Skating Craze in Patna Lack of Rink Hindering Medal Aspirations बोले पटना : स्केटिंग का जुनून तो बढ़ा पर रिंग का अभाव पदक की राह में रोड़ा, Patna Hindi News - Hindustan
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बोले पटना : स्केटिंग का जुनून तो बढ़ा पर रिंग का अभाव पदक की राह में रोड़ा

इन दिनों हर उम्र के लोगों में फिटनेस को लेकर जागरूकता बढ़ी है। राजधानी के किशोर और युवाओं में खुद को चुस्त दुरुस्त रखने के लिए स्केटिंग के प्रति ललक बढ़ी है।

Newswrap हिन्दुस्तान, पटनाMon, 9 June 2025 12:31 AM
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बोले पटना : स्केटिंग का जुनून तो बढ़ा पर रिंग का अभाव पदक की राह में रोड़ा

इन दिनों हर उम्र के लोगों में फिटनेस को लेकर जागरूकता बढ़ी है। राजधानी के किशोर और युवाओं में खुद को चुस्त दुरुस्त रखने के लिए स्केटिंग के प्रति ललक बढ़ी है। पटना के कई पार्कों में और सुनसान सड़कों पर बह और शाम बच्चे और किशोर स्केटिंग करते दिख जाते हैं। कई युवा स्केटिंग को एक पेशेवर खेल के रूप में देखते हैं और वे इस क्षेत्र में राष्ट्रीय और अतंराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाना चाहते हैं। लेकिन संसाधनों की कमी उनके सामने बाधा बनी हुई हैं।

पटना में बेहतर स्केटिंग रिंग का अभाव है। ऐसे में उम्मीदवारों को सड़क या अकादमी में जाकर प्रशिक्षण लेना पड़ता है। यह अपेक्षाकृत खर्चीला होता है। वहीं स्केटिंग रिंग के अभाव में सड़क किनारे अभ्यास करने में दुर्घटना की आशंका भी बनी रहती है। पटना की सड़कों पर और पार्कों या अपार्टमेंट के खुले परिसर में इन दिनों बच्चे और किशोर स्केटिंग सीखने और अभ्यास करते नजर आते हैं। शहर के विभिन्न हिस्सों में कई स्केटिंग अकादमियां संचालित हो रही हैं, जहां दर्जनों की संख्या में बच्चे और किशोर इस खेल का प्रशिक्षण ले रहे हैं। सुबह और देर शाम राजधानी के कई हिस्सों में रोलर स्केट्स पहने बच्चे कलाबाजियां करते दिखते हैं। ये दृश्य यह बताता है कि स्केटिंग को लेकर क्रेज बढ़ा है। इसे सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि शारीरिक तंदरुस्ती और आत्मविश्वास बढ़ाने के माध्यम के रूप में देखा जा रहा है। इको पार्क रोड, हज भवन, सचिवालय रोड, कुम्हरार पार्क और अणे मार्ग जैसी जगहों पर स्केटिंग क्लासेज संचालित हो रहे हैं। किलकारी में भी बच्चे प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। गर्मी की छुट्टियों में कई अभिभावक अपने बच्चे को स्केटिंग कक्षा और अभ्यास में भाग लेने के लिए प्रशिक्षकों के पास पहुंच रहे हैं। ऐसे समय में जब स्कूलों में गर्मी की छुट्टियां हैं, शरीर को तंदुरुस्त रखने का यह एक बड़ा माध्यम बना है। आउटडोर गतिविधि होने के कारण बच्चों के बीच लोकप्रिय है। जंक फूड को लेकर क्रेजी किशोरों में फिटनेस की इस दिवानगी पर अभिभावक