मौसम और हादसे
यह ऐसा समय है, जब मौसम और मौसम जनित जोखिमों से बहुत सावधान रहने की जरूरत है। कहीं भीषण गर्मी, तो कहीं मौसम जनित हादसे रुलाने लगे हैं। उत्तर भारत के ज्यादातर इलाकों में भीषण गर्मी और लू के थपेड़ों का दौर जारी है…

यह ऐसा समय है, जब मौसम और मौसम जनित जोखिमों से बहुत सावधान रहने की जरूरत है। कहीं भीषण गर्मी, तो कहीं मौसम जनित हादसे रुलाने लगे हैं। उत्तर भारत के ज्यादातर इलाकों में भीषण गर्मी और लू के थपेड़ों का दौर जारी है, तो दूसरी ओर, मानसून भी बढ़ता आ रहा है। दो-तीन दिनों में ही झारखंड में प्रवेश करने वाला है। आगामी सप्ताह में मानसून उत्तर प्रदेश में भी प्रवेश कर जाएगा। ध्यान रहे, इस साल मानसून ने सामान्य समय से आठ दिन पहले 24 मई को केरल भूमि का स्पर्श किया है और वह अपनी गति से आगे बढ़ रहा है। मौसम विभाग का अनुमान है, दस दिन के अंदर मानसून के बादल दिल्ली और हरियाणा को भी भिगोने लगेंगे। मतलब, तय समय से आठ-दस दिन पहले ही मानसून का आगमन संभव है। यह खुशखबरी की तरह है। जब सूरज की आग उगलती किरणें और गर्म हवाएं लोगों को बीमार कर डालने को तैयार दिखती हैं, तब पंखे, कूलर का कोई अर्थ नहीं रह गया है। ऐसे में, जुबान पर बस यही सवाल है कि मानसून कब आएगा?
बहरहाल, सवाल यह भी हैकि जहां मानसून आ गया है, वहां क्या हाल हैं या जहां बारिश हो रही है, वहां क्या स्थिति है? अगर रविवार की ही बात करें, तो मौसम की मार आपदा में बदल जा रही है। दो बहुत दुखद त्रासदियां हैं, जिन पर जरूर गौर करना चाहिए। रविवार को ही रुद्रप्रयाग जिले में गौरीकुंड के वन क्षेत्र के पास हेलीकॉप्टर के दुर्घटनाग्रस्त होने से उसमें सवार पायलट समेत सात लोगों की मौत हुई है। हेलीकॉप्टर केदारनाथ धाम से गुप्तकाशी के लिए उड़ान भर रहा था और सुबह साढ़े पांच बजे दुर्घटना का शिकार हो गया। बताया जा रहा है कि यह हादसा खराब मौसम की वजह से हुआ है। अब यहां अनेक सवाल खड़े होते हैं, जब मौसम ठीक नहीं था, तब हेलीकॉप्टर उड़ाने की क्या जरूरत थी? क्या निजी विमानन या यात्रा कंपनियों के लिए उनका आर्थिक लाभ मानव जीवन से भी महत्वपूर्ण हो गया है? कुछ ही दिनों के अंदर यह अपनी तरह का दूसरा हादसा है। क्या हम हवाई यात्राओं के प्रति लापरवाह होते गए हैं? क्या हम सुरक्षा या सावधानी के मानदंडों की पालना नहीं कर रहे? अब केदारनाथ के लिए हेलीकॉप्टर सेवाएं अगले दो दिनों के लिए निलंबित कर दी गई हैं, मगर इस क्षेत्र मेें सुरक्षित सेवाएं सुनिश्चित करने के लिए गंभीरता से विचार करना चाहिए। इसके अलावा, जंगलचट्टी के पास खड्ड में मलबा और पत्थर गिरने के चलते उत्तराखंड में सोनप्रयाग से केदारनाथ धाम की तीर्थयात्रा स्थगित कर दी गई है। ये दोनों हादसे इशारा हैं कि पहाड़ों पर बहुत सावधानी से यात्रा करने की जरूरत है।
उधर, रविवार को ही पुणे में इंद्रायणी नदी पर रविवार को एक पुराना पुल ढह गया, जिसमें अनेक लोगों के मरने की आशंका है। यह एक पर्यटन स्थल है, जहां बारिश के मौसम में विशेष रूप से लोग उमड़ते हैं। रविवार होने की वजह से पुल पर हादसे के वक्त करीब सौ लोग थे। मावल तहसील के कुंदमाला इलाके के पास हुआ यह हादसा भी अनेक सवाल खड़े करता है? लोहे का पुल तीस साल पुराना था, लेकिन उस पुल पर एक साथ सौ लोगों को किसने जाने दिया? वाकई, यह मौसम ऐसा है, जब अनेक लोग अति उत्साह में अपनी जान की भी परवाह नहीं करते हैं। प्रशासन तो जिम्मेदार है ही, मगर लोगों को भी अपने स्तर पर सचेत व तैयार रहना होगा, ताकि उनकी सुरक्षा से कोई समझौता न कर सके। यह समय है, जब तमाम पुराने पुलों, सड़कों, बांधों, पटरियों और वाहनों की योग्यता-क्षमता को परख लेना चाहिए।
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