Aurangzeb Bloody Ascent to the Mughal Throne 366 Years Ago know history भाइयों का कत्ल, बाप को जेल... 366 साल पहले आज ही दिल्ली की गद्दी पर बैठा था क्रूर औरंगजेब, Ncr Hindi News - Hindustan
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भाइयों का कत्ल, बाप को जेल... 366 साल पहले आज ही दिल्ली की गद्दी पर बैठा था क्रूर औरंगजेब

366 साल पहले मुगल बादशाद औरंगजेब ने दिल्ली की गद्दी हथियाई। भाइयों दारा, शुजा और मुराद का कत्ल करवाया। जजिया कर लागू किया, मंदिर तोड़े, गुरु तेग बहादुर की हत्या की।

Anubhav Shakya लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीWed, 4 June 2025 10:36 AM
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भाइयों का कत्ल, बाप को जेल... 366 साल पहले आज ही दिल्ली की गद्दी पर बैठा था क्रूर औरंगजेब

आज से 366 साल पहले यानी 4 जून 1659 को मुगल हुकूमत के इतिहास में एक नया अध्याय लिखा गया, जब आलमगीर औरंगजेब ने दिल्ली की गद्दी पर आधिकारिक रूप से कब्जा किया। औरंगजेब सबसे क्रूर मुगल शासक माना जाता है। यह वह दिन था जब एक शहजादे के बादशाह बनने की जिद ने न केवल उसके भाइयों की जान ली, बल्कि एक ऐसे शासन की नींव रखी, जिसे इतिहास क्रूरता, युद्धों और धार्मिक कट्टरता के लिए हमेशा याद रखेगा।

गद्दी की जंग में भाइयों की ली जान

औरंगजेब, तीसरे मुगल बादशाह शाहजहां का तीसरा बेटा था, जो 1618 में गुजरात के दाहोद में पैदा हुआ था। उसकी महत्वाकांक्षा और रणनीतिक चतुराई ने उसे अपने भाइयों- दारा शिकोह, शाह शुजा और मुराद बख्श के खिलाफ खड़ा कर दिया। 1657 में शाहजहां की बीमारी की खबर ने उत्तराधिकार की जंग को हवा दी। इतिहासकार जदुनाथ सरकार की किताब हिस्ट्री ऑफ ऑरंगजेब (1912) के अनुसार, औरंगजेब ने अपने भाइयों को हराने के लिए न केवल सैन्य शक्ति का इस्तेमाल किया, बल्कि धोखे और गठजोड़ की नीति भी अपनाई।

जब आपस में युद्ध लड़े मुगल शहजादे

धर्मट का युद्ध (1658): औरंगजेब और मुराद ने मिलकर दारा शिकोह की सेना को धर्मट (मध्य प्रदेश) में हराया।

समूगढ़ का युद्ध (1658): आगरा के पास हुए इस निर्णायक युद्ध में औरंगजेब ने दारा को बुरी तरह परास्त किया। दारा को भागना पड़ा, और बाद में 1659 में उसे पकड़कर दिल्ली में सिर कलम कर दिया गया।

खजवा का युद्ध (1659): शाह शुजा को भी औरंगजेब ने खजवा (उत्तर प्रदेश) में हराया, जिसके बाद शुजा अराकान (आज का म्यांमार) भाग गया, जहां उसकी हत्या हो गई।

मुराद को भी औरंगजेब ने विश्वासघात कर ग्वालियर में कैद किया और 1661 में उसका कत्ल करवा दिया।

इसके बाद शाहजहां को आगरा के किले में नजरबंद कर दिया गया, जहां 1666 में उनकी मृत्यु हो गई। इस तरह औरंगजेब ने अपने रास्ते के हर कांटे को बेरहमी से हटाया।

औरंगजेब की क्रूरता

औरंगजेब का शासन (1659-1707) मुगल साम्राज्य के विस्तार का स्वर्णिम काल था, लेकिन उसकी नीतियों और क्रूरता ने उसे इतिहास में विवादास्पद बना दिया। इतिहासकार रिचर्ड ईटन की किताब India in the Persianate Age (2019) के अनुसार, औरंगजेब ने अपने शासन को मजबूत करने के लिए कठोर इस्लामी नीतियों को लागू किया, जिससे गैर-मुस्लिम समुदायों में असंतोष बढ़ा।

जजिया कर (1679): गैर-मुस्लिमों पर जजिया कर दोबारा लागू करना, जिसे अकबर ने खत्म कर दिया था, औरंगजेब की धार्मिक कट्टरता का प्रतीक माना जाता है।

मंदिरों का विनाश: जदुनाथ सरकार के अनुसार, औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर (बनारस) और केशव राय मंदिर (मथुरा) जैसे कई हिंदू मंदिरों को नष्ट करने का आदेश दिया।

सिख गुरुओं का दमन: नौवें सिख गुरु, गुरु तेग बहादुर को 1675 में दिल्ली में फांसी दी गई, जिसे सिख समुदाय औरंगजेब की क्रूरता के सबसे बड़े उदाहरणों में से एक मानता है।

प्रमुख युद्ध और साम्राज्य का विस्तार

औरंगजेब ने मुगल साम्राज्य को दक्षिण भारत तक फैलाया, लेकिन यह विस्तार भारी कीमत पर आया।

मराठों के खिलाफ युद्ध (1681-1707): मराठा शासक शिवाजी महाराज और बाद में उनके बेटे संभाजी के खिलाफ औरंगजेब की जंग लंबी और थकाऊ रही। 1689 में संभाजी को पकड़कर मार डाला गया, लेकिन मराठों का प्रतिरोध जारी रहा। The Cambridge History of India (1922) के अनुसार, दक्कन में मराठों के खिलाफ 25 साल की लड़ाई ने मुगल खजाने को खोखला कर दिया।

दक्कन की विजय: औरंगजेब ने बीजापुर (1686) और गोलकुंडा (1687) की सल्तनतों को जीता, लेकिन इन जीतों ने स्थानीय विद्रोहों को और भड़काया।

1707 में औरंगजेब की मौत के बाद मुगल साम्राज्य कमजोर पड़ने लगा। उसकी नीतियों ने साम्राज्य को विशाल बनाया, लेकिन धार्मिक असहिष्णुता और अंतहीन युद्धों ने इसके पतन की नींव रख दी।