नदियों में नहीं आ रहा पानी, किसानों की बढ़ गयी है परेशानी
नवादा जिले की नदियों में पानी की कमी और अतिक्रमण के कारण किसानों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। बारिश पर निर्भरता के चलते फसलें सूख रही हैं और भू-जल स्तर लगातार घट रहा है। जलाशयों में भी...

नवादा, हिन्दुस्तान संवाददाता। नवादा जिले की नदियों और उपनदियों में हालिया वर्षों में पानी आने में तमाम बाधाएं आड़े आ रही हैं। इस कारण किसानों को भारी परेशानी झेलने की नौबत रहती है। सबसे बड़ी बाधा तो यह है कि नवादा को प्रकृति का साथ नहीं मिल पाता है। रैन साइको एरिया में शामिल नवादा हमेशा से ही सुखाड़ का दंश झेलता रहा है। बस बारिश के भरोसे ही यहां की खेती-बारी है। मुश्किल यह भी है कि बारिश हो भी जाए तो नदियों तक पानी पहुंच पाना मुश्किल ही होता है। जिले की सभी प्रमुख पांच नदियां कभी बेहद चौड़ी पाट वाली थीं, जिसमें किसानों को बारिश का लाल पानी इतनी अधिक मात्रा में मिल जाता था कि कई बार बाढ़ जैसी स्थिति हो जाती थी।
लेकिन वर्तमान में हाल यह है कि अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुकीं सभी प्रमुख पांचों नदियों और आधा दर्जन उपनदियों में पानी आगे बढ़ने में ही हांफ जाता है। अतिक्रमण के अलावा नदियों में जमा होता जा रहा गाद बेहद परेशानी का कारण बना पड़ा है। गाद के कारण नदियां उथली होती जा रही हैं। गहराई का कम होना भी पानी की मात्रा को सीमित कर देता है, जो पानी के अभाव का कारण बनता है। इसके अलावा, नदियां जब सूखी पड़ी रहती हैं तब नदियों में कास के पौधे और झाड़-झंखाड़ इस कदर उग आते हैं कि इससे पानी का प्रवाह बाधित हो कर रह जाता है। उल्लेखनीय है कि नवादा की नदियों में तब ही प्रचुर मात्रा में पानी आ पाता है जब झारखंड में अच्छी बारिश हो लेकिन जब झारखंड का पानी जिले में प्रवेश करता है तो इस पानी को नियंत्रित करने के लिए डैम में संग्रह करने की व्यवस्था है। डैम में पानी का संग्रह करने का नियम भी आड़े आता है। नियमानुसर डैम में डेड स्टोरेज लेवल तक पानी को संग्रहित करने की बाध्यता होती है जबकि इससे अधिक पानी हो तो तब ही इसे छोड़ा जाता है अन्यथा पानी का अभाव बना रहता है। इतनी परेशानियों को पाटने के बाद ही नदियों में पानी पहुंच पाता है और फिर किसी प्रकार नवादा जिले के किसान अपनी खेती-बारी का काम कर पाते हैं। नवादा में नहीं हो पाती है बारिश तो मुरझा कर रह जाती हैं फसलें बारिश की बेरूखी जारी रहने पर आसमान में निकलने वाले तीखी धूप के कारण खेतों में लगी धान की फसल मुरझाने लगती है। ऐसे में किसानों के लिए अपनी फसल को बचा पाना टेढ़ी खीर साबित होता है। पटवन आदि कर किसी प्रकार फसल बचा ली जाती है तो कम उत्पादन ही हाथ लग पाता है। जितनी कम बारिश होती है, नुकसान का दायरा उसी अनुपात में बढ़ता ही चला जाता है। खेती में काफी लागत के बाद सिंचाई के अभाव में मार खाती फसलों को देख कर किसान टूटते चले जाते हैं। लघु और सीमांत किसानों की हालत पतली होती चली जाती है। साधन सम्पन्न किसान ही प्रकृति की बाधाओं को भी झेल कर अपनी फसलों का बचा पाते हैं। लगातार घट रहा है भू-जल स्तर, परेशानी हो रही बड़ी जिले में लगातार ही भू-जल स्तर घट रहा है, जिससे परेशानी बड़ी हो रही है। नवादा जिले में पिछले साल की तुलना में भू-जल स्तर 10.6 फीट अधिक नीचे चला गया है। जिले की विभिन्न नदियों के आसपास के