बोले पटना : चालकों की मनमानी पर रोक लगे तो नगर बस से सफर होगा सुहाना
पटना की नगर बस सेवा शहर की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था की रीढ़ है, लेकिन सुधार योजनाएं धरातल पर नहीं उतर रही हैं। ओवरलोडिंग, बसों का बीच सड़क पर रुकना और चालक-कंडक्टर की मनमानी यात्रियों के लिए समस्याएं...
नगर बस सेवा पटना की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था की रीढ़ है। इसमें सुधार के प्रयास पिछले कई वर्षों से चल रहे हैं। पुरानी डीजल बसों की जगह सीएनजी और इलेक्ट्रिक बसों को शामिल कर कुशल परिवहन सेवा देने की योजना बनी। लेकिन, र्प्रभावी निगरानी के अभाव में इन बसों से सफर करने वाले यात्री आज भी समस्याओं से जूझ रहे हैं। बसों में ओवरलोडिंग की समस्या जस की तस है। स्टॉप के बजाय चालक बसों को बीच सड़क पर रोकते हैं। चालकों की मनमर्जी और ट्रैफिक पुलिस की शिथिलता से यात्रियों को सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। यात्रियों का कहना है कि परिवहन व्यवस्था को स्मार्ट और अनुशासित बनाने से ही पटना को एक स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित किया जा सकता है।
नगर बस सेवा पटना की लाइफलाइन है। लोग कम भाड़ा में शहर के एक छोर से दूसरे छोर तक पहुंचते हैं। पटना को स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित करने के ख्याल से नगर बस सेवा में कई सुधार भी किए गए हैं। पुरानी डीजल बसों की जगह सीएनजी और इलेक्ट्रिक बसें चलाई जा रही हैं। महिलाओं और छात्राओं के लिए कुछ मार्गों पर पिंक बसों का परिचालन किया जा रहा है। लेकिन राजधानी की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था की रीढ़ मानी जाने वाली नगर बस सेवा में सुधार की ज्यादातर योजनाएं जमीन पर उतरती नहीं दिख रही हैं। बीते कुछ वर्षों में डीजल बसों की जगह सीएनजी और इलेक्ट्रिक बसें चलाई गईं। सबसे बड़ी परेशानी बस चालकों की मनमानी है। तय स्टॉप को छोड़कर जहां मन हुआ, वहां बस रोकना अब सामान्य बात हो गई है। इससे यात्री तो परेशान होते ही हैं, शहर की ट्रैफिक व्यवस्था भी रोजाना जाम की चपेट में आ जाती है। ओवरलोडिंग और ट्रैफिक नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ती हैं, लेकिन ट्रैफिक पुलिस से लेकर परिवहन विभाग तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं करता। दानापुर सब्जी मंडी से पटना जंक्शन तक रोजाना सफर करने वाले विनोद कुमार बताते हैं कि सिटी बस से सफर में कभी भी तय समय पर पहुंचना मुश्किल होता है। अक्सर दो घंटे से ज्यादा समय लग जाता है क्योंकि बसें हर थोड़ी दूरी पर रुकती हैं। कई बार तो फ्लाईओवर पर भी यात्रियों को चढ़ाने के लिए बस रोक दी जाती हैं। सुलेखा देवी बताती हैं कि एक दिन उन्होंने सगुना मोड़ से गांधी मैदान तक यात्रा के दौरान गिनती की तो पता चला कि बस पूरे रास्ते में 35 बार रुकी। हर दस कदम पर रुक-रुक कर सवारी चढ़ाई जाती है, जिससे यात्रा में काफी समय लगता है और ऊब होने लगती है। ओवरलोडिंग पर नियम हैं, पर कार्रवाई शून्य पटना की सिटी राइड बस सेवा में ओवरलोडिंग सामान्य है। नियमों के मुताबिक यदि किसी सिटी राइड बस में निर्धारित सीट संख्या से अधिक यात्री बैठाये जाते हैं या खड़े रहते हैं, तो प्रति व्यक्ति ₹200 का जुर्माना बस संचालक पर निर्धारित है। लेकिन यह नियम सिर्फ कागजों पर सख्त दिखता है। हकीकत यह है कि अब तक गिनती के एक-दो मामलों को छोड़कर किसी भी बस पर ओवरलोडिंग के लिए जुर्माना नहीं लगाया गया है। सरकारी हो या निजी, सभी सिटी राइड बसों में खुलेआम ओवरलोडिंग होती है, लेकिन ट्रैफिक पुलिस और परिवहन विभाग की ओर से इस पर कोई कार्रवाई नहीं होती है। बोरिंग रोड से हनुमान नगर तक रोजाना सिटी राइड बस से सफर करने वाले ओम कुमार बताते