाने वाली इस संस्था में नामांकन नहीं होना जिले के लिए बड़ी क्षति होगी। संस्था को सक्रिय करने का प्रयास किया जाएगा। असफाक अहमद, विधान पार्षद, सारण शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र
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