पैसे भी खर्च कर रहे हैं। पिछले पांच छह सालों में बढ़ा चलन कोरोना काल के बाद जब घरों में अभिभावकों के बीच फिटनेस को लेकर बच्चों ने गंभीरता देखी तो बच्चे भी इसके प्रति सजग हुए। इसके लिए बच्चों ने अभिभावकों से स्केटिंग की कक्षाओं में जाने को लेकर प्रेरित किया। पार्कों में मार्निंग वॉक करने के दौरान अभिभावकों ने भी स्केटिंग के प्रशिक्षण के बारे में पता किया। एक ओर अभिभावक मॉर्निंग वॉक करने लगे वहीं आंख के सामने वे बच्चों को प्रशिक्षण भी दिलवाने लगे। कामकाजियों ने अपने अनुकूल समय ढूंढ़ा तो शाम में भी पार्कों में स्केटिंग का प्रशिक्षण होने लगा। गोला रोड स्थित स्केट जोन अकादमी के कोच प्रशांत कुमार बताते हैं कि पटना में अब कई स्केटिंग अकादमियां संचालित हो रही हैं, जहां प्रोफेशनल ट्रेनर स्केटिंग की बारीकियां सिखाते हैं। इस खेल के लाभ की वजह से अभिभावकों और बच्चों में इसके प्रति रूचि बढ़ी है। हालांकि इसमें नियंत्रण बनाए रखना बेहद चुनौतीपूर्ण होता है। इस खेल की अपनी ही खासियत है, जो बच्चों में मानसिक और शारीरिक विकास, एकाग्रता और आत्म-विश्वास को बढ़ाता है। एक समय था जब पटना में इस खेल के लिए उतने अच्छे संसाधन उपलब्ध नहीं थे। जिसके कारण वे सड़क पर ही खुद से इसे सीखते थे। लेकिन हाल के वर्षों में निजी तौर पर ही सही इस खेल ने लोगों के बीच अपनी एक अलग पहचान बनाई है। तीन साल से अधिक उम्र के बच्चे ले रहे प्रशिक्षण प्रशिक्षकों का कहना है कि स्केटिंग सीखने की कोई उम्र नहीं होती। तीन साल से अधिक उम्र का कोई भी बच्चा इस खेल को आसानी से सीख सकता है। स्केटिंग सीखने की न्यूनतम अवधि 3 -6 महीने तक होती है। इसके लाभ से अवगत अभिभावक भी कम उम्र से अपने बच्चों को स्केटिंग के लिए प्रेरित कर रहे हैं। वे चाहते हैं उनके बच्चे इससे स्वस्थ तो होंगे ही। उनका मानसिक स्वास्थ्य भी बेहतर होगा। प्रशिक्षण की शुरुआत बेहद सरल अभ्यासों से होती है। इसमें व्यायाम ,दौड़, वार्मअप जैसी गतिविधियां करवाई जाती है। उसके बाद स्केट्स पहना कर संतुलन के लिए पहले घास पर चलाया जाता है। उसके कुछ दिनों बाद चिकनी सतह पर प्रैक्टिस होती है। यदि कोई खिलाड़ी पेशेवर स्तर पर प्रतियोगिता में भाग लेना चाहता है, तो उसे 6 से 8 महीने या उससे अधिक समय लग सकता है। इस खेल में धैर्य और निरंतर अभ्यास की जरूरत होती है। ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों के लिए मददगार है स्केटिंग टैलेंट इंस्टीट्यूट ऑफ आर्ट्स एंड स्पोर्ट्स अकादमी के संचालक सौरभ कुमार बताते हैं, स्केटिंग सिर्फ सामान्य बच्चों के लिए ही नहीं, बल्कि ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों के लिए भी एक कारगर उपाय साबित हो रहा है। ऑटिज्म से ग्रसित बच्चे जब ऐसी गतिविधियां लगातार करते हैं तब उनका फोकस बढ़ता है। इससे उन्हें मानसिक रूप से मजबूती मिलती है। उनके व्यवहार में भी सकारात्मक बदलाव देखा