प्रखंड स्तर पर प्रशासन प्रदर्शनी लगाकर बाजार उपलब्ध कराए
समस्तीपुर में लगभग 2000 रेडीमेड कपड़ा व्यापारी हैं, जो ऑनलाइन मार्केटिंग के कारण कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। ग्राहक डिज़ाइन के लिए ऑनलाइन मांग कर रहे हैं, जिससे स्थानीय दुकानदारों का व्यापार...
समस्तीपुर। जिले में करीब दो हजार से अधिक लोग रेडीमेड कपड़ों का थोक व्यापार करते हैं। वहीं पांच हजार व्यापारी छोटी-छोटी दुकानें कर अपना जीवन यापन करते हैं। इन दुकानदारों ने अपनी समस्याओं पर चर्चा करते हुए कहा कि ऑनलाइन कपड़े और डिजाइनों के कारण व्यापार पर काफी अधिक असर पड़ा है। लोग मोबाइल में डिजाइन लेकर आते हैं और उसी तरह का कपड़ा मांगते हैं। दिल्ली या मुंबई से हर डिजाइन का कपड़ा उपलब्ध कराना मुश्किल है। जिला प्रशासन हम लोगों को भी प्रखंड और छोटे-छोटे शहरों में प्रदर्शनी लगाकर बाजार उपलब्ध कराए। शहर के रेडीमेड कपड़ों के व्यवसायी कई व्यापारिक समस्याओं से जूझ रहे हैं। इन्हें ऑनलाइन मार्केट प्लेटफॉर्म से कड़ी प्रतिस्पर्द्धा मिल रही है। यह ग्राहकों के लिए तो ठीक है लेकिन दुकानदारों के लिए मुश्किल भरा है। इससे काफी हद तक इनका व्यापार प्रभावित हुआ है। स्थानीय दुकानदार बताते हैं जैसे ही कोई नया डिजाइन दिल्ली, मुंबई, सूरत जैसे बड़े शहरों में लांच होता है, वह सोशल मीडिया ट्रेंड करने लगता है और ग्राहक इसकी डिमांड करते हैं जबकि वह डिजाइन सामान्य बाजार में आया भी नहीं होता। स्थानीय दुकानदारों ने कहना है कि सरकार एक ऐसा बिजनेस चेन या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म बनाए जिससे दुकानदारों को सामान बेचने का मौका मिले। जिला प्रशासन प्रखंड स्तर पर छोटे-छोटे कपड़ा दुकानदारों के लिए प्रतिमाह या पर्व त्योहार पर एक प्रदर्शनी का आयोजन करें इससे हमे भी बाजार उपलब्ध होगा और हमारी आय भी बढ़ेगी।
यदि सरकार या जिला प्रशासन उन्हें डिजिटल ट्रेनिंग व सरकारी सहयोग दे तो वे बाजार में फिर से अपनी पैठ जमा सकते हैं। दुकानदार आलोक कुमार कहते हैं कि ग्राहक दुकान पर आकर कपड़े पसंद तो करते हैं लेकिन जब कीमत बताई जाती है तो कहते हैं अभी उधार में दे दीजिए। दूसरी ओर वही ग्राहक ऑनलाइन में उसी जैसे कपड़े पर तुरन्त पेमेंट कर देता है, क्योंकि वहां कोई उधार की सुविधा नहीं है। इससे दुकानदार की पूंजी फंस जाती है, कैश फ्लो प्रभावित होता है और धीरे-धीरे पूरा स्टॉक डेड हो जाता है। दुकानदार को न तो पुराने माल की कीमत मिलती है और न ही वह नया माल ला पाते हैं। ऑनलाइन बाजार ने ग्राहकों की आदतें भी बदल दी हैं।
सोशल मीडिया भ्रम फैलाती है : सोशल मीडिया पर रील्स बनाकर कुछ लोग यह दावा करते हैं कि उनके पास 25 रुपए, 51 रुपए, 100 रुपए में बेहतरीन कपड़े मिलते हैं। वे दिल्ली से सरप्लस या पुराना स्टॉक लाकर उसे नया दिखाकर बेचते हैं। इन ग्राहकों को भ्रमित करता है। वह सोचता है कि हर जगह इतने सस्ते कपड़े मिलने चाहिए। फिर जब वह दुकान पर जाता है और कीमत 300 रुपए या 400 रुपए सुनता है, तो उसे लगता है कि दुकानदार उसे ठग रहा है। सच्चाई यह है कि 25-50 रुपए में रेडिमेड कपड़ा बन ही नहीं सकता। यह पूरे मार्केट को नुकसान पहुंचा रहा है।
क्वालिटी नहीं, सस्ता सामान चाहिए: ग्राहकों की मानसिकता में पिछले कुछ वर्षों में बड़ा बदलाव आया है। अब ग्राहक क्वालिटी नहीं, सिर्फ सस्ती चीज चाहता है। जितना सस्ता, उतना अच्छा, इस सोच ने रेडिमेड दुकानदारों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। जब ग्राहक किसी सेल की रील देखता है, तो वह वही दाम दुकानदार से भी मांगता है। अगर दुकानदार लागत बताता है, तो ग्राहक उसे महंगा बताकर लौट जाता है। यह प्राइस वॉर अब सामान्य व्यापार का हिस्सा बन गया है। इसमें ईमानदार दुकानदार पीछे छूट रहे हैं, जबकि मार्केटिंग और भ्रम फैलाने वाले लोग आगे निकलते जा रहे हैं। दुकानदार कृष्णमोहन पूर्वे कहते हैं कि दुकान पर ग्राहक उधार में कपड़े मांगता है, पर ऑनलाइन पर तुरंत पेमेंट कर देता है। हमसे कहता है बाद में दे दूंगा, पर ऑनलाइन में बिना पैसे के कुछ नहीं मिलता, तब भी वह ऑर्डर कर देता है। इससे हमारा सारा कैश फंस जाता है। सरकार को एक हमारे लिए विशेष नीति बनानी चाहिए ताकि हमारा भी व्यापार बेहतर हो सके।
बोले-जिम्मेदार
बाजार में जो भी समस्याएं व्याप्त है उसके निदान को लेकर प्रशासन की ओर से समय समय पर कदम उठाया जाता है। बाजार में ग्राहक ठगी के शिकार नहीं हो इसको लेकर भी जागरूकता अभियान संबंधित विभाग की ओर से चलाया जाता है। छोटे व्यवसायी की बेहतरी को लेकर उद्योग विभाग की ओर से कई योजनाएं चला रखी गई है। इसका लाभ व्यवसायी ले सकते है।
-दिलीप कुमार, एसडीओ
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