गांवों में भूगर्भ जलस्तर में अलग ही भारी गिरावट है। सामान्य दिनों में जिले में जहां औसतन 20 से 25 फीट भूगर्भ जलस्तर रहता है, वहीं वर्तमान में औसतन 40 से 45 फीट नीचे तक भूगर्भ जलस्तर पहुंच चुका है। जानकारों के अनुसार, पूर्व में जलस्तर सामान्य दिनों में 20 फीट से भी बेहतर स्थिति में रहता था। दस वर्ष पूर्व तक वाटर लेवल 15 फीट तक की बेहतर स्थिति में रहता था। लेकिन अब जिले के मैदानी क्षेत्रों में 35 से 40 फीट व पहाड़ी क्षेत्रों में 40 से 45 फीट तक पानी नीचे चला जाना, एक सामान्य सी बात बन कर रह गई है। ------------------------- नदियां-जलाशय नहीं काम आ पाते हैं किसानों के नवादा। नवादा की नदियों में झारखंड में हुई बारिश के बाद ही पानी उफनाती है। लेकिन झारखंड में भी बारिश का अभाव बन जाए तो फिर जिले के लिए संकट की स्थिति बन जाती है। नवादा जिले की सबसे प्रमुख और हल्की बारिश में भी पानी से भर जाने वाली सकरी नदी समेत शेष चार प्रमुख नदियां खुरी, धनार्जय, तिलैया और ढाढर में वर्तमान में कहीं पानी नहीं दिख रहा है। नदियों में बस कास की झाड़ दिख रही है। जानकार कहते हैं कि नदियों और आसपास कास दिखने लगे तो समझ जाएं कि बारिश का अभाव रह सकता है और फसल मारी जा सकती है। जिले की प्रमुख नदियों में ही पानी नहीं है तो इनसे जुड़ी उप नदियां नाटी, बघेल, कोरिहारी, पंचाने आदि का हाल वैसे भी बुरा ही बना हुआ है। सामान्यात: जिले की प्रमुख नदियों में पूरा बहाव रहने पर औसतन चार से पांच फीट पानी रहता है और कम से तीन फीट पानी रहने पर भी खरीफ की फसल को फायदा मिल जाता है लेकिन अभी तक किसानों का इंतजार खत्म नहीं हो पा रहा है। ----------------------- नदियों के छह से सात फीट उफान पर ही किसानों को रहती है राहत नवादा। बेतरह उफनाने की स्थिति में जिले की नदियां छह से सात फीट पानी जबकि सामान्य रूप से कम से कम चार से पांच फीट पानी सहेज कर रखने वाली रही हैं। छह से सात फीट वाली उफान किसानों के लिए राहत जबकि चार से पांच फीट वाली उफान से बस संतोषजनक स्थिति बनी रहती है। वर्तमान तक 2022 वाले हाल से जिले की नदियां गुजर रही हैं। इस बार मानसून के सही समय पर आने की संभावनाएं हैं। शायद इसके बाद जिले की नदियों के साथ ही जिले के किसानों का भाग्य बदल सके। ------------------------- कई बार जलाशय भी साबित होते हैं निरर्थक नवादा। जिले के जलाशय भी किसानों का साथ निभाने में कई बार असफल साबित हो जाते हैं। जिले की लगभग सभी जलाशयों में अभी जलस्तर डेड स्टोरेज लेवल से कम है। ऐसे में नहर तक पानी भेज पाना संभव ही नहीं हो पा रहा है। विभागीय जानकारी के मुताबिक, नवादा सिंचाई प्रमंडल के तहत संचालित जमुई अवस्थित कैलाशघाटी जलाशय में डेड स्टोरेज लेवल से कम पानी है। इसके अलावा कोरिहारी सिंचाई योजना से जुड़े सभी तीनों कचना, बघेल व नाटा बियर निरर्थक पड़े हैं क्योंकि नदी में पानी ही नहीं है। जबकि रजौली सिंचाई प्रमंडल के अधीन फुलवरिया जलाशय के डेड स्टोरेज लेवल 561.5 फीट, कोल महादेव में डेड स्टोरेज लेवल 477.5 फीट, जॉब जलाशय में डेड स्टोरेज लेवल 461.5 फीट, ताराकोल जलाशय का डेड स्टोरेज लेवल 485.86 फीट और पुरैनी जलाशय का डेड स्टोरेज लेवल 422 फीट है, जबकि इन सभी में पानी इससे कम है। इस स्थिति में बिना तेज-तर्रार बारिश के नहरों में पानी छोड़ पाना मुश्किल ही है।
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