गया है। डॉक्टर्स भी ऐसे बच्चों को इस खेल से जुड़ने की सलाह देते हैं। कई अभिभावक अब ऐसे बच्चों को लेकर पहुंच रहे हैं और उनका मानसिक विकास भी देखा गया है। यह खेल ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों के लिए एक चिकित्सीय और मनोरंजक गतिविधि दोनों के रूप में काम करता है। पटना में विशिष्ट मैदान की कमी स्केटिंग कोच सौरभ कुमार बताते हैं,अब स्केटिंग सिर्फ शौक नहीं, बल्कि एक करियर विकल्प भी बन रहा है। अब बिहार के बच्चे भी स्केटिंग में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग लेने का सपना देख रहे हैं। इसके लिए वे कड़ा अभ्यास करते हैं। कई स्कूलों में भी स्केटिंग का संचालन करवाया जा रहा है। केवीएस, सीबीएसई, आईसीएसई बोर्ड भी इस खेल को बढ़ावा दे रही हैं। इनके द्वारा संचालित स्कूल अंतर-खेल प्रतियोगिताएं भी आयोजित करते हैं, जिसमें छात्रों को अपनी प्रतिभा दिखाने और विभिन्न खेलों में प्रतिस्पर्धा करने का अवसर मिलता है। हालांकि, पटना में स्केटिंग के लिए एक विशिष्ट मैदान की कमी है। ज्यादातर स्कूल में छात्रों को बास्केटबॉल कोर्ट पर ही इसकी अभ्यास करना पड़ता है। अन्य खेलों के मुकाबले इस खेल में कई संसाधनों की कमी है। जिसके कारण बिहार के खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। अगर उन्हें सरकारी स्तर से थोड़ी मदद मिले तो वो भी जल्द मेडल लेकर आएगे। प्रतिमाह 15 सौ से दो हजार तक प्रशिक्षण में खर्च स्केटिंग कोच कुंदन कुमार बताते हैं, स्केटिंग सीखने के लिए प्रति माह 1500 से 2000 रुपये लगते हैं। इसके लिए एक प्रॉपर किट है। अच्छे स्केट्स की कीमत 2,000 रुपये से शुरू होकर 50,000 रुपये तक है। कई ब्रांड की किट तो लाख रुपये तक खर्च कर मिल पाती है। इसकी कीमत स्केट्स की गुणवत्ता, ब्रांड पर निर्भर करती है। शुरुआती स्तर पर साधारण स्केट्स से काम चलाया जा सकता है,लेकिन पेशेवर स्तर पर अच्छे गुणवत्ता वाले स्केट्स की आवश्यकता होती है। इसके लिए सेफ्टी गेयर अलग से लेने होते हैं। ---- दर्द ए दास्तां सड़क पर स्केटिंग के अभ्यास से दुर्घटना की आशंका राज्य भर में उच्च गुणवत्ता का स्केटिंग रिंग नहीं तैयार किया गया है। कुछ वर्ष पूर्व पटना के इको पार्क में स्केटिंग का प्रशिक्षण प्राप्त करना शुरू किया गया था। ये पूरे बिहार में एक मात्र सरकारी स्केटिंग रिंग है। कुछ सालों तक यह सही तरीके से चला, लेकिन कोरोना के बाद से यहां पर्याप्त क्लासेज संचालित नहीं हो रही हैं। यहां एक घंटे के अभ्यास के लिए 50 रूपये शुल्क तय किया गया था। राज्य स्तर के खिलाड़ी आदित्य रंजन बताते हैं कि पटना में स्केटिंग के लिए बेहतर रिंग उपलब्ध नहीं है। जो अकादमी में रिंग होते है वो उतने बड़े नहीं होते जहां खुलकर अभ्यास किया जा सके। इसके साथ ही वहां अन्य खिलाड़ियों से टकराने का भी खतरा बना रहता है। जिसके कारण मैं सड़क पर ही स्केटिंग करता हूं लेकिन