हैं कि हमसे कहा जाता है कि आगे सीट मिल जाएगी, लेकिन ऐसा कभी नहीं होता। पूरे सफर में खड़े रहना पड़ता है। बस बार-बार ब्रेक लेकर रुकती है, जिससे संतुलन बिगड़ता है और चोट लगने का डर बना रहता है। कई बार तो जोर से झटका लगने से लोग गिर भी जाते हैं। भीड़ में खड़े रहना, गर्मी और धूल में झुलसना और समय की बर्बादी-ये सब इस सेवा का हिस्सा बन गए हैं। चालक-कंडक्टर की मिलीभगत से राजस्व की चोरी बिहार राज्य पथ परिवहन निगम की सिटी बसों में स्पष्ट प्रावधान है कि केवल सीट के मुताबिक ही यात्री चढ़ाए जाएं, और सभी से निर्धारित किराया लेकर टिकट दिया जाए। लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। यात्रियों की मानें तो कई सरकारी सिटी बसों के चालक और कंडक्टर सीट से अधिक यात्रियों को जानबूझकर बस में चढ़ाते हैं। खड़े यात्रियों से कम भाड़ा लिया जाता है और उन्हें टिकट तक नहीं दी जाती। इससे वे यात्री निगम के रिकार्ड में नहीं आते और वह पैसा सीधे चालक व कंडक्टर की जेब में चला जाता है। छोटू कुमार और शुभम कुमार, जो अक्सर आयकर चौराहा से सगुना मोड़ के बीच यात्रा करते हैं, बताते हैं कि जब सीट मिलती है तो हमसे ₹50 रुपए लिया जाता है और टिकट भी मिलती है। लेकिन जिस दिन बस में खड़े रहना पड़ता है, उस दिन सिर्फ ₹30 रुपये लेकर टिकट छोड़ दिया जाता है। यात्रियों के अनुसार, इस तरह की वसूली से न केवल राज्य परिवहन निगम को आर्थिक नुकसान होता है, बल्कि कई बार यात्री और कंडक्टर के बीच बहस और झड़प भी हो जाती है, खासकर तब जब कोई यात्री टिकट की मांग करता है। दर्द-ए-दास्तां पड़ाव की जगह बीच सड़क पर रुकती हैं सिटी बसें नगर बस सेवा को व्यवस्थित करने के लिए प्रशासन ने शहर भर में सैकड़ों बस पड़ाव बनाए हैं। कई स्थानों पर तो बस स्टॉप को हाईटेक भी किया गया है, जहां यात्रियों के बैठने के लिए छायादार स्थान, डिस्प्ले बोर्ड और आवश्यक सुविधाएं भी मुहैया कराई गईं। लेकिन विडंबना यह है कि अधिकांश सिटी बसें इन बस स्टॉप पर रुकती ही नहीं। बस पड़ाव के बजाय, जैसे ही किसी यात्री ने सड़क पर हाथ दिया, बस बीच सड़क पर ही रुक जाती है। नतीजतन, उसके पीछे लंबी लाइन लग जाती है और शहर की पहले से जर्जर ट्रैफिक व्यवस्था और अधिक चरमरा जाती है। लेकिन बस चालक को न तो यात्री की सुरक्षा की चिंता है, और न ही जाम की। यात्री रौशन कुमार जो जीविका संस्था में कार्यरत हैं, बताते हैं कि मैं रोज आयकर चौराहा से नगर बस सेवा से आता-जाता हूं। कई बार बस स्टॉप होने के बावजूद, ड्राइवर बीच सड़क पर ही रोक देता है। वहां दोनों तरफ से गाड़ियां आती-जाती हैं। इससे बस से उतरने में बहुत परेशानी होती है। कई बार तो ऐसा लगता है कि बस से उतरने में ही हादसा हो जाएगा। लेकिन कंडक्टर जल्दी-जल्दी उतार देता है। रौशन की तरह हजारों यात्री हर दिन इसी तरह जान जोखिम में डालकर यात्रा करते हैं। शिकायतें - नगर बस सेवा की नियमित निगरानी नहीं होने से यात्रियों को परेशानी होती है। रखरखाव भी ठीक नहीं है। -कभी भी चालक बस पड़ाव पर गाड़ी नहीं रोकते हैं, इससे यात्रियों को उतरने में दिक्कत होती है। - बस की सभी सीटें भरी रहती हैं, इसके बावजूद जगह-जगह बस रोक कर यात्री चढ़ाये जाते हैं। - क्षमता से अधिक यात्रियों को चढ़ाने पर यात्रियों को परेशानी होती है। - कंडक्टर यात्रियों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं। किराये को लेकर अक्सर बक-झक होती है। सुझाव - नगर बस सेवा की नियमित निगरानी हो, बसों का रखरखाव भी दुरुस्त किया जाए। - बस पड़ाव पर ही गाड़ी रोककर यात्रियों को चढ़ाया-उतारा जाये। - बेवजह बसों को कहीं पर खड़ा न किया जाये, बसों के खुलने व गंतव्य तक पहुंचने के लिए समय निर्धारित किया जाये। - बसों में सीट के मुताबिक ही यात्री को बैठाएं जाएं, ओवरलोडिंग पर