Livelihood Crisis for 500 Families at Muzaffarpur s Dhobi Ghat Due to Rising Costs कपड़े चमकाने में फीकी पड़ जाती चेहरे की चमक, नहीं मिलती मेहनत की कीमत, Muzaffarpur Hindi News - Hindustan
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कपड़े चमकाने में फीकी पड़ जाती चेहरे की चमक, नहीं मिलती मेहनत की कीमत

मुजफ्फरपुर के सिकंदपुर धोबी घाट पर कपड़े धोने वाले लगभग 500 परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट है। महंगाई के चलते मजदूरी में वृद्धि नहीं हुई है और काम की जगह भी ठीक नहीं है। प्रशासन की अनदेखी और...

Newswrap हिन्दुस्तान, मुजफ्फरपुरSun, 1 June 2025 07:10 PM
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कपड़े चमकाने में फीकी पड़ जाती चेहरे की चमक, नहीं मिलती मेहनत की कीमत

मुजफ्फरपुर। सिकंदपुर धोबी घाट पर कपड़े की धुलाई कर आजीविका चलाने वाले करीब पांच सौ परिवार के समक्ष अब रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। बढ़ती महंगाई के अनुसार मेहनताना नहीं मिलने और काम करने की जगह ठीक नहीं होने से उन्हें रोज मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। सरकार से मिलने वाली योजनाओं का लाभ नहीं मिलने का मलाल है तो प्रशासन की अनदेखी भी उनकी पीड़ा बढ़ा रही है। शहर में कभी आठ धोबी घाट हुआ करता था। आज एक मात्र सिकंदरपुर धोबी घाट है। यहां कल्याणी, सरैयागंज, योगिया मठ, करबला, ब्रह्मपुरा के भी धोबी समाज के लोग पहुंचते हैं।

इस हिसाब से यहां ढंग का ना एक घाट है और ना कपड़े सुखाने की जगह बची है। शहर में कभी आठ धोबी घाट हुआ करते थे पर आज एक मात्र सिकंदरपुर धोबी घाट है। इस घाट को भी सौंदर्यीकरण के नाम पर तहस-नहस कर दिया गया है। यहां ना तो धुलाई के लिए अच्छी व्यवस्था है और ना कपड़े सुखाने की जगह बची है। सुमित्रा देवी कहती है कि सिकंदरपुर धोबी घाट में सौंदर्यीकरण के नाम पर घाट पर लोहे की जाली से ढका पत्थर पैर में चुभता है। घाट खतरनाक बन गया है। सुखाने के दौरान जाली में फंसकर कई बार कपड़े फट जाते हैं, जिसका हर्जाना देना पड़ जाता है। बारिश होने या आंधी धूल उड़ने पर सूखे कपड़े को रखने के लिए शेड तक नहीं है। इस कारण कपड़े गंदे हो जाते हैं और दोबारा धुलाई करनी पड़ती है। अखिल भारतीय धोबी महासभा के प्रदेश अध्यक्ष देवन रजक कहते हैं कि पुश्तैनी पेशा से परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है। शहर में चमक धमक से चल रहे लॉन्ड्री के पीछे धोबी समाज की मेहनत है। लॉन्ड्री वाले ग्राहकों से तो अच्छा पैसा वसूलते हैं पर कपड़े धुलाई कर पहुंचाने वाले धोबी को वहीं पुरानी मजदूरी देते हैं। रेलवे, अस्पताल और अन्य जगहों का काम समाज के लोगों को मिले तो जीवन की गाड़ी रफ्तार पकड़ सकती है। महासभा के महानगर अध्यक्ष अर्जुन रजक कहते हैं कि महंगाई बढ़ने के बाद भी उचित मजदूरी नहीं मिलने से इस पेशे को छोड़कर कई लोग दूसरी जगह मजदूरी करने लगे हैं। शहर की दवा दुकान, रेडीमेड कपड़ा दुकान और कई लोग अपना खुद का व्यापार शुरू कर दिए हैं।

सर्फ-सोडा की कीमत तीन गुना बढ़ी, मजदूरी नहीं :

सिकंदरपुर के दिनेश कुमार बताते हैं कि 2017 में 20 रुपये सोडा और 25 रुपये किलो सर्फ खरीदते थे। अभी सोडा 60 रुपये और सर्फ 80 से सौ रुपये किलो हो गया है। उस समय सात रुपये प्रति कपड़े की धुलाई की मजदूरी मिलती थी जो इन आठ सालों में बढ़कर मात्र दस रुपये पर पहुंची है। महंगाई के हिसाब से मजदूरी नहीं मिलने से घर परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है। चंदेश्वर रजक ने बताया कि उनके परिवार के लोग अंग्रेजों के जमाने से धुलाई का काम करते आ रहे हैं। तब पिता जी काम करते थे और पूरा परिवार आराम से चल जाता था। आज बेटा-बहू सब मिलकर धुलाई का काम करते हैं, फिर भी घर में अभाव बना रहता है। योगेन्द्र रजक ने कहा कि पूरा जीवन शहर के विभिन्न लॉन्ड्रियों में बिता दिया। कहीं वाजिब मजदूरी नहीं मिली। जब काम शुरू किया तब 150 रुपये मासिक मिल रहा था। अंतिम लॉन्ड्री में काम छोड़ा तक छह हजार रुपये मासिक मिल रहे थे। सिकंदरपुर के लोगों ने बताया कि धोबी घाट पर मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। इससे सबसे ज्यादा परेशानी महिलाओं को होती है। धोबी घाट पर कपड़े रखने के लिए और बैठने के लिए शेड और महिलाओं के लिए शौचालय की व्यवस्था होनी चाहिए। कपड़ा धुलाई के बाद सुखाने के लिए भी दूसरी जगह ले जाना पड़ता है।

बोले जिम्मेदार :

बिहार शताब्दी असंगठित कार्य क्षेत्र कामगार शिल्पकार सामाजिक सुरक्षा योजना के अंतर्गत मजदूर वर्ग के लोग आते हैं। असाध्य बीमारी के लिए चिकित्सीय लाभ समेत मुख्यमंत्री चिकित्सा सुविधा के तहत लाभ दिए जाते हैं। इसके अलावा स्वाभाविक मृत्यु पर 50 हजार एवं दुर्घटना या डूबने की स्थिति में दो लाख की मदद आश्रित को दी जाती है।

- नीरज नयन, उप श्रम आयुक्त

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