वहां भी सुरक्षा नहीं मिल पाती है। खिलाड़ियों के मुताबिक, जिन उम्मीदवारों को राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करना हैं,उन्हें 200 मीटर लंबी रिंग में अभ्यास करने की आवश्यकता होती है। इस रिंग के दोनों छोरों पर घुमावदार ट्रैक होना चाहिए। लेकिन यहां इस मानक का कोई रिंग नहीं है। प्राइवेट संस्थानों में शुल्क देना सबके बस की बात नहीं है। इस कारण जिसके कारण युवाओं को सड़कों पर ही अभ्यास करना पड़ता हैं। कई बार सड़क पर मोटरसाइकिल या पालतू जानवरों से अक्सर स्केटर्स जख्मी हुए हैं। इससे वाहन चालकों को भी खतरा रहता है। 200 मीटर रिंग की जरूरत युवा खिलाड़ी, कमलजीत कुमार गुप्ता बताते हैं, सड़क पर अभ्यास मजबूरी है, सुबह में अभ्यास करता हूं लेकिन इस दौरान हमें बहुत चौकन्ना रहना पड़ता है। कई बार सावधानी बरतने के बावजूद हादसे हुए हैं हैं। इसलिए सेफ्टी गेयर का इस्तेमाल करना बहुत महत्वपूर्ण होता है। अगर बिहार में 200 मीटर की सरकारी स्तर पर स्केटिंग रिंग का निर्माण हो जाए, तो यह खेल भविष्य में और बेहतर कर सकता है। यह खिलाड़ियों को सुरक्षित और उचित वातावरण में अभ्यास करने का अवसर मिल पाएगा, जिससे वे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने में सक्षम हो पाएगे। शिकायतें 1 खिलाड़ियों के पास अभ्यास करने के लिए पर्याप्त स्केटिंग रिंग नहीं है। 2 स्केटिंग कीट महंगे दामों पर मिलते हैं, जिसे खरीद पाना हर किसी के लिए संभव नहीं हो पाता है। 3 मानसून में स्केटिंग के लिए इंडोर जगह की व्यवस्था नहीं है, जहां बारिश में अभ्यास किया जा सके। 4 सरकारी स्तर पर संसाधनों की कमी होने से खिलाड़ियों को आगे बढ़ने का मौका नहीं मिल पा रहा है। सुझाव 1 200 मीटर लंबी स्केटिंग रिंग होना चाहिए जो स्केटिंग के अभ्यास के लिए जरूरी है। इसका निर्माण आज तक बिहार में नहीं हो पाया है। 2 सरकार खेल के उपकरणों को सस्ते दाम पर उपलब्ध कराए, ताकि खिलाड़ियों को राहत मिले। 3 इंडोर रिंग की व्यवस्था होनी चाहिए। बच्चे तेज धूप व खराब मौसम में ट्रेनिंग नहीं कर पाते हैं। 4 सरकार को मेधावी खिलाड़ियों के लिए विशेष प्रशिक्षण की सुविधा प्रदान करनी चाहिए। ::: बॉटम ::: संतुलन के इस खेल से होता है मानसिक विकास, बढ़ती है फुर्ती स्केटिंग का इतिहास काफी पुराना है। इसकी शुरुआत 13वीं शताब्दी में हुई थी, जब डच लोगों ने कनालों पर स्केटिंग करना शुरू किया था। 17वीं शताब्दी में इसे थोड़ा व्यवस्थित रूप मिला। बाद में, स्केटिंग इंग्लैंड और अन्य यूरोपीय देशों में भी लोकप्रिय होती गई। फिर तीन दशक बाद 19 वीं शताब्दी में स्केटिंग का उपयोग प्रतिस्पर्धी खेल के रूप में भी किया जाने लगा। वैसे स्केटिंग का जनक जैक्सन हेन्स को माना जाता है। इसे सीखने के कुल तीन चरन होते हैं जिसमें पहला बेसिक, दूसरा एडवांस उसके बाद पेशेवर स्तर होता है। जिसमें अलग- अलग गतिविधियां शामिल होती