तैयारी पूरी: आज शहर से गांव तक मनाया जाएगा कुर्बानी का पर्व बकरीद
(पेज पांच की लीड)पैगम्बर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद मुस्तफा अलै सलाम को कुर्बानी करने का हुक्म दिया। ईस्लामिक कैलेंडर के अंतिम माह

डेहरी, एक संवाददाता। अल्लाह के मर्ज़ी को कुबुल करने और उनके हुक्म के समाने जान व माल को लूटा देने के नाम पर ईद-उल-अजहा यानी कुर्बानी है। यह अल्लाह के पैगम्बर हजरत अलैसलाम की सुन्नत है। अल्लाह ने पैगम्बर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद मुस्तफा अलै सलाम को कुर्बानी करने का हुक्म दिया। ईस्लामिक कैलेंडर के अंतिम माह जिल्हज्जा की 10वी को कुर्बानी बकरीद मनाया जाता है। इस वर्ष यह त्योहार 7 जून को मनाया जा रहा है। किस लिए दी जाती है कुर्बानी अल्लाह के पैगम्बर हजरत इब्राहीम को अल्लाह की तरफ से ख्वाब हुआ कि अल्लाह के नाम पर कुर्बानी करो जो चीज़ तुम्हारे नजदीक, सबसे प्यारी हो।
तो उसने अपने पुत्र को सबसे प्यारा जाना और इसी बिना पर पुत्र हजरत इस्माइल को मक्का स्थित मीना के मैदान में ले जाकर उसके गले पर चाकू चलाने लगा। लेकिन फिर अल्लाह का करम हुआ कि चाकू उसके गले को काट नही पाई। बल्कि उसके जगह अल्लाह में जन्नत से एक दुम्बा को भेजा और उसकी गर्दन काटी गई। अल्लाह ने हजरत इब्राहीम की कुर्बानी कुबूल कर ली। तभी से कुर्बानी मुसलमानों पर वाजिब हो गया। कुर्बानी हर मलदार पर वाजिब हो गया। कैसे बकरे को दी जा सकती है कुर्बानी बकरीद पर बकरे को दी जाने वाली कुर्बानी के बारे में बताया जाता है कि इसमें जानवर तंदुरुस्त और सुंदर होना आवश्यक है। लंगड़ा, अंधा बकरे की कुर्बानी मान्य नही है। कुर्बानी के जानवर का गोश्त को तीन हिस्सों में बाटने का हुक्म है। पहला हिस्सा कुर्बानी देने वाला लेगा, दूसरा रिस्तेदार और दोस्त, तथा तीसरा हिस्सा गरीबों में बांटना लाजमी है। और इसकी खाल को बेचकर नेक काम मे लगाना अनिवार्य है। करन अर्जुन, सलमान-शाहरुख़ के चर्चे बकरीद को लेकर बाजारों में हर तरफ चहल-पहल है। मोहन बिगहा व डेहरी पड़ाव का बकरा बाजार भी गुलजार रहा। यहां अलग-अलग नस्लों के बकरे देखने को मिल रहे हैं। मार्केट में इस बार जमुना पड़ी, बाड़ा बड़ी, तोता परी और लोकल नस्ल के बकरों की धूम है। ये बकरे यूपी के बलिया, वाराणसी, इटावा और अलग-अलग क्षेत्रों से आए हैं। तोता परी नस्ल का बकरा सबसे महंगा बिक रहा है। यहां करण-अर्जुन से लेकर सलमान-शाहरूख के नाम वाले भी बकरे मौजूद हैं। फिल्मी सितारों के नाम वाले ये बकरे भी लोगों को खूब भा रहे हैं। वहीं इनकी कीमतों की बात करें तो बाजार में 10 हजार से लेकर 60 हजार तक के बकरे मौजूद हैं। कहते हैं मुस्लिम अनुयायी आसिफ करीम, इरफान कुरैसी, असलम कुरैशी, पीर मोहम्मद राइन का कहना है की ईद-उल-जुहा यानी बकरीद खुशी, विशेष प्रार्थनाओं और अभिवादन करने का त्यौहार है। सभी मुस्लिम भाई इस दिन एक-दूसरे के साथ उपहार बांटते हैं। जिस तरह से हिन्दू धर्म में दीपावली पर काफी धूमधाम होती है। ठीक इसी तरह से ईद-उल-जुहा के दिन हर मुस्लिम परिवार में रौनक दिखाई देती है। इस्लाम, कौम से जीवन के हर क्षेत्र में कुर्बानी मांगता है। इस्लाम के प्रसार में धन और जीवन की कुर्बानी और बेसहारा लोगों की सेवा के लिए जान की कुर्बानी भी खास मायने रखती है।
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