प्रशासन सख्ती से कारेवाई करे। - बस पड़ाव और मल्टी मॉडल हब और बांकीपुर बस पड़ाव पर किराये की तालिका रहनी चाहिए, जिस पर हर रूट का किराया लिखा हो पटना में अलग-अलग मार्गों पर चलती हैं नगर सेवा की 285 बसें राजधानी के विभिन्न इलाकों के 50 हजार से अधिक लोग हर दिन सिटी राइड बस से सफर करते हैं। लोग कम भाड़े में गंतव्य तक पहुंचने की सुविधा के लिए सिटी राइड बस को पसंद तो करते हैं, लेकिन हर दिन उनका सफर मुश्किल भरा होता है। बार-बार ऑटो बदलने के झंझट से बचने के लिए हर इलाके से सिटी बस सेवा शुरू की गई। पूरे राजधानी में बिहार राज्य पथ परिवहन निगम की 135 बसें चलती हैं। वहीं 150 के लगभग निजी नगर बसें भी हैं। इन बसों से हर दिन हर इलाके से सैकड़ों लोग सफर करते हैं। बता दें कि राजधानी दिल्ली की तरह पटना में भी सरकारी सिटी बस सेवा कई सालों पहले शुरू की गई थी। शहर के दैनिक यात्रियों को कम भाड़े में बस की सुविधा मिले, वो हर दिन समय से गंतव्य जगह पर पहुंच जाएं। इसके लिए सिटी बस सेवा शुरू की गयी थी। लेकिन दिल्ली की तरह सफर सुहावना नहीं बल्कि परेशानी भरा रहता है। सिटी बस चलने का न तो कोई समय है और न ही सीटें तय है। जब तक बस पूरी तरह से भर नहीं जाती है, यात्री के इंतजार में रुकी रहती है। यह स्थिति बिहार राज्य पथ परिवहन निगम की भी बसों का है। मल्टी मॉडल हब से हर रूट के लिए बस उपलब्ध दैनिक यात्रियों और पटना जंक्शन से हर इलाके की बस सुविधा मिले, इसके लिए मल्टी मॉडल हब बनाया गया है। यहां से हर इलाके के लिए बस की सुविधा उपलब्ध है। इससे अब दैनिक यात्रियों को जीपीओ, आर ब्लॉक, पटना जंक्शन के बाहर बस का इंतजार नहीं करना होता है। वे आसानी से मल्टी मॉडल हब में आते हैं और बस पकड़ते हैं। राजधानी के हर इलाके में जाने के लिए यहां से बस की सुविधा है। शहर के हर इलाके के लिए सिटी राइड बस अब यहीं से खुलती है। इसमें बिहार राज्य पथ परिवहन निगम के साथ निजी बस भी शामिल है। जबकि पहले दैनिक यात्रियों को बस पकड़ने के लिए परेशानी उठानी होती थी। सड़क पर खड़े रहते थे। जब उस तरह से बस गुजरती थी तो बस पकड़ते थे। मल्टी मॉडल हब में जहां-तहां लगा रहे बस मल्टी मॉडल हब खुले एक महीने भी नहीं हुए है। बस चालक हब के अंदर जहां-तहां बस लगाने लगे हैं। जबकि हब के अंदर बस को लगाने के लिए जगह तय है। इसके बाद भी ज्यादातर बसें हब के अंदर इधर-उधर लगी रहती हैं। बस चालक और कंडक्टर पकड़-पकड़ कर यात्रियों को बैठाते हैं। पटना जंक्शन की तरफ जाने वाली मोड़ के पास ही बस लगा देते हैं। इससे पैदल आने-जाने वालों की दिक्कतें भी होती है। गोल्फ क्लब के बाद नहीं है बस पड़ाव राजधानी पटना की बात करें तो गांधी मैदान, इंकम टैक्स, बुद्ध मार्ग, पाटलिपुत्र, कंकड़बाग आदि इलाके को छोड़ दे तो कई ऐसे इलाके हैं जहां पर बस पड़ाव नहीं है। बेली रोड की बात करें तो बिहार म्यूजियम, सचिवालय, पटना जू के बाद कोई बस पड़ाव नहीं है। बिहार राज्य पथ परिवहन निगम के सूत्रों की मानें तो शहर के बहुत जगहों पर बस पड़ाव की जरूरत है। लेकिन कई इलाकों में जमीन मिलने की दिक्कत के कारण बस पड़ाव नहीं बनाया जा सका है। बस पड़ाव को ठीक करने पर करोड़ों हो चुके खर्च सिटी राइड बस के परिचालन के दौरान यात्रियों के उतरने के लिए जगह-जगह बस पड़ाव बनाये गये हैं। पिछले दस साल की बात करें तो कई बार बस पड़ाव बना कर उसे तोड़ा जा चुका है। बस पड़ाव को बेहतर बनाने के लिए करोड़ों रुपये भी खर्च किया जा चुका है। बिहार राज्य पथ परिवहन निगम के सूत्रों की मानें तो मेट्रो के कारण कई इलाकों का बस पड़ाव को तोड़ दिया गया है। मेट्रो शुरू होने के बाद उन इलाकों में फिर से बस पड़ाव बनाया जाएगा। इससे फिर एक बार बस पड़ाव पर करोड़ों रुपये खर्च होंगे।
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