है। स्केटिंग सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह शारीरिक विकास और आत्मविश्वास बढ़ाता है। यही कारण है कि अभिभावक अपने बच्चों को इसका प्रशिक्षण दिलाते हैं। संतुलन का यह खेल मानसिक विकास को भी बढ़ाता है। कोच प्रशांत कुमार बताते हैं, स्केटिंग में कई स्तरों पर प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं, जिनमें जिला स्तरीय प्रतियोगिताएं, राज्य स्तरीय जैसे की बिहार स्टेट स्केटिंग चैंपियनशिप और राष्ट्रीय स्तरीय रोलर जो स्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया द्वारा संचालित किए जाते हैं। बिहार में मुख्य रूप से रोलर स्केटिंग और इनलाइन स्केटिंग की प्रतियोगिताएं होती हैं। अंडर-6, अंडर-10, अंडर-12, अंडर-14, अंडर-17, जूनियर, सीनियर आदि) होते हैं। इन प्रतियोगिताओं में पदक जीतने वाले खिलाड़ियों को राष्ट्रीय स्तर पर बिहार का प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिलता है। 11 मई, 2025 को पटना में राज्यस्तरीय अंतर जिला रोलर स्केटिंग प्रतियोगिता आयोजित की गई थी, जिसमें भागलपुर के खिलाड़ियों ने नौ पदक जीते। --- बिहार में इनडोर स्केटिंग सुविधाओं का अभाव बिहार में स्केटिंग का क्रेज लगातार बढ़ रहा है, लेकिन इस खेल को बढ़ावा देने और खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने में संसाधनों की कमी एक बड़ी बाधा है। पूरे राज्य में इनडोर स्केटिंग सुविधाओं की कमी है। खिलाड़ी कुणाल कुमार बताते हैं, मौसम की अनिश्चितता, खासकर गर्मी, बारिश और ठंड, आउटडोर स्केटिंग के लिए बड़ी चुनौती पेश करती है। तेज धूप या बारिश में अभ्यास करना मुश्किल हो जाता है, जिससे खिलाड़ियों की प्रशिक्षण बाधित हो जाती है। सर्दियों में भी खुले में स्केटिंग करना मुश्किल होता है। एक इनडोर सुविधा होने से खिलाड़ी साल भर बिना किसी रुकावट के अभ्यास कर सकते हैं। तीन प्रकार के स्केटिंग स्केटिंग के तीन मुख्य प्रकार हैं- आइस, रोलर और आर्टिस्टिक स्केट्स। आइस स्केटिंग सबसे प्राचीन है। बर्फ पर आइस स्केट्स का उपयोग करके स्केटिंग की जाती है। दिलचस्प तथ्य यह है कि पुराने जमाने में लोग बर्फ से जमे हुए पानी को पार करने के लिए जानवरों की हड्डियों का इस्तेमाल स्केट्स के रूप में करते थे। आधुनिक आइस स्केट्स जूते या बूट होते हैं जिनके निचले हिस्से में धातु के ब्लेड लगे होते हैं। रोलर स्केट्स का उपयोग करके रोलर स्केटिंग की जाती है। ---- इस खेल में जोखिम भी कम नहीं 1. गिरने का खतरा 2. चोट या मोच लगना और मांसपेशियों में खिंचाव 3. घुटना या कलाई चोटिल होना --- स्केटिंग के फायदे 1. पैर और जांघों, की मांसपेशियों को मजबूत किया जा सकता है। 2. स्केटिंग से शरीर का आत्मविश्वास बढ़ता है क्योंकि यह एक चुनौतीपूर्ण खेल है। 3. यह मनोरंजक गतिविधि है, जो टीम भावना को बढ़ावा देता है।

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